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लखनऊ शहर को अपनी अनेक विशेषताओं के लिए जाना जाता है तथा यहां स्थित बडा इमामबाड़ा इन्हीं विशेषताओं में से एक है। बड़ा इमामबाड़ा एक बड़ा परिसर है, जिसमें एक मस्जिद, आंगन, प्रवेश द्वार और बहते पानी के साथ एक कुआँ भी मौजूद है। इस प्रकार इसका उपयोग ग्रीष्मकालीन महल के रूप में किया जाता था। त्रि-धनुषाकार दो भव्य द्वार के माध्यम से प्रवेश करते हुए इसकी व्यवस्था या संरचना में उत्तर की ओर नौबत खान, पश्चिम की ओर आसफी (Asafi) मस्जिद, पूर्व में शाही बाउली या बावली (Shahi Baoli) स्थित हैं, जबकि मुख्य इमारतें पीछे दक्षिण की ओर हैं। ऐसा कहा जाता है कि छत तक पहुंचने के लिए 1024 रास्ते हैं, लेकिन पहले द्वार या आखिरी द्वार पर वापस आने के लिए केवल दो ही रास्ते हैं। यह एक आकस्मिक और अचम्भित करने वाली वास्तुकला है। बड़े इमामबाड़े का निर्माण 1784 में नवाब आसफ-उद-दौला द्वारा शुरू हुआ था तथा यह समय एक विनाशकारी अकाल का था। अकाल के दौरान इस भव्य परियोजना को शुरू करने में आसफ-उद-दौला का मुख्य उद्देश्य लगभग एक दशक तक क्षेत्र में लोगों के लिए रोजगार प्रदान करना था ताकि अकाल से कोई भी प्रभावित न हो। ऐसा कहा जाता है कि आम लोग दिन के समय इमारत का निर्माण करते थे, जबकि रईस लोग जो भी उस दिन निर्मित हुआ उसे तोड़ने के लिए रात में काम करते थे। ऐसा माना जाता है कि बड़े इमामबाड़े को पूरा करने में 11 साल लगे तथा यह निर्माण 1795 में पूरा हुआ। लगभग 20,000 पुरुष इस शानदार संरचना के निर्माण का हिस्सा थे। बड़ा इमामबाड़ा एक समय में 300,000 से अधिक लोगों को एकसाथ घर दे सकता है। पूरा होने के बाद भी, नवाब सालाना इसकी सजावट पर चार से पांच सौ हजार रुपये खर्च करते थे।
परिसर की वास्तुकला अलंकृत मुगल डिजाइन (Design) की परिपक्वता को दर्शाती है। यह किसी भी यूरोपीय तत्वों या लोहे के उपयोग को शामिल नहीं करने वाली अंतिम प्रमुख परियोजनाओं में से एक है। मुख्य इमामबाड़ा में एक बड़ा मेहराबदार केंद्रीय कक्ष है जिसमें आसफ-उद-दौला का मकबरा है। 16 मीटर और 15 मीटर से अधिक लम्बी इस इमारत में छत को सहारा देने के लिए कोई बीम (Beams) या खंभा नहीं है और यह दुनिया में इस तरह के सबसे बड़े धनुषाकार निर्माणों में से एक है। यहां अलग-अलग ऊंचाइयों वाली छत के आठ घिरावदार कक्ष हैं। इमारत का यह हिस्सा, और अक्सर पूरे परिसर को भुलभुलैया कहा जाता है। इसे एक लोकप्रिय आकर्षण के रूप में जाना जाता है, जो संभवतः भारत में एकमात्र मौजूदा भूलभुलैया है और अनधिकृत रूप से उस इमारत के वजन को झेलने में सहायक है, जो दलदली भूमि पर बनाई गई है। आसफ-उद-दौला ने 18 मीटर (59 फुट) ऊंचे रूमी दरवाजे को भी बाहर की तरफ बनवाया। भव्य सजावट के साथ अलंकृत यह मुख्यमार्ग इमामबाड़ा के पश्चिम की ओर मुख वाला प्रवेश द्वार था। बड़े इमामबाड़ा में चीन हॉल (Hall), फारसी हॉल और खरबूजा हॉल नाम के 3 हॉल भी हैं। कहा जाता है कि नवाब इन हॉल में बैठकें करते थे। परिसर का सबसे प्रमुख