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  हमारा ब्रह्मांड इतना गहरा और विशालकाय है कि बड़े-बड़े विद्वान और वैज्ञानिक भी आज
तक इसमें छिपे सभी रहस्यों का पता लगाने में सफल नहीं हो पाए हैं। वैज्ञानिक लगातार
नए-नए उपकरणों की सहायता से ब्रह्मांड के तत्वों की खोज करते हैं। उदाहरण के लिए
अमेरिका की स्पेस एजेंसी नासा (American Space Agency NASA) ने हाल ही में अपने
जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप (James Webb Space Telescope) द्वारा ली गई ब्रह्मांड की
पूर्ण-रंगीन छवियों के पहले सेट (Set) को दुनिया के सामने प्रस्तुत किया है। 
यह
आश्चर्यजनक छवियाँ इस टेलिस्कोप ने अपने लॉन्च के 6 महीने बाद ही जारी कर दी थी।
वेब टेलीस्कोप से ली गई छवियाँ आम कैमरे से ली गई छवियों से बिल्कुल अलग होती हैं।
यह लाखों-करोड़ों मील दूर स्थित आकाशगंगा और अन्य ग्रहों, उपग्रहों और सितारों की छवि
की दर्जनों गीगाबाइट डाटा (Gigabytes Data) को वापस पृथ्वी पर भेजता है। वेब
टेलीस्कोप अपने उपकरण के माध्यम से कच्चे डाटा के होम रीम्स (Home Reams) को
कैप्चर (Capture) करता है और पृथ्वी पर भेजता है। वेब टेलीस्कोप की छवियाँ 123 से
137 मेगाबाइट की हो सकती हैं।
एक अन्य प्रकार का टेलीस्कोप हबल टेलीस्कोप (हबबल Telescope) जो 23.5 मेगापिक्सल
की छवियाँ जिनका वजन लगभग 32 मेगाबाइट है को पृथ्वी तक भेजने में सक्षम है। हबल
पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थित है और लगभग 340 मील ऊपर है। शुरुआत में वेब
टेलीस्कोप को 25.9 गीगाहर्ट्ज़ रेंज (Gigahertz Range) में, रेडियो तरंगों के का बैंड (Ka
Band) पर प्रसारित करने के लिए डिज़ाइन (Design) किया गया था। वह मुख्य रेडियो
एंटीना (Radio Antenna) के माध्यम से 28 मेगाबाइट (Megabyte) प्रति सेकंड का डाटा
भेजने में सक्षम है।
नासा के वेब टेलीस्कोप से बृहस्पति ग्रह की अद्भुत छवियाँ सामने आई हैं। जिनमें इंद्रधनुष
अरोरा, विशाल तूफान और दूर की आकाशगंगाएँ सभी साफ दिखाई दे रहे हैं। एक समाचार
विज्ञप्ति के अनुसार, कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय (University of California) बर्कले
(Berkeley) के एक प्राध्यापक और ग्रह खगोलशास्त्री एमके डी पाटर (Imke de Pater) ने
कहा, " ईमानदारी से कहूं तो हमने वास्तव में इन छवियों के इतने अच्छे होने की उम्मीद
नहीं की थी"। एक छवि के अनुसार बृहस्पति ग्रह में ध्रुवों पर केंद्र की ओर, नारंगी और पीले
रंग से नीले और बैंगनी रंग में परिवर्तित होने की छवि सामने आई है। 
नासा के अनुसार ग्रह
की पृष्ठभूमि के धुंधले छल्ले और दूर की आकाशगंगाओं को भी देखा जा सकता है। इसके
अलावा बृहस्पति ग्रह का प्रसिद्ध बड़ा लाल धब्बा (Great Red Spot) जो कि एक तूफान
है, को भी इन छवियों में देखा जा सकता है। यह तूफान इतना बड़ा है कि इसमें पूरी धरती
भी आसानी से समा सकती है। कैलिफोर्निया (California) के मोडेस्टो (Modesto) में रहने
वाले श्मिट (Schmidt) ने कहा कि बृहस्पति ग्रह इतनी तेजी से घूमता है कि इस वजह से
छवियों में अनुवाद करना मुश्किल है।
भारत ने भी ब्रह्मांड की खोज के क्षेत्र में बहुत तरक्की की है। भारत का अब तक का सबसे
बड़ा ऑप्टिकल टेलीस्कोप (Optical Telescope) जो ब्रह्मांड के नए सुपरनोवा
(Supernova) और छुद्रग्रहों की पहचान करने में सक्षम है। इस टेलिस्कोप ने इस वर्ष 2 जून
को हिमालय में अपना "पहला प्रकाश" प्राप्त करने वाले अपने अद्वितीय तरल-दर्पण
टेलिस्कोप के उपकरण के रूप में कार्य चालू किया गया। उत्तराखंड के नैनीताल के पास
8000 फीट (2,450 मीटर) से अधिक की ऊंचाई पर यह 4 मीटर लंबा टेलिस्कोप लगाया
