बीते समय के अवध के शाही फव्वारे

औपनिवेशिक काल और विश्व युद्ध : 1780 ई. से 1947 ई.
13-09-2019 01:37 PM
बीते समय के अवध के शाही फव्वारे

फव्वारे प्राचीन काल से ही विभिन्न रियासतों की धरोहर रहे हैं। जैसे-जैसे समय बदलता जा रहा है वैसे-वैसे इनका रूप भी बदलता जा रहा है। आधुनिक युग के लखनऊ में हमें कई संगीतमय फव्वारे देखने को मिलते हैं जिनमें से एक फव्वारा गोमती नदी के पास भी स्थित है। इस संगीतमय फव्वारे को लखनऊ स्थित मार्टीनियर बॉयज़ कॉलेज (Martiniere Boys College) के निकट स्थापित किया गया है। इस प्रकार के संगीतमय फव्वारों को आप लखनऊ के अलावा अन्य शहरों में भी देख सकते हैं, जहां धीमे संगीत के साथ फव्वारों का आनंद उठाया जा सकता है। किन्तु यदि आप लखनऊ के पुराने समय के फव्वारों के बारे में विचार करें तो आपको इन नए फव्वारों के विपरीत भिन्न प्रकार के फव्वारे देखने को मिलेंगे। इन प्राचीन फव्वारों को अवध के नवाबी शहरों और महलों में डिज़ाईन (Design) किया गया था जो आज के फव्वारों से बिल्कुल भिन्न हैं। अवध नवाब के शहरों और महलों के इन फव्वारों का ज़िक्र कई भारतीय लघु चित्रों और विवरणों (एमिली ईडन - Emily Eden आदि) में देखने और पढ़ने को मिलता है जो यहां स्थित फव्वारों का उल्लेख करते हैं।

इन लघुचित्रों में से एक चित्र अवध प्रांत के फर्रुखाबाद में स्थित फव्वारे का वर्णन करता है जो महल के बगीचे में स्थित है। इस फव्वारे के आस-पास कई राजकुमारियां एकत्रित हुई नज़र आती हैं। इसी प्रकार से एक अन्य लघुचित्र में महलों के बीच कई सुंदर-सुंदर बगीचे दिखाई देते हैं जिनके आकर्षण का मुख्य केंद्र बगीचों के बीच स्थित फव्वारे हैं जो बगीचों को एक दूसरे से विभाजित करते हैं। इसी प्रकार के सुंदर फव्वारों को आप लखनऊ स्थित गुलाब बाड़ी और दिल्ली के सफदरगंज मकबरे में भी देख सकते हैं। लखनऊ स्थित गुलाब बाड़ी गुलाब के बगीचे को संदर्भित करता है। गुलाबों का यह बगीचा फैज़ाबाद में नवाब सुजा-उद-दौला के मकबरे के अपने अन्दर समाये हुए है। गुलाबों के इस बगीचे में गुलाबों की कई प्रजातियां पाई जाती हैं जिनके बीच सुंदर फव्वारों को स्थापित किया गया है। सुजा-उद-दौला के इस मकबरे को चारबाग बगीचे के केंद्र में स्थापित किया गया था जिसे कई सारे फव्वारों के साथ सुशोभित किया गया। इसी प्रकार से दिल्ली में सफदरगंज मकबरे की चारों दिशाओं को भी आकर्षक फव्वारों की श्रृंखला से सजाया गया है। ये दोनों फव्वारे दशकों से खराब पड़े थे जिन्हें अब पुनर्जीवित करने का प्रयास किया जा रहा है। फव्वारों को फिर से ठीक कराने का जिम्मा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ए.एस.आई.) ने लिया है जो फव्वारों को पहले जैसा रूप देने का प्रयास कर रहे हैं।

संदर्भ:
1.
https://bit.ly/2m8ko6L
2. https://www.metmuseum.org/blogs/ruminations/2015/desiring-landscapes
3. https://bit.ly/2meif9N
4. https://en.wikipedia.org/wiki/Gulab_Bari
5. https://bit.ly/2m7yiWK