प्रसिद्ध संगीतकार और बहु-ग्रेमी (Multi-Grammy) विजेता कार्लोस सैन्टाना नौ साल (1972-1981) तक गुरु श्री चिन्मय के अनुयायी रहे। एक साक्षात्कार, रोलिंग स्टोन (Rolling Stone) 16 मार्च, 2000, में उन्होंने एक समूह के अंदर भक्त के रूप में अपने जीवन की चर्चा की। एक सदस्य के रूप में उनका नाम "देवदीप” (नेत्र, भगवान के दीपक का प्रकाश) था। यह नाम, उन्हें श्री चिन्मय द्वारा दिया गया था, जिसे उन्होंने गिटार के स्ट्रेप (strap) पर लिखा और उसे अपने घर पर एक स्पष्ट स्मृति चिन्ह के रूप में रखा। उनकी पत्नी डेबोरा (Deborah) ने भी समूह में भाग लिया, तथा उनका नाम "उर्मिला" रखा गया। कार्लोस सैन्टाना को सबसे पहले गिटारवादक जॉन मैकलॉघलिन (John McLaughlin) ने श्री चिन्मय से मिलवाया था, लेकिन जल्द ही समूह में उनका झुकाव "आध्यात्मिकता” की ओर बढ़ चला। उन्होंने अपने गुरू को भगवान तुल्य माना। उन्होंने एक बार कहा था कि, "मैं अभी भी किंडरगार्टन (kindergarten) अर्थात आध्यात्म में हूं, और बिना गुरु के मैं केवल अपने अभिमान या महत्वाक्षाओं की सेवा करता हूं। मैं केवल किसी वाद्य यंत्र का तार हूं, लेकिन मेरे गुरू चिन्मय संगीतकार हैं।
संदर्भ:
https://youtu.be/lBveD6Ddwps