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मेरठ शहर को अपनी धारदार कैंची और कटिंग टूल्स (cutting tools) के लिए दुनियाभर में एक अलग पहचान हासिल है। यहां पर लंबे समय से उच्च गुणवत्ता वाली कैंची और सटीक कटिंग उपकरण बनाए जा रहे हैं। इन उत्पादों को बनाने का इतिहास काफ़ी पुराना रहा है। कई स्थानीय कारखाने इन उपकरणों को बनाने में माहिर हैं। मेरठ में बनी कैंचियाँ अपनी टिकाऊपन और तेज़ धार के लिए जानी जाती हैं। न केवल भारत में, बल्कि यूरोप, अमेरिका और मध्य पूर्व जैसे अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों में भी इनकी मांग बहुत अधिक है। यह उद्योग मेरठ की अर्थव्यवस्था को भी मज़बूती प्रदान करता है। इसलिए आज के इस लेख में हम मेरठ की हस्तनिर्मित कैंचियों के बारे में गहराई से जानेंगे। इसके बाद, हम कैंची बनाने की कला और इसमें इस्तेमाल होने वाली पारंपरिक तकनीकों पर बात करेंगे। इसके साथ ही, हम मेरठ के कैंची उद्योग के आर्थिक प्रभाव को भी समझेंगे। अंत में, हम इस उद्योग के भविष्य की संभावनाओं पर चर्चा करेंगे।
मेरठ का जीवंत शहर अपनी खास, सस्ती और टिकाऊ कैंचियों के लिए मशहूर है। इस शहर का इतिहास और संस्कृति समृद्ध है। 17वीं शताब्दी से यहां कैंची निर्माण उद्योग विकसित हो रहा है। कहा जाता है कि 1645 में अखुंजी नामक एक स्थानीय लोहार ने भारत में पहली कैंची बनाई। उन्होंने चमड़ा काटने के लिए दो तलवारों को जोड़कर इसे तैयार किया। यह नवाचार मुगल काल में हुआ था।
यह कुटीर उद्योग पीढ़ी दर पीढ़ी चल रहा है। कारीगर अपने पूर्वजों से मिले ज्ञान का उपयोग कर अद्भुत कैंचियाँ बनाते हैं। मेरठ की कैंचियाँ कार्यक्षमता, सामग्री संरचना, और आकार एवं वज़न के आधार पर तीन प्रकारों में वर्गीकृत होती हैं।
मेरठ, अपने समृद्ध इतिहास और संस्कृति के साथ-साथ, अपनी सस्ती और अनोखी कैंचियों के लिए मशहूर है। मेरठ का कैंची उद्योग 17वीं शताब्दी से फल-फूल रहा है। स्थानीय मान्यता के अनुसार, भारत में पहली कैंची मुगल काल में 1645 में अखुंजी नाम के एक लोहार ने बनाई थी। उन्होंने चमड़ा काटने के लिए दो तलवारों को जोड़कर इसे तैयार किया। इस उद्योग के कारीगरों को यह कला उनके पूर्वजों से विरासत में मिली है।
मेरठ की कैंचियाँ मुख्यतः तीन प्रकार की होती हैं, जो कार्यक्षमता, सामग्री, आकार और वज़न के आधार पर बनाई जाती हैं।
उपयोग के अनुसार, कैंचियाँ विभिन्न उद्देश्यों के लिए तैयार की जाती हैं:
दर्ज़ी कैंची: कपड़े काटने के लिए।
नाई कैंची: बाल काटने के लिए।
उपयोगितावादी कैंची: सामान्य घरेलू उपयोग के लिए।
कागज़ काटने वाली कैंची: कार्यालय और शैक्षिक कार्यों के लिए।
चमड़ा काटने वाली कैंची: जूते और खेल के सामान उद्योग में।
बागवानी कैंची: पौधों और घास को काटने के लिए।
विशेष कैंचियाँ: तांबे के तार, कालीन, कांच, पत्ते, धागा और सब्ज़ियाँ काटने के लिए।
हर कैंची के दो मुख्य भाग (हैंडल और ब्लेड) होते हैं। ब्लेड बनाने में स्टील का उपयोग होता है।
