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                                            वर्तमान समय में अंतरिक्ष में खनन करने के लिए निजी कंपनियां एक दूसरे से निवेश करने के लिए प्रतिस्पर्धा कर रही हैं। जबकि बहुत से लोगों का कहना है कि पहला खरबपति पृथ्वी में नहीं बल्कि अंतरिक्ष में बनाया जाएगा। नासा (NASA) द्वारा क्षुद्रग्रह-खनन अनुसंधान के लिए कोलोराडो स्कूल ऑफ माइन्स में एक क्षुद्रग्रह-खनन डिग्री कार्यक्रम की पेशकश करी है। लेकिन फिलहाल क्षुद्रग्रहों में खनन के लिए मनोवैज्ञानिक बाधा अधिक है, जबकि वास्तविक वित्तीय और तकनीकी बाधाएं बहुत कम हैं। कैलटेक अध्ययन ने क्षुद्रग्रह-खनन कार्य की लागत $2.6 बिलियन रखी, जो आश्चर्यजनक रूप से नासा के पूर्ववर्ती एआरएम (ARM) के समान अनुमानित लागत नहीं थी। हालांकि यह सुनने में बहुत अधिक लग रही है, लेकिन एक दुर्लभ-पृथ्वी-धातु की खदान की तुलनात्मक लागत $1 बिलियन तक है और क्षुद्रग्रह से खनन किये हुए एक फुटबॉल के आकार के प्लैटिनम की कीमत लगभग $50 बिलियन होने का अनुमान लगाया गया है।
वहीं एक व्यक्ति के लिए इस तरह के क्षुद्रग्रह में खनन करना काफी चुनौतीपूर्ण हो सकता है, जैसे उसे वायुमंडल के माध्यम से बिना ग्रह को कोई नुकसान पहुंचाए पृथ्वी पर वापस कैसे लाया जाएगा? यदि आप उसे वापस पृथ्वी पर लाने में समर्थ नहीं हो पाते हैं, तो आप इसे अंतरिक्ष में किसे बेचेंगे? और यहां तक कि अगर आप इसे पृथ्वी पर ला देते हैं, तो फिलहाल प्लेटिनम दुर्लभ नहीं है। यह देखते हुए कि आम धातु दुर्लभ धातुओं जितनी महंगी नहीं है, क्या क्षुद्रग्रह खनन वास्तव में इसके लायक होगा?
वैज्ञानिकों ने नासा के गैलीलियो और डॉन शिल्प जैसे जमीन पर आधारित दूरबीनों और अंतरिक्ष मिशनों का उपयोग करके क्षुद्रग्रहों का अध्ययन किया है, जो एक साथ करीब से तस्वीर और विवरण एकत्र कर चुके हैं। सबसे महत्वपूर्ण विवरण जापान के हायाबुसा से आया था, जो 2010 में एक क्षुद्रग्रह पर उतरने वाला पहला अंतरिक्ष यान था और सफलतापूर्वक नमूनों के साथ घर लौटा था। इन अध्ययनों से पता चला है कि दो प्रकार के क्षुद्रग्रहों के खनन हितकारी हैं। पहले अकोन्ड्राइट(Achondrites) हैं, जो प्लैटिनम समूह धातुओं (रुथेनियम, रोडियम, पैलेडियम, ऑस्मियम, इरिडियम और प्लैटिनम) में समृद्ध हैं। साथ ही अन्य क्षुद्रग्रह कोन्ड्राइट (Chondrites) हैं, जो शायद काफी मूल्यवान हैं क्योंकि येपानी में समृद्ध हैं।
अंतरिक्ष यात्रियों को न केवल एक पेय के रूप में और भोजन को जलयोजित करने के लिए इस महत्वपूर्ण संसाधन की आवश्यकता होती है, बल्कि एक बहुत ही कुशल विकिरण ढाल होने की वजह से भी यह काफी महत्वपूर्ण है। हालांकि पानी भारी होता है और इसलिए इसे पृथ्वी के वायुमंडल से बाहर भेजना काफी महंगा होता है। दरअसल, पानी की बोतल को अंतरिक्ष में भेजने के लिए $ 9000 से $ 43,000 के बीच खर्च होता है, यही कारण है कि ये सभी अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर ही पुनर्नवीनीकरण किये जाते हैं। इन पानी के तत्वों का उपयोग रॉकेट (Rocket) ईंधन के लिए भी किया जा सकता है। क्षुद्रग्रह खनिक पहले से ही कोन्ड्राइट से पानी को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में विभाजित करने की योजना बना रहे हैं, जो क्रमशः ईंधन और ऑक्सीडाइज़र (Oxidizer) के रूप में काम करेंगे।
वहीं भारत की अंतरिक्ष योजना वहाँ जाना चाहता है जहाँ कोई भी राष्ट्र पहले नहीं गया है, वो है चंद्रमा के दक्षिण की ओर। एक बार वहां पहुंचने के बाद, यह अपशिष्ट से मुक्त परमाणु ऊर्जा के स्रोत के खनन की क्षमता का अध्ययन करेगा, जो कि खरबों डॉलर का हो सकता है। ये कार्य चंद्रमा, मंगल और उससे आगे के वैज्ञानिक, वाणिज्यिक या सैन्य लाभ के लिए खोजकर्ता के शीघ्रगामी के बीच भारत के स्थान को मजबूत करेगा। अमेरिकी, चीन, भारत, जापान और रूस की सरकारें स्टार्टअप (Startup) और अरबपतियों एलोन मस्क, जेफ बेजोस और रिचर्ड ब्रैनसन के साथ मिलकर उपग्रहों, रोबोट लैंडर, अंतरिक्ष यात्रियों और पर्यटकों को ब्रह्मांड में लॉन्च करने के लिए प्रतिस्पर्धा कर रही हैं।