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सचेतन मन क्रियाओं का निर्धारण करता है, अचेतन मन प्रतिक्रियाओं का निर्धारण करता है, तथा प्रतिक्रियाऐं क्रियाओं के समान ही महत्वपूर्ण होती हैं।
- ई. स्टेनली जोन्स
मन की सामान्यतः तीन अवस्था होती हैं चेतन, अवचेतन और अचेतन। जो प्रायः तीन प्रकार की क्रियाओं में संलग्न होते हैं : इच्छाओं का निर्माण, उनका नियंत्रण और उनकी संतुष्टि। मानव के अभिलाषी मन और नैतिक मन में हमेशा संघर्ष बना रहता है। जब यह संघर्ष मानव की चेतना में जाता है, तो यह भले कष्टदायी हो लेकिन रोग का कारण नहीं बनता, किंतु जब किसी प्रबल इच्छा का दमन नैतिक मन द्वारा बलपूर्वक किया जाता है, तो यह संघर्ष चेतन मन में न होकर मनुष्य के अचेतन मन में होने लगता है। जो मानसिक रोग का कारण बनता है तथा व्यक्ति को इस संघर्ष से मुक्त करना उसकी मानसिक चिकित्सा है, जो मनोविकार का उद्देश्य है।
वर्तमान समय में मनोचिकित्सा का महत्व बढ़ता जा रहा है। जिसमें मानसिक रोग से पीड़ित व्यक्ति के मानसिक स्थिति का इतिहास और वर्तमान स्थिति को जांचा जाता है। तथा शारीरिक और मानसिक स्थिति की जांच संयुक्त रूप से की जाती है। जिसके लिए तंत्रिकार्यिकी तकनीकों का उपयोग किया जाता है तथा इनका निदान अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य वर्गीकरण(आईसीडी)( International Classification of Diseases), विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ)( World Health Organization) द्वारा संपादित मानसिक विकारों के निदान हेतु सूचीबद्ध नियमावली के आधार पर किया जाता है, अमेरिकन मानसिक चिकित्सीय संगठन (एपीए) द्वारा प्रकाशित मानसिक विकारों (डीएसएम) की नैदानिक और सांख्यिकीय नियमावली का भी व्यापक प्रयोग देखने को मिलता है।
भारत के प्रारंभिक मनोचिकित्सालयों में से एक नूर मंजिल चिकित्सालय है। 1950 में डॉ स्टेनली जोन्स द्वारा भारत के पहले ईसाई मनोवैज्ञानिक केंद्र और चिकित्सालय के लिए धन उपलब्ध कराया गया, जिसे आज नूर मंजिल मनोचिकित्सक केंद्र और चिकित्सा इकाई के रूप में जाना जाता है। इन्होंने अपने अथक प्रयासों से मानसिक रूप से पीडि़त रोगियों के लिए एक आशा की किरण दी। जॉन ने अपनी पूरी तन्मयता से इस चिकित्सालय का निर्माण किया, इनका विश्वास था कि पारंपरिक ईसाई आध्यात्मिकता और आधुनिक मनोवैज्ञानिक की अंतदृष्टि के समन्वय से सम्पूर्ण मानव का उपचार संभव है। इन्होंने बाइबल के स्तोत्र 55 पद 22 को दायित्व की नींव के रूप में रखा: "अपने भार को ईश्वर को दे दो और वह आपको जीवित रखेगा। "इस चिकित्सालय में भारत, एशिया, अफ्रीका, यूरोप और अमेरिका के विशेषज्ञ शामिल हैं, जिन्होंने अपनी लाभप्रद कार्यों को छोड़कर इस ईसाई संस्थान में रोगियों की सेवा में जीवन लगा दिया। यहां उपचार हेतु तकनीकों की अपेक्षा देखरेख को ज्यादा महत्व दिया जाता है। कुछ मायनों में ईसाई धर्म और मनोचिकित्सा एक दूसरे के निकट प्रतीत होती हैं। यीशु के नैतिक मुल्यों के प्रभाव के कारण ईसाईयों के मूल में व्यक्ति की दुर्बलता को समझने और प्रेम पूर्वक उसके दुख को दूर करने की प्रवृत्ति होती है। किंतु यह मानना निरर्थक होगा कि ईसाई किसी अन्य की तुलना में ज्यादा देखरेख करते हैं, क्योंकि नूर मंजिल में कार्यरत अधिकांश कर्मचारी ईसाई नहीं हैं।
स्टेनली लाल बाग मेथोडिस्ट चर्च (Methodist Church) (लखनऊ) के पादरी भी रहे। डॉ एली स्टेनली जोन्स (1884-1973) मेथोडिस्ट ईसाई प्रचारक और थेअलोजियन (theologian) थे। इनके द्वारा 20वी शताब्दी के प्रारंभिक दशकों में भारतीय उपमहाद्वीप में शिक्षित वर्गों को पारस्परिक उपदेश दिये गये। इन्होंने गांधी और नेहरू परिवार के साथ काफी समय बिताया। गांधी का जॉन और इनके लेखनों का काफी प्रभाव पड़ा। स्टेनली ईसाई आश्रम आंदोलन के संस्थापक भी रहे। उन्हें कभी-कभी "भारत के बिली ग्राहम" माना जाता है। यदि 18 वीं शताब्दी में विलियम केरी को "आधुनिक मिशन के पिता" माना जाता था, तो 20 वीं शताब्दी में एली स्टेनली जोन्स को उनके मार्ग के लिए इनके समतुल्य माना जाता था।
संदर्भ:
1.http://theboredomproject.com/blog/2012/01/18/lucknow-and-new-delhi/
2.https://bit.ly/2BBUCMk
3.https://en.wikipedia.org/wiki/E._Stanley_Jones
4.https://en.wikipedia.org/wiki/Psychiatry