पाम तेल का सबसे बड़ा आयातक देश भारत, देशज उत्पादन में क्यों नहीं है अग्रगण्य

भूमि और मिट्टी के प्रकार : कृषि योग्य, बंजर, मैदान
26-10-2023 09:39 AM
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पाम तेल का सबसे बड़ा आयातक देश भारत, देशज उत्पादन में क्यों नहीं है अग्रगण्य

एक राष्ट्रीय मिशन के तहत अब हमारे देश की केंद्र सरकार,देश के छह पूर्वोत्तर राज्यों में, पाम तेल(Palm oil) या ताड़ के पेड़ों के बागानों को,एक बड़े क्षेत्र पर विस्तारित करने की योजना बना रही है। इस उद्देश के लिए, निवेश की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए, पूर्वोत्तर भारत में पाम तेल को बढ़ावा देने हेतु विशेष प्रावधान भी किए जा रहे हैं।
हजारों वर्षों से, मानव उपभोग के लिए पाम तेल का उपयोग किया जा रहा है। तरल पाम तेल का दुनिया भर में, खाद्य प्रयोजनों के लिए उपयोग किया जाता है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा पाम तेल आयातक और उपभोक्ता है। अतः वनस्पति तेलों में आत्मनिर्भरता एवं देशज उपज को बढ़ाने की दिशा में एक प्रयास में, भारत सरकार अगले 15 वर्षों में पाम तेल की खपत में वृद्धि को पूरा करने के लिए, पाम बागानों के तेजी से विस्तार को प्राथमिकता दे रही है। सरकार ने 2021-22 में, खाद्य तेलों(पाम तेल) पर एक राष्ट्रीय मिशन शुरू किया है। इसका उद्देश्य पाम तेल के क्षेत्र विस्तार तथा कच्चे पाम तेल के उत्पादन के माध्यम से, खाद्य तेल उत्पादन को बढ़ाना और देश में खाद्य तेलों से निर्मित,आयात बोझ को कम करना है।पूर्वोत्तर राज्यों में, वर्तमान में तीन कंपनियां, अर्थात्, पतंजलि फूड्स प्राइवेट लिमिटेड(Patanjali Foods Private Limited), गोदरेज एग्रोवेट लिमिटेड(Godrej Agrovet Ltd)एवं 3एफ ऑयल पाम(3F Oil Palm), इस तेल के प्रसंस्करण, कृषि और खरीदारी में शामिल हैं।
खाद्य तेल राष्ट्रीय मिशन को दरअसल, छह पूर्वोत्तर राज्यों– अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मिजोरम, नागालैंड और त्रिपुरा सहित, देश के अन्य 15 राज्यों में लागू किया जा रहा है।देश के कुछ अन्य प्रमुख पाम तेल उत्पादक राज्यों, जिनमें आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, ओडिशा, कर्नाटक, गोवा आदि शामिल हैं, ने भी इस अभियान में भाग लिया हैं। क्योंकि, इस राष्ट्रीय मिशन का लक्ष्य पाम तेल उत्पादन क्षेत्र को 10 लाख हेक्टेयर तक बढ़ाना और 2025-26 तक कच्चे पाम तेल के उत्पादन को 11.20 लाख टन तक बढ़ाना है। केंद्र सरकार द्वारा भारत में पाम तेल की कृषि के लिए, संभावित क्षेत्रों के मूल्यांकन के अनुसार, सिक्किम राज्य के कुल क्षेत्रफल से भी बड़ा, अर्थात 8,40,344 हेक्टेयर का कुल क्षेत्र बागानों के लिए, उपयुक्त पाया गया है और पाम वृक्षारोपण के लिए, अनुशंसित किया गया। बागानों के लिए इसके कृषि क्षेत्र में, अरुणाचल प्रदेश में 133811 हेक्टेयर, असम में 375428 हेक्टेयर, मणिपुर में 66652 हेक्टेयर, नागालैंड में 51297 हेक्टेयर, मिजोरम में 66792 हेक्टेयर और त्रिपुरा में 146364 हेक्टेयर भूमि शामिल हैं।
हालांकि, इससे क्षेत्र की जैव विविधता एवं पारिस्थितिक तंत्र के लिए, विनाशकारी परिणाम हो सकता है। इसी कारण हुए किसानों के विरोध की वजह से, मेघालय राज्य पाम तेल के बागानों को बढ़ाने से दूर रहना चाहता है।
इंडोनेशिया(Indonesia) और मलेशिया(Malaysia) के कुछ हिस्सों में, पाम तेल के बागानों का जैव विविधता पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा है। कई विशाल एकल पाम बागानों ने,विश्व के कुछ हिस्सों में उष्णकटिबंधीय जंगलों को नष्ट कर दिया है। दुनिया के विभिन्न हिस्सों में पाम बागानों की वृद्धि और वनों की कटाई तथा जैव विविधता को खतरे के बीच सीधा संबंध है। पाम कृषि में पानी की काफ़ी खपत होती है। इसलिए,यह अगर जैव विविधता से समृद्ध वन स्थलों की जगह लेती है, तो यह खतरनाक साबित हो सकती हैं। पाम बागानों ने ऐतिहासिक रूप से, एकल फसल, पानी खपत की प्रवृत्ति, मानव-पशु संघर्ष और मिट्टी के स्वास्थ्य की कमी के मामले में,संबंधित क्षेत्रों के लिए, गंभीर परिस्थितियां पैदा की हैं, और भूमि को जैविक रेगिस्तान में बदल दिया है।
