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आपने दक्षिण - पूर्व एशिया महाद्वीप में बसे बेहद खूबसूरत देश, सिंगापुर की कई बार प्रशंशा
अवश्य सुनी, अथवा खुद भी करी होगी। दरअसल क्षेत्रफल की दृष्टि से छोटा माना जाने वाला यह
देश, बड़े-बड़े विकसित देशों अथवा शहरों के लिए आदर्श माना जाता है। इस देश ने न केवल
शानदार शहरों का निर्माण किया है, वरन प्रकृति और विकास के बीच अद्भुद संतुलन भी स्थापित
किया है। दुनियाभर में सिंगापुर जैसे देश, आदर्श और बेहतर शहरीकरण की अवधारणा का निर्माण
करते हैं।
नोबेल पुरस्कार विजेता पॉल रोमर (Paul Romer) के अनुसार "शहर गरीबी कम करने की सबसे
बेहतरीन तरकीब हैं। उदारहण के लिए अकेले न्यूयॉर्क शहर की जीडीपी 6 प्रतिशत लोगों और
0.00005 प्रतिशत भूमि के साथ पूरे रूस के बराबर है। कोरोना महामारी हमारे शहरों को अधिक
शक्ति और धन के साथ सशक्त बनाकर अच्छे शहरीकरण को उत्प्रेरित करने का एक अवसर हो
सकता है।
एक अन्य नोबेल पुरुस्कार विजेता वैज्ञानिक नॉर्मन बोरलॉग (Norman Borlaug) का यह मानना
था की, पर्यावरणीय संतुलन के आभाव में भविष्य में विज्ञानं और प्रौद्योगिकी को चुनौती का
सामना करना पड़ेगा” वही विलियम वोग्ट का मानना था कि “समृद्धि इंसानों को बिना
काटे ही बर्बाद कर देगी” लेकिन यह भी सत्य है की समृद्धि अथवा शहरीकरण में कटौती करने से
कई क्षेत्रों में बड़े नुकसान भी हो सकते है, जिनमे कृषि तथा गैर-कृषि, नौपचारिक और औपचारिक
और स्कूल से लेकर ऑफिस तक वो लोग भी शामिल हैं, जिन्हे बढ़ते शहरीकरण के माध्यम से
रोजगार प्राप्त करने तथा अपना व्यापार स्थापित करने में सफलता मिली है।
हमारे देश की असल समस्या जमीन, श्रम या पूंजी का अभाव नहीं है! बल्कि हमारी वास्तविक
चुनौती अच्छे शहरीकरण के ऊपर उत्पादकता बढ़ाने , अथवा शहरों के निर्माण में समझदारी
दिखाने की है। अमीर और गरीब देशों में शहरीकरण की निंदा होने के पीछे केवल यही कारण है की
ये, शहर 10 मिलियन से अधिक उन लोगों के लिए बेहतर स्थान नहीं हैं, जो लोग अमीर या
शक्तिशाली नहीं हैं। दुनिया के 33 मेगासिटी में से छब्बीस केवल विकासशील देशों में स्थित हैं,
क्योंकि उन देशों के ग्रामीण क्षेत्रों में कानून के शासन, बुनियादी ढांचे और उत्पादक वाणिज्य की
कमी है। आंकड़ों के अनुसार हमारे देश के 6 लाख गांवों में से 2 लाख गावों में 200 से भी कम लोग
हैं। इन आंकड़ों से स्पष्ट है की, हमारे ग्रामीण क्षेत्रों में भी अपर्याप्त योजना, गैर-स्केलेबल बुनियादी
ढांचा, अफोर्डेबल हाउसिंग (Affordable Housing) और खराब सार्वजनिक परिवहन जैसी
विषमकारी परिस्थितियां है। शहरीकरण वास्तव में गलत नहीं है, किन्तु ख़राब शहरीकरण इसकी
छवि को धूमिल कर रहा है।
जापान की आबादी का एक तिहाई हिस्सा केवल टोक्यो शहर में निवास करता है, लेकिन वहां शहर
योजना और निवेश को इतने बेहतरीन ढंग से सुनिश्चित किया है, कि शिक्षक, नर्स और पुलिसकर्मी
जैसे आवश्यक कर्मचारी दो घंटे से कम समय में अपने गन्तव्य तक पहुच जाते हैं। इसकी तुलना
में हमारे बेंगलुरू में ट्रैफिक की स्थिरता लगभग असंभव है, जहां टैक्सी और ऑटो की गति औसतन
8 किमी/घंटा तक रहती है। बेहतर शहरीकरण में बच्चों, महिलाओं और दलितों को न्याय दिलाने
की व्यवस्था भी शामिल है। ख़राब शहरीकरण का एक अर्थ यह भी होता है की, केवल पुरुष ही
प्रवास करें, तथा बच्चों और महिलाओं को कृषि कार्यों और बच्चों की देखभाल के लिए घर पर
अकेला छोड़ दिया जाता हैं। साथ ही घर पर अकेली महिलाओं के पास न ही बेहतर स्वास्थ सुविधा
उपलब्ध रहती है, और न ही भावनात्मक रूप से अपने जीवन साथी का समर्थन प्राप्त होता है!
