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20वीं सदी के अधिकांश राष्ट्रों ने लोकतंत्रात्मक शासन प्रणाली को अपनाया है अर्थात “जनता का जनता के द्वारा जनता के लिए शासन”, इसके अंतर्गत सत्ताधारी दल या फिर सत्ता के लिए उम्मीदवार जनमत को लुभाने का हर संभव प्रयास करता है। हाल ही में अमेरिका में चुनाव हुए जिसमें जो बिडेन (Joe Biden) चुनाव जीते और डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) को हार का सामना करना पड़ा। लेकिन वर्ष 2016 में ट्रंप को हिलेरी क्लिंटन (Hillary Clinton) से भी कम वोट मिले फिर भी वह राष्ट्रपति पद जीत गए। वर्ष 2000 में अल गोर (Al Gore) ने जनता से सर्वाधिक मत हासिल किए लेकिन राष्ट्रपति पद के लिए हार गए। अभी के चुनाव में भी यही अनुमान लगाया जा रहा था कि बिडेन को जनता से सर्वाधिक मत मिले हैं किंतु राष्ट्रपति पद ट्रंप जीत सकते हैं। इसका एक कारण भौगोलिक रूप से अमेरिकी निर्वाचक मंडल प्रणाली है, जिसमें मतदाता सीधे राष्ट्रपति का चुनाव नहीं करते हैं बल्कि जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि निर्वाचक मंडल में जनता की ओर से मतदान करते हैं। लेकिन इस प्रक्रिया में सबसे बड़ी समस्या है जैरिमेंडरिंग (Gerrymandering)।
जैरिमेंडरिंग का अर्थ है “निर्वाचन क्षेत्र की सीमाओं का किसी पार्टी या व्यक्ति हेतु परिर्वतन”। इसका उद्देश्य होता है किसी विरोधी दल को कमजोर करना। सत्ताधारी दल राजनीतिक मानचित्र को अपने पक्ष के अनुसार ढालकर सत्ता में अपनी स्थिति  मजबूत बनाने का प्रयास करते हैं। इनका लक्ष्य विधायी जिलों की सीमाओं को आकर्षित करना होता है ताकि पार्टी के उम्मीदवारों द्वारा अधिक से अधिक सीटें जीती जा सकें। ड्राफ्टर्स (Drafters) इसे मुख्य रूप से दो प्रक्रियों के माध्यम से पूरा करते हैं, जिन्हें आमतौर पर पैकिंग (Packing) और क्रैकिंग (Cracking) कहा जाता है।
एक पैक्ड जिले (Packed District) में यथासंभव विरोधी पार्टी के मतदाताओं को शामिल करने का प्रयास किया जाता है। इससे सत्ताधारी दल को आसपास के जिलों को जीतने में मदद मिलती है, पैक्ड जिला बनाकर विपक्षी दल की ताकत को कम कर दिया जाता है। क्रैकिंग इसके विपरीत होता है, इसमें विपक्षी दल के मतदाताओं के समूहों को विभिन्न जिलों में विभाजित कर दिया जाता है, जिससे प्रत्येक जिले में उनकी संख्या बंट जाए। एक कुशलता से तैयार किए गए मानचित्र में अधिकांश जिले सत्ताधारी पार्टी के समर्थक होते हैं, जिसमें उम्मीदवार पार्टी के समर्थक आसानी से सीट जीत जाते हैं। इसमें विरोधी दल के समर्थकों को कम से कम जिलों में समेट दिया जाता है, जिससे वह मतदाताओं से तो अधिकांश मत हासिल कर लें किंतु परिणामी चुनाव में न जीत सकें। यही कारण था कि यह अनुमान लगाया जा रहा था ट्रंप आधे से भी कम मत प्राप्त कर के भी राष्ट्रपति पद जीत सकते हैं। अमेरिका में भले ही निर्वाचन क्षेत्र की सीमा में परिर्वतन कर दिए जाएं किंतु जिले के नियम नहीं बदलते हैं, बस मतदाता स्वाभाविक रूप से एक जिले से दूसरे जिले के बीच चले जाते हैं, अक्सर समान विचारधारा वाले लोगों के साथ मिला दिया जाता है, जो कि जैरिमेंडरिंग का प्रभाव उत्पन्न करता है।
जैरिमेंडरिंग का नाम 1812 में अमेरिका के गवर्नर मैसाचुसेट्स एलब्रिज जैरी (Massachusetts Elbridge Gerry) के नाम पर पड़ा था। एक बार इन्होंने एक विचित्र आकृति के जिले का नक्शा बनाया, जिसे जैरीमेंडर (Gerrymander) नाम दिया,  जिसका स्वरूप राजनीतिक कार्टूनिस्ट (Political Cartoonists) जैसा था। इसमें विषम आकृति में बिखरे मतदाताओं को एक बहुत ही विशिष्ट तरीके से समेटने के लिए डिजाइन किया गया था, जिससे विरोधी दल कमजोर हो जाए। संयुक्त राज्य अमेरिका का चौथा कांग्रेसी जिला इलिनोइस (Illinois) इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। जिसमें शिकागो के उत्तर और दक्षिण पक्षों से मतों का संयोजन किया गया था, जो एक ही दल का समर्थन कर रहा था। इसके माध्यम से कम मतों से भी अधिकांश सीटें जीती जा सकती हैं।
