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                                            कोरोना महामारी के कारण लगे लॉकडाउन ने निश्चित तौर पर मानवता को बड़ी क्षति पहुँचाई है,
भारत ही नहीं वरन पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था चरमरा गई है। हमने अनगिनत संख्या में इंसानो को
खोया है, परंतु संकट के इस समय में केवल पर्यावरण और जीव संरक्षण के संदर्भ में, कुछ अच्छी
खबरे सुनने को मिली हैं।
तालाबंदी (Lockdown) ने भले ही इंसानो को घरों में क़ैद कर दिया हो, लेकिन इसने मछलियों,
पक्षियों और विभिन्न क़िस्म की तितलियों के सांस लेने के लिए पर्याप्त स्थान दे दिया है।
लॉकडाउन के दौरान शहर की सड़कें खाली रही, कई प्रतिष्ठित कारखाने और अधिकांश व्यापारिक
संस्थान पूरी तरह बंद रहे, खुले आसमान के नीचे लोगों की आवाजाही पूरी तरह ठप्प रही, जिसने
पर्यावरण प्रदूषण को काफ़ी हद तक कम कर दिया। यह समय विभन्न जीवों तथा पुष्पों और
पक्षियों के लिए एक सुनहरा दौर रहा। गोमती नदी में मछली की विभन्न प्रजातियों पर नज़र रखने
वाली पर्यावरणविदों की एक टीम द्वारा, नदी में नोटोप्टेरस-नोटोप्टेरस (Notopterus
notopterus) या ब्रॉन्ज़ फेदरबैक (Bronze Featherback) नामक एक ऐसी दुर्लभ मछली को
देखा गया, जो बड़ी मुश्किल से छह महीनों में एक बार नज़र आती है, टीम ने लॉकडाउन के दौरान
ऐसी पांच मछलियों को देखा। चूँकि यह मछलियाँ केवल ताज़े और स्वच्छ जल में जीवित रहा पाती
हैं, जिससे यह स्पष्ट तौर पर अनुमान लगाया जा सकता है कि, इस दौरान नदी के जल में घुली
ऑक्सीज़न के स्तर में सुधार हुआ है। 
इन मछलियों का विस्तृत सर्वेक्षण करने पर पाया गया की,
प्राप्त मछली की लंबाई 30 सेमी और वज़न 800 ग्राम था। यह एक असामान्य घटना थी, क्योंकि
इनकी तुलना में पहले पाई जाने वाली मछलियाँ कम वजनी थी। साथ ही लॉकडाउन में जल में
ऑक्सीज़न का स्तर भी 6 मिलीग्राम प्रतिलीटर पाया गया, जिसे जलीय विकास के लिए आदर्श
माना जाता है। विशेषज्ञों ने जल, वायु और ध्वनि प्रदूषण के स्तर में गिरावट का बारीकी से
विश्लेषण किया, और पाया की तालाबंदी के दौरान स्थानीय जैव विविधता का संवर्धन (सुधार) हुआ
है। यह सुधार लॉकडाउन के दौरान धोभीघाट और अन्य माध्यमों से नदी में छोड़े गए, अपशिष्टों की
कमी से हुआ है। हमारे शहर लखनऊ के वातावरण की गुणवत्ता में सुधार आने से पहली बार शहर के
कई इलाकों में हरियाली देखी गई है। लखनऊ स्थित चिड़ियाघर में पिछले एक दशक में पहली बार
जुगनुओं को देखा गया है, साथ ही प्रवासी पक्षियों, उल्लुओं, चमगादड़ों और तितलियों की संख्या में
भी अभूतपूर्व वृद्धि देखी गई है। दो वर्ष पहले तक आमतौर पर जो प्रवासी पक्षी यहाँ से विस्थापित
हो जाते थे, वे भी लॉकडाउन के दौरान अधिक समय के लिए रुकने लगे हैं। कुछ वर्ष पूर्व तक
आमतौर पर दिखाई देने वाली नन्ही गौरैयों की संख्या में वृद्धि हुई है। साथ ही कई विलुप्तप्राय
पक्षी की प्रजातियाँ फिर से दिखाई दी गई हैं और पक्षियों की नई प्रजातियाँ भी देखी गई हैं।
लॉकडाउन में मानव गतिविधियों में कमी आने से कोई शोर और वायु प्रदूषण नहीं होने के कारण,
निवासी पक्षी पहले की तुलना में बहुत अधिक प्रजनन कर रहे हैं। फैक्ट्रियों में मशीनरी शोर, कार के
हॉर्न की भनभनाहट और वाहनों के इंजनों की सीटी की जगह अब सुबह और शाम में पक्षियों की
चहचहाहट ने ले ली है। दरसल शोर की कमी के कारण मादा पक्षी नर द्वारा रिझाने हेतु संभोग
काल अथवा गानों को स्पष्ट रूप से सुन और समझ पा रही है। पक्षियों की दुनिया में वोकलिज़ेशन
बहुत महत्त्वपूर्ण होता है, जब ध्वनि प्रदूषण कम होता है तो पक्षियों के लिए ख़ुद को व्यक्त करना
बहुत आसान हो जाता है। साथ ही अध्ययनों से यह भी स्पष्ट हुआ है कि ध्वनि प्रदूषण के कारण,
पक्षी कभी-कभी अपने साथी तक नहीं पहुँच पाते हैं।
तितलियों के लिए वायु प्रदुषण किसी भी अन्य जीव की तुलना में अधिक हानिकारक होता है, क्यों
की वायु प्रदूषण के अंतर्गत हमारे वायुमंडल में उपस्थित सल्फर डाइऑक्साइड (sulfur dioxide)
में अधिक विषाक्तता घुल जाती है, जो सुन्दर तितलियों की मृत्यु दर को बढ़ाती है। परंतु
लॉकडाउन के दौरान इस विषाक्तता में कमी देखी गई, जिस कारण तितलियों के झुंड चारों ओर उड़
रहे हैं, और पहले से कहीं अधिक प्रजनन कर रहे हैं। विश्वभर के पर्यावरण प्रेमियों द्वारा तालाबंदी
के दौरान पक्षियों कि आबादी में वृद्धि पर ख़ुशी व्यक्त की जा रही है। साथ ही वे लॉकडाउन अवधि
के बाद की स्थिति को लेकर भी चिंतित हैं। लॉकडाउन में पर्यावरण पर देखे गए सकारात्मक
बदलावों से जीव विज्ञानी भी उत्साहित हैं, मैसूर स्थित नेचर कंजर्वेशन फाउंडेशन (Nature
Conservation Foundation) की 10 साल पुरानी सीजनवॉच परियोजना के अंतर्गत 924 स्कूलों
के प्रतिभागियों द्वारा 86, 234 पेड़ों पर 3, 95, 932 अवलोकन दर्ज किए गए हैं। यह आवेदन
विगत वर्षो की तुलना में कई अधिक है, जिसका कारण पर्यावरण प्रदूषण में कमी से लोगों में
अध्ययनों को लेकर बढ़ती रूचि है।
संदर्भ
https://bit.ly/2U9ULn0
https://bit.ly/2UNDroo
https://bit.ly/2UaM0ta
चित्र संदर्भ 
1. भारतीय रोलर पक्षी का एक चित्रण (flickr)
2. भारतीय बैंगनी सम्राट अपतुरा अंबिका, सिक्किम, का एक चित्रण (flickr)
3. थाईलैंड में एक मछलीघर में नोटोप्टेरस का एक चित्रण (wikimedia)