कैसे मशरूम, स्वाद से लेकर सेहत तक, लखनऊ की थाली का अहम हिस्सा बनता जा रहा है

फफूंदी और मशरूम
19-12-2025 09:24 AM
कैसे मशरूम, स्वाद से लेकर सेहत तक, लखनऊ की थाली का अहम हिस्सा बनता जा रहा है

लखनऊवासियों, आज हम बात करने जा रहे हैं एक ऐसे खाद्य पदार्थ की, जो स्वाद, स्वास्थ्य और आधुनिक जीवनशैली - तीनों में बराबर अपनी जगह बना चुका है: मशरूम। जिस तरह लखनऊ की तहज़ीब, उसकी रसोई और उसका पाक-कला इतिहास अपनी नफ़ासत और गहराई के लिए जाना जाता है, उसी तरह मशरूम भी आज रसोई की ऐसी सामग्री बन चुका है, जिसे स्वाद के साथ-साथ उसके पोषण और औषधीय गुणों के लिए भी सराहा जाता है। पहले यह केवल जंगली इलाक़ों में मिलने वाला एक स्वाभाविक खाद्य स्रोत था, लेकिन समय के साथ यह दुनिया भर में वैज्ञानिक खेती और बड़े कृषि-उद्योग का हिस्सा बन गया है। आज जब लखनऊ के लोग भी स्वास्थ्य-सचेत जीवनशैली की ओर बढ़ रहे हैं, ऐसे में मशरूम जैसा पौष्टिक, हल्का और प्रोटीन-समृद्ध भोजन हमारी थाली में और भी महत्वपूर्ण हो गया है। चाहे वह नवाबी दावत हो, आधुनिक कैफ़े की मेनू हो या रोज़मर्रा की घरेलू रसोई-मशरूम अपनी बहुमुखी उपयोगिता के कारण हर जगह तेजी से लोकप्रिय होता जा रहा है।
आज के इस लेख में हम देखेंगे कि इसका इतिहास क्या है और दुनिया में इसकी प्रारंभिक खेती कैसे विकसित हुई। फिर हम जानेंगे कि मशरूम जैविक रूप से कैसे उगता है और यह पौधों से किस तरह अलग होता है। इसके बाद, दुनिया की सबसे लोकप्रिय किस्म - बटन मशरूम (button mushroom) - की उपयोगिता और वैश्विक मांग पर नज़र डालेंगे। आगे बढ़ते हुए, भारत में मशरूम की खेती, उससे जुड़ी तकनीक और प्रमुख उत्पादक राज्यों को समझेंगे। फिर सफेद बटन मशरूम की वाणिज्यिक खेती के इतिहास को संक्षेप में जानेंगे। और अंत में, इसके पोषण मूल्य और स्वास्थ्य लाभों पर चर्चा करेंगे, ताकि आप समझ सकें कि यह साधारण दिखने वाला खाद्य पदार्थ वास्तव में कितना महत्वपूर्ण है।

मशरूम का इतिहास और प्रारंभिक खेती
मशरूम मानव सभ्यता के आरंभिक काल से ही भोजन का एक महत्वपूर्ण स्रोत रहा है। जब मनुष्य शिकारी-संग्रहकर्ता जीवन जीता था, तब वह जंगलों से स्वाभाविक रूप से उगने वाले इन कवकों को पहचानकर भोजन में शामिल करता था। प्रकृति के प्रति जागरूकता बढ़ने के साथ-साथ मनुष्य ने इनके स्वाद, गुण और उपयोगिता को समझना शुरू किया। लगभग एक सहस्राब्दी पहले, चीन ने पहली बार मशरूम की कृत्रिम खेती का प्रयोग किया और इसे नियंत्रित रूप से उगाने का मार्ग प्रशस्त किया। इसके बाद 16वीं-17वीं शताब्दी में फ्रांस और यूरोप के अन्य देशों ने आधुनिक तकनीकों का उपयोग करते हुए ग्रीनहाउस (greenhouse) और गुफाओं में इसे उगाना शुरू किया। यह वह समय था जब मशरूम खेती पारंपरिक से वैज्ञानिक रूप में बदलने लगी और वैश्विक उत्पादन की ठोस नींव रखी गई।

मशरूम की जैविक संरचना और वृद्धि प्रक्रिया
मशरूम का जीवन पौधों से पूरी तरह भिन्न है, क्योंकि यह कवक (Fungi) जगत से संबंध रखता है। इनमें क्लोरोफिल (chlorophyll) नहीं होता, यानी ये प्रकाश संश्लेषण नहीं कर सकते। इसके बजाय, ये मृत और सड़ते हुए कार्बनिक पदार्थों से अपना भोजन प्राप्त करते हैं। मशरूम का असली जीवित हिस्सा इसकी जड़नुमा संरचना - माइसिलिया (Mycelia) - होती है, जो मिट्टी, लकड़ी या खाद के भीतर महीन सफ़ेद धागों की तरह फैलती है। यह माइसिलिया पोषक तत्वों को अवशोषित करती है और अनुकूल वातावरण मिलने पर ऊपर की सतह पर फलीय भाग विकसित होता है, जिसे हम आमतौर पर “मशरूम” के नाम से जानते हैं। आकार, रंग, बनावट और स्वाद में मशरूम की यह विविधता इसे प्रकृति का एक आश्चर्यजनक और बहुआयामी जीव बना देती है।

