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                                            स्वर्ग की परिकल्पना पर आधारित था लखनऊ का कैसरबागलखनऊ एक ऐसा शहर है जो कि अपनी वास्तुकला के लिए पूरे विश्व में जाना जाता है। यहाँ पर स्थित इमारतें अपनी वास्तुकला के लिए पूरे विश्व में एक अनुपम नमूना हैं। लखनऊ में कई दरवाज़ों का भी निर्माण हुआ है जो कि अन्यत्र और किसी शहर में नहीं पाए जाते हैं। रूमी दरवाज़ा इनमें से एक है। यहाँ पर स्थित मस्जिदें, इमामबाड़े, महल आदि वास्तुकला के अनोखे नमूने हैं। लखनऊ में कई बागानों का भी निर्माण हुआ है जो कि अत्यंत ही खूबसूरत हैं। इस्लाम के पवित्र ग्रन्थ कुरान में स्वर्ग की अवधारणा व्यक्त है जिसमें कई मंज़िलों पर स्थित बागानों का ज़िक्र है। स्वर्ग की अवधारणा में बने जिन बागानों का ज़िक्र है उनमें हर बागान पिछले बागान से अधिक खूबसूरत होता है। यह स्वर्ग के बागानों की परंपरा लखनऊ में जीवित प्रतीत होती है और इसको जीवन दान देने का कार्य किया यहाँ के नवाबों ने। लखनऊ में स्थित कैसरबाग़ इस का अनुपम उदाहरण है। नवाब वाजिद अली शाह ने कैसरबाग़ का निर्माण करवाया था। यह 1847 में वाजिद अली शाह के गद्दी पर बैठते ही निर्मित होना शुरू हो गया था। यह छतरमंज़िल महल के दक्षिण-पूर्व कोने पर स्थित था।
जैसा कि वाजिद अली शाह संगीत और साहित्य के प्रेमी थे तो उन्होंने कैसर बाग़ के निर्माण को लेकर एक सपना संजोया था और वह था एक महल परिसर में बड़े-बड़े बागान जो कि स्वर्ग के तर्ज पर हों। वह एक ऐसा स्थान हो जहाँ पर बैठ नृत्य, नाटक, संगीत और काव्य आदि का लुत्फ़ उठाया जा सके। कुरान में जिस स्वर्ग जैसे बगीचों का ज़िक्र है उसे मुगलों ने भलिभांती अपनाया था और इसका उदाहरण आगरा में ताजमहल के उल्टी दिशा में यमुना नदी के किनारे आज भी महताब बाग़ देखा जा सकता है। लखनऊ में भी ऐसे बगीचों का निर्माण हुआ जिनमें फलों से लदे पेड़, बहते पानी के झरने, सुगन्धित फूलों के उद्यान आदि थे। शिकार के लिए शिकारगाह की भी अवधारणा थी। वाजिद अली शाह ने इन सभी अवधाराणाओं को एक ही स्थान पर समाहित कर दिया। उस समय के बने विभिन्न चित्र कैसर बाग की खूबसूरती को प्रदर्शित करते हैं। इन बागानों में विभिन्न रास्तों का निर्माण बड़ी कुशलता के साथ किया गया था। यहाँ पर ज़िग-ज़ैग (Zig-Zag) तरीके के रास्ते बनाए गए थे जो कि आगंतुकों को भ्रमित कर देते थे। 
कैसर बाग़ में तीन प्रमुख भाग थे, पहला सार्वजनिक जहाँ राजा अपने अधकारियों आदि से मिलते थे और यह वही स्थान है जहाँ पर राज्याभिषेक आदि जैसे बड़े कार्यक्रम किये जाते थे। दूसरा हिस्सा हमाम, निजी मस्जिद, कार्यालय, पुस्तकालयों आदि से शुशोभित होता था। और अंत अर्थात तृतीय हिस्से में रानियों के आवास हुआ करते थे। तृतीय हिस्से में सिर्फ राजा और कुछ गिने चुने मेहमानों को ही जाने की अनुमति हुआ करती थी। कैसरबाग़ लखनऊ का सबसे खूबसूरत स्थान था जहाँ पर हर वो चीज़ उपलब्ध थी जो कि स्वर्ग की अवधारणा को परिपूर्ण करती है।
1856 का वो दौर था जब यहाँ पर काले बादलों ने अपना अधिपत्य स्थापित करने की चेष्ठा की और 1857 की क्रांति जो कि लखनऊ में बड़े पैमाने पर हुयी, वह कैसर बाग़ की खूबसूरती को नज़र लगा गयी। इस क्रांति के दौरान अंग्रेज़ों ने कैसर बाग़ में स्थित अनेकों स्वतंत्र इमारतों को गिरा दिया। इस दौरान हुई क्रांति में कैसर बाग़ में स्थित अनेकों खूबसूरत बगीचे तबाह हो गए। इसकी चहारदीवारी भी गिरा दी गयी। कई मंदिर, मस्जिद आदि भी ध्वस्त कर दिए गये और यह करीब 1858 तक चलता रहा। कैसरबाग़ लखनऊ के स्वर्णिम काल को दर्शाता है। आज यह क्षेत्र भारतीय पुरातत्त्व विभाग के संरक्षण में आता है। इस इमारत में आज सफ़ेद बारादरी, शेर दरवाज़ा आदि बचे हुए हैं। यहाँ पर दो दरवाज़े भी उपलब्ध हैं जिन्हें लाखी दरवाज़ा कहते हैं। वर्तमान परिस्थिति में ये दरवाज़े क्षतिग्रस्त हैं तथा अपने जीर्णोद्धार का इंतज़ार कर रहे हैं।
संदर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Qaisar_Bagh
2. https://www.tornosindia.com/a-journey-through-kaiserbagh/
3. https://bit.ly/2MyqsQS