लघु द्वीप विकासशील
राज्य (Small Island Developing States (SIDS)) आज सतत विकास के अपने पथ पर एक
महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़े हैं। हम उन्हें उनकी परिस्थितियों और आवश्यकता के अनुरूप वित्त सहायता और
अन्य संसाधनों तक पहुँचने में मदद करने के लिए सांख्यिकीय डेटा (statistical data) और नीति
विश्लेषण (policy analysis) प्रदान कर सकते हैं। इन लघु द्वीप विकासशील राज्यों के पास छोटे भू-
भाग हैं लेकिन इनके पास विशाल महासागरीय संसाधन भी हैं। नए क्षेत्रों में निवेश के साथ-साथ मौजूदा
महासागर-आधारित क्षेत्रों के सतत विकास को बढ़ावा देना, उनकी अर्थव्यवस्थाओं में विविधता लाना,
समावेशी विकास को बढ़ावा देने के प्रमुख अवसरों में से एक का प्रतिनिधित्व करता है। 
व्यापार एवं
विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCTAD) विकासशील देशों को उन अवसरों और चुनौतियों की
पहचान करने में सहायता कर रहा है जो महासागरीय अर्थव्यवस्था (Oceans Economy) को अपना
सकते हैं। यह राष्ट्रीय और क्षेत्रीय महासागर अर्थव्यवस्था तथा व्यापार रणनीतियों की परिभाषा और
कार्यान्वयन के माध्यम से स्थायी महासागर आर्थिक क्षेत्रों के विकास और उद्भव को बढ़ावा देने वाली
एक सक्षम नीति और नियामक वातावरण तैयार करने और बनाने के लिए राष्ट्रीय व्यापार और अन्य
सक्षम अधिकारियों का भी समर्थन करता है।
लेकिन भोजन, आजीविका और यहां तक कि हम जिस हवा में सांस लेते हैं उसे प्रदान करने के
बावजूद भी,मानव गतिविधियों का इन महासागरों पर बुरा असर हुआ है।वर्तमान में हमें समुद्रों की रक्षा
करने की आवश्यकता है।विशेष रूप से भारत जैसे प्रायद्वीपीय देश के लिए, और दुनिया भर में इसी तरह
के तटीय या द्वीप देशों के लिए जहां समुद्र और उसके पारिस्थितिकी तंत्र पर अपने अस्तित्व और
आजीविका के लिए निर्भर बड़े समुदाय रहते हैं। तटीय नीतियां इनके भविष्य की सुरक्षा के लिए एक
महत्वपूर्ण उपकरण बन सकती है।दुनिया की एक तिहाई से अधिक आबादी एक समुद्री तट के 100 किमी
के भीतर रहती है। भारत में हमारे महासागरों पर प्लास्टिक प्रदूषण, अत्यधिक मछली पकड़ने, जलवायु
परिवर्तन, तटीय विकास और गैर-जिम्मेदार पर्यटन के प्रभाव को अब उजागर करना शुरू कर दिया गया
है। सरकारी और निजी वैज्ञानिक अनुसंधान समूह, संस्थान, स्वतंत्र वैज्ञानिक और पारिस्थितिकीविद भारत
भर में समुद्री प्रजातियों, प्रवाल भित्तियों, तटीय और समुद्री पारिस्थितिक तंत्र का अध्ययन कर रहे हैं,
जिससे बड़ी मात्रा में जानकारी उपलब्ध हो रही है जो हमारी नीतियों को प्रभावित कर रही है और
नागरिकों को इसके महत्व के बारे में जागरूक कर रही है।
भारत में मनोरंजन के लिये हो रहे तटों के उपयोग से ना केवल समुद्रों को नुकसान हो रहा हैं बल्कि
परंपरागत रूप समुद्रों पर आश्रित मूल निवासियों को भी काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
ऊदाहरण के लिये भारत के पश्चिमी तट पर स्थित, गोवा क्षेत्रफल के मामले में भारत का सबसे छोटा
राज्य है और समृद्ध वनस्पतियों तथा जीवों का एक जैव विविधता हॉटस्पॉट (biodiversity hotspot) है,
अपने रेतीले समुद्र तटों और समृद्ध नाइटलाइफ़ (nightlife) के साथ, यह भारत के सबसे लोकप्रिय
पर्यटन स्थलों में से एक है। परंपरागत रूप से, गोवा के मूल निवासी कृषि, खेती, मछली पकड़ने, आदि
पर निर्भर हैं। परंतु जैसे ही पर्यटन एक राजस्व अर्जक के रूप में उभरा, ऊंची इमारतों, रिसॉर्ट्स
(resorts), आवासीय स्थानों मे समुद्र तट के किनारे लगभग हर जगह अपना कब्जा कर लिया। परंतु