मई 2016 में, ऑर्निथोलॉजिकल एप्लिकेशन(Ornithological Applications)पत्रिका में प्रकाशित एक लेख के अनुसार, मिजोरम में ताड़ के बागानों में, सबसे कम अर्थात केवल 10 ही वन पक्षी प्रजातियां थी। अध्ययन में यह भी पाया गया है कि, झूम खेती में पक्षियों की बहुतायत वर्षावन के समान थी, जो ताड़ के बागानों की तुलना में, औसतन 304% अधिक थी। हम यहां आपको बता दें कि, झूम खेती एक पारंपरिक कृषि पद्धति है, जिसमें पेड़ों और अन्य वनस्पतियों की भूमि को साफ करना, उन पेड़ों और वनस्पतियों को जलाना एवं फिर एक निर्धारित अवधि के लिए, उस पर खेती करना शामिल है। इस तथ्य से हम, पाम बागानों से जीव जंतुओं पर होने वाले प्रभावों की कल्पना कर सकते हैं।
दरअसल, पूर्वोत्तर राज्यों में ताड़ के बागानों के लिए पहचानी गई भूमि, पहले ही खेती के लिए साफ कर दी गई है, जो कि जैव विविधता से समृद्ध एवं पारिस्थितिक रूप से नाजुक थी। ताड़ बागान वन क्षेत्र और लुप्तप्राय वन्यजीवों के आवास को भी नष्ट कर देते हैं। यह आदिवासियों को भूमि के सामुदायिक स्वामित्व से जुड़ी उनकी पहचान से भी अलग कर सकता है। अतः यह “पारिस्थितिक आपदा का नुस्खा” बन सकता है। हालांकि, केंद्र सरकार का कहना है कि, वे पहले से ही सतर्क वैज्ञानिक विश्लेषण के आधार पर आगे बढ़ रही है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा किए गए एक अध्ययन में, देश भर की कुल 28 लाख हेक्टेयर भूमि की इन बागानों के लिए, सिफारिश की गई है, जिसमें से केवल 9 लाख हेक्टेयर भूमि ही पूर्वोत्तर राज्यों में है। और यह ज़मीन जंगलों या अन्य फसलों को काटकर नहीं प्रस्तुत की जा रही है, यह खेती के लिए ही उपलब्ध भूमि है।
वास्तव में, भारत में, पाम आमतौर पर, कृषि भूमि और झूम भूमि में उगाया जाता है।जबकि, अन्य देशों में इसे वन भूमि को साफ करके उगाया जाता है। इसलिए, भारत में पाम तेल की खेती से जैव विविधता पर कम ही प्रभाव पड़ता है। भारत में पाम तेल विकास कार्यक्रम की वर्तमान नीति के तहत, पूरी तरह से कृषि भूमि में ही पाम की खेती को बढ़ावा देना है। या फिर इस नीति के तहत,कम मूल्य वाली फसलों को पाम जैसी उच्च मूल्य वाली फसल से बदलना है।
साथ ही, इसके लिए, उपयुक्त क्षेत्रों की पहचान वर्तमान भूमि उपयोग पर विचार करके तथा मौजूदा वनों के क्षेत्रों को छोड़कर की जाती है। पाम तेल जैसी खड़ी फसलें कार्बन डाइऑक्साइड(Carbon dioxide) के शुद्ध संचायक के रूप में भी काम कर सकती हैं, जिससे, जीवाश्म ईंधन की खपत से उत्पन्न होने वाले कार्बन उत्सर्जन की भरपाई हो सकती है। प्रत्येक हेक्टेयर में कोई पाम बागान, वातावरण से 15 टन तक कार्बन डाइऑक्साइड को पृथक कर सकता है। इस प्रकार,यह ग्रीनहाउस प्रभाव(Greenhouse effect) को कम करने में योगदान देता है। दूसरी ओर, भारत में पाम बागानों का पूर्ण कार्यान्वयन छोटे खेत धारकों द्वारा किया जाता है। कंपनियां जमीन खरीद या पट्टे पर नहीं ले सकती हैं। भारत में पाम तेल मिशन की यही मूल संरचना है। सरकार नियामक है और किसानों को पहले तीन से चार वर्षों के लिए, प्रति हेक्टेयर लगभग 1.6 से 1.7 लाख रुपयों का प्रोत्साहन भी मिलेगा। जो भी उपज होती है, उसे सरकार द्वारा नियंत्रित मूल्यों के अनुसार ही कंपनी द्वारा खरीदा जाता है। जबकि एक तरफ़, प्रायद्वीपीय भारत के उन हिस्सों में, जो पहले से ही पाम उगाते हैं, इस मिशन को लेकर प्रतिक्रिया मिली-जुली रही है। केरल में उद्योग हितधारक, इस नए मिशन के माध्यम से विकास की संभावनाओं से उत्साहित हैं। यहां रबर किसान भी पाम की ओर रुख करने में रुचि रखते हैं।

संदर्भ
https://tinyurl.com/56xzszz8
https://tinyurl.com/3ay8mkjc
https://tinyurl.com/59w6sunw

चित्र संदर्भ
1. हाथों से ताड़ का तेल निकालने की प्रक्रिया को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. एलाएइस गिनीन्सिस के फलों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. बोगोर में ताड़ के बागान को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. ताड़ के तेल की बिक्री को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. ताड़ का तेल बनाने की तैयारी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. ताड़ के पेड़ की खेती को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)