
समयसीमा 250
मानव व उनकी इन्द्रियाँ 1026
मानव व उसके आविष्कार 818
भूगोल 231
जीव - जन्तु 297
हस्तकला का ही प्रतिफल है कि आज वर्तमान में हम विभिन्न प्रकार के महल, मूर्ति, वस्त्र आदि देखने व प्रयोग करने में संभव हैं। यदि हस्तकला का इतिहास देखें तो यह मानव के विकास के समयकाल से ही चली आ रही है। पाषाणकाल के विभिन्न हस्तकुठारों का निर्माण व मनकों आदि का निर्माण हस्तकला के शुरुआती चरण को प्रदर्शित करता है।
पाषाणकाल से होते हुये नवपाषाण व ताम्र युग के आते-आते हस्तशिल्प में मानव ने एक अप्रतिम ऊँचाई प्राप्त कर ली थी, तथा मनकों व हथियार के साथ ही साथ मिट्टी के बर्तन, मूर्तियाँ, भवन निर्माण आदि कला मानव जीवन में आ चुकी थी। इसी का प्रतिफल था कि समय-समय पर विभिन्न प्रकार की हस्त कलाओं का विकास होता गया और मानव अत्यन्त उन्नत किस्म की हस्तकला का निर्माण करने लगा।
भारत की बात की जाये तो भारत में सिन्धु सभ्यता से सम्बन्धित स्थानों से प्राप्त पुरावस्तुओं से अनेकों उदाहरण मिलें हैं जिनको देखकर यह अन्दाजा लगाया जा सकता है कि हस्तकला का ज्ञान व क्षेत्र में वृहद् विकास इस काल तक होने लगा था। यहाँ से प्राप्त मिट्टी के बर्तनों पर मछली, मोर आदि की छपाई हाथ द्वारा की गयी है (चित्र में दाईं ओर), जिनसे कला का विशेष ज्ञान प्राप्त होता है।
मौर्यकाल में हस्तकला अपनी परम पराकाष्ठा पर थी जहाँ से अनेकों विशिष्ट मूर्तियों के निर्माण का अविजित रथ चला था। अशोक कालीन खम्बे व उनके शीर्ष, कला की पराकाष्ठा को प्रदर्शित करते हैं। कुषाणों के भारत आगमन के साथ-साथ कई अन्य प्रकार की कलायें यहाँ पर आईं जिनका अनुपम उदाहरण मथुरा, दिल्ली आदि स्थानों के संग्रहालयों में देखने को मिल जाता है (चित्र में बाईं ओर)। लखनऊ के संग्रहालय में भी मौर्य व कुषाण कालीन मूर्तियों को रखा गया है। गुप्तकाल में सिक्कों की कला का विकास हुआ तथा मूर्ति व मंदिर निर्माण कला का भी विकास तीव्र गति पर हुआ। मधय प्रदेश के साँची में स्थित मंदिर इसका अनुपम उदाहरण हैं। चोल, चालुक्य, चंदेल, प्रतिहार आदि के समयकाल में विभिन्न प्रकार के विकास हुये तथा भवन व किला निर्माण कला का भी वृहद रूप से विकास हुआ।
सल्तनत काल के आने के बाद से भारत में हस्त कला का एक नया दौर चला। विभिन्न प्रकार की नयी इमारतों आदि का प्रचलन यहाँ पर हुआ, जिनमें अढाई दिन का झोपड़ा, कुतुब मीनार आदि हैं। मुग़लों के आगमन के बाद लघुचित्र निर्माण पद्धति में तेजी से कई बदलाव आये। लखनऊ में प्रसिद्ध चिकनकारी, अस्थिकला की नींव मुगलकाल में ही पड़ी थी। हलांकी प्राचीनकाल से ही अस्थि कला का प्रयोग होता आ रहा है और पाषाणकाल के समय से ही मातृदेवी की अस्थि निर्मित मूर्तियों का प्रचलन देखने को मिलता है परन्तु यह मध्यइतिहास के समयकाल में तीव्रगति से प्रफुल्लित हुआ।
वर्तमान में लखनऊ चिकनकारी, अस्थिकला व मिट्टी के बर्तनों के लिये जाना जाता है तथा इन कलाओं से ही कई प्रकार की नौकरियों का जन्म हुआ है। हस्तकला विभिन्न स्थान की विशेषताओं को भी प्रदर्शित करती है जैसे महाराष्ट्र की वार्ली, बिहार में मधुबनी, कश्मीर की कशीदा आदि।
संदर्भ:
1. भट्टाचार्य, डी.के.1991. ऐन आउटलाइन ऑफ़ इंडियन प्रीहिस्ट्री, पलका प्रकाशन
2. धमीजा, जसलीन (संपादक). 2004. एशियन एम्ब्रायडरी , अभिनव पुब्लिकेशन्स
3. देन एंड नाउ, मार्ग. संस्करण 55-1, 2003, लखनऊ
4. अग्रवाल, वासुदेव शरण. 1966. भारतीय कला, पृथिवी प्रकाशन
A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.
B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Messaging Subscribers - This is the total viewership from City Portal subscribers who opted for hyperlocal daily messaging and received this post.
D. Total Viewership - This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.
E. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.