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भारतीय सिनेमा में "कुली" शब्द को केवल रेलवे स्टेशन पर यात्रियों का सामान ढोने वाले मजदूर तक ही
सीमित करके दर्शाया गया है। किन्तु भारत से बाहर की दुनिया में "कुली" शब्द के बड़े व्यापक मायने और
हृदय को झकझोर देने वाला इतिहास रहा है।
कुली या कूली शब्द, आमतौर पर दक्षिण एशियाई या पूर्वी एशियाई मूल के एक कम वेतन वाले मजदूर के
लिए प्रयुक्त किया जाता है। इस शब्द को पहली बार 16वीं शताब्दी में पूरे एशिया में यूरोपीय व्यापारियों
द्वारा लोकप्रिय बनाया गया था।
वास्तव में "कुली” एक नौकरशाही शब्द था, जिसे अंग्रेज गिरमिटिया मजदूरों का वर्णन करने के लिए
इस्तेमाल करते थे। दरसल सत्रहवीं सदी में अंग्रेज़ों द्वारा आम भारतीयों को एक-एक रोटी तक को
मोहताज कर दिया गया। फिर अंग्रेजों ने गुलामी की शर्त पर उन भारतीय लोगों को विदेश भेजना प्रारंभ कर
दिया गया, और इन मज़दूरों को गिरमिटिया कहा गया। गिरमिटिया मजदूरों को चीनी, कपास और चाय के
बागानों और वेस्ट इंडीज (West Indies), अफ्रीका और दक्षिण पूर्व एशिया में ब्रिटिश उपनिवेशों में रेल
निर्माण परियोजनाओं पर काम करने के लिए भर्ती किया गया था। 1834 से WWI के अंत तक, ब्रिटेन नेलगभग 2 मिलियन भारतीय गिरमिटिया श्रमिकों को 19 उपनिवेशों में पहुँचाया था, जिनमें फिजी (Fiji),
मॉरीशस (Mauritius), सीलोन(Ceylon), त्रिनिदाद (Trinidad), गुयाना (Guyana), मलेशिया (Malaysia),
युगांडा (Uganda), केन्या (Kenya) और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं।
यह व्यापक रूप से माना जाता है कि "कुली" शब्द दक्षिण भारतीय भाषा तमिल से लिया गया है, जिसमें
"कुली" शब्द का अर्थ मजदूरी (समान परिभाषा वाले समान शब्द कई अन्य दक्षिण एशियाई भाषाओं में भी
मौजूद हैं) होता है। कुली" की शब्दकोश परिभाषा केवल "एक किराए का मजदूर" है। लेकिन यह शब्द जल्दी
ही उन हजारों पूर्व और दक्षिण एशियाई लोगों का पर्याय बन गया, जिन्होंने पूरे ब्रिटिश उपनिवेशों में
इस्तेमाल किए जाने वाले गिरमिटिया श्रम की प्रणाली के हिस्से के रूप में अमेरिका सहित अन्य देशों की
यात्रा की। हालांकि शुरुआत में कुली का अर्थ दिहाड़ी मजदूर था, लेकिन 20 वीं शताब्दी के बाद से इस शब्द
का इस्तेमाल ब्रिटिश राज भारत में रेलवे स्टेशनों पर कुलियों को संदर्भित करने के लिए किया जाने लगा
था। वास्तव में, "कुली" को लंबे समय से संयुक्त राज्य अमेरिका में कम मजदूरी, और अप्रवासी मजदूरों के
खिलाफ एक गाली के रूप में इस्तेमाल किया गया था।
अनुबंधित श्रमिकों (जिन्हें अपमानजनक रूप से 'कुली' के रूप में जाना जाता है) को भारत, चीन और प्रशांत
क्षेत्र से भर्ती किया गया था, और 5 साल या उससे अधिक की अवधि के लिए विदेश में काम करने के लिए
कुलियों को अपने ही देशों में एक अनुबंध पर हस्ताक्षर कराए गए। इन अनुबंधों में इन श्रमिकों या कुलियों
को विदेश में काम देने, छोटी सी जमीन देने और अनुबंध समाप्त होने पर वापसी का वादा दिया जाता था।
लेकिन इतिहास गवाह है की परिस्थितियां बिलकुल इसके विपरीत और कठोर थी। साथ ही उनकी मजदूरी
भी तय अनुबंधों से काफी कम थी, और श्रम भी अधिक कराया जाता था।
अब मूल प्रश्न यह उठता है, की आखिर इन श्रमिकों, जिन्हे कुली कहा जाता था, ने अनुबंधों पर हस्ताक्षर
क्यों किये?