गया। यह टेलिस्कोप हर रात आकाश का सर्वेक्षण करने के लिए डिज़ाइन (Design) किया
गया है। इसके अलावा यह, सुपरनोवा, गुरुत्वाकर्षण लेंस जैसी क्षणिक अथवा परिवर्तनशील
वस्तुओं और अंतरिक्ष मलबे और छुद्रग्रहों की पहचान करने में सहायता प्रदान करता है। यह
अंतरराष्ट्रीय तरल-दर्पण टेलीस्कोप (International Liquid Mirror Telescope) बेल्जियम
और कनाडा के सहयोग से 40 करोड़ रुपए की लागत में तैयार हुआ है। यह बेल्जियम के
अग्रिम यांत्रिक और ऑप्टिकल प्रणाली (Advanced Mechanical and Optical Systems
(AMOS)) कॉर्पोरेशन और सेंटर स्पैटियल डे लीज (Centre Spatial de Liège) द्वारा
डिजाइन और निर्मित किया गया है। जबकि साइट की पेशकश एरिस (ARIES) ने की है।
पारंपरिक दूरबीनों में प्रकाश को पकड़ने के लिए कांच के दर्पण का प्रयोग होता था वहीं अब
टेलिस्कोप में एक पतली फिल्म से ढके तरल पारे (Mercury) का प्रयोग दर्पण के रूप में
किया जाता है। इस प्रकार के टेलीस्कोप का यह लाभ होता है कि घूमते हुए तरल की सतह
स्वभाविक रूप से परवलयिक आकार (Parabolic Shape) ले लेती है। जो प्रकाश को केंद्रित
करने के लिए उत्तम होती है। 
मायलर (Myler) की एक पतली पारदर्शी फिल्म पारे को हवा से
बचाती है। परावर्तित प्रकाश एक परिष्कृत मल्टी लेंस ऑप्टिकल कैरेक्टर (Multi Lens
Optical Character) से होकर गुजरता है और तेज गति से विस्तृत क्षेत्र की छवियाँ उत्पन्न
करता है। फोकस (Focus) या केंद्र पर स्थित एक बड़े प्रारूप वाला इलेक्ट्रॉनिक कैमरा
(Electronic Camera) छवियों को रिकॉर्ड करता रहता है। यह दुनिया का एकमात्र और
सबसे बड़ा तरल दर्पण उपकरण है जिसका उपयोग सर्वेक्षण के लिए किया जा सकता है।
एरिस (ARIES) के आईएलएमटी (ILMT) के परियोजना अन्वेषक कुंतल मिश्रा के अनुसार,
इस टेलीस्कोप की एक सीमा यह है कि इस उपकरण को झुकाया नहीं जा सकता है।
टेलिस्कोप हमारे ब्रह्मांड के शुरुआती इतिहास का पता लगाने में भी सक्षम है। 
जिसमें
ब्रह्मांड का निर्माण करने वाले बिग बैंग (Big Bang) धमाके के सबूत, जैसे धमाके के बाद
की पहली चमक, और आज इसे भरने वाले ग्रह, आकाशगंगा और सितारों का निर्माण शामिल
है। इसके अलावा, टेलीस्कोप एक्सोप्लैनेटरी सिस्टम (Exoplanetary Systems) की खोज
और अवलोकन भी करता है, जिनमें से प्रत्येक में हमारे सौर मंडल के बाहर एक ग्रह और
उसके मेजबान तारे भी शामिल हैं। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय (University of Cambridge) के
खगोलशास्त्री मैट बोथवेल (Matt Bothwell) के अनुसार, वेब टेलीस्कोप ब्रह्मांडीय उत्पत्ति के
बारे में जानने के लिए और यह समझने के लिए कि आकाशगंगाएँ, तारे, ग्रह और जीवन
कहाँ से आते हैं, इसके लिए यह अब तक का सबसे अच्छा उपकरण है।
  
  
संदर्भ:  
https://tcrn.ch/3wDfSi9  
https://bit.ly/3ARwsNH  
https://cnn.it/3wDEozP  
https://bit.ly/3KqUSAV  
  
चित्र संदर्भ  
1. उत्तराखंड में देवस्थल तथा अंतरिक्ष में जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia, BBC Science )  
2. नासा के गोडार्ड क्लीनरूम ऑब्जर्वेशन विंडो से जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप के एक दुर्लभ दृश्य को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)  
3. एजेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप द्वारा भेजी गई अंतरिक्ष की बेहद स्पष्ट छवि को दर्शाता एक चित्रण (New York Post)  
4. उत्तराखंड के नैनीताल के पास 8000 फीट (2,450 मीटर) से अधिक की ऊंचाई पर यह 4 मीटर लंबा टेलिस्कोप लगाया गया। को दर्शाता एक चित्रण (youtube)   
5. उत्तराखंड में देवस्थल, भारत में 3.6 मीटर रिची चेरेटियन टेलीस्कोप को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)