जापानी व्यंजन सूशी, बन गया है लोकप्रिय फ़ास्ट फ़ूड, इस वजह से विलुप्त न हो जाएँ खाद्य मछीलियाँ

मछलियाँ और उभयचर
27-06-2022 09:27 AM
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जापानी व्यंजन सूशी, बन गया है लोकप्रिय फ़ास्ट फ़ूड, इस वजह से विलुप्त न हो जाएँ खाद्य मछीलियाँ

आंकड़ों के मुताबिक जनवरी 2019 से सूशी (Sushi) के ऑर्डर (order) में करीब 50 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। गुवाहाटी और लुधियाना जैसे छोटे शहरों से भी इसकी काफी मांग दर्ज की गई है। जापानी व्यंजन सूशी को, चावल, जिन्हें वेजीटेबल (Vegetable), सैल्मन और टूना मछली (salmon and tuna) और फलों के साथ भी परोसा जाता है, भारत में इसके काफी प्रशंसक है, विशेष रूप से दिल्ली में, और हाल ही में एक ऑनलाइन फूड डिलीवरी प्लेटफॉर्म स्विगी (Swiggy) द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण ने इसकी पुष्टि की है।
सूशी के विकास का एक लंबा इतिहास रहा है, जिसकी शुरुआत प्राचीन चीन (china) से हुई थी। मछली को लम्बे समय तक संरक्षित रखने के लिए सूशी के प्रारंभिक स्वरूप का जन्म हुआ। मछली को ताजा रखने के लिए, इसे चावल के साथ किण्वित किया जाता था और बाद में चावल को त्याग दिया गया और मछली का सेवन कर लिया जाता। इस प्रकिया ने जापान में भी अपना रास्ता बना लिया, जहां लोगों ने मछली के साथ चावल खाना शुरू कर दिया और धीरे-धीरे कुछ संशोधनों के साथ सूशी का जन्म हुआ। यह जल्द ही जापानियों के बीच बहुत लोकप्रिय हो गया और उन्होंने इसे एकदम सही बनाने के लिए सीज़निंग और सिरके (seasonings and vinegar) के साथ इसे पकाना शुरू कर दिया। सूशी व्यापक रूप से खाए जाने वाले फास्ट फूड के रूप में उभरी जो जापानी संस्कृति और परंपरा से दृढ़ता से जुड़ा हुआ है। अब, आधुनिक समय में, सूशी एक विश्व स्तर पर पसंद किया जाने वाला फास्ट फूड बन गया है, जिसे दुनिया भर में विभिन्न लोगों द्वारा अलग-अलग तरीके से खाया जाता है।
वर्तमान में भारत में भी सूशी काफी लोकप्रिय है, परन्तु पहले भारतीयों के लिए यह इतनी स्वादिष्ट या सुलभ नहीं थी, जिसे ज्यादातर महंगे पांच सितारा होटलों में ही परोसा जाता था। हालांकि, बदलते समय में जापानी व्यंजनों की लोकप्रियता में वृद्धि के साथ सूशी में भी कई बदलाव हुए, विशेष रूप से शाकाहारी लोगों के लिए विभिन्न सामग्रियों के साथ सूशी की शुरूआत हुई, कई बदलाव भारतीयों के स्वाद अनुसार किये गए जिससे भारतीयों के बीच इस जापानी व्यंजन ने अपनी एक ख़ास जगह बना ली। वर्तमान समय में भारत में आपको होटलो के मेन्यू में 15 तरह की सूशी देखने को मिल जाएंगी जिन्हे भारतीय स्वाद को ध्यान में रखते हुए विभिन्न सामग्रियों और टॉपिंग के साथ नए प्रकार से बनाया जाता है। भारत में सूशी की खपत और दुनिया के बाकी हिस्सों की तुलना में बहुत अलग है, क्योंकि अच्छी गुणवत्ता वाली सूशी को उच्च कीमत के साथ जोड़ा जाता है। दुनिया भर में सूशी महंगी है जिसके तीन मुख्य कारण है: पहला, उत्पाद की गुणवत्ता; दूसरा, शेफ (chef) के कौशल का स्तर और तीसरा, मछली जिसे कम तापमान में रखने के लिए आवश्यक उपकरणों को खरीदने और चलाने में पैसा लगता है। जापान विदेश व्यापार संगठन की रिपोर्ट कहती है कि भारत में लगभग 100 रेस्तरां (restaurant) हैं जो मुख्य रूप से जापानी व्यंजन परोसते हैं।
आप जानते हैं कि नई दिल्ली में “टोक्यो”, भारत का पहला जापानी रेस्तरां था? यह 1989 में भारत पर्यटन विकास निगम की मदद से भारत में जापानी व्यंजनों के लिए खोला गया था। हालांकि, ताजी मछली और मुख्य सामग्री की कमी की शिकायतों के कारण इसे बंद कर दिया गया। “सकुरा”, वर्ष 2000 में कनॉट प्लेस के मेट्रोपॉलिटन में खुलने वाला अगला होटल था। इसके बाद तो जैसे झड़ी ही लग गई जापानी रेस्तरां की! मुंबई में त्सुबाकी (Tsubaki), ताकी- ताकी (Taki-Taki), वाकाई(Wakai); नई दिल्ली में हाराजुकु कैफे (Harajuku Cafe) और मेन्शो टोक्यो (Mensho Tokyo), गोवा में मकुत्सु (Makutsu), इज़ुमी (Izumi’s) और कोफुकु का नया आउटलेट (Kofuku’s new outlet); और चेन्नई में ओयामा (Oyama), कुछ नाम जो शीर्ष पर है और ये एक वर्ष के भीतर ही बने हैं। वर्तमान में जापानी रेस्तरां भी शाकाहारियों के लिए सूशी परोसते हैं, अब यह व्यंजन सभी का पसंदीदा बन गया है। यह रेस्तरां उन लोगों के स्वाद का भी ध्यान रखते हैं जो कच्चा मांस पसंद नहीं करते हैं।
