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                                              प्रत्येक वर्ष, कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर हमारे शहर लखनऊ के डालीगंज में, गोमती नदी के किनारे गंगा स्नान मेला लगता है, जो पूरे 1 महीने तक चलता है। इस मेले को कतकी मेला भी कहा जाता है और यह लखनऊ का सबसे पुराना वार्षिक मेला है। दशकों से, हमारे पड़ोसी शहरों के कई स्वदेशी व्यापारी और शिल्पकार इस मेले में आते हैं। मेले में ये व्यापारी अपनी दुकानें लगाकर, कलाकृतियों और दस्तकारी उत्पादों की बिक्री करते हैं। कतकी मेला हस्तशिल्प श्रमिकों और स्वदेशी व्यापारियों के लिए अपनी जेब भरने का एक अच्छा समय होता है। मान्यता है कि यह मेला 500 वर्षों से भी अधिक समय से चला आ रहा है। भले ही यह मेला हिंदू त्यौहार कार्तिक पूर्णिमा के उपलक्ष्य में आयोजित किया जाता है, लेकिन यहां दुकानदारी की डोर कानपुर, खुर्जा या सहारनपुर के मुसलमानों के हाथों में होती है। हिंदू और मुस्लिम समुदायों की एकता और भाईचारे को अपने आंचल में समेटे हुए, नवाबी काल से चला आ रहा यह ऐतिहासिक कतकी मेला, लखनऊ वासियों का गौरव है। लखनऊ का यह ऐसा एकमेव मेला है, जिसका इंतजार हिंदुओं के साथ–साथ मुस्लिमों को भी रहता है।
कार्तिक पूर्णिमा के शुभ दिन पर कई भक्त गंगा नदी में एक पवित्र डुबकी लगाते हैं। लखनऊ का यह गंगा स्नान मेला ‘बुड़क्की’ मेले के नाम से भी प्रख्यात है। ऐसा माना जाता है कि भक्त त्रिपुरासुर राक्षस पर भगवान शिव जी की जीत के उपलक्ष्य में, गंगा नदी में डुबकी या ‘बुड़क्की’ लगाई जाती हैं। 
आप इस मेले में खाद्य विक्रेताओं से स्वादिष्ट लखनवी व्यंजनों का आनंद लेते हुए, दुकानदारों के साथ सौदेबाजी करते हुए, लोगों के अथाह समूह को देख सकते हैं। लखनऊ के इस मेले में, आप महिलाओं के लिए आभूषणों, फैशन ज्वेलरी (Fashion jewellery) और एक्सेसरीज़ (Accessories) की कई दुकानो में जा सकते हैं। इस मेले में विभिन्न प्रकार के परिधान भी बेचे जाते हैं। आप अपने घर को सजाने के लिए सुंदर एवं खूबसूरत वस्तुएं भी प्राप्त कर सकते हैं। यहां, आप कई प्रकार के क्रॉकरी आइटम (Crockery Item) और बर्तन भी खरीद सकते हैं। इस मेले में आपको घर की सजावट की, और घर में इस्तेमाल होने वाली हर छोटी-बड़ी वस्तु मिल जाएगी।  
इस मेले के इतिहास के बारे में कहा जाता है कि अवध के नवाबों ने छोटे दुकानदार और मिट्टी के बर्तन बना कर बेचने वाले फेरी वालों को अपना सामान बेचने के लिए एक जगह दी थी। कार्तिक महीने में एक महीने तक इस जगह मेला लगाने के लिए व्यवस्था की गई थी। हिंदू और मुस्लिम सभी दुकानदार इसमें शामिल थे और इस प्रकार इस मेले की परंपरा शुरू हुई। यहां वयस्कों से लेकर बच्चों के लिए कई मनोरंजनात्मक गतिविधियां भी होती हैं।
इस मेले के बारे में कई रोचक बातें भी हैं। कहा जाता है कि, यह मेला खास तौर पर महिलाओं की खरीदारी के लिए आयोजित किया गया था। इसलिए यह मेला आधी रात तक चलता था। तब महिलाएं रात में समूह में आ कर इस मेले में घर के सामान की खरीदारी करती थीं, और सुबह पुरुषों के जागने से पहले ही लौट जाती थीं। आज भी इस मेले का रंग दोपहर के बाद चढ़ता है और शाम के समय इसमें सबसे ज़्यादा रौनक होती है।
कतकी मेला पहले गोमती नदी पर बने डालीगंज के पुल पर होता था। किंतु अब लखनऊ नगर निगम द्वारा आयोजित कराए जाने के कारण यह मेला गोमती नदी के बड़े मैदान में लगता है। यह मेला लोगों के लिए सिर्फ खरीदारी की जगह न होकर, अवध संस्कृति का हिस्सा भी है।
