कैसे लखनऊ की बदलती हुई हवा, हम लखनऊवासियों की सेहत और भविष्य को प्रभावित कर रही है?

शहरीकरण - नगर/ऊर्जा
08-11-2025 09:10 AM
कैसे लखनऊ की बदलती हुई हवा, हम लखनऊवासियों की सेहत और भविष्य को प्रभावित कर रही है?

लखनऊ अपनी नवाबी तहज़ीब, अदब की भाषा, इमामबाड़ों की शान और दिल को सुकून देने वाली गलियों के लिए जाना जाता है। यह शहर केवल इमारतों और इतिहास का नहीं, बल्कि एक विशिष्ट संस्कृति, सुहबत और अपनापन का प्रतीक है। लेकिन बदलते समय के साथ, तेज़ी से बढ़ते ट्रैफ़िक, निर्माण कार्यों और औद्योगिक गतिविधियों ने इस शहर की हवा को भी प्रभावित करना शुरू कर दिया है। आज लखनऊ की हवा में धूलकणों और हानिकारक गैसों का स्तर धीरे-धीरे बढ़ रहा है, जिसका असर हम महसूस तो करते हैं, पर अक्सर समझ नहीं पाते - जैसे सुबह की हल्की खाँसी, सीने में जकड़न, आँखों में जलन या ज़्यादा थकान महसूस होना। हवा हमें दिखाई नहीं देती, पर उसके भीतर मौजूद बेहद सूक्ष्म कण - पीएम2.5 (PM2.5) और पीएम10 (PM10) - शरीर के अंदर गहराई तक पहुँच जाते हैं। यह कण फेफड़ों के ऊतकों को नुकसान पहुँचा सकते हैं, रक्त में मिलकर दिल और मस्तिष्क तक असर डाल सकते हैं। बच्चों, बुज़ुर्गों और पहले से अस्थमा (asthma), एलर्जी (allergy) या हृदय संबंधी रोगों से ग्रस्त लोगों में खतरा और भी बढ़ जाता है, क्योंकि उनका शरीर प्रदूषण से लड़ने में अधिक संवेदनशील होता है। इसी कारण, आज लखनऊ की वायु गुणवत्ता को समझना, उसकी वास्तविक स्थिति को जानना, और उसे बेहतर बनाने के उपायों के प्रति जागरूक होना हम सभी के लिए बेहद आवश्यक हो गया है - ताकि इस शहर की पहचान सिर्फ इसकी तहज़ीब तक सीमित न रहे, बल्कि उसकी हवा भी उतनी ही पवित्र और सुरक्षित हो।
आज इस लेख में हम लखनऊ की वायु गुणवत्ता को सरल और स्पष्ट तरीके से समझेंगे। सबसे पहले हम जानेंगे कि वर्तमान में लखनऊ का एक्यूआई स्तर क्या होता है और इसका हमारे स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है। फिर हम वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने में लखनऊ नगर निगम और स्थानीय प्रशासन की भूमिका को समझेंगे। इसके बाद हम देखेंगे कि प्रदूषण बच्चों को क्यों अधिक प्रभावित करता है और उनके स्वास्थ्य पर इसके क्या परिणाम हो सकते हैं। आगे चलकर, हम बच्चों को प्रदूषण से बचाने के व्यावहारिक और घरेलू उपाय सीखेंगे। साथ ही, हम यह भी जानेंगे कि शहर में प्रदूषण के प्रमुख स्रोत कौन-कौन से हैं। अंत में, हम समझेंगे कि स्वच्छ हवा प्राप्त करने के लिए सरकार, समाज और हम व्यक्तिगत रूप से मिलकर कैसे योगदान दे सकते हैं।

