लखनऊ से प्राप्त हुए भिन्न प्राचीन सभ्यताओं के सबूत

निवास : 2000 ई.पू. से 600 ई.पू.
31-05-2018 02:41 PM
लखनऊ से प्राप्त हुए भिन्न प्राचीन सभ्यताओं के सबूत

वर्तमान काल में हम लखनऊ में बड़े पैमाने पर लोगों को बसा हुआ देखते हैं। परन्तु करीब 2000 इस पूर्व में यहाँ पर मानवों की बहुत छोटी आबादी ही निवास किया करती थी और ये मानव ही लखनऊ के भूखंड पर बसने वाले सबसे पहले मानव थे। यदि आंकड़ों को देखा जाए तो करीब 2000 ईसा पूर्व के समय विश्व की आबादी करीब 27 मिलियन थी। अब आज के विवरणों का सहारा लिया जाए तो यह पता चलता है कि आज विश्व की आबादी 7 अरब है जो कि 2000 ईसा पूर्व की आबादी से कई गुना ज्यादा है। अकेले भारत की आबादी 1.2 अरब है जिसमें से उत्तर प्रदेश की आबादी 20 करोड़ के करीब है तथा इसमें लखनऊ की आबादी लगभग 45 लाख है।

लखनऊ में मुख्य रूप से पायी जाने वाली सभ्यताएं ओ.सी.पी., धूसर रंगे मृदभांड, उत्तरी कृष्ण लेपित मृदभांड परम्पराएँ यहाँ की प्रमुख सभ्यताएं थीं। लखनऊ के गंगा के मैदानी भाग में होने के कारण यहाँ पर कई मुख्य रूप से कृषक सभ्यताओं का जन्म हुआ। यहाँ की प्रमुख सभ्यताएं ग्रामीण सभ्यताएं थी और कहीं-कहीं पर ये सभ्यताएं नगरी सभ्यताएं भी थीं। इन सभ्यताओं की तिथि करीब 2000-2500 ईसा पूर्व की है तथा ये करीब 600 ईसा पूर्व तक चली आयीं। यहाँ की सभी सभ्यताएं या संस्कृतियाँ मिट्टी के बर्तनों की तकनीकी और उनके रंगों के आधार पर विभाजित की गयीं हैं। प्रत्येक काल में उस काल की अपनी एक विशिष्ट बर्तन बनाने की परंपरा होती थी जो कि समय के साथ-साथ बदल जाती थी। जैसा कि यदि देखा जाए तो धूसर रंगे हुए बर्तन परंपरा के बर्तन इसी परम्परा में सबसे अधिक प्राप्त होते हैं।

विभिन्न उत्खननों से हमें इन परम्पराओं के साक्ष्य प्राप्त होते हैं। ये साक्ष्य हमें यह भी समझने में मददगार साबित होते हैं कि किस प्रकार से मानव ने तरक्की की तथा वो आज इस मुकाम पर कैसे पंहुचा है जहाँ पर वह कृषि, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी आदि का प्रयोग करता है। लखनऊ के ही आस-पास के क्षेत्रों की विभिन्न खुदाइयों में इन सभ्यताओं के प्रमाण हमें प्राप्त हुए हैं। लखनऊ संग्रहालय और लखनऊ विश्वविद्यालय में ये सभी पुरावशेष देखे जा सकते हैं।

1. http://shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/36863/7/chapter%206.pdf
2. http://shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/36863/6/chapter%205.pdf
3. http://www.heritageuniversityofkerala.com/JournalPDF/Volume5/23.pdf