मेरठ जानें तुंगभद्रा और विश्वामित्री नदियों के इतिहास, पर्यावरणीय महत्व व सौंदर्यीकरण को

नदियाँ और नहरें
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मेरठ जानें तुंगभद्रा और विश्वामित्री नदियों के इतिहास, पर्यावरणीय महत्व व सौंदर्यीकरण को

मेरठ से होकर बहने वाली हिंडन नदी की तरह ही, तुंगभद्रा नदी दक्षिण भारत की एक पवित्र और महत्वपूर्ण नदी है। यह कर्नाटक और आंध्र प्रदेश से होकर बहती है और आगे चलकर आंध्र प्रदेश में कृष्णा नदी से मिल जाती है। तुंगभद्रा, कृष्णा नदी की एक प्रमुख सहायक नदी मानी जाती है।

ऐतिहासिक रूप से, तुंगभद्रा नदी (Tungabhadra River) का विजयनगर साम्राज्य के दौरान विशेष महत्व था। हम्पी में, यह व्यापार, सिंचाई और धार्मिक गतिविधियों के लिए बेहद उपयोगी थी। आज भी इस नदी का सांस्कृतिक और पारिस्थितिक महत्व बरकरार है।

इसी तरह, गुजरात की विश्वामित्री नदी (Vishwamitri River) भी अपने भीतर कई ऐतिहासिक और धार्मिक कहानियाँ समेटे हुए है। यह नदी पंचमहल ज़िले के पावागढ़ से निकलती है और मुख्य रूप से वडोदरा शहर के पश्चिम से होकर बहती है। इस नदी का नाम महान संत विश्वामित्र के नाम पर रखा गया है, जो इसे और भी पवित्र बना देता है।

आज के इस लेख में, हम तुंगभद्रा रिवरफ़्रंट के पारिस्थितिक और आर्थिक महत्व पर चर्चा करेंगे। साथ ही, विश्वामित्री रिवरफ़्रंट विकास परियोजना (Tungabhadra Riverfornt Development Project) के तहत प्रस्तावित बदलावों को समझेंगे। अंत में, इन परियोजनाओं के संभावित पर्यावरणीय दुष्प्रभावों पर भी नज़र डालेंगे।

तुंगभद्रा नदी में दो चर्मावृत्त नौका (Coracles) जो वास्तव में बाँस से बनी हुईं एक प्रकार की नाव होती हैं | चित्र स्रोत : wikimedia 

आइए सबसे पहले तुंगभद्रा नदी के ऐतिहासिक और आधुनिक महत्व को समझते हैं:

तुंगभद्रा नदी, दक्षिण भारत के इतिहास में एक अहम भूमिका निभाती रही है। खासतौर पर, यह शक्तिशाली विजयनगर साम्राज्य की जीवनरेखा रही है। अपने सामरिक महत्व के कारण यह कई राज्यों के बीच प्राकृतिक सीमा का काम करती थी। इसके अलावा, यह नदी भारतीय पौराणिक कथाओं और धार्मिक परंपराओं से भी गहराई से जुड़ी हुई है।

14वीं से 16वीं शताब्दी के दौरान तुंगभद्रा नदी विजयनगर साम्राज्य के विकास का केंद्र हुआ करती  थी। इस साम्राज्य की भव्य राजधानी हम्पी इसी नदी के किनारे स्थित थी। लेकिन हम्पी सिर्फ़ एक नगर नहीं था, यह संस्कृति, कला और वास्तुकला का एक अद्भुत केंद्र भी था। आज इसके खंडहर उस दौर की समृद्धि और वैभव की झलक दिखाते हैं। यही कारण है कि यूनेस्को (UNESCO) ने इसे विश्व धरोहर स्थल (World Heritage SIte) का दर्जा दिया है।

