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विश्व में ऐसी अनेकों पर्वत श्रृंखलाएं हैं, जो अपनी खूबसूरती से सबको आकर्षित करती हैं
तथा इन्हीं श्रृंखलाओं में से एक काराकोरम भी है। काराकोरम कश्मीर में स्थित पर्वत श्रृंखला
है जो पाकिस्तान (Pakistan), चीन (China) और भारत की सीमाओं तक फैली हुई हैं।
इसके उत्तर पश्चिमी छोर अफगानिस्तान (Afghanistan) और ताजिकिस्तान (Tajikistan)
तक फैले हुए हैं। काराकोरम पर्वत श्रृंखला का अधिकांश भाग गिलगित-बल्तिस्तान (Gilgit-
Baltistan) के अधिकार क्षेत्र में आता है जो पाकिस्तान द्वारा नियंत्रित है। इसकी सबसे
ऊँची चोटी (और दुनिया की दूसरी सबसे ऊँची चोटी) K2, गिलगित-बल्तिस्तान में स्थित
है।काराकोरम श्रृंखला का विस्तार 500 किलोमीटर तक फैला हुआ है और ध्रुवीय क्षेत्रों को
छोड़कर दुनिया के सबसे अधिक हिमनद इसी इलाके में हैं।
 काराकोरम पूर्वोत्तर में तिब्बती
पठार के किनारे और उत्तर में पामीर पर्वतों से घिरा है। इसकी प्रमुख श्रृंखलाओं में
K2,गशरब्रम (Gasherbrum),ब्रॉडपीक (Broad Peak),दिस्ताघिल सार (Distaghil
Sar),कुन्यांग छीश (KunyangChhish) आदि शामिल हैं।
इस पर्वत श्रृंखला का उल्लेख हमें कई उपन्यासों और फिल्मों में मिलता है। रुडयार्ड किपलिंग
(Rudyard Kipling) ने अपने उपन्यास किम (Kim) में काराकोरम पर्वत श्रृंखला का
उल्लेख किया है, जो पहली बार 1900 में प्रकाशित हुआ था। मार्सेल इचैक (Marcel
Ichac) ने काराकोरम नामक एक फिल्म बनाई थी, जिसमें 1936 में इस श्रृंखला में हुए एक
फ्रांसीसी अभियान का वर्णन किया गया था। ग्रेग मोर्टेंसन (Greg Mortenson) ने अपनी
पुस्तक “थ्री कप्स ऑफ टी”(Three Cups of Tea) में काराकोरम और बाल्टी (Balti) का
विशेष रूप से जिक्र किया था। “द K2 स्टोरी” (The K2 Story) में मुस्तानसर हुसैन तरार
ने बेस कैंप में अपने अनुभवों का वर्णन किया है।
काराकोरम पर्वत हिमालय पर्वत श्रृंखला के पश्चिमी भाग का निर्माण करते हैं। इस महान
पर्वत श्रृंखला के निर्माण की बात करें तो कहा जाता है, कि इस पर्वत श्रृंखला का निर्माण तब
शुरू हुआ जब भारत गोंडवानालैंड (Gondwanaland) से अलग हुआ तथा उत्तर से होते हुए
एशिया (Asia) से जा टकराया, इस प्रकार दुनिया के सबसे ऊंचे पहाड़ों का जन्म हुआ। यह
टक्कर प्लेट सबडक्शन (Plate subduction) या टेक्टोनिक प्लेट्स के बैठ जाने से हुई थी।
इस प्रक्रिया में जब दो प्लेटें आपस में मिलती हैं या अभिसरण करती हैं, तो एक प्लेट को
दूसरी प्लेट द्वारा नीचे धकेल दिया जाता है।काराकोरम पर्वत श्रृंखला के निर्माण के दौरान,
भारतीय प्लेट को एशिया प्लेट द्वारा अभिसरित किया गया था। महाद्वीपीय अभिसरण क्षेत्रों
में इस प्रक्रिया के कारण क्रस्टल थिकनिंग (Crustal thickening) उत्पन्न हुई, जिन्होंने
अंततः पहाड़ों का निर्माण किया। यद्यपि काराकोरम प्लेट एक सबडक्शन (Subduction)
क्षेत्र है, वैज्ञानिकों ने कुछ स्ट्राइक-स्लिप (Strike-slip) दोष पाए हैं, जिनमें से कुछ अभी भी
सक्रिय हैं। इस क्षेत्र में सबसे बड़ी स्ट्राइक-स्लिप फॉल्ट को काराकोरम फॉल्ट कहा जाता है
और यह लगभग 800 किलोमीटर लंबाई में फैली हुई है।
एक प्रक्रिया जो अभी भी इसकी भू-आकृति विज्ञान में परिवर्तन कर रही है, वह है ग्लेशियरों
