अविश्वसनीय हैं, अपने अल्प जीवन काल में आदि शंकराचार्य द्वारा किए गए सनातन धर्म के पुनरुत्थान व विकास कार्य

विचार II - दर्शन/गणित/चिकित्सा
25-04-2023 09:48 AM
Post Viewership from Post Date to 30- May-2023 30th day
City Readerships (FB+App) Website (Direct+Google) Messaging Subscribers Total
2377 607 0 2984
* Please see metrics definition on bottom of this page.
अविश्वसनीय हैं, अपने अल्प जीवन काल में आदि शंकराचार्य द्वारा किए गए सनातन धर्म के पुनरुत्थान व विकास कार्य

आपने एक प्रसिद्ध लोकोक्ति अवश्य सुनी होगी कि "मनुष्य को दीर्घकालिक नहीं बल्कि विशाल जीवन जीना चाहिए!" यह संभव है कि इस कहावत की प्रेरणा ही असाधारण व्यक्तित्व के स्वामी कहे जाने वाले "आदि शंकराचार्य" से ली गई हो।आदिशंकाचार्य ने मात्र आठ साल की उम्र में घर छोड़ दिया था और केवल 32 साल की उम्र में ही उनका निधन हो गया था। लेकिन इस बीच की अल्पावधि में ही उन्होंने सनातन धर्म के पुनरुत्थान और विकास के लिए जो कुछ भी किया, वह वास्तव में अविश्वसनीय है, और इसके लिए हम सभी सनातनी सदैव ही उनके ऋणी रहेंगे। आदि शंकराचार्य बेहद प्रतिभावान और एक असाधारण पुरुष माने जाते थे, जिन्होंने आठ वर्ष की छोटी सी आयु में अपना घर त्याग दिया और 32 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो गई थी। किंतु अपने इस लघु जीवनकाल में उन्होंने पूरे भारत की यात्रा की, विद्वानों से मुलाकात की, अपने क्रांतिकारी विचारों का प्रचार किया तथा चार प्रसिद्ध मठों की स्थापना कर दी। आदि शंकराचार्य का जन्म कालाडी (आधुनिक केरल) में एक नंबूदरी दंपति, शिवगुरु और आर्यम्बल के यहाँ हुआ था। ऐसा माना जाता है कि शंकराचार्य बचपन में अपनी माँ से संन्यास लेने की हठ किया करते थे, किंतु उनकी मां अपने इस इकलौते बेटे को खोना नहीं चाहती थीं। लेकिन एक बार जब नन्हे शंकराचार्य का पैर एक मगरमच्छ ने पकड़ लिया था, तो उन्होंने मगरमच्छ से अपना पैर छुड़ाने के बदले अपनी मां से संन्यास लेने की अनुमति मांगी। चमत्कारिक रूप से अनुमति मिलने के बाद मगरमच्छ ने उन्हें मुक्त कर दिया, और उन्होंने गृह त्याग कर दिया। वहाँ से निकलकर शंकराचार्य की भेंट उनके गुरु गोविंद भगवत्पाद से हुई और 16 साल की उम्र तक उन्होंने अपने गुरु के साथ रहकर ही अपनी शिक्षा पूरी की।
आगे चलकर आदि शंकराचार्य एक क्रांतिकारी के रूप में उभरे, जिन्होंने अपने समय के सामाजिक मानदंडों को खुलकर चुनौती दी। उन्होंने तथाकथिक जाति व्यवस्था को सिरे से खारिज कर दिया और जहां भी गए वहाँ पशु बलि बंद करा दी।
आदि शंकराचार्य ने अपना पूरा जीवन भारतवर्ष में घूमते हुए व्यतीत किया। अपनी यात्रा के दौरान उन्होंने प्रतिष्ठित पंडितों के साथ विचार-विमर्श और वाद-विवाद किया। वह एक महान वाद-विवादकर्ता थे, जिन्होंने अन्य दर्शनों पर अद्वैत की श्रेष्ठता स्थापित करने के लिए तर्क का प्रयोग किया। अद्वैत दर्शन जीव (आत्मा) और ब्रह्म को दो अलग-अलग न मानकर एक ही मानता है! उन्होंने जोर देकर कहा कि शाश्वत, अवैयक्तिक ब्रह्म ही एकमात्र परम वास्तविकता है और ब्रह्मांड की सभी घटनाएं माया अथवा भ्रम मात्र हैं। उनके अनुसार मनुष्य की आत्मा और सर्वोच्च की आत्मा एक ही है। उनके जीवन से जुड़ी एक महत्वपूर्ण घटना का ज़िक्र अक्सर किया जाता है। माना जाता है कि एक दिन आदि शंकराचार्य को संदेश मिला कि उनकी मां बहुत बीमार हैं। समाचार मिलने के बाद वह अपने घर की ओर चल दिये थे! दरसल मगरमच्छ के पकड़ने पर उनकी माँ ने उनसे यह वादा लिया था कि वह उनके आखिरी समय में अपनी माँ के साथ होंगे, और उनका अंतिम संस्कार करेंगे। किंतु जब वह घर पहुंचे तो उनकी माता स्वर्ग सिधार चुकी थी! किंतु वहाँ के रूढ़िवादियों ने एक सन्यासी को अपनी माँ का अंतिम संस्कार करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया। इसके बाद शंकराचार्य ने अपनी मां के शरीर को चार टुकड़ों में काट दिया और अपने घर के परिसर के एक कोने में ही उनका अंतिम संस्कार कर दिया।
आदि शंकराचार्य का जन्म ऐसे समय में हुआ था, जब हिंदू धर्म को जैन, बौद्ध धर्मों और अन्य वैदिक (गैर-वैदिक (कुल मिलाकर 72) धर्मों द्वारा बड़ी चुनौती दी जा रही थी। शंकराचार्य को ऐसी विषम स्थिति में भी हिंदुओं के पुनरुत्थान और पुनर्जीवित करने का श्रेय दिया जाता है। इस चुनौतीपूर्ण समय में भी उन्होंने बढ़-चढ़कर अद्वैत वेदांत (गैर-द्वैतवादी दर्शन) का प्रचार किया। उन्होंने भारतवर्ष की लंबाई और चौड़ाई में अपनी वैदिक शिक्षाओं का प्रसार करके भारत को एकीकृत किया। यद्यपि शंकराचार्य का जन्म केरल में हुआ था, लेकिन फिर भी उन्होंने पूरे भारत में वैदिक शिक्षाओं का प्रसार किया। स्पष्ट रूप से, उन्होंने भारत की सांस्कृतिक एकता को पहचाना। आदि शंकराचार्य ने पूजा के पंचकायतन रूप यानी एक साथ पांच देवताओं (गणेश, सूर्य, विष्णु, शिव और देवी) की पूजा की शुरुआत भी की।
