उत्तर और मध्य प्रदेश में केन-बेतवा नदी परियोजना में वन्यजीवों की सुरक्षा बन गई बड़ी चुनौती

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उत्तर और मध्य प्रदेश में केन-बेतवा नदी परियोजना में वन्यजीवों की सुरक्षा बन गई बड़ी चुनौती

पिछले कुछ दशकों के दौरान पृथ्वी की जलवायु में इतना भारी परिवर्तन देखा गया है की, इसकी वजह से धरती पर हजारों पशु-पक्षियों की प्रजातियां, या तो विलुप्ति की कगार पर खड़ीं हैं, या फिर विलुप्त हो चुकी हैं! अधिकाशं मामलों में इस प्रकार की संकटग्रस्त स्थिति के लिए, मनुष्य ही जिम्मेदार होते हैं! इसलिए हम सभी के लिए इस बात को ध्यान में रखना जरूरी हो गया है की, भविष्य में इंसानी गतिविधियां इन मूक जानवरों के लिए, कोई नया संकट न खड़ा कर दे!
वर्ष 2021 में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा, केन-बेतवा नदियों (Ken-Betwa Rivers) को जोड़ने के लिए कुल 44,605 ​​करोड़ रुपये की लागत वाली परियोजना के वित्तपोषण और कार्यान्वयन को मंजूरी दे दी गई। दरअसल राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना के तहत नदियों को आपस में जोड़ने की यह पहली परियोजना है। इसमें केन नदी से यमुना की दोनों सहायक नदियों को, बेतवा नदी के पानी स्थानांतरित करने की परिकल्पना की गई है। केन-बेतवा लिंक नहर 221 किमी लंबी होगी, जिसमें 2 किमी लंबी सुरंग भी शामिल है। परियोजना के दो चरण हैं, जिसमें मुख्य रूप से चार घटक हैं। चरण- I में एक घटक शामिल होगा - दौधन बांध परिसर और इसकी सहायक इकाइयाँ जैसे निम्न स्तर की
सुरंग, उच्च स्तरीय सुरंग, केन-बेतवा लिंक नहर और बिजली घर।
चरण- II में तीन घटक शामिल होंगे - लोअर ओरर डैम, बीना कॉम्प्लेक्स प्रोजेक्ट और कोठा बैराज। जल शक्ति मंत्रालय के अनुसार, इस परियोजना से 10.62 लाख हेक्टेयर की वार्षिक सिंचाई, लगभग 62 लाख लोगों को पीने के पानी की आपूर्ति और 103 मेगावाट जलविद्युत तथा 27 मेगावाट सौर ऊर्जा उत्पन्न होने की उम्मीद है।
कैबिनेट की मंजूरी के बाद जारी एक आधिकारिक बयान के अनुसार, केन-बेतवा लिंक परियोजना की कुल लागत 2020-21 के मूल्य स्तरों पर 44,605 ​​करोड़ रुपये आंकी गई है! परियोजना को "अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी के साथ" 8 वर्षों में लागू करने का प्रस्ताव है। जल शक्ति मंत्रालय के अनुसार, इस परियोजना से पानी की कमी वाले क्षेत्र, विशेष रूप से मध्य प्रदेश के पन्ना, टीकमगढ़, छतरपुर, सागर, दमोह, दतिया, विदिशा, शिवपुरी, रायसेन और बांदा, महोबा जिलों और उत्तर प्रदेश के झांसी तथा ललितपुर के लिए अत्यधिक लाभ उत्पन्न होगा। हालांकि इस परियोजना का एक दूसरा पहलू भी हैं की, अपने नेक इरादों और बहुत आवश्यक अपेक्षित परिणामों के बावजूद, केन बेतवा लिंक परियोजना का, पशु पक्षियों की तीन प्रमुख प्रजातियों यानी बाघ, गिद्ध और घड़ियाल पर काफी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। इन चिंताओं में कनेक्टिविटी को बाधित करना, घोंसले तथा आवास को जलमग्न करना और इन प्रजातियों के लिए आवश्यकताओं को सीमित शामिल है।
