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क्या आपने कभी एल एस डी (लीसर्जिक एसिड डाईएथिलेमाइड) के बारे में सुना है? यह एक शक्तिशाली मतिभ्रमकारी दवा है, जो व्यक्ति के मूड, सोच और धारणा को गहराई से बदल सकती है। इसके सेवन के बाद व्यक्ति को बदली हुई वास्तविकता , असामान्य दृश्य अनुभव हो सकते हैं! शायद इसी कारण, अक्सर इसका मनोरंजन के लिए दुरुपयोग भी किया जाता है।
एल एस डी की खोज 1938 में स्विस वैज्ञानिक अल्बर्ट हॉफ़मैन (Albert Hofmann) ने की थी। वे उस समय एर्गोट (Ergot) नामक कवक पर शोध कर रहे थे, जो राई जैसे अनाज पर पाया जाता है। आज हम एल एस डी को विस्तार से समझेंगे! इसके तहत हम जानेंगे कि इसकी खोज कैसे हुई, पहली बार इसका संश्लेषण कैसे हुआ, और इसके प्रभाव क्या हैं। साथ ही, मानसिक स्वास्थ्य और नशामुक्ति उपचार में इसके संभावित उपयोगों पर चर्चा करेंगे। अंत में, माइक्रोडोज़िंग (छोटी मात्रा में सेवन) के फ़ायदे और जोखिमों को भी जानेंगे।
एल एस डी क्या है?
एल एस डी (लीसर्जिक एसिड डाईएथिलेमाइड) ( Lysergic acid diethylamide) एक अवैध मनोरंजक दवा है। यह एक परजीवी कवक से प्राप्त होती है, जो राई या एर्गोट पर उगता है। यह सबसे प्रसिद्ध मतिभ्रमकारी(हैलुसिनोजेनिक) दवा मानी जाती है। एल एस डी व्यक्ति की वास्तविकता की धारणा को बदल देती है और एक साइकेडेलिक दवा के रूप में जानी जाती है, जिसका मतलब है कि यह सभी इंद्रियों को प्रभावित कर सकती है। यह न केवल व्यक्ति की सोच, समय के प्रति उसकी समझ और भावनाओं को बदल सकती है बल्कि एल एस डी के सेवन के बाद व्यक्ति मतिभ्रम हो सकता है। व्यक्ति ऐसी चीजें देख या सुन सकता है, जो वास्तव में मौजूद नहीं होतीं या विकृत रूप में नज़र देती हैं।
एल एस डी के मनोवैज्ञानिक प्रभावों की खोज डॉ. अल्बर्ट हॉफ़मैन द्वारा 1943 में संयोगवश की गई थी। वे सैंडोज़ (Sandoz) कंपनी में एक शोध रसायनज्ञ थे। जब वे एल एस डी-25 का संश्लेषण कर रहे थे, तो कुछ क्रिस्टल उनकी उंगलियों पर लग गए और त्वचा के माध्यम से अवशोषित हो गए। इसके परिणामस्वरूप, उन्हें एल एस डी के नशे के लक्षण महसूस होने लगे।
इसके बाद, डॉ. हॉफ़मैन ने जानबूझकर खुद पर प्रयोग किया और थोड़ी मात्रा में एल एस डी का सेवन किया। उन्होंने पाया कि लिसेर्जिक एसिड का उपयोग न्यूरोलॉजी (Neurology) और मनोचिकित्सा में किया जा सकता है। इसके संभावित प्रभावों को समझने के लिए उन्होंने जानवरों और मनुष्यों पर प्रयोग किए।
शुरुआती अध्ययनों में यह सामने आया कि एल एस डी मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे लोगों के लिए लाभदायक हो सकता है। यह भूली हुई यादों और पुराने आघातों को फिर से जागृत कर सकता है। कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि इससे उन यादों को चिकित्सीय रूप से ठीक करने में मदद मिल सकती है, जिससे उनका मानसिक स्वास्थ्य में सुधार संभव हो सकता है।
1950 और 60 के दशक में एल एस डी पर शोध:
1950 और 60 के दशक में एल एस डी को लेकर वैज्ञानिकों और डॉक्टरों के बीच काफ़ी उत्सुकता थी। उस समय, स्विट्जरलैंड की फार्मास्युटिकल (pharmaceutical) कंपनी सैंडोज़ इसे "डेलीसिड" नाम से बाज़ार में उतार रही थी। 1964 के एक कैटलॉग (catalogue) में इसे मानसिक स्वास्थ्य, खासतौर पर चिंता और जुनूनी न्यूरोसिस जैसी समस्याओं के इलाज में एक उपयोगी दवा बताया गया था! माना जाता था कि यह दवा दमित भावनाओं को बाहर लाने और मानसिक शांति प्रदान करने में मदद कर सकती है।
उस दौर में यूरोपियन मनोचिकित्सा क्लीनिक्स में एल एस डी को साइकोलिटिक थेरेपी (Psycholytic Therapy) में इस्तेमाल किया जाता था। इस तकनीक का उद्देश्य मानसिक तनाव और आंतरिक संघर्षों को कम करना था। इसके तहत, मरीजों को छोटी खुराकों में एल एस डी दी जाती थी, जिससे उनका अवचेतन मन धीरे-धीरे खुल सके।
थेरेपी का तरीका भी दिलचस्प था –
साइकेडेलिक थेरेपी (Psychedelic Therapy): साइकेडेलिक थेरेपी, एल एस डी थेरेपी का एक और तरीका था, जिसमें इसे उच्च खुराक में दिया जाता था। लेकिन इसे यूं ही नहीं दिया जाता था! मरीजों को इसके लिए गहरी मनोवैज्ञानिक तैयारी से गुजरना पड़ता था। इस तकनीक का लक्ष्य व्यक्तित्व में गहरे बदलाव लाना और मानसिक परेशानियों को ठीक करना था।
उस समय कुछ वैज्ञानिकों का मानना था कि एल एस डी का उपयोग कैंसर से होने वाले गंभीर दर्द को कम करने में भी किया जा सकता है। इसके अलावा, इसे एक "मॉडल मानसिक रोग" की तरह भी देखा जाता था, जिससे मानसिक बीमारियों की गहरी समझ विकसित की जा सके।
एल एस डी पर शोध क्यों बंद हो गया?
