जब आकाश में उमड़ते मेघों ने आदिकवि कालिदास की कल्पना से मिलकर एक अनन्य कृति की रचना की

ध्वनि II - भाषाएँ
15-12-2022 11:07 AM
Post Viewership from Post Date to 20- Dec-2022 (5th Day)
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Messaging Subscribers Total
1108 751 0 1859
* Please see metrics definition on bottom of this page.
जब आकाश में उमड़ते मेघों ने आदिकवि कालिदास की कल्पना से मिलकर एक अनन्य कृति की रचना की

भारतीय संगीत, साहित्य या दृश्य कला में आपको वर्षा ऋतु (वसंत) के असंख्य प्रतिनिधित्व दिखाई देंगे। भारत वर्ष में वर्षा को प्रचुरता के साथ नई शुरुआत और अंतरंग प्रेम का प्रतीक माना गया है। वर्षा ऋतु की विभिन्न मधुर एवं प्रीतिकर कलाओं को महाकवि कालिदास ने अपनी कविता 'मेघदूतम' के माध्यम से व्यक्त किया है।
कालिदास द्वारा लिखित संस्कृत साहित्य की एक उत्कृष्ट कृति 'मेघदूतम' ने पीढ़ियों से कई कलाकारों को प्रेरित किया है। कालिदास की इस रचना में एक यक्ष को अपने कर्तव्यों की उपेक्षा करने के कारण, यक्षों के स्वामी कुबेर, जो धन के देवता भी है, कुबेर की नगरी ‘अलकापुरी’ से निष्कासित कर देते हैं। निष्कासित यक्ष रामगिरि पर्वत पर निवास करने लगता है। लेकिन वर्षा ऋतु में उसे अपनी प्रेमिका की याद सताने लगती है। कामार्त यक्ष को यह पता होता है कि किसी भी तरह से उसका अलकापुरी लौटना संभव नहीं है। अकेलेपन का जीवन गुजार रहे यक्ष को कोई संदेशवाहक भी नहीं मिलता है, इसलिए वह अपनी प्रेमिका तक अपना संदेश मेघ रूपी दूत के माध्यम से भेजने का निश्चय करता है। इस प्रकार आषाढ़ के प्रथम दिन आकाश में उमड़ते मेघों ने कालिदास की कल्पना के साथ मिलकर एक अनन्य कृति की रचना कर दी। मेघदूत प्राचीन काल से ही भारतीय साहित्य में अत्यंत लोकप्रिय रचना रही है। जहाँ एक ओर प्रसिद्ध टीकाकारों ने इस पर टीकाएँ लिखी हैं, वहीं अनेक संस्कृत कवियों ने इससे प्रेरित होकर अथवा इसको आधार बनाकर कई दूतकाव्य भी लिखे हैं। मेघदूत काव्य दो खंडों में विभक्त है। पूर्वमेघ में यक्ष बादल का रामगिरि से अलकापुरी तक के रास्ते का विवरण देता है और उत्तरमेघ में यक्ष का वह प्रसिद्ध विरहदग्ध संदेश है जिसमें कालिदास ने प्रेमी हृदय की भावना को उड़ेल दिया है।
जब बरसात का मौसम (आषाढ़ का महीना) आता है, तो यक्ष का अपनी प्रेमिका से बिछड़ने का दर्द सारी हदें पार कर जाता है। ऐसे में वह आकाश में एक बादल को अपने दूत के रूप में चुनता है और उससे अनुरोध करता है कि वह उसकी पत्नी तक, जो इस अलगाव से समान रूप से व्यथित है, उसका प्रेम पूर्ण संदेश पहुंचा दे । यक्ष के द्वारा भेजा गया यह संदेश ही मेघदूतम् अर्थात मेघ रूपी दूत (बादल रूपी संदेशवाहक) का सार है। भारत के शेक्सपियर (Shakespeare) कहे जाने वाले महाकवि कालिदास ने युगों युगों से प्रेममयी हृदयों को रोमांचित करने वाली इस अमर गाथा का अत्यंत सुंदर और साथ ही साथ भावपूर्ण वृत्तांत प्रस्तुत किया है। इसके साथ ही कालिदास द्वारा रचित “मेघदूतम" ने विभिन्न कलाकारों को पीढ़ियों से प्रेरित किया है।