तुंगभद्रा नदी का बेसिन कई वन्यजीव अभयारण्यों और राष्ट्रीय उद्यानों का घर है। यह क्षेत्र जैव विविधता से भरपूर है और यहाँ कई दुर्लभ वनस्पतियाँ और जीव पाए जाते हैं। कर्नाटक के चिकमगलूर ज़िले में स्थित भद्रा वन्यजीव अभयारण्य बाघ, हाथी और तेंदुए जैसी लुप्तप्राय प्रजातियों का आश्रय स्थल है। इसके अलावा, यह पक्षी प्रेमियों के लिए भी एक बेहतरीन स्थान है, क्योंकि यहाँ कई अनोखी पक्षी प्रजातियाँ देखने को मिलती हैं। तुंगभद्रा नदी दक्षिण भारत की एक महत्वपूर्ण नदी है, जिसका ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आर्थिक महत्व बहुत गहरा है। यह कृषि और उद्योगों के लिए जल का प्रमुख स्रोत है, जिससे क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को मज़बूती मिलती है। साथ ही, इसकी प्राकृतिक सुंदरता और समृद्ध जैव विविधता इसे पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बनाती है।

कर्नाटक में तुंगभद्रा नदी | चित्र स्रोत : wikimedia 

 दक्षिण भारत के इतिहास में एक अहम भूमिका निभाती रही है। खासतौर पर, यह शक्तिशाली विजयनगर साम्राज्य की जीवनरेखा रही है। अपने सामरिक महत्व के कारण यह कई राज्यों के बीच प्राकृतिक सीमा का काम करती थी। इसके अलावा, यह नदी भारतीय पौराणिक कथाओं और धार्मिक परंपराओं से भी गहराई से जुड़ी हुई है।

14वीं से 16वीं शताब्दी के दौरान, तुंगभद्रा नदी, विजयनगर साम्राज्य के विकास का केंद्र हुआ करती  थी। इस साम्राज्य की भव्य राजधानी हम्पी इसी नदी के किनारे स्थित थी। लेकिन हम्पी सिर्फ़ एक नगर नहीं था, यह संस्कृति, कला और वास्तुकला का एक अद्भुत केंद्र भी था। आज इसके खंडहर उस दौर की समृद्धि और वैभव की झलक दिखाते हैं। यही कारण है कि यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थल का दर्जा दिया है।

तुंगभद्रा नदी का बेसिन कई वन्यजीव अभयारण्यों और राष्ट्रीय उद्यानों का घर है। यह क्षेत्र जैव विविधता से भरपूर है और यहाँ कई दुर्लभ वनस्पतियाँ और जीव पाए जाते हैं। कर्नाटक के चिकमगलूर ज़िले में स्थित भद्रा वन्यजीव अभयारण्य बाघ, हाथी और तेंदुए जैसी लुप्तप्राय प्रजातियों का आश्रय स्थल है। इसके अलावा, यह पक्षी प्रेमियों के लिए भी एक बेहतरीन स्थान है, क्योंकि यहाँ कई अनोखी पक्षी प्रजातियाँ देखने को मिलती हैं।

तुंगभद्रा नदी दक्षिण भारत की एक महत्वपूर्ण नदी है, जिसका ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आर्थिक महत्व बहुत गहरा है। यह कृषि और उद्योगों के लिए जल का प्रमुख स्रोत है, जिससे क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को मज़बूती मिलती है। साथ ही, इसकी प्राकृतिक सुंदरता और समृद्ध जैव विविधता इसे पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बनाती है।

विश्वामित्री नदी गुजरात की पावागढ़ पहाड़ियों से निकलती है, जो पश्चिमी घाट का हिस्सा हैं। यह नदी वडोदरा शहर से होकर बहती है और आगे खंभात की खाड़ी में समाहित हो जाती है। ढाढर और खानपुर इसकी दो प्रमुख सहायक नदियाँ हैं।

विश्वामित्री नदी | चित्र स्रोत : wikimedia 

जानकार मानते हैं कि हज़ारों साल पहले करीब 1000 ईसा पूर्व में इस नदी के किनारे प्राचीन बस्तियाँ बसी हुई थीं। उनमें से अंकोटाका (जिसे आज अकोटा कहा जाता है!) एक महत्वपूर्ण नगर था। गुप्त और वल्लभी शासन के दौरान यह क्षेत्र  काफ़ी विकसित हुआ था। आज भी इसका ऐतिहासिक महत्व बना हुआ है।