इससे स्थानीय समुदाय, जिनकी पारंपरिक आजीविका आंतरिक रूप से समुद्र से जुड़ी हुई है, तटीय
उपयोग के पैटर्न में भारी बदलाव के कारण उनकी आजीविका पर संकट आ गया है। इन समस्याओं को
देखते हुये टेरा कॉन्शियस (Terra Conscious) ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। टेरा कॉन्शियस ने
आठ स्थानीय सामुदायिक नाव संचालकों के साथ भागीदारी की है। साथ ही साथ वे वन्यजीव देखने के
दिशा-निर्देशों का पालन करके अपने ग्राहकों के लिए बेहतर दृश्य प्रदान करते है, समुद्र तटों से कचरा
साफ करते है और कोशिश करते है कि समुद्र का पारिस्थितिक तंत्र बना रहे और स्थानीय लोगों की
आजीविका भी चलती रहे।
भारत भी समुद्री विविधताओं
से भरा हुआ है अतः यहां पर इस व्यापार से एक बड़ी आर्थिक मजबूती प्राप्त हो सकती है। इसलिये
भारत ने ब्लू इकोनॉमी निति को अपनाया है। ‘ब्लू इकॉनमी’ निति देश में उपलब्ध समुद्री संसाधनों के
उपयोग के लिए भारत सरकार द्वारा अपनायी जा सकने वाली दृष्टि और रणनीति को रेखांकित करता
है। वहीं, इसका उद्देश्य भारत के जीडीपी में ‘ब्लू इकॉनमी’ के योगदान को बढ़ावा देना, तटीय समुदायों
के जीवन में सुधार करना, समुद्री जैव विविधता का संरक्षण करना, तटीय सामुदायिक विकास और समुद्री
क्षेत्रों और संसाधनों की राष्ट्रीय सुरक्षा बनाए रखना भी है।आज, हमारी सरकार भी अन्य विषयों के
अतिरिक्त ब्लू इकॉनमी (Blue Economy) अर्थात नीली अर्थव्यवस्था (समुद्र के विभिन्न घटकों से जुड़ी
आर्थिक गतिविधियों को शामिल करते हुए) को भी स्थान दे रही हैं।सरकार का एक एकीकृत समुद्री
विकास कार्यक्रम है जिसे सागरमाला कार्यक्रम कहा जाता है जो सरकार की समुद्री दृष्टि पर केंद्रित है।
भारत के लिए नीली अर्थव्यवस्था का अर्थ है आर्थिक अवसरों का एक विशाल महासागर जो आजीविका
पैदा करने और बनाए रखने में समान रूप से महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।भारत की तटीय आबादी के
लिये भोजन एवं पोषण के मुख्य साधन के रूप में मछली का ही उपयोग किया जाता है। भारत में यदि
इस क्षेत्र को और अधिक प्रोत्साहन दिया जाता है तो यह भारत के पोषण स्तर को सुधारने का एक
सस्ता स्रोत हो सकता है। इसके अतिरिक्त यह निर्यात के रूप में आर्थिक लाभ भी उत्पन्न कर सकता
है। भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक और दूसरा सबसे बड़ा जलीय कृषि मछली
उत्पादक देश भी है।इन सभी क्षेत्रों में एक बड़े कार्यबल को शामिल करने की क्षमता है, और पिछले कई
दशकों से मछली पकड़ने, जलीय कृषि, मछली प्रसंस्करण, समुद्री पर्यटन, शिपिंग (shipping sector)
और बंदरगाह गतिविधियों के क्षेत्रों में नीली अर्थव्यवस्था के कारण बड़े पैमाने पर वृद्धि भी हुई है।
शिपिंग क्षेत्र भी नीली अर्थव्यवस्था में प्रमुख आजीविका प्रदाताओं में से एक है क्योंकि भारत के पास
सबसे बड़े व्यापारी शिपिंग बेड़े में है जिससे यह व्यापार दुनिया में 17 वें स्थान पर है।समुद्री बंदरगाह भी
रोजगार का एक बड़ा स्रोत हैं। भारत के प्रमुख बंदरगाहों के विपरीत, छोटे बंदरगाहों में नौकरियां 2003
में 1,933 से बढ़कर 2017 में 19,102 हो गई थी। समुद्री पर्यटन भी एक ऐसा क्षेत्र है जो विश्व स्तर
पर और भारत में सबसे तेजी से बढ़ रहा है। विशेष रूप से केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे तटीय
राज्यों में, तटीय पर्यटन ने राज्य की अर्थव्यवस्था और आजीविका दोनों में बड़े पैमाने पर योगदान दिया
है।इसलिये भारत नीली अर्थव्यवस्था की अवधारणा पर बल दे रहा है ताकि महासागरीय संसाधनों का
उचित उपयोग किया जा सके।