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लखनऊवासियों, क्या आपने कभी कार्तिक महीने की ठंडी, शांति भरी सुबह में देखा है कि गंगा या किसी अन्य नदी के किनारे श्रद्धालु अपने हाथों में अर्घ्य लेकर सूर्य देव को अर्पित करते हैं? यह केवल भक्ति का दृश्य नहीं है, बल्कि यह परिवार, समाज और प्रकृति के प्रति सम्मान और कृतज्ञता का जीवंत प्रतीक है। चारों ओर दीपों की मद्धिम रोशनी, गन्ने की हरी छांव और उत्सव की हलचल छठ पूजा को और भी अनुपम और यादगार बना देती है। यह पर्व, जिसे बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल में बड़े श्रद्धा भाव से मनाया जाता है, लखनऊवासियों के लिए भी चार दिन तक चलने वाला ऐसा त्योहार है जो आत्मिक शुद्धि, सामाजिक मेलजोल और पारिवारिक प्रेम का अनुभव कराता है। इन चार दिनों के दौरान, लोग संकल्प और संयम के साथ उपवास रखते हैं, नदी के ठंडे जल में खड़े होकर सूर्य और छठी मैया को अर्घ्य अर्पित करते हैं, पारंपरिक प्रसाद तैयार करते हैं और अपने परिवार और समुदाय के साथ मिलकर उत्सव की खुशियाँ साझा करते हैं। यह पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान का अवसर नहीं है, बल्कि जीवन में नई शुरुआत, आशा और सकारात्मक ऊर्जा भरने का माध्यम भी है। साथ ही, यह हमें प्राकृतिक संसाधनों जैसे जल, पेड़-पौधे और नदी तटों के महत्व का एहसास कराता है और समुदाय में सहयोग, एकजुटता और सामाजिक जिम्मेदारी की भावना को मजबूत करता है। छठ पूजा इस तरह न केवल आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करती है, बल्कि लखनऊवासियों के लिए संस्कृति, परंपरा और प्रकृति के साथ जुड़ने का एक सुंदर अवसर भी बन जाती है।
आज के इस लेख में हम सबसे पहले इसकी उत्पत्ति और पौराणिक पृष्ठभूमि समझेंगे, फिर जानेंगे कि सूर्य देव और छठी मैया की पूजा का महत्व क्या है। इसके बाद हम देखेंगे कि बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल में क्षेत्रीय विविधताएँ कैसे हैं और अंत में त्योहार का आध्यात्मिक और पर्यावरणीय महत्व।

छठ पूजा की उत्पत्ति और पौराणिक पृष्ठभूमि
छठ पूजा का संबंध सूर्य उपासना से है, जिसका प्रमाण वैदिक ग्रंथों में मिलता है, जैसे ऋग्वेद और सूर्य सूक्त, जहाँ सूर्य देव को जीवन और ऊर्जा का स्रोत माना गया है। यह पर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल में मनाया जाता है और सूर्य देव और छठी मैया के प्रति भक्ति और कृतज्ञता का प्रतीक है। छठी मैया, जिन्हें छठ देवी भी कहा जाता है, बच्चों की सुरक्षा और संतान प्रदान करने वाली देवी के रूप में पूजनीय हैं। यह पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान का अवसर नहीं है, बल्कि जीवन में आत्मिक शुद्धि, सामाजिक मेलजोल और पारिवारिक प्रेम का अनुभव कराने वाला भी है। इसके माध्यम से श्रद्धालु न केवल सूर्य और छठी मैया की उपासना करते हैं, बल्कि प्राकृतिक संसाधनों और सामाजिक सहयोग के महत्व को भी समझते हैं।
सूर्य देव और छठी मैया की पूजा का महत्व
सूर्य देव जीवनदाता हैं, और उनकी उपासना का उद्देश्य केवल भक्ति ही नहीं, बल्कि स्वास्थ्य, ऊर्जा और जीवन के चक्र को मान्यता देना भी है। उगते और ढलते सूर्य को अर्घ्य देना जीवन के नए आरंभ, आशा और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक है। छठी मैया, जिन्हें छठ देवी भी कहा जाता है, सूर्य की बहन और ब्रह्मा की पुत्री मानी जाती हैं। उनका पूजन संतान, परिवार की भलाई और समृद्धि से जुड़ा हुआ है। इस अवसर पर महिलाएँ उपवास रखती हैं, परिवार के लिए भलाई और कल्याण की कामना करती हैं। सूर्य और छठी मैया की पूजा एक संपूर्ण दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है, जिसमें जीवन, स्वास्थ्य, समृद्धि और परिवार की सुरक्षा का आशीर्वाद मांगा जाता है। लखनऊवासियों के लिए यह पर्व न केवल आध्यात्मिक महत्व रखता है, बल्कि परिवार और समुदाय को जोड़ने का अवसर भी है। बच्चों, युवाओं और बुजुर्गों को यह पर्व सिखाता है कि संयम, भक्ति और कृतज्ञता से जीवन में सकारात्मक बदलाव आ सकते हैं।

बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल में क्षेत्रीय विविधताएँ
छठ पूजा का आनंद और भव्यता हर क्षेत्र में अलग ढंग से देखने को मिलती है। बिहार में तीसरे दिन की शाम को कोसी अनुष्ठान किया जाता है, जिसमें गन्ने की छांव में मिट्टी के दीपक लगाए जाते हैं और वैदिक परंपरा का प्रतीक बनते हैं। झारखंड में इस अवसर पर खास व्यंजन जैसे छठ का ठेकुआ और कसर सूर्य को अर्पित किए जाते हैं, और आदिवासी समुदाय पारंपरिक गीत और नृत्य के माध्यम से त्योहार में रंग भरते हैं। उत्तर प्रदेश में, खासकर लखनऊ के आसपास, गंगा और यमुना के किनारे लोग सामूहिक पूजा करते हैं, प्रसाद तैयार करते हैं और समुदाय के बीच सामाजिक बंधन मजबूत करते हैं। नेपाल में भी नदी किनारे अनुष्ठान और उपवास होते हैं, जिसमें सामूहिक प्रार्थना और स्थानीय रीति-रिवाजों का पालन किया जाता है। इस प्रकार, प्रत्येक क्षेत्र अपने स्थानीय संसाधनों, परंपराओं और सांस्कृतिक रंगों के साथ छठ पूजा को मनाता है, लेकिन सभी का मूल उद्देश्य सूर्य और छठी मैया के प्रति भक्ति और कृतज्ञता बनाए रखना होता है।

त्योहार का आध्यात्मिक और पर्यावरणीय महत्व
छठ पूजा का आध्यात्मिक महत्व पवित्रता, संयम और भक्ति में निहित है। उपवास और अनुष्ठान आत्मिक नवीनीकरण का अवसर प्रदान करते हैं और परिवार की भलाई, कृतज्ञता और जीवन में संतुलन बनाए रखने का माध्यम बनते हैं। पर्यावरणीय दृष्टि से यह पर्व अत्यंत महत्वपूर्ण है। छठ पूजा से पहले नदियों, तालाबों और आसपास के क्षेत्रों की सफाई की जाती है, जिससे प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण होता है। सूर्य, जल, पेड़-पौधे आदि का पूजन प्रकृति के प्रति सम्मान और संरक्षण का संदेश देता है। लखनऊवासियों के लिए यह पर्व मानव और प्रकृति के बीच सामंजस्य और समानुभूति को दर्शाने वाला अवसर है। साथ ही यह त्योहार सामाजिक और सांस्कृतिक शिक्षा का भी अवसर प्रदान करता है, जिससे नई पीढ़ी में पारंपरिक मूल्यों, सहयोग और प्राकृतिक तत्वों के प्रति सम्मान की भावना विकसित होती है।
संदर्भ-
https://tinyurl.com/49c3dj4a
https://tinyurl.com/ymek2x96
https://tinyurl.com/3nuwtk4r