दरअसल भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन की अवधि के दौरान भयंकर गरीबी और अकाल की
समस्या व्याप्त थी। जिससे बचने की कोशिश में उन निरक्षर श्रमिकों ने बिना शर्तों को समझे, इन अनुबंधों
पर अंगूठे लगा दिए। वे लिखना भी नहीं जानते थे, यहां तक की उन्हें इस संदर्भ में भी गुमराह किया गया की
वे कहां जा रहे हैं, और उन्हें कितनी मजदूरी मिलेगी! उदाहरण के तौर पर कई ग्रामीण श्रमिकों को कलकत्ता
जैसे शहरों में काम करने के लिए भर्ती किया गया था, लेकिन यहां उन्हें धोखा देकर उत्प्रवास डिपो
(emigration depot) और विदेशों में बागानों में ले जाया जाता था। भारतीय अप्रवासी आयोग की रिपोर्ट,
नेटाल 1887, कार्टर और टोराबुली 2002, पृष्ठ 20 में उद्धृत एक उदाहरण के तौर पर हमारे लखनऊ की
एक महिला को कहा गया की, वह यूरोप में पच्चीस रुपये प्रति माह तक उस समय का ठीक-ठाक वेतन
प्राप्त कर सकेगी। लेकिन प्रस्तावित स्थान पर ले जाने के बजाय, उसे नेटाल जे जाया गया, और मजदूरी
करवाई गई।
हाल ही में रिलीज़ हुई किताब कुली वुमन (Coolie Woman) में, लेखक गायत्रा बहादुर ने अपनी परदादी
की जीवन कहानी को दर्शाया है, जो 1900 के दशक की शुरुआत में कलकत्ता में एक गिरमिटिया जहाज पर
सवार हुई थी। बहादुर की परदादी उन हजारों भारतीयों में से एक थीं, जिन्होंने ब्रिटिश कंपनियों के साथ
अनुबंध पर हस्ताक्षर किये थे, और कैरिबियन के गन्ने के खेतों में काम करने जाते थे। "भारत उपमहाद्वीप
में 'कुली' वह होता है, जो सामान ले जाता है। "लेकिन ये महिलाएं, उपनिवेशवाद, गोरे पुरुषों तथा भारतीय
पुरुषों की उम्मीदों को ढोती थी।
20 मार्च, 1916 को मदन मोहन मालवीया ने भारतीय विधान परिषद में अनुबंध प्रणाली के उन्मूलन के
लिए एक प्रस्ताव पेश किया। ब्रिटिश सरकार ने प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और 1917 में औपचारिक रूप
से इस प्रणाली पर प्रतिबंध लगा दिया गया। गिरमिटिया श्रमिकों के लिए प्रवास 20 वीं शताब्दी के कम से
कम तीसरे दशक तक चला। गिरमिटिया मजदूरों को लेकर आखिरी जहाज 1924 में मॉरीशस (Mauritius)
पहुंचा।
हालांकि अनुबंध प्रणाली एक सदी पहले समाप्त हो गई थी, लेकिन ब्रिटिश उपनिवेशों में आज भी भारतीयों
को नस्लवाद का सामना करना पड़ रहा है। 2002 में, दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों के प्रति नफरत फैलाने के
लिए ज़ुलु नाटककार, म्बोंगेनी नगेमा (Mbongani Ngema) द्वारा लिखित एक गीत, जिसे अमांडिया
(Amandia) (भारतीय) कहा जाता है, पर हमला हुआ। 2014 में, इसी तरह का एक गीत अफ्रीकी रैप समूह
(Rap), अमाकडे द्वारा तैयार किया गया था, जिसमें भारतीयों से अपने देश वापस जाने का आग्रह किया
गया था। उसी वर्ष डबलिन में, सरकार ने बड़ी संख्या में भारतीय व्यापारियों के कार्यस्थल वारविक बाजार
(Warwick Market) को नष्ट करने का निर्णय लिया था। जब भारतीयों ने इस फैसले का विरोध किया, तो
राजनेताओं ने तीखे भाषण देकर खतरनाक रूप से भारत विरोधी भावनाओं की घोषणा की। फिजी में भी
भारत विरोधी भावनाएं हाल के वर्षों में हुए चुनावों में एक विवादास्पद मुद्दा बना रही हैं।
संदर्भ
https://n.pr/3qQcDkx
https://bit.ly/38hY56Q
https://bit.ly/3uIZiLZ
https://en.wikipedia.org/wiki/Coolie
चित्र संदर्भ
1. दार्जिलिंग की महिला कुली और दासता को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. एक बुजुर्ग कुली को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
3. जमैका में पहुंचे भारतीय गिरमिटिया मजदूरों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. हाल ही में रिलीज़ हुई किताब कुली वुमन (Coolie Woman) में, लेखक गायत्रा बहादुर ने अपनी परदादी की जीवन कहानी को दर्शाया है, जिसको दर्शाता एक चित्रण (amazon)