पल भर में आनंद,अपनेपन, शांति,आध्यात्मिकता से भरते, हमारे शहर के सांस्कृतिक-ऐतिहासिक स्थल

वास्तुकला I - बाहरी इमारतें
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पल भर में आनंद,अपनेपन, शांति,आध्यात्मिकता से भरते, हमारे शहर के सांस्कृतिक-ऐतिहासिक स्थल

मेरठ की विभिन्न इमारतों की वास्तुकला में यहां की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान गहराई से परिलक्षित होती है। यहां की वास्तुकला में पारंपरिक डिज़ाइन (design) और प्रकृति का मिश्रण दिखाई देता है, जो आनंद और आराम की अनुभूति प्रदान करते हैं। स्थानीय रूप से प्रेरित वास्तुशिल्प शैलियों, प्राकृतिक सामग्री और जलवायु-उत्तरदायी डिज़ाइनों का उपयोग करते हुए, यहां निर्मित स्थान, अपनेपन की भावना को बढ़ावा देते हैं। गांधी बाग इसका एक आदर्श उदाहरण है, जो एक ऐतिहासिक उद्यान है और अपने खुले स्थानों, छायांकित मार्गों और सदियों पुराने आकर्षण के साथ एक शांतिपूर्ण स्थान प्रदान करता है। ऐसे स्थान, जो अपने परिवेश के साथ सामंजस्य स्थापित करने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं, हमारे शहर की भीड़भाड़ से राहत प्रदान करते हैं, सामाजिक सामंजस्य को प्रोत्साहित करते हैं, और एक गहन भावनात्मक संबंध बनाते हैं। तो आइए, आज, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण और मानव कल्याण को आकार देने में ऐसे आनंद प्रदान करने वाले स्थानों की भूमिका के बारे में जानते हैं। इसके साथ ही, हम पवित्र स्थानों के शांत प्रभावों पर चर्चा करेंगे, जो लंबे समय से शांति और आध्यात्मिकता से जुड़े हैं और स्थानीय वास्तुकला के बारे में जानेंगे। अंत में, हम स्थिरता को बढ़ावा देने, विरासत को संरक्षित करने और लोगों और उनके परिवेश के बीच एक गहरे संबंध को बढ़ावा देने में स्थानीय वास्तुकला के महत्व को समझेंगे।
मेरठ की जामा मस्जिद | 

अमरोहा में स्थित जामा मस्जिद | चित्र स्रोत :  प्रारंग चित्र संग्रह

सदियों से स्वास्थ्य और आवास का अंतर्संबंध रहा है, विशेष रूप से, आज की प्रौद्योगिकी-संचालित दुनिया में यह सबसे अधिक प्रासंगिक है। आज, स्वास्थ्य वास्तुकला एक अभिनव डिज़ाइन दर्शन के रूप में उभरी है, जिसके तहत प्राकृतिक प्रकाश व्यवस्था, वायु गुणवत्ता और प्रकृति से जुड़ाव जैसे पहलुओं को प्राथमिकता देकर, वास्तुकार और डिज़ाइनर ऐसे स्थान तैयार कर रहे हैं, जो हमारे लिए घर से अधिक होते हैं; वे हमारे जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाते हैं, हमारे स्वास्थ्य को बढ़ाते हैं, साथ ही, हमारी आत्मा का उत्थान करते हैं।

 वास्तुशिल्प के साथ, स्वास्थ्य को एकीकृत करने की अवधारणा नई नहीं है; रोम और यूनान जैसी प्राचीन सभ्यताओं में शहरों और सार्वजनिक स्थानों को उचित वायुसंचार, सूर्य के प्रकाश और प्राकृतिक वातावरण को ध्यान में रखते हुए डिज़ाइन किया गया था। हालांकि, आधुनिक स्वास्थ्य वास्तुकला में स्वस्थ जीवन के लिए प्राकृतिक तत्वों के उपयोग पर अत्यधिक  ज़ोर दिया जाता है। प्राकृतिक प्रकाश, बेहतर वायु गुणवत्ता, और जलवायु-अनुकूल सामग्री जैसे प्रमुख तत्व स्वास्थ्य उन्मुख स्थानों के निर्माण में मौलिक विचार हैं। 

पवित्र स्थान और उनके शांत प्रभाव:

किसी भी पवित्र स्थान का प्राथमिक उद्देश्य, लोगों की सांस्कृतिक और धार्मिक मान्यताओं को तर्कसंगत बनाना है। पवित्र स्थान ऐसे स्थान हैं, जहां व्यक्ति खुद को व्यक्त कर सकते हैं, और शांति और आत्मविश्वास प्राप्त करते हैं। पवित्र स्थानों की वास्तुकला में प्रतीकों, संकेतों, धार्मिक विषयों, दिव्य ज्यामिति और मूर्तिकला का उपयोग किया जाता है। वास्तुशिल्प डिज़ाइन आध्यात्मिक मान्यताओं का संचार करते हैं। पवित्र स्थान साझा विश्वासों, इतिहास और मूल्यों के माध्यम से समुदाय की भावना का निर्माण करते हैं। 

