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भारत लगभग 200 वर्षों तक ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन रहा। इन्होंने भारत के प्रत्येक क्षेत्र को गहनता से प्रभावित किया जिसमें से एक भारतीय कला एवं संस्कृति का क्षेत्र था। 18वीं से 19वीं शताब्दी के मध्य भारत में एक नई कला शैली का विकास हुआ जिसे प्रमुखतः ब्रिटिशों के लिए भारतीय कलाकारों द्वारा तैयार किया गया। यह कला शैली ‘कंपनी शैली’ (Company Style) के नाम से जानी गयी। इन चित्रों में भारतीय कलाकारों पर यूरोपीय शैली का प्रभाव स्पष्ट देखा जा सकता है। कंपनी शैली भारतीय और यूरोपीय चित्रकला का मिश्रित रूप थी। यह चित्र पहली बार दक्षिण भारत में मद्रास प्रेसीडेंसी (Madras Presidency) में बनाए गए।
इन चित्रों में कल्पनाशीलता से ज्यादा वास्तविकता को स्थान दिया गया था, जिसमें भारतीय जीवन शैली, राज दरबार के दृश्य, पशु-पक्षी, प्राकृतिक दृश्य, भारतीय उपमहाद्वीप की वास्तुकला, हिन्दू तीर्थ स्थल इत्यादि को उकेरा गया। अधिकांश चित्र कागज़ों पर उकेरे गए थे, लेकिन कुछ मुगल शैली के चित्रों को हाथी दांत की पट्टिका पर उकेरा जाता था। ब्रिटिशों द्वारा इस शैली को काफी सराहा गया। इस दौरान कलकत्ता, मद्रास (चेन्नई), दिल्ली, लखनऊ, पटना, तंजावुर और बैंगलोर ब्रिटिशों के प्रमुख केंद्र थे। जिस कारण कंपनी शैली ने अवध की पारंपरिक कला शैली को भी प्रभावित किया। चित्रकला की यह शैली अलग-अलग क्षेत्रों में विकसित हुई, जिन पर स्थानीय परंपराओं का प्रभाव पड़ा, जिस कारण इस शैली में भिन्नता उत्पन्न हो गयी।
कई ब्रिटिश अधिकारियों ने ‘कंपनी शैली’ में बने चित्रों को संरक्षण दिया, जिसमें कर्नल जेम्स स्किनर शीर्ष स्थान पर थे। इन्होंने बड़ी मात्रा में इस शैली के चित्रों का संग्रह किया था। इनके अतिरिक्त एलियाह इम्पी की पत्नी मैरी इम्पी ने लगभग 300 और वेलिंगटन ने 2,500 चित्रों का संग्रह किया। लखनऊ में बसे मेजर-जनरल क्लाउड मार्टिन (1735-1800) ने लैंडस्केप (Landscape) में बने काले गरूड़ के चित्र सहित 658 पक्षी चित्रों का संग्रह किया। यह आंकड़े ब्रिटिशों के मध्य कंपनी शैली के चित्रों की लोकप्रियता को बताने के लिए पर्याप्त हैं। इन चित्रों के माध्यम से संपूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप की रूप रेखा, दैनिक जीवन शैली इत्यादि को देखा जा सकता था।
चित्रकारों को ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा विशेष संरक्षण प्रदान किया गया था। इसके साथ ही भारतीय नवाब भी अपने चित्रकार रखते थे, जो उनके दैनिक जीवन की गतिविधियों को चित्रों में संजोते थे। ब्रिटिश अधिकारी अपनी भारतीय यात्रा वृतांत या कंपनी द्वारा कराए जा रहे कार्यों को चित्रित करने के लिए अपने साथ एक चित्रकार रखा करते थे। कई चित्रकारों ने भारतीय उपमहाद्वीप के लोकप्रिय स्थानों या अन्य गतिविधियों के चित्र बनाकर उसके समूह तैयार कर दिए तथा यहां आने वाले पर्यटकों को बेचे। इस तरह के समूह में उपमहाद्वीप के स्मारकों, त्यौहारों, जातियों, व्यवसायों, या वेशभूषा की एक श्रृंखला को दर्शाया गया था। इस शैली के प्रसिद्ध चित्रकार सेवक राम थे, जो पटना में कार्यरत थे। पटना कंपनी पेंटिंग के प्रमुख केन्द्रों में से एक था।
कंपनी पेंटिंग फोटोग्राफी (Photography) के आगमन से पूर्व व्यापक रूप से लोकप्रिय हुयी। फोटोग्राफी के आगमन ने इस शैली को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित किया तथा धीरे-धीरे यह अपने पतन की ओर अग्रसर हो गयी। 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में ब्रिटिशों ने कई स्कूलों की स्थापना की जहां विभिन्न पश्चिमी शैलियों को सिखाया गया। 20वीं सदी में पटना के ईश्वरी प्रसाद इस शैली के अंतिम प्रतिपादक रहे।
संदर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Company_style
2. http://www.vam.ac.uk/content/articles/i/indian-company-paintings/
3. https://www.britishempire.co.uk/art/companyschool.htm
4. http://ngmaindia.gov.in/sh-company-period.asp
5. https://www.metmuseum.org/toah/hd/cpin/hd_cpin.htm