आदि शंकराचार्य ने पूरे भारत (द्वारका, पुरी, श्रृंगेरी और जोशीमठ) में चार महान मठों की स्थापना की। माना जाता है कि उन्होंने चार धाम, या बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री के चार मुख्य हिमालयी मंदिरों का जीर्णोद्धार भी किया था। आदि शंकराचार्य ने अद्वैत सिद्धांतों की शिक्षा देते हुए एक बार नहीं बल्कि तीन बार पूरे भारतवर्ष की पैदल यात्रा की थी। आदि शंकराचार्य की दिग्विजय यात्रा का एकमात्र उद्देश्य भारतीयों में राष्ट्रीय एकता की भावना बढ़ाने के साथ-साथ भौतिक, भौगोलिक और आध्यात्मिक रूप से सभी भारतीयों को एकजुट करना था। भारत में उस समय मीमांसा विचारधारा प्रचलित थी। लेकिन अद्वैत वेदांत के ज्ञाता शंकराचार्य ने मीमांसा का विरोध किया क्योंकि उनका मानना ​​था कि वैदिक अनुष्ठानों द्वारा लक्षित उद्देश्य, “मोक्ष”, स्वर्ग या कोई अन्य देवीय उपहार प्राप्त करना ही एकमात्र उद्देश्य नहीं था, बल्कि सर्वोच्च देवत्व के प्रति समर्पित होना, और ज्ञान प्राप्त करना भी, सनातन धर्म का लक्ष्य है। उनका मानना था कि ईश्वर और हम सभी जीवात्मा एक ही हैं। शंकराचार्य ने स्वयं वैदिक कर्मकांडों का विरोध नहीं किया, लेकिन उनके वास्तविक उद्देश्य को न समझने के लिए मीमांसा की आलोचना ज़रूर की। शंकराचार्य ने एक प्रमुख मीमांसा विद्वान कुमारिल भट्ट के साथ बहस में उन्हें भी अपना दृष्टिकोण अपनाने के लिए राजी कर लिया था। मीमांसा के एक अन्य विद्वान मंडन मिश्र भी शंकर के प्रमुख शिष्यों में से एक बन गये थे। कुल मिलाकर शंकराचार्य का मानना था कि वैदिक अनुष्ठान महत्वपूर्ण थे, लेकिन उनका असली उद्देश्य स्वर्ग या कोई अन्य देवीय उपहार प्राप्त करना नहीं, बल्कि ईश्वर के प्रति समर्पित होना और ज्ञान प्राप्त करना था।
आदि शंकराचार्य ने हिंदू सुधारकों के लिए एक प्रेरणा के रूप में कार्य किया, जो आज भी उनके मठों और शिष्यों द्वारा किया जा रहा है । वेदांत पर कई कार्यों के अलावा, उन्होंने उपनिषदों, ब्रह्म सूत्र और भगवद गीता पर भाष्य भी लिखे। उन्होंने अपने सभी वेदांतिक दार्शनिक कार्यों में ज्ञान मार्ग को विस्तार से समझाया। उन्हें न केवल ज्ञान मार्ग के पुनरुद्धार का श्रेय दिया जाता है बल्कि भक्ति मार्ग को परिष्कृत करने का भी श्रेय दिया जाता है।
आदि शंकराचार्य का मानना था कि भक्ति मार्ग विभिन्न धार्मिक संप्रदायों के बीच समानता और सद्भाव लाने के लिए सबसे उपयुक्त मार्ग होता है। उनके विचार में भक्ति, मानव मन को ईश्वर-प्राप्ति की ओर आकर्षित करने का सबसे आसान और सबसे गतिशील तरीका होती है। आदि शंकराचार्य ने अनुभव किया कि आम आदमी के लिए दार्शनिक कार्यों को समझना मुश्किल हो सकता है और इसलिए, उन्होंने कई स्तोत्रों की रचना की ताकि भक्त अपने ईश्वर के साथ जुड़ सकें।
आगे हम आदि शंकराचार्य की कुछ सुंदर रचनाओं पर एक नज़र डालेंगे। 1.कनकधारा स्तोत्रम्: इस स्त्रोत में देवी महालक्ष्मी (सौभाग्य प्राप्ति हेतु) की स्तुति की गई है। मान्यता है कि एक बार अपने भिक्षाटन दौरान, शंकराचार्य एक अत्यंत गरीब महिला की कुटिया पर पहुँचे और भिक्षा माँगी। उस बेचारी के पास देने के लिए कुछ भी नहीं था, लेकिन उसका मन युवा शंकर को खाली हाथ लौटाने का भी नहीं था। अपनी झोपड़ी के चारों ओर खोज करने के बाद, उसने एक आंवले को भेंट स्वरूप दिया और शंकराचार्य को भारी मन से खेद व्यक्त किया कि वह उन्हें अन्न-भिक्षा (भिक्षा के रूप में चावल) देने में असमर्थ रही। आदि शंकराचार्य इस गरीब किंतु उदार महिला की भक्ति से द्रवित हो गये और देवी महालक्ष्मी की स्तुति करते हुए कनकधारा गाया, और धन देकर महिला की गरीबी को दूर करने के लिए देवी से प्रार्थना की । माना जाता है कि आदि शंकराचार्य के तर्कों और सुंदर स्तोत्र से प्रसन्न होकर, देवी महालक्ष्मी ने सुनहरे आंवले के फलों की वर्षा करके महिला को आशीर्वाद दिया।
2. अष्टकम: अष्टकम आठ छंदों वाला स्तोत्र है, जिसे विभिन्न देवताओं की उनके विभिन्न रूपों की स्तुति में रचा गया है। शिवाष्टक, कालभैरवाष्टकम, भ्रामरांबष्टकम, पांडुरंगाष्टकम, जगन्नाथष्टकम, कृष्णाष्टकम, गोविंदाष्टकम, गंगाष्टकम, यमुनाष्टक, और नर्मदाष्टकम आदि शंकराचार्य द्वारा रचित कुछ अष्टकम हैं। हिंदू पंथों के विभिन्न भगवानों और देवियों को समर्पित कई अन्य स्तोत्र हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, आदि शंकराचार्य का जन्म 788 ई में वैशाख के महीने के शुक्ल पक्ष में अमावस्या के 5वें दिन हुआ था। आज , शंकराचार्य जयंती के अवसर पर हम उस महान विभूति को शत-शत नमन करते हैं, जिन्होंने हिंदू धर्म को विघटित होने से बचाया और ज्ञान और भक्ति मार्ग दोनों को शुद्ध किया। आज यदि हम हिंदू त्यौहारों को मनाने और हिंदू धर्म का पालन करने में सक्षम हैं तो इसका श्रेय केवल आदि शंकराचार्य को दिया जाना चाहिए।