ऐसा भी नहीं है सरकार द्वारा ग्रामीण तथा शहरों के विकास के लिए धन आवंटित नहीं होता,
बल्कि ग्राउंड ज़ीरो पर पहुँचते-पहुँचते उस धन की मात्रा केवल कुछ प्रतिशत में ही रह जाती है।
बेहतर शहरीकरण के लिए यह आवश्यक है की, राज्य सरकारों को मिलने वाला पूरा धन बच्चो की
शिक्षा और बिजली आदि के विकास में लगाया जाए, अथवा उस उद्द्येश्य की पूर्ति करे जिसके लिए
उस पेसे को जारी किया गया था।
नीति आयोग द्वारा जारी "भारत में शहरी नियोजन क्षमता में सुधार" रिपोर्ट में देश में शहरीकरण
के संदर्भ में कुछ अहम् बिंदु उजागर किये गए है।
भारत दुनियां की कुल वैश्विक शहरी आबादी का 11 प्रतिशत का घर है। अनुमान यह भी है की वर्ष
2027 तक हमारा देश चीन को पीछे छोड़कर दुनिया की सबसे घनी आबादी वाला देश बन जायेगा।
ऐसे में अनियोजित शहरीकरण एक बड़ी समस्या के रूप में उभरेगा क्यों की बढ़ती आबादी के
कारण निश्चित रूप से हमारे शहरों पर भारी दबाव भी बढ़ेगा।
कोविड-19 ने शहरों की योजना और
प्रबंधन की जरूरत उजागर कर दी है। दुर्भाग्य से, बेहतर शहरी नियोजन के विषय पर अब तक
उचित ध्यान नहीं दिया गया है। आज देश में मौजूदा शहरी नियोजन और शासन ढांचा बेहद जटिल
है, रिपोर्ट के अनुसार शहरीकरण में सुधार के लिए प्रत्येक शहर को 2030 तक 'सभी के लिए
स्वस्थ शहर' बनने की आकांक्षा रखनी चाहिए। रिपोर्ट में पांच साल की अवधि के लिए एक केंद्रीय
क्षेत्र योजना '500 स्वस्थ शहर कार्यक्रम' की सिफारिश भी की गई है,इसमें यह भी सुझाव दिए गए
हैं की प्रस्तावित 'स्वस्थ शहर कार्यक्रम' के तहत सभी शहरों और कस्बों की भूमि को वैज्ञानिक
प्रयोगों के आधार पर दक्षता से प्रयोग करना चाहिए। शहरी योजनाकारों की कमी को पूरा करने के
लिए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को नगर योजनाकारों के रिक्त पदों को भरने में तेजी लाने की
आवश्यकता है। अनुमान है की, वर्ष 2030 तक, भारत में शहरी आबादी लगभग दोगुनी होकर 630
मिलियन हो जाएगी। अगर हमें विकास के इस स्तर को सुगम बनाना है, तो हमें अपने शहरी
बुनियादी ढांचे को काफी उन्नत करना होगा। शहरीकरण में केवल ऊँची-ऊँची इमारतों का निर्माण
करना ही काफी नहीं है, बल्कि बेहतर शहरी पारिस्थितिकी तंत्र का विकास करने के लिए गरीबी,
स्वास्थ्य, शिक्षा, स्वच्छता, ऊर्जा और जलवायु जैसी अन्य राष्ट्रीय प्राथमिकताओं पर भी ध्यान
देने की आवश्यकता है।
संदर्भ
https://bit.ly/2X1lcxi
https://bit.ly/3Fw8jfN
https://bit.ly/3uTK7PT
चित्र संदर्भ
1. प्रकृति और शहर के शानदार समावेश को दर्शाते सिंगापुर के एक शहर चित्रण (theculturetrip)
2. शहरों के दो भिन्न-भिन्न परिदृश्यों को दर्शाता एक चित्रण (Telegraph India)
3. असंगठित भारतीय शहरों को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
4. सुव्यवस्थित भारतीय शहर को दर्शाता एक चित्रण (Fierce Pharma)