हाल ही में फोर्ब्स इंडिया (Forbes India) ने भारत में जैरिमेंडरिंग के एक पहलू को उजागर किया। लेख में कुछ निर्वाचन क्षेत्रों के अजीब आकार पर प्रकाश डाला गया और पोस्ट किया गया कि वे 'जैरिमेंडर्ड' (Gerrymandered) थे। हांलाकि यह क्षेत्र वास्तव में जैरिमेंडर्ड थे, इस बात की पुष्टि नहीं हुई है, क्योंकि यह किसी भी राजनितिक दल का समर्थन नहीं कर रहे थे, भारत में यह कहना भी कठिन है कि यहां चुनावी परिसिमन खींचने से कोई लाभ होगा भी या नहीं। क्योंकि भारत में निर्वाचन क्षेत्र का निर्धारण राजनीतिक दल द्वारा नहीं वरन् परिसीमन आयोग द्वारा किया जाता है, जो कि एक संवैधानिक इकाई है न कि राजनीतिक इकाई। अंतिम परिसीमन आयोग की स्थापना परिसीमन अधिनियम, 2002 के माध्यम से की गई थी। आयोग सभी राज्य विधायी निर्वाचन क्षेत्रों और लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं को पुन: निर्धारित करने के लिए अधिकृत था।
84वें संवैधानिक संशोधन ने लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए प्रत्येक राज्य में सीटें निश्चित कर दी थीं, उन्हें क्षेत्रों में जनसांख्यिकीय परिवर्तन के अनुसार पुन: निर्धारित  किया जाना था। जो कि आयोग का कार्य था, यह प्रत्येक राज्य में निर्वाचन क्षेत्र के भीतर मतदाताओं का संतुलन बनाने के लिए बनाया गया था। आयोग की अध्यक्षता एक सेवारत या सेवानिवृत्त सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के न्यायधीश द्वारा की जाती थी, जिसे केंद्र सरकार, मुख्य चुनाव आयुक्त और संबंधित राज्य के चुनाव आयुक्त द्वारा नियुक्त किया जाता है। आयोग केवल राष्ट्रपति की सिफारिश पर ही कोई परिवर्तन कर सकता है। एक बार जारी होने के बाद, किसी भी न्यायालय के पास इसे चुनौती देने का अधिकार क्षेत्र नहीं है।
आयोग ने राज्य के भीतर मौजूदा प्रशासनिक सीमाओं का उपयोग करते हुए विधायी और लोकसभा क्षेत्र की सीमाओं का निर्धारण किया। परिसीमन अधिनियम, 2002 ने आदेश दिया कि आयोग इन निर्वाचन क्षेत्रों को भौगोलिक रूप से सघन बनाने के लिए यथासंभव प्रयास करेगा। अधिनियम में कहा गया है कि प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र को एक ही संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आना चाहिए। इसके अलावा, आयोग द्वारा परिसीमन की पद्धति के अनुसार, प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र को एक जिले के भीतर आना चाहिए। इसलिए, एक निर्वाचन क्षेत्र को जिलों के अनुसार आवंटित किया गया था। तब इन विधानसभा क्षेत्रों को लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में आवंटित किया गया। आयोग ने 15 फरवरी 2004 को इन सीमाओं को अपने नियंत्रण में ले लिया। ये प्रशासनिक विभाजन ज्यादातर मामलों में, राजनीतिक सरोकारों की तुलना में सरकारी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बनाए गए हैं।
अत: इस बात से अनुमान लगाया जा सकता है कि भारत में सीमा निर्धारण की प्रकिया कितनी लम्बी और जटिल है और निर्धारणकर्ता भी किसी राजनीतिक दल से संबंधित नहीं हैं। जिससे किसी प्रकार के पक्षपात होने की संभावन ना के समान हो जाती है। इसके विपरित अमेरिका में सीमा निर्धारण राज्य विधानसभा द्वारा किया जाता है, जिससे जैरिमेंडरिंग की समस्या उत्पन्न हो जाती है। संयुक्त राज्य अमेरिका में, अधिकांश कांग्रेसी जिलों में अप्रतिस्पर्धात्मक दौड़ के कारण जेरेमैंडरिंग का जन्म हुआ। दूसरी ओर, भारत में, 90 प्रतिशत निर्वाचन क्षेत्र में शीर्ष प्रतिस्पर्धा है। यह इस बात का प्रमाण है कि हमारे निर्वाचन क्षेत्र अभी जैरिमेंडेड नहीं हुए हैं। हर निर्वाचन क्षेत्र की सीमाएँ भले ही विशिष्ट न हों, लेकिन आयोग के पास जो चुनौतियां थीं, इसमें कोई शक नहीं कि इसने बहुत अच्छा काम किया। किसी भी मामले में, हमारे निर्वाचन क्षेत्र केवल भौगोलिक रूप से तिरछे हैं, न कि राजनीतिक रूप से।