कार्बन स्टील: इसमें ब्लेड और हैंडल एक ही टुकड़े से बने होते हैं। यह मज़बूत होता है और अपनी धार लंबे समय तक बनाए रखता है। इसे जंग से बचाने के लिए इसपर निकल या क्रोमियम की परत चढ़ाई जाती है।
स्टेनलेस स्टील: इस प्रकार की कैंची में प्लास्टिक का हैंडल जोड़ा जाता है। ये हल्की और जंगरोधी होती हैं।
मेरठ के कैंची उद्योग में लगभग 600 इकाइयाँ हैं और करीब 70,000 कारीगर काम करते हैं। एक कैंची के निर्माण में 22 जोड़ी हाथ लगते हैं। ये कारीगर काटने, तेज़ करने, वेल्डिंग, पॉलिशिंग और अन्य प्रक्रियाओं में कुशल होते हैं। प्लास्टिक के हैंडल वाली कैंचियों को छोड़कर, अन्य कैंचियाँ, पॉलिशिंग, इलेक्ट्रोप्लेटिंग, और क्रोमिंग की प्रक्रिया से गुज़रती हैं।
मेरठ की कैंचियाँ अपनी मज़बूती, तीक्ष्णता, चिकनाई और टिकाऊपन के लिए जानी जाती हैं। कारीगर अपनी मेहनत और सावधानी से इन्हें असाधारण बनाते हैं। ये मशीन से बनी साधारण कैंचियों की तुलना में बेहतर मानी जाती हैं।
मेरठ की कैंचियाँ देशभर के दर्ज़ियों और नाइयों के बीच खूब लोकप्रिय हैं। इनकी ब्लेड बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाली सामग्री पुराने रेलवे रोलिंग स्टॉक और ऑटोमोबाइल उद्योग के स्क्रैप से प्राप्त होती है। प्रत्येक कैंची का डिज़ाइन और निर्माण उसके उपयोग के अनुसार किया जाता है।
मेरठ में कैंची निर्माण की प्रक्रिया में पारंपरिक शिल्प कौशल और आधुनिक तकनीक का अनोखा मेल दिखाई देता है। यहाँ के कई कारीगर, पीढ़ियों से चली आ रही पारंपरिक तकनीकों का उपयोग करते हैं।
मेरठ में कैंची उत्पादन के मुख्य चरण, निम्नवत दिए गए हैं:
फ़ोर्जिंग: उच्च गुणवत्ता वाले स्टील को गर्म करके कैंची का आधार आकार तैयार किया जाता है।
पीसना: ब्लेड को सावधानीपूर्वक पीसकर उसकी धार तेज़ और सटीक बनाई जाती है।
असेंबली: कैंची के दोनों हिस्सों को सटीकता के साथ जोड़ा जाता है।
पॉलिशिंग: तैयार कैंची को चमकाने के लिए पॉलिश की जाती है।
गुणवत्ता नियंत्रण: बिक्री से पहले हर कैंची को परीक्षण प्रक्रिया से गुज़ारा जाता है।
पारंपरिक तरीकों का सम्मान करते हुए, अब कई निर्माता आधुनिक मशीनरी और तकनीकों को भी अपना रहे हैं। इससे उत्पादन बढ़ाने और गुणवत्ता बनाए रखने में मदद मिलती है।
कैंची उद्योग का आर्थिक प्रभाव
रोज़गार सृजन: कैंची उद्योग मेरठ में रोज़गार का एक प्रमुख साधन है। इस उद्योग के विभिन्न कार्यों में हज़ारों लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कार्यरत हैं।
निर्यात राजस्व: मेरठ की कैंचियाँ कई देशों में निर्यात होती हैं। इससे भारत को विदेशी मुद्रा अर्जित करने में मदद मिलती है।
पर्यटन को बढ़ावा: मेरठ को "कैंचियों का शहर" कहा जाता है। इस प्रतिष्ठा के कारण, कई पर्यटक यहाँ की कार्यशालाओं को देखने और प्रामाणिक कैंचियाँ खरीदने आते हैं।
इस उद्योग प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए नए डिज़ाइनों और पर्यावरण-अनुकूल उत्पादन विधियों को अपना रहा है। साथ ही कैंची निर्माण की कला को आगे बढ़ाने के लिए विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रम भी चलाए जा रहे हैं।
