समय - सीमा 261
मानव और उनकी इंद्रियाँ 1055
मानव और उनके आविष्कार 829
भूगोल 241
जीव-जंतु 305
| Post Viewership from Post Date to 03- Mar-2021 (5th day) | ||||
|---|---|---|---|---|
| City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Messaging Subscribers | Total | |
| 2239 | 86 | 0 | 2325 | |
| * Please see metrics definition on bottom of this page. | ||||
                                            
मांसाहारी पौधों में शामिल घटपर्णी पौधे भारत के पूर्वोत्तर राज्य मेघालय की राजसी पहाड़ियों में पाये जाते हैं, जिसे लोकप्रिय रूप से "मंकी कप" (Monkey cups) के रूप में भी जाना जाता है, क्यों कि जानवरों को इन पौधों से बारिश का पानी पीते हुए देखा गया है। यह पौधा सुराही के आकार की पत्तियाँ विकसित करता है, जो एक गुप्त जाल की तरह कार्य करती हैं, जिसमें शिकार या कीट फंस जाता है। पत्तियों की भीतरी चिकनी दीवारों और चिपचिपे तरल पदार्थ में कीट मारे जाते हैं, तथा तल पर मौजूद एंजाइम (Enzymes) पोषक तत्वों के उत्सर्जन के लिए उन्हें अवशोषित करते हैं। ये पौधे शिकार के लिए भ्रम की स्थिति उत्पन्न करते हैं। कीटों को लुभाने के लिए वे विभिन्न रणनीतियाँ बनाते हैं, उदाहरण के लिए इनमें से कुछ पौधे फूलों की गंध का उत्सर्जन करते हैं। इनकी एक किस्म नेपेंथीस खासियाना (Nepenthes khasiana) कीटों को आकर्षित करने के लिए पराबैंगनी प्रकाश में नीली चमक उत्पन्न करती है। नेपेंथीस खासियाना भारत की एकमात्र ज्ञात घटपर्णी पौधों की प्रजाति है, जो मेघालय के लिए स्थानिक प्रजाति मानी जाती है। हालांकि, 2016 में इसे असम के एक डिमा हसाओ (Dima Hasao) जिले में भी पाया गया है। इसे प्राय संकटग्रस्त प्रजाति के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। 2003 में, विशेषज्ञों ने यह निष्कर्ष निकाला, कि पिछले 30 वर्षों में इस प्रजाति की जंगली आबादी में लगभग 40% तक की गिरावट आई है। चूंकि, यह विलुप्त होने की कगार पर है, इसलिए इसे भारत सरकार के निर्यात की नकारात्मक सूची में शामिल किया गया है। पिछले कुछ दशकों में, मानव गतिविधियों विशेष रूप से व्यापक खनन, खेती के स्थानांतरण, और अत्यधिक संग्रह के कारण इस प्रजाति की जंगली किस्मों में काफी कमी आयी है। जबकि, पौधे के संरक्षण के लिए विभिन्न योजनाएं लागू की गई हैं, लेकिन इसकी सफलता स्थानीय समुदायों के प्रयासों पर टिकी हैं। 
2020 के एक आकलन में पाया गया है, कि मोटे तौर पर एक चौथाई प्रजातियों को मानवीय कार्यों से विलुप्त होने का खतरा है। बंद घटपर्णी पौधों के तरल पदार्थ का उपयोग स्थानीय जनजातियों द्वारा औषधीय प्रयोजनों जैसे मोतियाबिंद और रतौंधी को ठीक करने के लिए, पेट की बीमारियों, मधुमेह आदि को दूर करने के लिए किया जाता है। अपने सजावटी मूल्य के कारण इन्हें घरेलू रूप से बेचने या अन्य राज्यों में निर्यात करने के लिए एकत्रित किया जाता है। इनके संरक्षण के लिए शिलांग में नॉर्थ ईस्टर्न हिल यूनिवर्सिटी (North Eastern Hill University) और अन्य सरकारी संगठनों द्वारा अनेकों निज-स्थानिक और पर-स्थानिक संरक्षण उपायों को लागू किया गया है। इसके अलावा टिशू कल्चर (Tissue culture), माइक्रोप्रोपागेशन (Micropropagation) और जर्मप्लाज्म प्रिजर्वेशन (Germplasm preservation) जैसी तकनीकों का भी सहारा लिया गया है।