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विभिन्न कारणों की वजह से बारहसिंगा की संख्या में निरंतर गिरावट आयी है। 1960 के दशक में, भारत में बारहसिंगा की कुल जनसंख्या 1,600 से लेकर 2,150 से भी कम थी। इसी प्रकार से नेपाल में भी इनकी संख्या लगभग 1,600 पायी गयी थी। 1930 से लेकर 1960 के बीच शिकार और आवास के नुकसान के कारण बारहसिंगा की संख्या में तेजी से गिरावट आयी। बारहसिंगा आज मध्य प्रदेश के कान्हा राष्ट्रीय उद्यान, असम के दो क्षेत्रों और उत्तर प्रदेश के केवल 6 क्षेत्रों में ही मौजूद है। पश्चिम बंगाल में ये जीव क्षेत्रीय रूप से विलुप्त हो चुका है। इसके अलावा अरुणाचल प्रदेश में भी इन्हें विलुप्त माना गया है। संरक्षित क्षेत्रों के बाहर तथा मौसमी तौर पर पलायन करने वाले दलदली भूमि के हिरणों की आबादी का उनके सींगों और मांस के लिए अवैध रूप से शिकार किया जाता है, जिन्हें फिर स्थानीय बाजारों में बेचा जाता है। बारहसिंगा अब उन क्षेत्रों में मौजूद नहीं हैं, जहां वे पहले पाये जाते थे, क्यों कि, आर्द्रभूमि को कृषि के लिए परिवर्तित कर दिया गया है। इस प्रकार इनका उपयुक्त आवास छोटे और अलग-थलग टुकड़ों में सिमट कर रह गया। संरक्षित क्षेत्रों में जो शेष निवास स्थान बचा था, वह भी नदी की गतिशीलता में परिवर्तन से खतरे में हैं। यहां गर्मियों के दौरान पानी का बहाव कम हो जाता है तथा गाद बढ़ जाती है। इसके अलावा स्थानीय लोगों द्वारा घास, लकड़ी और ईंधन के अत्यधिक दोहन तथा सरकारी भूमि पर अवैध खेती से भी बारहसिंगा को आवास और भोजन का नुकसान झेलना पड़ रहा है। इन्हें संरक्षण प्रदान करने के लिए विभिन्न प्रकार की योजनाएं बनायी गयी हैं। 
इन योजनाओं के अंतर्गत असम का काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान और मानस राष्ट्रीय उद्यान बारहसिंगा की कुछ संख्या को संरक्षण प्रदान कर रहा हैं। 2005 में, उत्तराखंड के हरिद्वार जिले में झिलमिल झील संरक्षण रिजर्व (Reserve) में भी लगभग 320 बारहसिंगा की उपस्थिति दर्ज की गयी थी। बारहसिंगा को साइट्स अपेंडिक्स I (CITES Appendix I) में सूचीबद्ध किया गया है। 1992 में, पाँच भारतीय चिड़ियाघरों में इनकी संख्या लगभग 50 थी, जबकि उत्तरी अमेरिका (America) और यूरोप (Europe) के विभिन्न चिड़ियाघरों में इनकी संख्या 300 थी। इन्हें संरक्षण देने के उद्देश्य से भारत ने इन्हें वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की अधिसूची प्रथम के अंतर्गत शामिल किया है।