परीक्षितगढ़ में एक मंदिर | चित्र स्रोत :  प्रारंग चित्र संग्रह

मनोवैज्ञानिक प्रभाव:

वास्तव में, वास्तुकला का अर्थ, ऐसे वातावरण का निर्माण करना है जो लोगों के अनुभवों को समृद्ध बनाए। पवित्र स्थानों का लोगों पर गहन मनोवैज्ञानिक प्रभाव होता है, जो उनके भावनात्मक, संज्ञानात्मक और व्यवहारिक कल्याण को प्रभावित करता है। ये स्थान लोगों में अपनेपन, जीवन के अर्थ और उद्देश्य की भावना को बढ़ावा देते हैं। ये स्थान तनाव और चिंता से राहत देकर, आराम और शांति प्रदान करते हैं। पवित्र स्थान आत्म-प्रतिबिंबन और आत्मनिरीक्षण को प्रोत्साहित करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप व्यक्तिगत विकास और आत्म-जागरूकता होती है। ये स्थान, ध्यान और एकाग्रता में सुधार करते हुए, मानसिक और भावनात्मक कल्याण को बढ़ाते हैं। साझा पवित्र स्थल सामाजिक बंधन विकसित करते हैं, जिससे समर्थन की भावना पैदा होती है।

इसके साथ ही, पवित्र क्षेत्र, लोगों को अपनी भावनाओं को स्वस्थ रूप से व्यक्त करने में मदद करते हैं। पवित्र स्थान अपनी विशिष्ट वास्तुकला, कला और प्रतीकवाद के माध्यम से रचनात्मकता, मौलिकता और आविष्कार को प्रोत्साहित करते हैं। अंत में, वे व्यक्तियों को अपनी पहचान, मूल्यों और विश्वासों को विकसित करने में सहायता करते हैं, विशेष रूप से जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं या परिवर्तनों के दौरान।

मनुष्य, इस विशाल ब्रह्मांड का एक हिस्सा हैं। आध्यात्मिक वास्तुकला एक ऐसे वातावरण का निर्माण करती है, जिससे मनुष्य को लाभकारी ऊर्जा प्राप्त होती है। धार्मिक प्रतीकों और छवियों की व्यवस्था में गहन आध्यात्मिक महत्व के साथ-साथ, नकारात्मक भावनाओं को दूर करने की क्षमता होती है। लकड़ी, पत्थर और पानी जैसी सामग्री और बनावट से स्पर्श और संवेदी प्रतिक्रियाओं को बढ़ावा मिलता है। इसके अलावा, विशेष ध्वनिक विशेषताओं के साथ ऐसे स्थानों की वास्तुकला भावनात्मक अनुभव को बढ़ा सकती है।

स्थानीय वास्तुकला:

स्थानीय वास्तुकला (Vernacular Architecture) , भवन निर्माण की क्षेत्रीय या स्थानीय शैली है जिसमें उस क्षेत्र के पारंपरिक संसाधनों का उपयोग किया जाता है। इसीलिए, यह वास्तुकला, अपने परिवेश से निकटता से जुड़ी होती है और इस पर अपने स्थान की अद्वितीय भौगोलिक और सांस्कृतिक विशेषताओं का प्रभाव होता है। स्थानीय वास्तुकला को एक ऐसी वास्तुकला के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जिसमें लोगों के घर, वातावरण और संसाधनों से संबंधित अन्य संरचनाएं शामिल हैं, जिनमें आमतौर पर पारंपरिक तरीकों का उपयोग किया जाता है। परंपरा और प्रासंगिकता स्थानीय वास्तुकला की दो सबसे महत्वपूर्ण विशेषताएं हैं।  किसी जगह की स्थानीय वास्तुकला, मूल रूप से पारंपरिक होती है। यह पीढ़ियों द्वारा विकसित होती है, और समय के साथ एक लंबी प्रक्रिया से उत्पन्न होती है। इसके अलावा,  ये वास्तुकला, स्थानीय जलवायु, वनस्पति और स्थलाकृति सहित भौगोलिक संदर्भ के बारे में गहरी जागरूकता रेखांकित करती है।  कई समकालीन वास्तुशिल्प प्रथाओं में स्थानीय वास्तुकला को संबोधित किया गया है। ये संरचनाएं आधुनिक समाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, क्योंकि ये वास्तुशिल्प स्थिरता की वास्तविक उदाहरण हैं। इसलिए, वर्तमान समय में उन परियोजनाओं में, जिनका लक्ष्य पर्यावरण में कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को कम करते हुए ऊर्जा दक्षता को अधिकतम करना है, पुराने वास्तुशिल्प विचारों को देखा और अनुकरण किया जा रहा है। 