एल एस डी पर वैज्ञानिक अध्ययन 1950 के दशक में जोरों पर था, लेकिन 1970 के दशक के अंत तक यह लगभग रुक गया। इसके पीछे कई वजहें थीं:
2000 के दशक के मध्य में वैज्ञानिकों ने एक बार फिर एल एस डी पर शोध करना शुरू किया। अब सवाल यह था – क्या एल एस डी वास्तव में दिमाग को "रीसेट" (reset) कर सकता है और सोचने के नए तरीके विकसित करने में मदद कर सकता है?
शोध बताते हैं कि एल एस डी सेरोटोनिन(serotonin) और डोपामाइन(Dopamine) जैसे न्यूरोट्रांसमीटर (Neurotransmitter) को प्रभावित करता है, जो हमारे मूड को नियंत्रित करते हैं। लेकिन इसका पूरा प्रभाव अभी भी पूरी तरह से समझा नहीं गया है।
एल एस डी से किन बीमारियों में हो सकती है मदद ?
आज के शोध पुराने अध्ययनों पर आधारित हैं और वैज्ञानिक देख रहे हैं कि क्या एल एस डी का उपयोग निम्नलिखित स्थितियों के इलाज में किया जा सकता है:
✔ अवसाद (Depression)
✔ अभिघातजन्य तनाव विकार (PTSD)
✔ नशे की लत से छुटकारा (Addiction Recovery)
✔ घातक बीमारियों से जूझ रहे मरीजों की चिंता कम करना
फिलहाल, वैज्ञानिक इस बात की गहराई से जांच कर रहे हैं कि क्या एल एस डी वास्तव में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के लिए एक प्रभावी उपचार हो सकता है या नहीं। हालांकि, अभी इस पर और शोध की ज़रुरत है। एल एस डी माइक्रोडोज़िंग(Microdosing) के बारे में काफ़ी चर्चा होती रहती है, लेकिन क्या यह वाकई फ़ायदेमंद है, या सिर्फ़ एक भ्रम? आइए इसे आसान भाषा में समझते हैं।
क्या माइक्रोडोज़िंग के सच में फ़ायदे हैं?
अभी तक इस बात के कोई ठोस वैज्ञानिक प्रमाण नहीं मिला हैं कि माइक्रोडोज़िंग एल एस डी से कोई वास्तविक स्वास्थ्य लाभ होता है। कुछ शोधों में पाया गया कि इसका मानसिक ध्यान (focus) पर कोई खास असर नहीं पड़ता।
असल में, ज़्यादातर शोध भरोसेमंद नहीं माने जाते क्योंकि वे उन लोगों के अनुभवों पर आधारित होते हैं, जो खुद इसे इस्तेमाल कर रहे होते हैं और अपनी राय ऑनलाइन शेयर करते हैं। कुछ नए अध्ययनों में तो यह भी पाया गया है कि माइक्रोडोज़िंग का असर सिर्फ़ प्लेसबो (placebo effect) प्रभाव हो सकता है—यानी, यह सच में काम नहीं करता, बस लोग मानते हैं कि कर रहा है।
लेकिन कुछ शुरुआती रिसर्च में इसके संभावित फ़ायदे सामने आए हैं, जैसे:
क्या माइक्रोडोज़िंग से कोई जोखिम है?
अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि माइक्रोडोज़िंग से कोई गंभीर खतरा है या नहीं। हालांकि, चूहों पर किए गए कुछ अध्ययनों में यह पाया गया कि लंबे समय तक लगातार माइक्रोडोज़िंग करने से कुछ साइड इफ़ेक्ट (Side Effect) हो सकते हैं, जैसे:
इसके अलावा, एल एस डी सेरोटोनिन रिसेप्टर्स को सक्रिय करता है, जिससे सेरोटोनिन सिंड्रोम (Serotonin syndrome) हो सकता है। इसके लक्षणों में शामिल हैं:
हालांकि, स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि कम मात्रा या मनोरंजक रूप में लिया गया एल एस डी आमतौर पर नशे की लत नहीं बनाता और इससे किसी तरह की बाध्यकारी लत (compulsive use) विकसित होने के संकेत भी नहीं मिले हैं। फिलहाल, माइक्रोडोज़िंग के फ़ायदों और नुकसानों पर विज्ञान पूरी तरह स्पष्ट नहीं है। कुछ लोग इसे फ़ायदेमंद मानते हैं, लेकिन यह भी संभव है कि यह सिर्फ़ एक मानसिक प्रभाव (placebo effect) हो। अगर आप इसे आज़माने की सोच रहे हैं, तो सावधानी ज़रूरी है और किसी चिकित्सा विशेषज्ञ से सलाह लेना बेहतर होगा।
संदर्भ:
https://tinyurl.com/yc98axz7
https://tinyurl.com/29u8y9gj
https://tinyurl.com/29u8y9gj
https://tinyurl.com/y8womo9a
https://tinyurl.com/2cczgz5l
मुख्य चित्र: साइकेडेलिक (Psychedelic) आँख (Wikimedia)