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हमारे शहर लखनऊ में आलमबाग, सिकंदर बाग, दिलकुशा जैसे कई ऐतिहासिक स्थल हैं, जो
अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ाई में अहम् भागीदार रहे हैं; यह स्थान सन 1857 में ब्रिटिश शासन के
खिलाफ प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के साक्ष्य थे। लेकिन, 1857 से 300 साल पहले, विदेशी शासन
के प्रतिरोध की शुरुआत, हमारे बंदरगाहों पर हुई, जहां पर युद्ध द्वारा फ़तेह पा कर यूरोपीय
साम्राज्यों ने भारत के क्षेत्रों पर अपना शासन शुरू किया, और हिंद महासागर में व्यापार को
नियंत्रित किया। आइये ऐसी तीन प्रमुख लड़ाइयों पर नज़र डालते हैं।
इस विजय ने
पुर्तगाली साम्राज्य के विकास में बहुत सहायता की और एक सदी से भी अधिक समय तक अपना
व्यापार प्रभुत्व स्थापित किया। दीव की लड़ाई को विश्व नौसैनिक इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण
लड़ाइयों में से एक माना जाता है, क्योंकि यह एशियाई समुद्रों पर यूरोपीय प्रभुत्व की शुरुआत का
प्रतीक साबित हुई। इस युद्ध को लड़ने का प्रमुख कारण यह था की वास्को डी गामा (Vasco Da
Gama) के समुद्र के रास्ते भारत पहुंचने के ठीक दो साल बाद, पुर्तगालियों ने महसूस किया कि
भारत व्यापार के संदर्भ में एक अहम् कड़ी साबित हो सकता है। 16वीं शताब्दी की शुरुआत में, मिस्र
की मामलुक सल्तनत भारत के मसाला उत्पादक क्षेत्रों और भूमध्यसागर में विनीशियन
(Venetian) खरीदारों के बीच मुख्य बिचौलिया थी। उन्होंने भारत से यूरोप में मसालों को एक बड़े
लाभ पर बेचा था, और इस व्यापार का हिस्सा पुर्तगाली भी चाहते थे।
यह लड़ाई 15वीं और 16वीं शताब्दी के अंत में भारत के साथ व्यापार पर पुर्तगालियों के एकाधिकार
के परिणाम स्वरूप हुई थी। इस युद्ध के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी को बहुत फायदा हुआ था। साल
1612 में मुगल शासक जहांगीर ने ईस्ट इंडिया कंपनी को भारत में व्यापार करने की अनुमति दे दी।
इसके बाद कंपनी ने तटीय भारत में कई कारखानों की स्थापना की थी।
जनवरी 1739 में, सीलोन के डच गवर्नर गुस्ताफ विलेम वैन इम्हॉफ (Gustaf Willem van
Imhof) ने कोच्चि का दौरा किया, और जुलाई की एक रिपोर्ट में, उन्होंने मालाबार में डच व्यवसाय
को बचाने के लिए सैन्य कार्रवाई की सिफारिश की। वैन इम्हॉफ ने व्यक्तिगत रूप से मार्तंडा वर्मा
से शांति वार्ता के लिए मुलाकात की, लेकिन उन्होंने शर्तों को मानने से इंकार करने पर त्रावणकोर
के खिलाफ युद्ध छेड़ने की धमकी दी। लेकिन मार्तंडा वर्मा ने उनकी शर्तों को सिरे से खारिज कर
दिया।
अंततः 1739 के अंत में, मालाबार में डच कमान ने अनुमति प्राप्त किए बिना या बटाविया
(Batavia, Indonesia) से सुदृढीकरण की प्रतीक्षा किए बिना, त्रावणकोर पर युद्ध की घोषणा की।
हालांकि उन्होंने और उनके सहयोगियों ने प्रारंभिक अभियान में कई सैन्य सफलताएँ हासिल कर
दी। नवंबर में, सहयोगी सेना ने कोल्लम के पास तैनात त्रावणकोर सेना को पीछे हटने के लिए
मजबूर किया, और तांगसेरी तक आगे बढ़ गई। मालाबार में डच कमांड ने त्रावणकोर के खिलाफ
दूसरा अभियान शुरू किया। लेकिन यहाँ मार्तंडा वर्मा की सेना डचों पर हावी हो गई। उन्होंने,
त्रावणकोर में डच चौकियों पर कब्जा कर लिया, कारखानों पर हमला किया, और संग्रहीत माल पर
कब्जा कर लिया।