पन्ना टाइगर रिजर्व (Panna Tiger Reserve (PTR) और वाइल्ड इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (Wild Institute of India (WII) द्वारा 25 गिद्धों पर आयोजित एक संयुक्त टेलीमेट्री परियोजना (joint telemetry project) में पाया गया है कि, “भारतीय लाल सिर वाले गिद्ध, प्रस्तावित केन बेतवा नदी जोड़ो परियोजना के तहत उन क्षेत्रों में रह रहे हैं, जो इस परियोजना के बाद जलमग्न हो जाएंगे।” अध्ययन में गिद्धों, जिनमें से प्रत्येक को पिछले दो वर्षों में सौर-संचालित जीपीएस उपकरणों के साथ टैग किया गया था, में 13 भारतीय गिद्ध शामिल थे जिनमें दो गंभीर रूप से लुप्तप्राय लाल सिर वाले गिद्ध, 8 हिमालयी ग्रिफन (Himalayan Griffon) और दो यूरेशियन ग्रिफन (eurasian griffon) शामिल थे। भारतीय गिद्धों, विशेष रूप से लाल सिर वाले गिद्धों हमारे लिए चिंता का मुख्य कारण बन गए है क्योंकि वे ज्यादातर ग्रेटर पन्ना परिदृश्य में रहते हैं, जिसका एक हिस्सा जलमग्न होने जा रहा है। पीटीआर के फील्ड डायरेक्टर यूके शर्मा के अनुसार, “लाल सिर वाला गिद्ध पेड़ों पर रहता है और बहुत कम उड़ता है। लेकिन यह भी सच हो सकता है कि, पक्षी नए आवासों को अपनाले और इस प्रकार, जलमग्न होने के बाद, वे अन्य क्षेत्रों को अपने आवास के रूप में चुन लगे।
हालांकि केन बेतवा लिंक परियोजना का तीन प्रमुख प्रजातियों- बाघ, गिद्ध और घड़ियाल पर नकारात्मक प्रभाव को स्वीकार करते हुए, सामुदायिक प्रबंधन के साथ इन प्रजातियों के संरक्षण के लिए एकीकृत लैंडस्केप प्रबंधन योजना (Integrated Landscape Management Plan) में, कई निर्देशात्मक कदम भी प्रस्तावित किए गए हैं।
पन्ना टाइगर रिजर्व में लगभग 60 बाघ हैं, जिनकी कुल जनसंख्या वृद्धि दर लगभग 27 प्रतिशत है और वार्षिक वृद्धि दर 31 प्रतिशत आंकी गई है। इन बाघों की सुरक्षा के लिए योजना दस्तावेज में निरंतर कैमरा-ट्रैप मॉनिटरिंग सिस्टम (Camera-Trap Monitoring System (CCMS) सहित अपराध जांच, चेतावनी प्रणाली; आनुवंशिक प्रबंधन; सड़क यातायात की मात्रा का डायवर्जन, रणनीतिक बाड़ लगाना, चेतावनी प्रणाली, और महत्वपूर्ण बाघ आवासों की पहचान और संरक्षण जैसे 21 सुरक्षा कदमों को उठाने का सुझाव दिया गया है। इन क्षेत्रों में गिद्धों की सात प्रजातियां मौजूद हैं। योजना में कहा गया है कि गिद्ध भोजन के लिए पूरे परिदृश्य का उपयोग करते हैं, इसलिए इनके संरक्षण के लिए 19 सुरक्षा कदमों का सुझाव दिया गया हैं, जिसमें शव डंप साइटों की बाड़ लगाना, इलेक्ट्रॉनिक निगरानी प्रणाली की स्थापना, जनसांख्यिकीय और आनुवंशिक संरचना प्रोफाइलिंग, और निगरानी शामिल हैं। इन रणनीतियों के कार्यान्वयन के लिए केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन तथा जल शक्ति मंत्रालय एवं मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की राज्य सरकारें शामिल होंगी।

संदर्भ
https://bit.ly/3bkReuI
https://bit.ly/3nefXn6
https://bit.ly/3n9wCs4

चित्र संदर्भ
1. एक नदी परियोजना को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. यमुना नदी के नक़्शे को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. केन नदी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. हिमालयी ग्रिफन को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. जंगल में बाघ को दर्शाता एक चित्रण (flickr)