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मेरठ के नागरिकों, क्या आप जानते हैं कि, जामदानी बुनाई, एक पारंपरिक हस्तशिल्प है, जिससे एक हल्का और खूबसूरत डिज़ाइन वाला कपड़ा बनता है। यह कपड़ा अपने खूबसूरत रूपांकनों और डिज़ाइनों के लिए जाना जाता है और आमतौर पर साड़ी बनाने में इस्तेमाल होता है। हमें सबसे अच्छे जामदानी बुनकर आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में मिलते हैं। उत्तर प्रदेश में, इस तरह की बुनाई के प्रमुख केंद्र तांडा (अम्बेडकर नगर ज़िला) और वाराणसी हैं।
तो आज, हम इस बुनाई तकनीक की शुरुआत के बारे में जानेंगे। फिर हम, जामदानी की बुनाई प्रक्रिया के बारे में जानेंगे। इसके बाद, हम तांडा की जामदानी उद्योग पर चर्चा करेंगे। इस संदर्भ में, हम यह जानेंगे कि यहां किस तरह के कपड़े इस्तेमाल होते हैं और कौन-कौन सी चीज़ें बनाई जाती हैं। अंत में, हम तांडा जामदानी उद्योग में इस्तेमाल होने वाले कुछ प्रमुख डिज़ाइनों के बारे में भी जानेंगे।
जामदानी बुनाई का इतिहास और उत्पत्ति
जामदानी बुनाई, एक पुरानी और खास कारीगरी तकनीक है, जिसकी शुरुआत बंगाल क्षेत्र में हुई थी। 9वीं शताब्दी के अरबी यात्री सुलैमान ने, अपनी यात्रा के दौरान लिखा था कि बंगाल के रह्मी राज्य में जो सूती कपड़े बनते थे, वे इतने महीन होते थे कि वे एक मुहर के छल्ले से भी निकल सकते थे। इस समय बुनाई की यह तकनीक बहुत प्रसिद्ध थी और इसका इस्तेमाल शानदार कपड़े बनाने के लिए किया जाता था।
12वीं शताब्दी के आसपास, इस्लामिक संस्कृति का प्रभाव इन कपड़ों पर पड़ा और बुनाई में कई रंग और डिज़ाइन जोड़े गए। जामदानी बुनाई में एक खास तरीका अपनाया जाता था, जिसमें बुनाई के दौरान एक विशेष धागे को डाला जाता था। यह धागा कपड़े पर बिना किसी टूट-फूट के आकर्षक पैटर्न और डिज़ाइन बनाता था। इस तकनीक की वजह से कपड़े पर बहुत ही खूबसूरत और जटिल मोटिफ्स (डिज़ाइन) बनते थे। इनमें से कुछ प्रसिद्ध नाम थे जैसे शबनम (सुबह की ओस), अब-ए-रवान (बहता पानी), और ब्फ़तनामा (हवा की बुनाई)।
मुग़ल सम्राट अकबर के शासनकाल के दौरान, जामदानी बुनाई को और भी बेहतरीन रूप में विकसित किया गया। इस समय, जामदानी बुनाई में फूलों के डिज़ाइन को प्रमुखता दी गई और इसे सबसे सुंदर रूप में पेश किया गया। इस बुनाई के कपड़े, बेहद मुलायम, हल्के और आकर्षक होते थे, और इन्हें खासतौर पर शाही दरबारों और उच्च वर्ग के लोगों द्वारा पहना जाता था।
आज भी जामदानी बुनाई, भारत के कुछ हिस्सों में प्रचलित है, जैसे बंगाल, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में, और यह इन क्षेत्रों की कला की एक अहम पहचान बन चुकी है।
जामदानी बुनाई की प्रक्रिया
जामदानी बुनाई, एक बहुत ही मेहनत और कौशल की मांग करने वाली प्रक्रिया है, जो विशेष रूप से बारीक डिज़ाइनों को कपड़े में बुने जाने की तकनीक है। इस प्रक्रिया में छोटे शटल (धागे डालने के यंत्र) का उपयोग किया जाता है, जिनमें रंगीन, सोने या चांदी के धागे होते हैं, जिन्हें मुख्य धागे (वर्प) के बीच डाला जाता है। इस तकनीक में एक बार में 100 से 300 विभिन्न प्रकार के धागे एक साथ करघा (लूम) पर होते हैं।