लखनऊ में वर्तमान वायु गुणवत्ता की स्थिति
लखनऊ, जिसे नवाबी तहज़ीब, इमामबाड़ा, गोमती नदी और चिकनकारी के लिए जाना जाता है, आज वायु प्रदूषण की चुनौती का सामना कर रहा है। शहर की हवा की गुणवत्ता को एक्यूआई द्वारा मापा जाता है, जो यह दर्शाता है कि हवा में मौजूद कण और गैसें हमारे स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित करती हैं। एक्यूआई का स्तर 0-50 के बीच हो तो हवा बिल्कुल साफ़ मानी जाती है, 50-100 तक संतोषजनक, 100-200 तक मध्यम रूप से प्रभावित और 200 से अधिक होने पर हवा अस्वस्थ से खतरनाक श्रेणी में पहुँच जाती है। लखनऊ में कई दिनों में एक्यूआई 120-250 के बीच रहता है, जिसका मतलब है कि हवा सामान्य दिखने के बावजूद फेफड़ों और शरीर के लिए हानिकारक हो सकती है। यह स्थिति खासकर बच्चों, बुज़ुर्गों, गर्भवती महिलाओं, अस्थमा व हृदय रोगियों के लिए खतरनाक होती है। ऐसे दिनों में डॉक्टर सलाह देते हैं कि धूलभरी सड़कों, भारी ट्रैफ़िक वाले इलाकों और खुले में अधिक समय बिताने से बचें। साथ ही, हल्की सांस लेने में परेशानी, सीने में जकड़न, आँखों में जलन या खांसी बढ़ने पर तुरंत सावधानी बरतना जरूरी है।

वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने में स्थानीय शासन की भूमिका
लखनऊ में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए नगर निगम, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड तथा जिला प्रशासन मिलकर कई योजनाएँ संचालित करते हैं। शहर में वाहनों का प्रदूषण परीक्षण (PUC) अनिवार्य किया गया है ताकि अत्यधिक धुआँ छोड़ने वाली गाड़ियाँ सड़कों पर न चलें। प्रमुख सड़कों, अस्पतालों और भीड़भाड़ वाले क्षेत्रों में मशीनों द्वारा नियमित सफाई और पानी का छिड़काव किया जाता है ताकि हवा में धूल का उड़ना कम हो सके। निर्माण स्थलों पर धूल नियंत्रित करने के नियम लागू हैं, जैसे - साइट को ढकना, सामग्री ट्रकों को कवर करना और पानी का उपयोग करके धूल बैठाना। खुले में कूड़ा जलाना पूरी तरह प्रतिबंधित है, और ऐसा करने पर जुर्माने का प्रावधान है। शहर में कई एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग स्टेशन (Air Quality Monitoring Station) लगाए गए हैं, जो हवा की गुणवत्ता का रियल-टाइम डेटा (real-time data) उपलब्ध कराते हैं, ताकि लोग स्थिति के अनुसार सावधानी बरत सकें। साथ ही, अख़बारों, स्कूलों और सामुदायिक कार्यक्रमों के माध्यम से जागरूकता अभियान चलाए जाते हैं, जिससे लोग खुद भी समाधान का हिस्सा बनें।

बच्चों पर वायु प्रदूषण का प्रभाव
बच्चों का शरीर अभी विकसित हो रहा होता है - उनके फेफड़े, दिमाग और प्रतिरक्षा प्रणाली निर्माण के चरण में होती है। इस कारण प्रदूषित हवा में मौजूद पीएम2.5, पीएम10, नाइट्रोजन ऑक्साइड (Nitrogen Oxide) और ओज़ोन (O₃) जैसे कण और गैसें उनके शरीर को अधिक नुकसान पहुँचाती हैं। बच्चे अक्सर तेज़ सांस लेते हैं और ज़्यादा समय बाहर खेलते हैं, जिससे वे वयस्कों की तुलना में अधिक प्रदूषण अंदर लेते हैं। इस कारण उन्हें सांस की दिक्कत, खांसी, एलर्जी, अस्थमा, फेफड़ों की ताकत कम होना जैसी समस्याएँ हो सकती हैं। वैज्ञानिक अनुसंधान बताते हैं कि प्रदूषण बच्चों की ध्यान क्षमता, याददाश्त, और सीखने की क्षमता पर भी प्रभाव डाल सकता है। गर्भवती महिलाओं के लिए प्रदूषण और भी जोखिम भरा है, क्योंकि यह नवजात शिशु के जन्म-वजन, दिमागी विकास और प्रतिरोधक क्षमता को प्रभावित कर सकता है। इसीलिए बच्चों और भावी पीढ़ी की सुरक्षा के लिए स्वच्छ हवा का संरक्षण अत्यावश्यक है।