देशभर में पूरे साल हिंदू प्रथाओं और मान्यताओं से जुड़े कई मेले आयोजित किए जाते हैं जिनमें से कई मां गंगा के किनारे आयोजित होते हैं। मां गंगा के किनारे लगने वाले ऐसे ही कुछ प्रमुख मेले निम्न प्रकार हैं:
 •कुंभ मेला
देश के सभी छोटे-बड़े मेलों में सबसे अधिक विशेष महत्त्व कुंभ मेले का है। कुंभ का मेला हर बारह साल में हरिद्वार, उज्जैन, नासिक और इलाहाबाद में बारी-बारी से लगता है।  यह मेला हिंदुओं आस्था से जुड़े सभी धार्मिक मेलों में सबसे पवित्र माना जाता है। पूरे भारत से लाखों तीर्थयात्री, साधु और संत इस मेले में भाग लेने के लिए आते हैं। कुंभ मेले का मुख्य आयोजन गंगा नदी में स्नान करने के लिए होता है। ऐसा माना जाता है कि गंगा में स्नान करने से, और विशेष रूप से कुंभ मेले के दौरान स्नान करने से, लोग अपने पिछले सभी कर्मों से मुक्त हो जाते हैं, और मोक्ष, या मुक्ति की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त हो जाता है। शास्त्रों में कहा गया है कि कुंभ मेले के दौरान गंगा में एक बार स्नान करने से लाखों अन्य अनुष्ठानों को करने जितना समान प्रभाव प्राप्त होता है।
•छठ पूजा
छठ पूजा, पृथ्वी पर जीवन को बनाए रखने के लिए सूर्य देवता को धन्यवाद देने का एक अनुष्ठान है, जिसका  सीधा संबंध गंगा नदी से है। यह अनुष्ठान चार दिनों तक चलता है। छठ पूजा के पहले दिन, उपासक गंगा में स्नान करते हैं और सूर्य देवता के प्रसाद के लिए गंगा जल घर ले जाते हैं। फिर, एक दिन के उपवास के बाद, उपासक तीसरे दिन गंगा के तट पर लौटते हैं, और डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। छठपूजा के अंतिम दिन, सुबह–सुबह भक्त एक बार फिर गंगा के तट पर लौटते हैं, और उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देते हैं। साथ ही, सूर्य से मिलने वाली अनंत ऊर्जा के लिए देवता को धन्यवाद भी देते हैं।
•गंगा महोत्सव
गंगा महोत्सव पांच दिवसीय एक विशेष उत्सव होता है, जो गंगा नदी के विभिन्न गुणों के सम्मान में वाराणसी में मनाया जाता है, चूंकि मां गंगा भारत के लोगों को पहचान और गौरव देती है; साथ ही, यह नदी हमें पोषण प्रदान करती है। यह आयोजन मां गंगा की आध्यात्मिकता, पवित्रता और शक्ति का जश्नहै।
•गंगा दशहरा 
गंगा दशहरा हिंदू कैलेंडर के ज्येष्ठ महीने  के पहले दस दिनों में मनाया जाता है। माना जाता है कि इस दिन मां गंगा स्वर्ग से पृथ्वी पर उतरी थी। इस दिन भक्त गंगा को मां और देवी के रूप में पूजते हैं। गंगा दशहरा पर होने वाला एक विशेष समारोह गंगा चुनरी है, जिसमें गंगा मां की मूर्ति को 108 रंगीन साड़ियों में लपेटा जाता है। गंगा दशहरा के दौरान, तीर्थयात्री और उपासक अपने दैनिक पूजा में उपयोग करने के लिए, गंगा नदी से मिट्टी और पवित्र जल भी घर ले जाते हैं।
संदर्भ
https://bit.ly/3OZkV6D
https://bit.ly/43t2VFU
https://bit.ly/3OT6uRs
https://bit.ly/3WVeWBz
चित्र संदर्भ
1. एक भारतीय मेले को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. लखनऊ का कतकी मेले के दृश्य को संदर्भित करता एक चित्रण (youtube)
3. कतकी मेले में बिक रहे पकवानों को दर्शाता चित्रण (youtube)
4. कतकी मेले में आप कई प्रकार के क्रॉकरी आइटम (Crockery Item) और बर्तन भी खरीद सकते हैं। को संदर्भित करता एक चित्रण (youtube)
5. कुम्भ मेले को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. छट पूजा को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
7. गंगा मेले को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
8. गंगा दशहरा मेले को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)