साड़ी या अन्य कपड़ों के डिज़ाइनों के लिए, इन शटल्स का उपयोग करके शिल्पकार अलग-अलग पैटर्न बुनते हैं। इसमें कई प्रकार के डिज़ाइन होते हैं, जैसे:
बूटीदार: पूरी साड़ी में फूलों का पैटर्न।
तेरचा: तिरछी पट्टियों में फूलों के डिज़ाइन।
झालर: फूलों का एक जाल या नेटवर्क।
जामदानी बुनाई की शुरुआत बहुत महीन मलमल/मसलिन कपड़े से हुई थी, जो बेहद हल्का और पारदर्शी होता था। यह प्रक्रिया, पहले मुख्य रूप से बनारस और बंगाल में होती थी, लेकिन बाद में यह अन्य क्षेत्रों में भी फैल गई। इस तकनीक की ख़ासियत यह है कि, इसमें एक धागा डिज़ाइन के अनुसार करघे पर बेतहाशा ढंग से डाला जाता है, जिससे एक सटीक और जटिल पैटर्न बनता है।
एक कुशल जामदानी कारीगर, एक दिन में केवल एक चौथाई इंच से लेकर एक इंच तक कपड़ा बना सकता है। इसका मतलब यह है कि, एक साड़ी को पूरा करने में कई महीनों या सालों का समय लग सकता है। डिज़ाइन की जटिलता और घनत्व के आधार पर, एक साड़ी बनाने में कारीगर को तीन महीने से लेकर तीन साल तक का समय लग सकता है। इस प्रक्रिया में आमतौर पर दो कारीगरों की टीम की आवश्यकता होती है, जो 10 घंटे प्रति दिन काम करते हैं।
जामदानी बुनाई की प्रक्रिया में जो धागे उपयोग किए जाते हैं, वो भी खास होते हैं। शुरुआत में, मलमल, जो कि सबसे बारीक और हल्का कपड़ा था, का उपयोग किया जाता था, लेकिन अब समय और फैशन की बदलती मांगों के कारण, इसमें अन्य प्रकार के कपड़े भी शामिल किए जाने लगे हैं। जैसे कि सूती कपड़े, जिनमें ऊँचा जी एस एम/GSM (ग्राम प्रति वर्ग मीटर) होता है, ताकि आज के फैशन की मांग पूरी की जा सके।
तांडा में जामदानी बुनाई का परिचय
उत्तर प्रदेश में जामदानी बुनाई के मुख्य केंद्र, तांडा ( फ़ैज़ाबाद ज़िला) और बनारस हैं। तांडा में सफ़ेद जामदानी कपड़े बुनने की परंपरा, कम से कम 19वीं सदी से चल रही है। यहाँ के जामदानी कपड़े पर सफ़ेद रंग के डिज़ाइन होते हैं, जो पूरी तरह से सफ़ेद और पत्तेदार पैटर्न से ढंके होते हैं। इस बुनाई में सफ़ेद रंग के धागे से डिज़ाइन बनाए जाते हैं, जो कपड़े से थोड़ा मोटे होते हैं, जिससे डिज़ाइन थोड़ा धुंधला दिखता है, जबकि कपड़ा पारदर्शी होता है।
तांडा में बुनाई के लिए, बिना रंगे हुए ग्रे धागे (unbleached gray yarn) का उपयोग किया जाता है और डिज़ाइन के लिए सफ़ेद ब्लीच किए हुए धागे का । बनारस में सफ़ेद और सुनहरे धागों का भी इस्तेमाल होता है।
तांडा के कपड़े बहुत नाज़ुक होते हैं और इनकी बुनाई में सिर्फ़ सफ़ेद धागे का ही उपयोग किया जाता है। तांडा में सजावट के लिए अच्छे से ब्लीच किए हुए धागों का उपयोग किया जाता है। जो धागे सजावट के लिए होते हैं, उन्हें काटा नहीं जाता, बल्कि वे लटकते रहते हैं और फिर डिज़ाइन में जोड़े जाते हैं।
जामदानी बुनाई में इस्तेमाल होने वाले धागे और कपड़े