बटन मशरूम: सबसे लोकप्रिय प्रजाति
मशरूम की सैकड़ों किस्मों में से बटन मशरूम (Agaricus bisporus) विश्वभर में सबसे अधिक लोकप्रिय और व्यापक रूप से खाई जाने वाली प्रजाति है। यह यूरोप और उत्तर अमेरिका के घास के मैदानों में प्राकृतिक रूप से मिलता है और अपने सौम्य स्वाद व पकाने में सरलता के कारण घरों, होटलों और खाद्य उद्योगों में बेहद पसंद किया जाता है। यह दो रंग रूपों - सफेद और भूरे - में उपलब्ध होता है, और दोनों के स्वाद में हल्का अंतर पाया जाता है। आज बटन मशरूम की खेती 70 से अधिक देशों में की जाती है। इसकी पोषण-समृद्धता और आसान प्रसंस्करण क्षमता ने इसे विश्व खाद्य संस्कृति का एक अनिवार्य हिस्सा बना दिया है।

भारत में मशरूम उत्पादन और खेती तकनीक
भारत में मशरूम उत्पादन पिछले चार दशकों में उल्लेखनीय रूप से बढ़ा है। सफेद बटन मशरूम की मांग और उसके पोषण मूल्य को देखते हुए इसकी खेती आज एक उभरता हुआ उद्योग बन चुकी है। पहले यह फसल मुख्य रूप से सर्दियों में ही संभव थी, क्योंकि तापमान और आर्द्रता नियंत्रित नहीं किए जा सकते थे। लेकिन आधुनिक तकनीकों - जैसे क्लाइमेट-कंट्रोल्ड ग्रोथ रूम (climate-control growth room), आर्द्रता प्रबंधन सिस्टम और उन्नत स्पॉन उत्पादन - के आने से अब इसे पूरे वर्ष उगाया जा सकता है।
इसके लिए आवश्यक शर्तें हैं - 

  • तापमान: 12–28°C
  • आर्द्रता: 80–90%
  • उचित वेंटिलेशन और स्वच्छता

भारत के प्रमुख उत्पादन राज्य हैं: हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र।

खेती की प्रक्रिया छह चरणों में संपन्न होती है - स्पॉन (spawn) उत्पादन, खाद बनाना, स्पॉनिंग (spawning), स्पॉन रनिंग (spawn running), कासिंग (casing), और अंत में फलन। यह वैज्ञानिक और नियंत्रित कृषि का बेहतरीन उदाहरण है, जहाँ थोड़ी सी जगह में भी उच्च गुणवत्ता का उत्पादन संभव है।

 

सफेद बटन मशरूम की वाणिज्यिक खेती का इतिहास
वैज्ञानिक दृष्टि से बटन मशरूम की पहली व्यवस्थित जानकारी 1707 में फ्रांसीसी वनस्पतिशास्त्री जोसेफ पिट्टन डी टूरनेफोर्ट (Joseph Pitton de Tournefort) द्वारा दी गई। प्रारंभिक काल में यह हल्के भूरे रंग की किस्मों में अधिक पाया जाता था। लेकिन 1925 में एक प्राकृतिक उत्परिवर्तन के माध्यम से सफेद किस्म की खोज हुई, जिसने वैश्विक बाजार में क्रांति ला दी। सफेद बटन मशरूम की बेहतर बनावट, स्वाद और आकर्षक रंग ने इसे दुनिया की सबसे लोकप्रिय किस्म बना दिया। आज यूरोप, अमेरिका, चीन, कोरिया और भारत सफेद बटन मशरूम के सबसे बड़े उत्पादक हैं।

मशरूम का पोषण मूल्य और स्वास्थ्य लाभ
मशरूम विशेष रूप से कम कैलोरी, लेकिन उच्च पोषण वाला खाद्य पदार्थ है। सिर्फ 100 ग्राम कच्चे बटन मशरूम में मिलता है - 

  • विटामिन B समूह (B2, B3, B5)
  • आवश्यक खनिज जैसे फॉस्फोरस (phosphorous)
  • 0.2 माइक्रोग्राम प्राकृतिक विटामिन D
  • भरपूर फाइबर और पानी

यह इम्यून सिस्टम को मजबूत करता है, शरीर की ऊर्जा बनाए रखता है और वजन प्रबंधन में मददगार है। इसके एंटीऑक्सिडेंट (antioxidant) गुण शरीर में सूजन कम करते हैं और समग्र स्वास्थ्य में सुधार लाते हैं। यही कारण है कि मशरूम आधुनिक आहार, फिटनेस और स्वास्थ्य-चेतना से जुड़ी जीवनशैली में तेजी से लोकप्रिय हो रहा है।

संदर्भ-
https://tinyurl.com/bdm639tw 
https://tinyurl.com/489uhjpm 
https://tinyurl.com/3kwcz5wf 



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