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मेइती भाषा को मणिपुरी भी कहा जाता है! यह तिब्बती-बर्मी भाषा समूह की एक आधुनिक भाषा है।मेइती भाषा प्रोटो-तिब्बती-बर्मी भाषा से विकसित हुई और समय के साथ इंडो-आर्यन भाषाओं से भी प्रभावित हुई। मणिपुर में यह भाषा, कम से कम 1500 से 2000 वर्षों से बोली जा रही है। आज दुनिया भर में, 17.5 लाख से अधिक लोग, मणिपुरी भाषा बोलते हैं।इसे मेइती मायेक लिपि में लिखा जाता है।यह एक अबुगीदा लिपि है, जो ब्राह्मी लिपि परिवार का हिस्सा मानी जाती है।आइए आज अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर इस भाषा की उत्पत्ति और विकास पर चर्चा करते हैं! इसके तहत, हम मेइती मायेक लिपि के बारे में जानेंगे और समझेंगे कि यह समय के साथ कैसे बदली। इसके बाद, हम इस बात पर रोशनी डालेंगे कि, इतिहास में मणिपुरी भाषा को लिखने के कौन-कौन से तरीके अपनाए गए।अंत में, भारत में मेइती बोलने वाले लोगों के वितरण के बारे में भी जानकारी लेंगे।
चलिए शुरुआत मेइती भाषा की उत्पत्ति और विकास को समझने के साथ करते हैं:
मणिपुरी मणिपुरी एक इंडो-आर्यन भाषा है। इंडो-आर्यन लोग चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में मणिपुर आए और वहां बस गए। मणिपुर में सबसे पहले बसने वाले इंडो-आर्यन लोग संस्कृत बोलते थे। बाद में आने वाले लोग प्राकृत भाषा का प्रयोग करने लगे। जब प्राकृत भाषा धीरे-धीरे समाप्त होने लगी, तो लोगों ने अपभ्रंश भाषा अपनाई। छठी शताब्दी ईस्वी के आसपास मणिपुर में अपभ्रंश का प्रभाव बढ़ा। अपभ्रंश और मंगोलॉयड भाषाओं के मेल से, 1074 ईस्वी में, मणिपुरी भाषा का जन्म हुआ। दसवीं शताब्दी के बाद, पूरे भारत में अपभ्रंश भाषा का उपयोग कम होने लगा और यह सामान्य बोलचाल से बाहर हो गई। 1074 ईस्वी में, जब लोइयाम्बा मणिपुर के राजा बने, तब मेइती भाषा (मणिपुरी) अस्तित्व में आई।
मेइती भाषा के निर्माण के समय, ऊपरी बर्मा के पोंग (थाई) समुदाय का मणिपुरी संस्कृति पर गहरा प्रभाव था। थाई भाषा के कुछ शब्द मेइती भाषा में शामिल हुए, लेकिन इससे मणिपुरी के व्याकरण पर कोई बड़ा असर नहीं पड़ा। 12वीं शताब्दी में, मेइती मणिपुरी के लोगों का संपर्क बंगाल से आए ब्राह्मणों से हुआ। 15वीं शताब्दी में संस्कृत ने मणिपुरी भाषा के विकास में योगदान दिया। इसके बाद, 18वीं शताब्दी में बंगाली भाषा ने भी मणिपुरी के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मेइती लिपि को एक समय में मेइती शासकों का संरक्षण प्राप्त था, लेकिन हिंदू धर्म के आगमन के बाद इसका उपयोग धीरे-धीरे कम हो गया और अंततः यह लुप्त हो गई।
इस लिपि का सबसे पुराना अभिलेख, खोइबू गांव में मिला एक पत्थर का शिलालेख है। इसे मेइडिंगु कियाम्बा (Meidingu Kiyamba (1467-1508)) के आदेश पर बनवाया गया था।
समय के साथ, मेइती मायेक या मेइती लिपि का विकास हुआ, जिससे इसके विभिन्न समर्थकों के बीच मतभेद भी उत्पन्न हुए। 7वीं और 8वीं शताब्दी के कुछ सिक्कों पर जो शिलालेख मिले हैं, वे संभवतः 18-अक्षरों वाली लिपि में थे। 17वीं शताब्दी में, हिंदू धर्म के आगमन के बाद, मेइडिंगु पामहेइबा (Meidingu Pamheiba (1709-1748)) के शासनकाल में इसे बढ़ाकर 36-अक्षरों की लिपि में विस्तारित किया गया।
हिंदू धर्म के आगमन के बाद, बंगाली लिपि का प्रभाव बढ़ता गया। 18वीं और 19वीं शताब्दी में, अधिकांश पत्थर के शिलालेख बंगाली लिपि में लिखे जाने लगे।
इतिहास में मणिपुरी कैसे लिखी जाती थी ?