बच्चों को प्रदूषण से बचाने के व्यावहारिक उपाय
हम छोटे-छोटे घरेलू और व्यक्तिगत उपाय अपनाकर बच्चों को प्रदूषण से काफी हद तक बचा सकते हैं। सबसे पहले, घर या आसपास कचरा, पत्तियाँ या प्लास्टिक न जलाएँ। बच्चों को पौष्टिक आहार दें जिसमें विटामिन सी, प्रोटीन और एंटीऑक्सीडेंट (antioxidant) शामिल हों - जैसे फल, हरी सब्जियाँ, गुड़, शहद, तुलसी और सूखे मेवे। घर में मनी प्लांट (money plant), एलोवेरा (aloe vera), स्नेक प्लांट (snake plant) और तुलसी जैसे पौधे लगाना हवा को प्राकृतिक रूप से साफ़ करने में मदद करता है। अधिक प्रदूषण वाले दिनों (एक्यूआई 200+) में बच्चों को N95 मास्क पहनाएं और बाहर खेलने की जगहें चुनते समय धूलभरे स्थानों से बचें। स्कूलों में भी वेंटिलेशन (ventilation), धूल नियंत्रण और स्वास्थ्य निगरानी पर ध्यान दिया जाना चाहिए। यदि संभव हो तो घर में एयर प्यूरीफायर लगाएं, नहीं तो खिड़कियों पर सूती कपड़ा या माइक्रो-फ़िल्टर (micro-filter) लगाकर भी धूल को कम किया जा सकता है। इन सरल आदतों से बच्चों का स्वास्थ्य लंबे समय तक सुरक्षित रह सकता है।

वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोत
लखनऊ में वायु प्रदूषण कई स्रोतों के संयोजन से बढ़ रहा है। शहर की सड़कों पर बढ़ते वाहनों से निकलने वाला धुआँ कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) और कणीय पदार्थ को बढ़ाता है। निर्माण कार्यों में उठने वाली धूल हवा में लंबे समय तक तैरती रहती है और सांस से आसानी से अंदर जाती है। शहर और किनारे के क्षेत्रों में कूड़ा और पत्तियाँ जलाने से जहरीली गैसें निकलती हैं। औद्योगिक इकाइयों का प्रदूषण भी हवा की दिशा के साथ शहर तक पहुँचता है। इसके अलावा, खेतों में फसल अवशेष जलाने की परंपरा भी प्रदूषण को तेजी से बढ़ाती है। यही कारण है कि सर्दियों में प्रदूषण का स्तर सामान्य से काफी अधिक हो जाता है, क्योंकि ठंडी हवा प्रदूषक कणों को जमीन के पास रोक लेती है, जिससे हवा भारी और दमघोंटू हो जाती है।

स्वच्छ हवा की दिशा में सामुदायिक और व्यक्तिगत भागीदारी
स्वच्छ हवा केवल सरकार से नहीं, बल्कि नागरिकों की जागरूकता और भागीदारी से संभव है। यदि हर मोहल्ला, स्कूल, परिवार और व्यक्ति प्रदूषण को कम करने में अपना योगदान दे, तो वातावरण स्वच्छ होना शुरू हो सकता है। पेड़-पौधे लगाना और उनकी देखभाल करना सबसे सरल, लेकिन सबसे प्रभावी उपाय है। निजी वाहनों की बजाय कार-पूल, बस, ई-रिक्शा और साइकिल के उपयोग को बढ़ावा देना चाहिए। घरों में ऊर्जा-बचत उपकरण, कम ईंधन वाले चूल्हे और स्वच्छ गैस उपयोग करना चाहिए। सड़कों पर कूड़ा फेंकने से बचें और नालियों व सार्वजनिक स्थानों को साफ़ रखें। इसके अलावा, हमें बच्चों और युवाओं को प्रकृति के प्रति प्रेम, सुरक्षा और ज़िम्मेदारी सिखानी चाहिए, क्योंकि बदलाव वहीं से शुरू होता है। जब समुदाय एक साथ कदम बढ़ाता है, तो छोटा प्रयास भी बड़े परिवर्तन का मार्ग बन जाता है।

संदर्भ- 
https://tinyurl.com/mudvy8au 
https://tinyurl.com/bdfz63hf 
https://tinyurl.com/3tbuk6kx 
https://tinyurl.com/u64dnu3n 



Definitions of the Post Viewership Metrics

A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.

B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.

C. Messaging Subscribers - This is the total viewership from City Portal subscribers who opted for hyperlocal daily messaging and received this post.

D. Total Viewership - This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.

E. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.