अपने विशिष्ट सींगों के लिए विख्यात है, बारहसिंगा

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अपने विशिष्ट सींगों के लिए विख्यात है, बारहसिंगा
भारत में हिरण की विभिन्न प्रजातियां पायी जाती हैं, तथा उन्हीं में से एक बारहसिंगा भी है। उत्तर प्रदेश के राज्य पशु के रूप में सुशोभित इस जीव का वैज्ञानिक नाम रूकर्वस ड्यूवुकेली (Rucervus duvaucelii) है, तथा इसे मुख्य रूप से अपने विशिष्ट सींगों (Antler) के लिए जाना जाता है। बारहसिंगा नाम भी इसे इसके सींगों के कारण ही मिला है, क्यों कि इसके सींगों की संख्या 12 तक हो सकती है। इसके अलावा इसे दलदली भूमि में रहने वाले हिरण के रूप में भी जाना जाता है। भारत में इसकी आबादी उत्तरी और मध्य भारत में पायी जाती है। इसके अलावा दो पृथक आबादी दक्षिणी-पश्चिमी नेपाल (Nepal) में भी मौजूद है। पाकिस्तान (Pakistan) और बांग्लादेश (Bangladesh) में इस प्रजाति को विलुप्त माना गया है। बारहसिंगा की शारीरिक संरचना को देखें तो, इसके कंधे की ऊँचाई 44 से 46 इंच जबकि सिर से शरीर की लंबाई लगभग 6 फीट (180 सेंटीमीटर) होती है। ऊपर की ओर से इसके बाल पीले-भूरे रंग के होते हैं, जबकि नीचे की ओर शरीर का रंग हल्का होता है। गला, पेट, जांघों के अंदर और पूंछ के नीचे का भाग प्रायः सफेद रंग का होता है। मादाओं का रंग नर की तुलना में हल्का होता है। नर बारहसिंगा का वजन लगभग 170 से 280 किलोग्राम होता है, जबकि मादाएं 130 से 145 किलोग्राम तक हो सकती हैं। बड़े नर का वजन 210 से 260 किलोग्राम तक होता है। बारहसिंगा अन्य सभी भारतीय हिरण प्रजातियों से भिन्न है, क्यों कि इसके बहुशाखित सींगों में तीन से अधिक कांटे (Tines) होते हैं। वयस्क बारहसिंगा में 10 से 14 कांटे होते हैं, जबकि कुछ में यह 20 तक हो सकते हैं। इनके सींग अन्य जंतुओं के सींगों से अत्यधिक भिन्न हैं। बारहसिंगा के सींग युग्मित और शाखित होते हैं, जो पूरी तरह से हड्डी से बने होते हैं। इनमें हर साल शाखित सींग निकलते रहते हैं। विकासशील बारहसिंगा के सींगों में पानी और प्रोटीन (Protein) की मात्रा अत्यधिक होती है। यह मुलायम नरम, बालों से आवरित होता है, जिसमें रक्त वाहिकाएं और तंत्रिकाएं मौजूद होती हैं। हार्मोनल (Hormonal) और पर्यावरणीय परिवर्तनों के परिणामस्वरूप इनके सींग सख्त हो जाते हैं। टूटने से पहले बारहसिंगा के सींग आमतौर पर केवल कुछ ही महीनों के लिए मौजूद होते हैं। अन्य जंतुओं में पाए जाने वाले सींग अशाखित, हड्डीदार संरचना हैं, जो कि प्रायः केराटिन के खोल (Keratin-ऐक ऐसा पदार्थ जो मानव के बालों और नाखूनों में भी पाया जाता है) से आवरित होते हैं। अन्य जंतुओं के लिए सींग एक स्थायी विशेषता है, जो कई प्रजातियों में लगातार बढ़ते रहते हैं।
विभिन्न कारणों की वजह से बारहसिंगा की संख्या में निरंतर गिरावट आयी है। 1960 के दशक में, भारत में बारहसिंगा की कुल जनसंख्या 1,600 से लेकर 2,150 से भी कम थी। इसी प्रकार से नेपाल में भी इनकी संख्या लगभग 1,600 पायी गयी थी। 1930 से लेकर 1960 के बीच शिकार और आवास के नुकसान के कारण बारहसिंगा की संख्या में तेजी से गिरावट आयी। बारहसिंगा आज मध्य प्रदेश के कान्हा राष्ट्रीय उद्यान, असम के दो क्षेत्रों और उत्तर प्रदेश के केवल 6 क्षेत्रों में ही मौजूद है। पश्चिम बंगाल में ये जीव क्षेत्रीय रूप से विलुप्त हो चुका है। इसके अलावा अरुणाचल प्रदेश में भी इन्हें विलुप्त माना गया है। संरक्षित क्षेत्रों के बाहर तथा मौसमी तौर पर पलायन करने वाले दलदली भूमि के हिरणों की आबादी का उनके सींगों और मांस के लिए अवैध रूप से शिकार किया जाता है, जिन्हें फिर स्थानीय बाजारों में बेचा जाता है। बारहसिंगा अब उन क्षेत्रों में मौजूद नहीं हैं, जहां वे पहले पाये जाते थे, क्यों कि, आर्द्रभूमि को कृषि के लिए परिवर्तित कर दिया गया है। इस प्रकार इनका उपयुक्त आवास छोटे और अलग-थलग टुकड़ों में सिमट कर रह गया। संरक्षित क्षेत्रों में जो शेष निवास स्थान बचा था, वह भी नदी की गतिशीलता में परिवर्तन से खतरे में हैं। यहां गर्मियों के दौरान पानी का बहाव कम हो जाता है तथा गाद बढ़ जाती है। इसके अलावा स्थानीय लोगों द्वारा घास, लकड़ी और ईंधन के अत्यधिक दोहन तथा सरकारी भूमि पर अवैध खेती से भी बारहसिंगा को आवास और भोजन का नुकसान झेलना पड़ रहा है। इन्हें संरक्षण प्रदान करने के लिए विभिन्न प्रकार की योजनाएं बनायी गयी हैं।
इन योजनाओं के अंतर्गत असम का काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान और मानस राष्ट्रीय उद्यान बारहसिंगा की कुछ संख्या को संरक्षण प्रदान कर रहा हैं। 2005 में, उत्तराखंड के हरिद्वार जिले में झिलमिल झील संरक्षण रिजर्व (Reserve) में भी लगभग 320 बारहसिंगा की उपस्थिति दर्ज की गयी थी। बारहसिंगा को साइट्स अपेंडिक्स I (CITES Appendix I) में सूचीबद्ध किया गया है। 1992 में, पाँच भारतीय चिड़ियाघरों में इनकी संख्या लगभग 50 थी, जबकि उत्तरी अमेरिका (America) और यूरोप (Europe) के विभिन्न चिड़ियाघरों में इनकी संख्या 300 थी। इन्हें संरक्षण देने के उद्देश्य से भारत ने इन्हें वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की अधिसूची प्रथम के अंतर्गत शामिल किया है।

संदर्भ:
https://bit.ly/3bOgJBm
https://bit.ly/2MF7cnH
https://bit.ly/3bPlo62
https://bit.ly/3b6nuPS

चित्र संदर्भ:
मुख्य चित्र में बारहसिंगा को दिखाया गया है। (फ़्लिकर)
दूसरी तस्वीर में महिला बारहसिंगा को दिखाया गया है। (विकिमीडिया)
तीसरी तस्वीर में बारहसिंगा के एक समूह को दिखाया गया है। (फ़्लिकर)