हस्तिनापुर का दिगंबर जैन मंदिर | चित्र स्रोत : प्रारंग चित्र संग्रह

स्थानीय निर्माण सामग्री:

आज, स्टील (steel), कंक्रीट (concrete) और कांच को उच्चतम-गुणवत्ता वाली वास्तुशिल्प  सामग्रियां माना जाता है, जबकि मिट्टी की ईंटों, बांस आदि को प्राचीन सामग्री माना जाता है। लेकिन वास्तव में, ये उपेक्षित संसाधन वर्तमान स्थिति में अधिक उपयुक्त और टिकाऊ हैं। स्थानीय इमारतों में उपयोग की जाने वाली मुख्य निर्माण सामग्री में शामिल हैं:

  • लकड़ी
  • बांस
  • लेटराइट
  • मिटटी
  • पुआल और घास

कुछ चीजें, जो हम स्थानीय वास्तुकला से सीख सकते हैं:

  • सह-अस्तित्व: स्थानीय वास्तुकला की सबसे बड़ी सीख, प्राकृतिक परिवेश के साथ इसका सह-अस्तित्व है।  इस वास्तुकला के तहत, स्वदेशी सामग्रियों और तकनीकों का उपयोग करते हुए, आवासों को पर्यावरण के साथ सह-अस्तित्व के लिए तैयार किया जाता है, जो पारिस्थितिक तंत्र में न्यूनतम व्यवधान सुनिश्चित करते हैं।
  • सांस्कृतिक महत्व:  इस वास्तुकला में निर्मित भवन मात्र संरचनाओं से परे, सांस्कृतिक विरासत का भंडार हैं, जो समुदायों के मूल्यों, विश्वासों और पहचानों को मूर्त रूप देते हैं। मानव अभिव्यक्ति का सम्मान करने और अपनेपन की भावना पैदा करने के लिए, इन वास्तुशिल्प रूपों को संरक्षित करना आवश्यक है।
  • सतत प्रथाएँ: स्थिरता, स्थानीय वास्तुकला के मूल में निहित है। स्थानीय संसाधनों का उपयोग  और पारंपरिक तकनीकों को नियोजित करके, स्थानीय वास्तुकार, ऐसी संरचनाएं बनाते हैं, जो पर्यावरण को क्षति पहुंचाए बिना पीढ़ियों तक टिके रहती हैं।
  • सामुदायिक जुड़ाव:  इस प्रकार की वास्तुकला, स्वाभाविक रूप से सामुदायिक है, जिसमें निर्मित वातावरण के डिज़ाइन, निर्माण और रखरखाव में स्थानीय समुदायों को शामिल किया गया है। यह सहयोगी दृष्टिकोण, सामाजिक संबंधों को सहेजता है, व्यक्तियों को सशक्त बनाता है, और समुदाय में गर्व और स्वामित्व की भावना पैदा करता है।
  • कार्यात्मक डिज़ाइन: पारंपरिक वास्तुकला में कार्यक्षमता सर्वोच्च प्राथमिकता होती है, जिसे निवासियों की व्यावहारिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अनुकूलित किया जाता हैं। चाहे गर्म जलवायु में प्राकृतिक वायु संचार हो या सर्द वातावरण में सूर्य के प्रकाश की व्यवस्था, स्थानीय समाधान, आराम और प्रयोज्य को प्राथमिकता देते हैं।
  • लागत प्रभावशीलता:  ये वास्तुकला, स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्रियों और श्रम पर निर्भर होती है, जो एक लागत प्रभावी विकल्प प्रदान करती है। आयातित संसाधनों और महंगी प्रौद्योगिकी पर निर्भरता को कम करते हुए, स्थानीय वास्तुकार, किफ़ायती आवास बनाते हैं, जो सभी के लिए सुलभ होते हैं।
  • मानव-केंद्रित दृष्टिकोण: स्थानीय वास्तुकला, एक मानव-केंद्रित लोकाचार है, जो निवासियों की भलाई और खुशी को प्राथमिकता देती है।
  • पर्यावरणीय प्रभाव: बढ़ते शहरीकरण और पर्यावरणीय गिरावट के आधुनिक युग में, स्थानीय वास्तुकला, पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हैं। स्थिरता, सामुदायिक जुड़ाव और सांस्कृतिक संरक्षण जैसे स्थानीय सिद्धांतों को अपनाकर, आधुनिक वास्तुकार, ऐसे स्थान बना सकते हैं जो रहने योग्य और पर्यावरण अनुकूल हों।

 

संदर्भ 

https://tinyurl.com/2wu6apyf

https://tinyurl.com/yb4janu3

https://tinyurl.com/523puxt8

मुख्य चित्र: मेरठ की एक क्षतिग्रस्त ईमारत का स्रोत :  प्रारंग चित्र संग्रह