मेरठ की कैंचियों को भौगोलिक संकेत (जी आई (GI Tag)) का दर्जा दिलाने के प्रयास जारी हैं। यह कानूनी सुरक्षा के साथ-साथ वैश्विक पहचान भी प्रदान करेगा।
हालांकि कई विशेषताओं के इतर मेरठ के कैंची उद्योग में कई छोटी फ़ैक्ट्रियाँ और वर्कशॉप बिजली कटौती और खराब वेंटिलेशन जैसी समस्याओं से भी जूझ रही हैं। इन वर्कशॉप में काम करने वाले श्रमिक अक्सर धातु के धूल कणों को सांस के जरिए अंदर लेते हैं, जिससे वे सांस से जुड़ी बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। इसके अलावा धार लगाने और वेल्डिंग जैसे जोखिमपूर्ण काम करते हुए श्रमिकों को कटने और चोट लगने जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
पिछले कुछ वर्षों में चीन और अन्य बाज़ारों से आने वाली सस्ती और मशीन से बनी कैंचियों ने मेरठ के पारंपरिक कैंची उद्योग के लिए बड़ा संकट खड़ा कर दिया है। चीनी कैंचियाँ अपनी बेहतर फ़िनिश और स्टाइलिश डिज़ाइन के कारण ग्राहकों को आकर्षित कर रही हैं। इनकी कीमत मात्र 200 रुपये है, जो आम उपभोक्ताओं के लिए बेहद आकर्षक है। हालांकि, इनका टिकाऊपन मात्र एक साल तक सीमित होता है, जबकि मेरठ की कैंचियाँ 10 साल तक चलती हैं। इसके बावजूद, कम कीमत के कारण चीनी कैंचियाँ बाज़ार पर हावी हो रही हैं।
वैश्विक मानकों को बनाए रखने और उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए आधुनिक तकनीकों को अपनाना इस उद्योग के लिए आवश्यक हो गया है। परंपरागत तरीकों से उत्पादन में समय और श्रम अधिक लगता है, जिससे यह प्रतिस्पर्धा में पीछे रह जाता है।
आज की युवा पीढ़ी इस पारंपरिक शिल्प को अपनाने में रुचि नहीं दिखा रही है। अगर यह सिलसिला जारी रहा, तो आने वाले वर्षों में यह कला लुप्त हो सकती है।
हालांकि महामारी के बाद भी इस उद्योग में थोड़ी उम्मीद दिख रही है। बाज़ार में मेरठ की कैंचियों की मज़बूत धार और टिकाऊपन की सराहना होती है। यदि उचित समाधान और नवाचार लागू किए जाएं, तो यह उद्योग अपनी खोई हुई स्थिति को फिर से हासिल कर सकता है।
इस उद्योग को आकर्षक बनाए रखने के लिए, भविष्य में कई आवश्यक कदम उठाए जा सकते हैं! जिनमें शामिल है:
तकनीकी विकास: आधुनिक मशीनरी और प्रक्रियाओं को अपनाकर, उत्पादन को तेज़ और गुणवत्ता युक्त बनाया जा सकता है।
युवाओं को जोड़ना: प्रशिक्षण कार्यक्रमों और प्रोत्साहन योजनाओं के ज़रिए , युवा पीढ़ी को इस शिल्प से जोड़ा जा सकता है।
वैश्विक मानकों पर ध्यान: गुणवत्ता सुधार और ब्रांड प्रमोशन के ज़रिए , अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में प्रतिस्पर्धा बढ़ाई जा सकती है।
मेरठ कैंची उद्योग ने वर्षों से अपनी अलग पहचान बनाई है। इन चुनौतियों को दूर कर इसे नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया जा सकता है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/29kdkbu5
https://tinyurl.com/287htas9
https://tinyurl.com/2c6nsltl
मुख्य चित्र: लटकती हुईं कैंचियों का समूह (pexels)