जामदानी बुनाई में तीन प्रमुख प्रकार के धागे इस्तेमाल होते हैं:
1. सिर्फ़ सूती: यह पूरी तरह से सूती धागों से बनाई जाती है, जिसमें रेशम का इस्तेमाल नहीं होता।
2. आधा रेशम: इसमें क्षैतिज (horizontal) धागे, रेशम के होते हैं, जबकि लंबवत (vertical) धागे, सूती के होते हैं।
3. पूरा रेशम: इसमें दोनों प्रकार के धागे (क्षैतिज और लंबवत) रेशम के होते हैं।
कपड़े का प्रकार:
1. मलमल: यह अत्यधिक महीन और पारदर्शी सूती कपड़ा है, जिसमें धागों की संख्या 150 से 300 के बीच होती है। यह पारंपरिक जामदानी बुनाई में इस्तेमाल होने वाला कपड़ा है।
2. सिल्क और सूती मिश्रण: कई जामदानी डिज़ाइनों में रेशम और सूती धागों का मिश्रण होता है, जिससे कपड़े की बनावट और गुणवत्ता बेहतर होती है।
उत्तर प्रदेश की जामदानी बुनाई में पाए जाने वाले कुछ प्रमुख मोटिफ़्स/रूपांकन
तांडा की जामदानी बुनाई में सफ़ेद रंग के डिज़ाइन के साथ कच्चे कपास या मलमल का उपयोग किया जाता था, लेकिन अब यह केवल एक किंवदंती बनकर रह गई है । इन डिज़ाइनों में कोई रंगीन धागे या ज़री का इस्तेमाल नहीं किया जाता था (जबकि बनारस में, ज़री का धागा और सफ़ेद और काले धागे का संयोजन इस्तेमाल किया जाता था, और ढाका में, सफ़ेद और सोने के साथ विभिन्न रंगों के सूती धागे का उपयोग किया जाता था)। तांडा के डिज़ाइनों में एकल-धागे के साथ बुनाई की जाती थी और आकृतियाँ बिना मोड़े हुए 2-धागे वाले धागों से बनाई जाती थीं।
इन डिज़ाइनों का रूपांकन ज़्यादातर ज्यामितीय आकारों में होता है, जिनकी रूपरेखा गोल या घुमावदार नहीं होती। इनकी बुनाई में चार से पाँच महीने का समय लगता था। पुपुल जयकर के अनुसार, यह डिज़ाइन दो या दो से ज़्यादा सफ़ेद रंगों में तैयार किए जाते थे, जिनमें विभिन्न मोटाई के धागों का उपयोग प्रकाश, छाया, पारदर्शिता और अपारदर्शिता के प्रभावों को दिखाने के लिए किया जाता था। सफ़ेद रंग के विभिन्न शेड्स, जैसे ब्राइट गोल्ड (चमकीला सुनहरा), टुथ वाइट (दांत जैसा सफ़ेद), प्योर सैंडल वाइट (चंदन जैसा सफ़ेद), ऑटम क्लाउड वाइट (बादल जैसा सफ़ेद), और ऑटम मून वाइट (चाँद जैसा सफ़ेद), में ये डिज़ाइन तैयार होते थे।
तांडा की जामदानी में इस्तेमाल होने वाले कुछ प्रमुख रूपांकन इस प्रकार हैं:
1. गुलदस्ता बूटी (फूलदान में सजाए गए फूलों का गुच्छा)
2. अनानास बूटी (अनानास फल आकृति)
3. फ़रीद बूटी ( पूरी साड़ी या कपड़े को डिज़ाइन से भरने के लिए उपयोग की जाने वाली बहुत ही सूक्ष्म बूटी पैटर्न)
4. शाही फ़र्दी बूटी (सूक्ष्म डॉट्स से भरा पैटर्न),
5. मसूर बूटी (दाल के आकार की बूटी भराव के रूप में)
6. मक्खी बूटी (मक्खी के आकार की छोटी बूटी),
7.चौफुलिया बूटी (4 पंखुड़ी वाले फूल),
8. जामेवार (पूरा कपड़ा पत्तों और फूलों से भरा हुआ),
9. इश्का पेंच (बेल के रूप में जटिल पत्तियां, भराव के रूप में उपयोग की जाती हैं)
10. खड़ी बेल (लंबाई में फूलों और पत्तियों की बेल)
संदर्भ
मुख्य चित्र: जामदानी बुनाई की कला (Wikimedia)