पारिस्थितिकी के  नज़रिए से भी विश्वामित्री नदी बेहद खास है। इसमें मगरमच्छ, मीठे पानी के कछुए और मॉनिटर छिपकलियाँ पाई जाती हैं। शहरी इलाकों से गुजरने के बावजूद, यह नदी अपनी समृद्ध जैव विविधता बनाए हुए है, जो इसे अन्य नदियों से अलग बनाती है।

आइए, अब आपको विश्वामित्री रिवरफ़्रंट डेवलपमेंट प्रोजेक्ट (Vishwamitri Riverfront Development Project (VRDP) के बारे में बताते हैं जो विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन की एक कोशिश मानी जा रही है:

वडोदरा शहर की विश्वामित्री नदी के विकास और संरक्षण के लिए  वी आर डी पी शुरू किया गया है। इस परियोजना का मुख्य मकसद बाढ़ के खतरे को कम करना, मगरमच्छों और इंसानों के बीच संघर्ष को रोकना, पानी की गुणवत्ता सुधारना और आर्थिक विकास के नए अवसर पैदा करना है।

यह योजना सिर्फ़ नदी के पारिस्थितिकी तंत्र को बचाने तक सीमित नहीं है। यह शहर के विकास में भी अहम भूमिका निभाने वाली है। लेकिन, पर्यावरण विशेषज्ञ इस परियोजना को लेकर कई चिंताएँ जता रहे हैं।

पर्यावरणीय प्रभाव: क्या हैं प्रमुख चिंताएँ ?

परियोजना की सबसे बड़ी आलोचना इसके बाढ़ प्रबंधन की योजना को लेकर है। विशेषज्ञों का कहना है कि सिर्फ़ पिछले 18 वर्षों के उच्च बाढ़ स्तर (Highest Flood Level (HFL)) डेटा के आधार पर योजना बनाना सही नहीं है।

सोक्लीन (Soclien) की रिपोर्ट के अनुसार, सुरक्षित बाढ़ प्रबंधन के लिए कम से कम 100 वर्षों का डेटा शामिल किया जाना चाहिए। सिर्फ़ 18 साल की जानकारी लेकर कोई ठोस निष्कर्ष निकालना भ्रामक हो सकता है।

इसके अलावा, रिपोर्ट यह भी कहती है कि बाढ़ नियंत्रण के लिए नदी के खड्डों, प्राकृतिक जल निकासी मार्गों, झीलों, तालाबों और अन्य जल स्रोतों को मलबे से मुक्त रखना बेहद ज़रूरी है। अगर ऐसा नहीं किया गया, तो बाढ़ का खतरा और बढ़ सकता है।

अजवा एक जलाशय है जो भारत के गुजरात के वडोदरा शहर से लगभग 10 मील पूर्व में स्थित है। यह चित्र अजवा जलाशय के 62 दरवाज़े दिखाता है | चित्र स्रोत : wikimedia 

नदी के प्रवाह में छेड़छाड़ कितना सही?

रिपोर्ट एक और गंभीर चेतावनी दी गई है, कि नदी में बैराज बनाना या जल प्रवाह को बदलना पारिस्थितिकी तंत्र के लिए घातक हो सकता है। इससे नदी के प्राकृतिक प्रवाह में बाधा आएगी, जो जलचरों और मगरमच्छों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। इतना ही नहीं, यह बदलाव नदी के प्रवाह के लिए अनावश्यक भी हो सकता है, यानी इसका कोई ठोस फ़ायदा नहीं दिखता। विश्वामित्री रिवरफ़्रंट प्रोजेक्ट शहर के विकास और पर्यावरणीय संतुलन के बीच एक चुनौती बन चुका है।

अगर यह सही वैज्ञानिक और पारिस्थितिकीय आधारों पर काम करे, तो शहर के लिए लाभदायक साबित हो सकता है। लेकिन, जल प्रवाह में छेड़छाड़ और अधूरी बाढ़ प्रबंधन योजना इसे एक खतरनाक परियोजना बना सकती है।

 

संदर्भ: 

https://tinyurl.com/227duo88
https://tinyurl.com/2bpvrvg5
https://tinyurl.com/238luegw
https://tinyurl.com/24le3pyo

मुख्य चित्र : हम्पी में तुंगभद्रा नदी के किनारे बैठा एक व्यक्ति : Wikimedia