हिस्सा यह संरचना है। इसका निर्माण केवल धनुषाकार दरवाजों, खिड़कियों और गलियारों की मदद से किया गया है। पूर्वी तरफ स्थित शाही बावली में एक दिलचस्प वास्तुकला भी है। यदि आप कुएँ के पूर्वी किनारे पर खड़े हैं, तो आप पानी में उस व्यक्ति की छवि देख सकते हैं, जो कुएँ के पास आ रहा हो। रूमी दरवाजा लखनऊ के प्रमुख स्थलों में से एक है। यह एक द्वार है जिसमें एक जटिल संरचना है और द्वार के शीर्ष से गोमती नदी का अद्भुत दृश्य दिखाई देता है। अब द्वार की छत जनता के लिए बंद कर दी गई है। रूमी दरवाजे को 'तुर्की द्वार' भी कहा जाता है और 'रूमी' नाम इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह रोम के श्रमिकों द्वारा बनाया गया था।
इमामबाड़े का डिजाइन एक प्रतिस्पर्धी प्रक्रिया के माध्यम से प्राप्त किया गया था। विजेता एक दिल्ली वास्तुकार किफ़ायतुल्लाह (Kifayatullah) था, जिन्हें इमामबाड़ा के मुख्य हॉल में दफन किया गया। इमारत का एक और अनूठा पहलू यह है कि प्रायोजक और वास्तुकार एक-दूसरे के बगल में दफनाए गये हैं। आसफी मस्जिद मूर्तिकला गुंबदों और मीनारों के साथ, इमारत को सबसे शानदार रूप प्रदान करती है और लखनऊ के कई हजारों लोग शुक्रवार को यहां नमाज अदा करने के लिए पहुंचते हैं। इमारत का निर्माण बहुत दिलचस्प है, क्योंकि ईंटों को बिना किसी कड़ी या खंभे से एक दूसरे के साथ जोड़ा गया है तथा खंभे के सहारे के अभाव में भी छत आज तक स्थिर है। यह चूना मोर्टार (Lime Mortar) में रखी लखौरी (Lakhauri) ईंटों से बना है। स्मारक को उत्कृष्ट रूप से प्लास्टर के काम से सजाया गया है। इसका आंतरिक भाग मंहगे चैण्डेलयर (Chandeliers), ताजिए (Tazias), आलम (Alam) आदि के साथ सुसज्जित है। इसे बनाने के लिए किसी लकड़ी या धातु का इस्तेमाल नहीं किया गया है। इमामबाड़ा की छत चावल की भूसी से बनाई गई है, जो इस इमामबाड़े को एक अनोखी इमारत बनाती है। यहां एक अवरुद्ध सुरंग मार्ग भी है, जो कि किंवदंतियों के अनुसार, एक मील लंबे भूमिगत मार्ग से होकर गोमती नदी के पास एक स्थान पर निकलता है। यह भी माना जाता है कि अन्य मार्ग फैजाबाद, इलाहाबाद, आगरा और यहां तक कि दिल्ली तक जाते हैं। वे मौजूद हैं लेकिन लंबे समय तक उपयोग में न आने के कारण उन्हें सील (Seal) कर दिया गया है। यह इमामबाड़ा पर्यटकों के लिए न केवल एक बड़ा स्मारक है, बल्कि नवाबी शहर को मानवता, दया और प्रेम का संदेश भी देता है।
संदर्भ:
https://en.wikipedia.org/wiki/Bara_Imambara
https://www.gounesco.com/bara-imambara-the-largest-arched-monument/
https://www.nativeplanet.com/travel-guide/bara-imambara-in-lucknow/articlecontent-pf14228-001904.html
चित्र सन्दर्भ:
मुख्य चित्र में बड़े इमामबाड़े के अंदर का चित्र है। (Prarang)
दूसरे चित्र में बड़े इमामबाड़े के अंदर का पुराना चित्र है। (Prarang)
तीसरा चित्र में छत से लिया गया इमामबाड़ा के प्रवेश द्वार का चित्र है। (Prarang)
अंतिम चित्र इमामबाड़े के अंदर स्थित मस्जिद का चित्रण है। (Prarang)