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उत्तर प्रदेश राज्य, एक ऐसा राज्य जहाँ एक ओर इसे हिंदू धर्म के देवताओं का जन्म स्थल माने जाने के कारण संस्कृति से जोड़ा जाता है, तो वहीं दूसरी ओर राजनीतिक दृष्टिकोण से भी इसे एक प्रबल राज्य माना जाता है, क्योंकि हमारे देश के चौदह में से नौ प्रधानमंत्रियों का पैतृक स्थान उत्तर प्रदेश है। यहां तक कि पीएम नरेंद्र मोदी जी को 2014 में वाराणसी से ही चुना गया था। 20.42 करोड़ की आबादी के साथ यह भारत का सबसे अधिक जनसंख्या वाला राज्य है और इसका भौगोलिक क्षेत्र 2,43,286 वर्ग किमी का है जो इसे राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के बाद चौथे स्थान पर रखता है।
किसी राज्य के ‘प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद’ में वहाँ के भौगोलिक क्षेत्र का विशेष महत्व होता है। उत्तर प्रदेश राज्य के विभिन्न जिलों के प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद में बहुत विविधताएं हैं। यहाँ दो जिले ऐसे भी हैं जो इस मायने में लखनऊ से अधिक सम्पन्न हैं। उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था भारत के सभी राज्यों में दूसरी सबसे बड़ी है। 2017-18 के राज्य के बजट के अनुसार, उत्तर प्रदेश का सकल राज्य घरेलू उत्पाद 16.89 लाख करोड़ (US $ 240 बिलियन) है। 2011 की जनगणना रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश की 22.3% आबादी शहरी क्षेत्रों में रहती है। राज्य में ऐसे 7 शहर हैं जिनमें आबादी 10 लाख से अधिक है। सन 2000 में विभाजन के बाद, नया उत्तर प्रदेश राज्य पुराने उत्तर प्रदेश राज्य का लगभग 92% आर्थिक उत्पादन करता है।
राष्ट्रीय खाद्यान्न भंडार में उत्तर प्रदेश का बड़ा योगदान है। 2013-14 में, इस राज्य ने 50.05 मिलियन टन खाद्यान्न का उत्पादन किया, जो देश के कुल उत्पादन का 18.90% है। गेहूं, चावल, दालें, तिलहन और आलू प्रमुख कृषि उत्पाद हैं। गन्ना पूरे राज्य में सबसे महत्वपूर्ण नकदी फसल है। जहां तक बागवानी की बात है तो उत्तर प्रदेश भारत के सबसे महत्वपूर्ण राज्यों में से एक है। राज्य में आम का उत्पादन भी किया जाता है।
यह देश का एक हिस्सा है जो आबादी में बड़ा है परन्तु प्रति व्यक्ति जीडीपी के लिहाज़ से कई राज्यों की तुलना में पीछे है। ऐसे में लोगों के पास रोज़गार के लिए पलायन करने के अतिरिक्त कोई साधन नहीं रह जाता।
ब्रुकिंग्स ग्लोबल मेट्रो मॉनिटर 2018 (Brookings Global Metro Monitor 2018) के अनुसार, दुनिया की आधी से अधिक आबादी अब शहरी केन्द्रों में रहती है और दुनिया की 300 सबसे बड़ी महानगरीय अर्थव्यवस्थाएं वैश्विक उत्पादन का आधा हिस्सा हैं। भारतीय शहरों में देश की जीडीपी का 63% हिस्सा है। समृद्ध दक्षिण और पश्चिम में प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद और अपेक्षाकृत कम जनसंख्या वृद्धि है, जबकि उत्तर और पूर्व राज्यों में प्रति व्यक्ति जीडीपी कम है और अभी भी जनसंख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है।
आईआईटी दिल्ली में सेंटर फॉर डिजिटल इकोनॉमी पॉलिसी रिसर्च (Centre for Digital Economy Policy Research) के अध्यक्ष और सहायक प्रोफेसर जयजीत भट्टाचार्य कहते हैं, “हमें आर्थिक शहरों में काम करने की आवश्यकता है।” भट्टाचार्य, जो केपीएमजी में आर्थिक और नीति अभ्यास के प्रमुख के रूप में, स्मार्ट सिटी मिशन का ढांचा तैय्यार करने के साथ जुड़े थे, बताते हैं कि उत्तर प्रदेश में देश की आबादी का 17% हिस्सा है, लेकिन योगदान सिर्फ 2.5% ही है। शहरों को बुनियादी आवश्यकताएं स्वास्थ्य, भोजन, पानी, सुरक्षा और रोजगार पर ध्यान देने की आवश्यकता है। नए भारतीय शहर अक्सर अर्थव्यवस्था, डिज़ाइन (Design) और जीवन शैली के बजाय इंजीनियरों (Engineers) और सलाहकारों द्वारा संचालित होते हैं जो अक्सर पश्चिमी शहरों की योजनाओं की नकल करते हैं। भट्टाचार्य कहते हैं, “ हमें अपनी स्वदेशी योजनाओं जैसे ऑटोरिक्शा (पश्चिमी शहरों में अनुपस्थित), सड़क समारोह आदि विकसित करने की आवश्यकता है।”
इस कारण यह कहना अनुचित नहीं होगा कि जब तक उत्तर प्रदेश के दस सबसे बड़े शहर, न सिर्फ जनसंख्या बल्कि सकल घरेलू उत्पाद की दृष्टि से भी भारत के सबसे बड़े शहरों में शामिल नहीं हो जाते, तब तक भारत अन्य देशों के साथ तुलनात्मक सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि नहीं कर सकता।
संदर्भ:
1. https://bit.ly/2VqAzbs
2. https://bit.ly/30neKx9
3. https://en.wikipedia.org/wiki/Economy_of_Uttar_Pradesh