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परंतु कुछ कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह प्रणाली व्यक्तिगत निजता और संविधान में दिए गए स्वतंत्रता के अधिकार और अभिव्यक्ति के अधिकारों के विरुद्ध है। इस कारण यह भविष्य में मौलिक अधिकारों के लिए एक बड़ा खतरा बन सकता है। एक चिंता का कारण यह भी है कि यदि कोई व्यक्ति किसी सरकारी गतिविधि का विरोध गोपनीय रूप से करना चाहता है तो ऐसे में वह चेहरे की पहचान प्रणाली के माध्यम से अपनी गोपनीयता खो देगा जो भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन है। उदाहरण के लिए 26 जनवरी को भारत सरकार के एक निर्णय के विरुद्ध लाल किले में हुए हंगामे के दौरान मौजूद प्रदर्शनकारियों की पहचान करने के लिए चेहरे की पहचान तकनीक का उपयोग कर रही है। त्रिनेत्र (Trinetra) नामक एक ही सॉफ्टवेयर (Software) का उपयोग यूपी (UP) पुलिस द्वारा एंटी-सीएए (Anti-CAA) प्रदर्शनकारियों पर निगरानी रखने के लिए किया गया था जिसके बाद पुलिस ने 1,100 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया। इससे यह बात सिद्ध होती है कि भारत में चेहरे की पहचान का उपयोग तेजी से बड़ रहा है। इसके आलावा, एकत्रित डेटा (Data) कहाँ और किस उद्देश्य से इस्तेमाल किया जा रहा है इसकी जानकारी आम नागरिक को नहीं होती। विशेषज्ञों का कहना है कि अन्य देशों की भाँति भारत में भी केंद्रीय सरकार ने इस प्रणाली से जुड़ी लोगों की चिंताओं को नजरअंदाज कर पूरे देश में ऑटोमेटेड फेशियल रिकॉग्निशन सिस्टम (Automated Facial Recognition System (AFRS)) को लागू करने की मंजूरी दी है। भारत में इस प्रणाली के ऑनलाइन (Online) हो जाने के बाद यह दुनिया की सबसे बड़ी चेहरे की पहचान प्रणाली बन जाएगी।
इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन (The Internet Freedom Foundation (IFF)) के एक अनुमान के अनुसार वर्तमान में भारत में लगभग 42 चेहरे की पहचान परियोजनाएँ चल रही हैं। राष्ट्रीय स्तर पर महाराष्ट्र (Maharashtra) की स्वचालित मल्टीमॉडल बायोमेट्रिक पहचान प्रणाली (Automated Multimodal Biometric Identification System (AMBIS)) और तमिलनाडु के फेसटैगर (FaceTagr) की तुलना की जा रही है। इनमें से कम से कम 19 को सुरक्षा और निगरानी के उद्देश्य से राज्य स्तर के पुलिस विभागों द्वारा लागू किया जा रहा है। चिंता की बात यह है कि नागरिकों की व्यक्तिगत जानकारी को इस प्रकार बिना उनकी सहमति के उपयोग करने के लिए कोई भी विशिष्ट कानून अभी तक नहीं बना है फिर भी देश में इस तकनीक का इस्तेमाल तेजी से बढ़ता जा रहा है। कई समाजिक संगठनों जैसे इलेक्ट्रॉनिक फ्रंटियर फाउंडेशन (Electronic Frontier Foundation), अल्गोरिदमिक जस्टिस लीग (Algorithmic Justice League) और एमनेस्टी इंटरनेशनल (Amnesty International) ने इस तकनीक के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने के लिए केंद्रीय सरकार से अनुरोध किया है। हालाँकि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000, जो एक प्रकार के संवेदनशील व्यक्तिगत डेटा के रूप में बायोमेट्रिक डेटा (Biometric Data) को वर्गीकृत करता है, में इस तरह की जानकारी के संग्रह, प्रकटीकरण और साझा करने के नियम मौजूद हैं। परंतु अधिनियम में उल्लिखित नियम केवल कॉर्पोरेट (Corporate) क्षेत्र पर ही लागू होते हैं सरकार द्वारा बायोमेट्रिक फेशियल डेटा (Biometric Facial Data) के उपयोग पर नहीं। इस प्रकार यह प्रस्तावित निगरानी प्रणाली एक प्रतिकूल प्रतिक्रिया बन गई है क्योंकि इसमें बिना किसी सहमति के आबादी के बड़े क्षेत्रों पर चेहरे की पहचान तकनीक से कड़ी निगरानी की जा रही है। चूंकी इस प्रणाली के माध्यम से एकत्र किया गया डेटा पूरी तरह से सरकार और विभिन्न सरकारी व्यक्तियों के नियंत्रण में है और कोई सख्त कानून न होने के कारण उनकी जवाबदारी भी न के बराबर है। तो ऐसे में इस डेटा के दुरुपयोग होने की संभावना अधिक है। गूगल (Google) जैसी कई बड़ी टेक (Tech) कंपनियों ने चेहरे की पहचान के तकनीकी उपकरण बनाने से परहेज़ किया है। गूगल के चेयरमैन (Chairman) का कहना है कि बाजार में इन उपकरणों के आने से इनका उपयोग बहुत गलत तरीके से किया जा सकता है। इसके अलावा यदि यह डेटा शत्रु देश के हाथ लग जाए तो यह पूरे देश के लिए संकट का कारण भी बन सकता है। सैन फ्रांसिस्को (San Francisco) सहित कुछ बड़े शहरों में पुलिस द्वारा चेहरे की पहचान तकनीक के उपयोग पर रोक लगा दी गई है।