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बंदर आज देश के अधिकांश हिस्सों में एक बड़ी समस्या बनते जा रहे हैं। बंदर व्यक्तिगत स्थानों के साथ-साथ सार्वजनिक क्षेत्रों में भी जनजीवन को प्रभावित कर रहे हैं। लखनऊ के रेलवे स्टेशनों (Railway Stations) में भी बंदरों का आतंक अपने चरम पर पहुंच गया है। वे यात्रियों से सामान छीन रहे हैं, आस पास की बिजली की तारों को तोड़ रहे हैं, सीसीटीवी कैमरों (CCTV Cameras) को नुकसान पहुंचा रहे हैं। इसके साथ ही दुकानों में घुसकर सामान चुरा रहे हैं। बंदरों की इन गतिविधियों ने लोगों की नाक में दम कर दिया है।
कुछ समय पूर्व रेलवे विभाग ने इन्हें भगाने के लिए एक अनोखा तरीका अपनाया था। इन्होंने किस्मत नाम के एक व्यक्ति, जो पेशे से एक मदारी हैं, को इस काम के लिए नियुक्त किया। किस्मत लंगूर की आवाज़ निकालकर बंदरों को भगाते हैं। वे पहले यह कार्य लंगूरों से ही करवाते थे किंतु सरकार द्वारा इस पर प्रतिबंध लगाने के बाद उन्होंने स्वयं लंगूर की आवाज़ निकालना सीखा। अपने इस कौशल को विकसित करने के बाद, पहले इन्होंने अपने आसपास के घरों में लंगूर की आवाज़ निकालकर बंदरों को भगाना शुरू किया। इनका यह तरीका काफी प्रभावी सिद्ध हुआ। यह अपनी इस प्रतिभा के कारण लगभग 50,000 रूपय प्रतिमाह तक कमा लेते हैं।
इनकी इस प्रतिभा को देखते हुए लखनऊ रेलवे ने करीब 20,000 रूपये प्रतिमाह में चारबाग स्टेशन सहित आसपास के स्टेशनों से बंदर भगाने का कार्य इन्हें सौंपा। इनका कहना था कि, “बंदर वास्तव में लंगूरों से बहुत डरते हैं। यदि वे तीन चार महीने तक लंगूर की आवाज़ से डराकर उन्हें भगाते रहें तो बंदर जल्द ही यहां से चले जाएंगे।” यह मदारी समुदाय के अन्य बेरोज़गार लोगों को भी इसका प्रशिक्षण देते हैं। किस्मत अपने इस कार्य से अपने समुदाय की परंपरा को भी जीवित रखना चाहते हैं।
लखनऊ रेलवे इससे पहले भी बंदरों को भगाने के लिए एक व्यक्ति अच्छन मियाँ उर्फ ‘गुड्डे’ को नियुक्त कर चुका है, जो बंदरों के समान वेशभूषा धारण कर चारबाग रेलवे स्टेशन से बंदरों को भगाते थे। इन्होंने अपनी कला से कुछ ही समय में अधिकांश बंदर रेलवे स्टेशन से भगा दिए थे।
भारत में मदारियों का व्यवसाय आज अंतिम सांस ले रहा है, ऐसी स्थिति में उत्तर रेलवे ने फिर से इन्हें एक आशा की किरण दे दी है।
संदर्भ:
1. https://bit.ly/2NvCAEy
2. https://bit.ly/2xlUFKA
3. https://bit.ly/302522B