सैल्मन का उपयोग न केवल सूशी बल्कि कई व्यजनों में किया जा रहा है। अब 'अमृतसारी तवा सैल्मन' और 'बंगाली दही सरसों सामन' जैसे भारतीय संस्करणों में उत्तरी अटलांटिक (North Atlantic) और प्रशांत महासागर (Pacific Ocean) की सहायक नदियों के मूल निवासी सैल्मन का स्वाद ले सकते हैं। 2015 में सैल्मन की भारतीय खपत लगभग 450 टन थी, परन्तु यह धीरे-धीरे बढ़ रही है, देश में हर साल लगभग 9.2 मिलियन टन समुद्री भोजन की खपत होती है, जिसमें से आधा हिस्सा हिंद महासागर से आता है और शेष ताजे पानी के जलीय कृषि से आता है। भारत में आयातित समुद्री भोजन की दीर्घकालिक संभावना है। हालांकि, भारत में सैल्मन के बारे में किसी को भी कोई ख़ास जानकारी नहीं है फिर भी ये मछली यहाँ बड़े चाव\खाई जाती है, यह ठंडे पानी की मछली है जो समुद्र के पानी में 4 से 15 डिग्री सेल्सियस के बीच रहती है। इसलिए, अधिकांश सैल्मन फार्म उत्तरी गोलार्ध में हैं। इस मछली को खाने से रक्तचाप और कोलेस्ट्रॉल को कम करने में मदद मिल सकती है। इसमें मौजूद फैटी एसिड हृदय के स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी होते है। इन्ही लाभों के कारण इसकी मांग साल दरसाल बढ़ती ही जा रही है।
उत्तरी अमेरिका (North America), यूरोप (Europe) और एशिया (Asia) में सूशी और डिब्बाबंद टूना मछली की मांग से हिंद महासागर में तेजी से येलोफिन (yellowfin) टूना खत्म हो रही है। पर्यावरणविदों का कहना है कि अधिक मछली पकड़ने से टूना के विलुप्त होने का खतरा है। इनकी आबादी इतनी कम हो गई है की प्रकृति के संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ (The International Union for Conservation of Nature) की "लाल सूची" में इसकी कई प्रजातियों को रखा गया हैं। मछलियों को प्रजनन करने से पहले ही मार या पकड़ लिया जाता है, जिसका अर्थ है कि वे विलुप्त होने की ओर बढ़ रहे हैं। लंदन स्थित ब्लू मरीन फाउंडेशन (Blue Marine Foundation-BLUE) एडवोकेसी ग्रुप (advocacy group) के अनुसार, इन मछलियों को वैश्विक स्तर पर लगभग 450,000 मीट्रिक टन के करीब सालाना पकड़ा जाता है। फ्रांसीसी (French) और स्पैनिश (Spanish) भी मछली पकड़ने के बेड़े में "पर्स सीन" (purse seine) जैसे औद्योगिक तरीकों का उपयोग करते हुए विशाल जाल के साथ अधिकांश मछली लेते हैं, जो अक्सर किशोर पीले फिन का शिकार करते हैं। मछली पकड़ना समुद्री जीवों के आबादी में गिरावट लाने का एक महत्वपूर्ण कारण है। मछली की शिकार करना कोई बुरी बात नहीं है, पर यह जब बड़े बड़े जहाजों द्वारा तेजी से पकड़ी जाती है, तो इसे ओवेर फिशिंग (Over Fishing) कहा जाता है। अरबों लोग प्रोटीन के लिए मछली पर निर्भर होते है। मछली पकड़ना मुख्य रूप से लोगों का व्ययसाय होता है और लाखो लोगों का यह आजीविका का साधन है।
ओवेर फिशिंग मतलब एक हद से ज्यादा मछली को पकड़ना है। इससे प्रजनन करने वाली आबादी ठीक होने के लिए बहुत कम हो जाती है। इसके लिए ख़राब मत्स्य प्रबंधन, मछली पकड़ने की अस्थिरता, आर्थिक जरूरतों के साथ-साथ अवैधता को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। इसके प्रभावों में समुद्री जीवन असंतुलन, आय की हानि, और लुप्तप्राय समुद्री प्रजातियों की कटाई शामिल है, और यह दुनिया के महासागर और समुद्री जीवन को अनकहा नुकसान पहुंचा रहा है।

संदर्भ:

https://bit.ly/3NdW0rd
https://bit.ly/3xEeUlq
https://bit.ly/3zWEWTJ
https://bit.ly/3tWlYJ3

चित्र संदर्भ

1. सुशी रोल के सेट को दर्शाता एक चित्रण (Rawpixel)
2. टेकअवे में सुशी थाली को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. सुशी की तैयारी करते शेफ को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. दुकानों में सुशी आमतौर पर प्लास्टिक ट्रे में बेची जाती है। को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. येलोफिन (yellowfin) टूना मछली पकडे लोगों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)