संदर्भ
https://bit.ly/43T1BN7
https://bit.ly/41HzHli
https://bit.ly/3KUuQqd

चित्र संदर्भ
1. आदि शंकराचार्य एवं धार्मिक अनुष्ठानों को दर्शाता एक चित्रण (flickr, wikimedia)
2. शंकराचार्य और उनकी माता तथा घड़ियाल की कहानी को दर्शाता एक चित्रण (prarang)
3. आदि शंकराचार्य ने पूजा के पंचकायतन रूप यानी एक साथ पांच देवताओं (गणेश, सूर्य, विष्णु, शिव और देवी) की पूजा की शुरुआत भी की। को दर्शाता एक चित्रण (Collections - GetArchive)
4. शंकराचार्य कुटजद्री को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. कनकधारा स्तोत्रम् को दर्शाता एक चित्रण (amazon)

Definitions of the Post Viewership Metrics

A. City Readerships (FB + App) - This is the total number of city-based unique readers who reached this specific post from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App.

B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.

C. Messaging Subscribers - This is the total viewership from City Portal subscribers who opted for hyperlocal daily messaging and received this post.

D. Total Viewership - This is the Sum of all our readers through FB+App, Website (Google+Direct), Email, WhatsApp, and Instagram who reached this Prarang post/page.

E. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.