मणिपुरी भाषा को अलग-अलग लिपियों में लिखा गया है। इसे पुरानी मणिपुरी लिपि, बंगाली वर्णमाला, आधुनिक मणिपुरी ( मेइती लिपि) और लैटिन वर्णमाला में दर्शाया गया है। पुरानी मणिपुरी लिपि 11वीं शताब्दी में विकसित हुई थी और 18वीं शताब्दी तक प्रचलित रही। हालांकि, इसकी उत्पत्ति को लेकर निश्चित जानकारी नहीं है। 18वीं शताब्दी की शुरुआत में राजा पमहेइबा के शासनकाल के दौरान, कई ऐतिहासिक दस्तावेज़ नष्ट कर दिए गए थे, जिससे इसकी प्राचीनता को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है।
1709 से लेकर 20वीं शताब्दी के मध्य तक, मणिपुरी भाषा को बंगाली वर्णमाला में लिखा जाने लगा। लेकिन 1940 और 1950 के दशक में मणिपुरी विद्वानों ने पुरानी मणिपुरी लिपि को पुनः स्थापित करने के लिए आंदोलन शुरू किया। 1976 में, एक लेखक सम्मेलन में सभी विद्वानों ने मणिपुरी लिपि के एक नए संस्करण पर सहमति व्यक्त की। इस नए संस्करण में कई अतिरिक्त अक्षर जोड़े गए, जो मूल लिपि के विकास के समय भाषा में नहीं थे। वर्तमान में प्रयोग की जाने वाली मणिपुरी लिपि, प्राचीन मणिपुरी लिपि का पुनर्निर्मित रूप है। 1980 के दशक की शुरुआत से, मणिपुर के स्कूलों में आधुनिक मणिपुरी वर्णमाला पढ़ाई जाने लगी। अब यह लिपि, मणिपुर के स्कूलों और विश्वविद्यालयों में शिक्षा का हिस्सा बन चुकी है। 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में 1.76 मिलियन लोग (17.6 लाख) मणिपुरी भाषा बोलते हैं। इनमें से 1.52 मिलियन (15.2 लाख) मणिपुर में रहते हैं, जहां वे राज्य की अधिकांश आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं।
इसके अलावा, असम में 1.68 लाख, त्रिपुरा में 24 हजार, नागालैंड में 9,500 और भारत के अन्य हिस्सों में 37,500 लोग इस भाषा को बोलते हैं। इसके अलावा, म्यांमार और बांग्लादेश में भी कुछ छोटे समुदाय मैती भाषा का प्रयोग करते हैं। हिंदी और कश्मीरी के बाद, मैती और गुजराती संयुक्त रूप से भारत में सबसे तेजी से बढ़ने वाली भाषाओं में तीसरे स्थान पर हैं।
संदर्भ
https://tinyurl.com/2bhaezuo
https://tinyurl.com/26q5d6x4
https://tinyurl.com/255bvdz9
https://tinyurl.com/k4ojf76
मुख्य चित्र: नुमित कप्पा, पौराणिक कथाओं और धर्म पर आधारित प्रथम शताब्दी का एक शास्त्रीय मैतेई महाकाव्य हैऔर उसके साथ एक मणिपुरी घुड़सवार का स्रोत: (Wikimedia)