विभिन्न कलाकारों द्वारा मेघदूत की कहानी का अपने विभिन्न साहित्य कार्यों और दृश्य कलाओं में प्रतिनिधित्व किया गया है।प्रसिद्ध चित्रकार कन्हैया लाल वर्मा द्वारा रचित मेघदूत-चित्रण (मेघदूत का चित्रण) एक ऐसी पुस्तक है, जिसमें उपयुक्त वर्णन के साथ विभिन्न चित्रों द्वारा मेघदूत की कहानी का चित्रण किया गया है। इस पुस्तक में चित्रों की कुल संख्या 34 है, जिसमें 19 पूर्व मेघ पर और 15 उत्तर मेघ पर आधारित हैं। पुस्तक के बाईं ओर के पृष्ठ में चित्रकारी का विवरण होता है, जिसमें पहले मूल संस्कृत श्लोक (दोहे), फिर हिंदी कथन और उसके बाद उसी का अंग्रेजी अनुवाद होता है, जबकि दाईं ओर के पृष्ठ में मूल चित्रकारी की गई है।
उन्होंने हर चित्र का बेहद सौंदर्यपूर्ण वर्णन भी किया है। उनके शब्द, वाक्यों की माला में गुंथे हुए सुन्दर और सुगन्धित पुष्प की भांति प्रतीत होते हैं। इन चित्रों को बनाने के लिए रंगों का प्रयोग किया गया है। अपनी विशिष्ट रचना के लिए सन 2000 में कन्हैया लाल वर्मा को भारत के राष्ट्रपति से राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार भी मिला था। रामगोपाल विजयवर्गीय द्वारा मेघदूतम की कहानी पर चित्रित कलाकृतियां भी महाराजा सवाई मान सिंह द्वितीय संग्रहालय संग्रह का हिस्सा हैं । मेघदूत का अध्ययन कालिदास द्वारा प्रस्तुत कविता के स्थलाकृतिक विवरणों की पहचान के निष्कर्षों को भी दर्शाता है, जिनमें नदियों, पहाड़ों, गांवों, झीलों और जंगलों का विस्तार से वर्णन किया गया है। वल्लभदेव (दसवीं शताब्दी ईस्वी) और मल्लिनाथ (चौदहवीं शताब्दी ईस्वी) के प्रसिद्ध टीकाकारों ने मेघदूत के प्रत्येक छंद में भौगोलिक आंकड़ों की पहचान के संकेतों या सुझावों को प्रतिपादित किया है। पहले खंड में कालिदास की 'धार्मिक-भू-सांस्कृतिक कल्पना' और दूसरे में उनकी 'पौराणिक कल्पना' शामिल है। शोध प्रबंध का दूसरा खंड (श्लोक 48-63) यात्रा के उस हिस्से पर केंद्रित है जब बादल ब्रह्मवर्त के क्षेत्र में पहुँचता है और हिमालय की सीमा की ओर बढ़ता है।
ब्रह्मवर्त से आगे का मार्ग अधिकांशतः पौराणिक विषयों पर आधारित है। ऐसा लगता है कि कालिदास इस क्षेत्र से कम परिचित थे और इसलिए भौगोलिक रूप से इसे चित्रित करने में कम विस्तृत थे। प्रेम और पीड़ा एक ही सिक्के के दो पहलू होते हैं। जितना अधिक आप किसी से प्रेम करते हैं, उसके वियोग का दर्द भी उतना ही अधिक होता है। मेघदूत इसी तथ्य को रेखांकित करती हैं। यह पुस्तक कला और साहित्य का अनुपम संगम है, और कला-प्रेमियों के साथ-साथ साहित्य-प्रेमियों के लिए भी अमूल्य उपहार है।

संदर्भ
https://bit.ly/3Hu9HDs
https://bit.ly/3VWZYde
https://bit.ly/3FI00Qq

चित्र संदर्भ

1. आदिकवि कालिदास और मेघदूत के एक दृश्य को दर्शाता एक चित्रण (flickr, wikimedia)
2. मेघदूत की रचना करते कालिदास को दर्शाता एक चित्रण (GetArchive)
3. बादलों को दर्शाता एक चित्रण (Needpix)
4. प्रसिद्ध चित्रकार कन्हैया लाल वर्मा द्वारा रचित मेघदूत-चित्रण को दर्शाता एक चित्रण (Exotic India Art)
5. कालिदास की प्रतिमा को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)