का निर्माण। यह विशेषता आज भी काराकोरम पर्वत के परिदृश्य को बहुत प्रभावित कर रही
है।ग्लेशियर की गतिविधियों ने पहाड़ों के भूभागों को उकेरा है और साथ ही यह तलछट
जमाव का कारण भी बना है, जिसने घाटियों का निर्माण किया है।यहां एक घाटी है जो हर
ग्लेशियर को घेरती है, लेकिन उन्हें वास्तविक "घाटियां" नहीं माना जाता है।यूं तो माना
जाता है, कि ग्लेशियर दिन-प्रति-दिन घट रहे हैं, लेकिन एक दिलचस्प घटना जो ग्लेशियर के
पतन के व्यापक सबूतों के विपरीत है, वह है मध्य काराकोरम क्षेत्र में हिमनदों का विस्तार।
जाहिर तौर पर यह विस्तार केवल उन ग्लेशियरों को प्रभावित करता है जो 7000 मीटर से
अधिक आकार के हैं और इस क्षेत्र में 4500 मीटर की ऊंचाई पर हैं।
काराकोरम पर्वतमाला के प्रारंभिक अन्वेषणों ने क्षेत्र के सम्बंध में अनेकों जानकारियां प्रदान
कीं।प्राचीन चीनी दस्तावेजों जिनकी 19वीं शताब्दी में व्याख्या की गई थी, तथा मध्ययुगीन
अरबी कार्य में काराकोरम के भूगोल का पूर्व-यूरोपीय (European) ज्ञान निहित है।
बालिस्तान और उसका प्रमुख शहर, स्कार्दू, 1680 में निर्मित एक यूरोपीय मानचित्र पर
दिखाई देता है। उन्नीसवीं सदी की शुरुआत में यूरोपीय यात्रियों ने प्रमुख नदियों, हिमनदों
और पहाड़ों के स्थानों की रूपरेखा तैयार की। काराकोरम में रूस और ब्रिटेन के बीच तथा
हाल ही में चीन, पाकिस्तान और भारत के बीच लंबे सैन्य तनाव के साथ असाधारण
स्थलाकृति ने 19वीं और 20वीं सदी में कई अभियानों को प्रेरित किया। अधिकांश अंग्रेजी
अन्वेषण ने वैज्ञानिक विचारों के बजाय सैन्य और राजनीतिक को प्रतिबिंबित किया।
काराकोरम रेंज की आबादी को देंखे तो यहां की आबादी उत्तरी भारतीय उपमहाद्वीप के
विवादित कश्मीर क्षेत्र के तीन शहरों में केंद्रित है, जिनमें गिलगित-बल्तिस्तान में गिलगित
और स्कार्दू (पाकिस्तान प्रशासित हिस्से में) और लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश में लेह (भारतीय
प्रशासित हिस्से में) शामिल है। इसके अलावा कुछ आबादी पूरे क्षेत्र में चट्टानी ढलानों या
उग्र धाराओं के पास छोटे गांवों में भी निवास करती है।यहां रहने वाले लोग अपने जीवन
निर्वाह के लिए कृषि और पशुपालन को महत्व देते हैं। इनके द्वारा उगाई जाने वाली फसलों
में गेहूं, जौ, मीठा और कड़वा बक व्हीट (Buckwheat), मक्का, आलू, दालें आदि शामिल
हैं।यहां खुबानी और अखरोट जैसी पेड़ की फसलें कभी एक महत्वपूर्ण स्थानीय खाद्य स्रोत
थीं। निरंतर आवधिक और स्थायी प्रवासन, केंद्र सरकार की सब्सिडी पर निर्भरता, उच्च शिशु
मृत्यु दर और कुपोषण के कारण लोग इस सीमांत वातावरण को आसानी से नहीं अपनाते
हैं।
संदर्भ:
https://bit.ly/3PD6kuP
https://bit.ly/3S4uqAz
https://bit.ly/3Q0boJP
चित्र संदर्भ
1. हवा से बाल्टोरो ग्लेशियर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. ब्रॉड पीक बेस कैंप से K2 को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. काराकोरम रेंज को रेखांकित करने वाले इंटरेक्टिव मानचित्र को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. काराकोरम पहाड़ों की काली बजरी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)