फ़र्नीचर के लिए उपयुक्त सागौन की खेती करके देश में इसकी कमी की पूर्ति कर सकते हैं मेरठवासी

घर - आंतरिक सज्जा/कुर्सियाँ/कालीन
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फ़र्नीचर के लिए उपयुक्त सागौन की खेती करके देश में इसकी कमी की पूर्ति कर सकते हैं मेरठवासी

हर किसी का सपना होता है कि वह अपने घर को अच्छे से सजाए, फिर चाहे वह घर किराए का हो या खुद का। घर की सजावट में मुख्य भूमिका होती है फ़र्नीचर की। फ़र्नीचर घर का एक अभिन्न हिस्सा है जिसके बिना काम नहीं चल सकता। चाहे फ़र्नीचर आधुनिक हो या पारंपरिक, अपने घर को कार्यात्मक बनाने और उसमें सौंदर्य का तत्व जोड़ने के लिए फ़र्नीचर की आवश्यकता होती है। जबकि फ़र्नीचर विभिन्न सामग्रियों से बनाया जा सकता है, प्राकृतिक लकड़ी से बने फ़र्नीचर की अपनी अलग ही गरिमा होती है। आप सभी इस बात से सहमत होंगे कि भारत में सागौन (Teak) की लकड़ी फ़र्नीचर के लिए सबसे लोकप्रिय लकड़ी के प्रकारों में से एक है, जो अपनी स्थायित्व और पानी, दीमक एवं क्षय प्रतिरोधक क्षमता के लिए जानी जाती है। इस लड़की को सागवान भी कहा जाता है। सागौन में मौजूद प्राकृतिक तेल के कारण यह इनडोर और आउटडोर दोनों तरह के फ़र्नीचर के लिए उपयुक्त है। इसके खूबसूरत पैटर्न और गर्म रंग किसी भी कमरे में एक पारंपरिक तत्व जोड़ते हैं। हालांकि, हमारे देश में घरेलू स्तर पर सागौन की लकड़ी का उत्पादन इसकी मांग से काफ़ी कम है, जिसके कारण यहां सागौन का बहुतायात में आयात किया जाता है। भारत में इसका औसत वार्षिक घरेलू उत्पादन लगभग 2.4 मिलियन क्यूबिक मीटर है, जो वर्तमान मांग का केवल 5% है। तो आइए, आज सागौन की लकड़ी की कुछ महत्वपूर्ण विशेषताओं के बारे में जानते हुए यह समझते हैं कि भारत में सागौन लकड़ी का उपयोग, किन फ़र्नीचर उत्पादों को बनाने में किया जाता है। इसके साथ ही, हम भारत में सागौन का सबसे अधिक उत्पादन करने वाले राज्यों पर प्रकाश डालेंगे। अंत में, हम भारत में सागौन उत्पादन में सुधार के लिए कुछ कदमों और उपायों के बारे में जानेंगे।

सागौन का जंगल |  चित्र स्रोत : wikimedia 

सागौन की लकड़ी की कुछ महत्वपूर्ण विशेषताएं:

  • सौंदर्य संबंधी अपील: सागौन की लकड़ी पर विशेष पैटर्न होते हैं। यह लकड़ी, छूने में चिकनी होती है और प्लाईवुड (Plywood) या पार्टिकल बोर्ड से बने फ़र्नीचर की तुलना में पॉलिश करने के बाद इसका रंग गहरा भूरा होता है, जिसके कारण इससे बने फ़र्नीचर में एक विशेष सौंदर्य आता है।
  • स्थायित्व: सागौन की लकड़ी का फ़र्नीचर कई वर्षों तक चल सकता है। इसके अलावा, पानी से भी सागौन की लकड़ी को नुकसान नहीं होता है।
  • क्षयप्रतिरोधी: सागौन की लकड़ी से बना फ़र्नीचर, टिकाऊ होता है और अपने उच्च घनत्व के कारण सड़ता नहीं है। 
  • सिकुड़न के प्रति प्रतिरोधी: सागौन की उच्च तन्यता क्षमता और कड़ा दाना इसे मौसम प्रतिरोधी और टिकाऊ बनाता है। इसका उपयोग, आउटडोर फ़र्नीचर और नावों के निर्माण में किया जाता है।
सागौन का फ़र्नीचर |  चित्र स्रोत : flickr 

भारत में सागौन के फ़र्नीचर के कुछ लोकप्रिय प्रकार:

  • टेबल और डाइनिंग सेट: खुले स्थानों पर उपयोग किए जाने वाले टेबल और डाइनिंग सेट के लिए, सागौन की लकड़ी एक उत्कृष्ट सामग्री है, क्योंकि इस पर धूप और पानी का विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता है और यह अन्य लड़कियों  की तरह आसानी से मुड़ती या टूटती नहीं है।
  • बेंच: सागौन की बेंचें, अपनी मज़बूत  बनावट और सड़न तथा दीमक के प्रति प्राकृतिक प्रतिरोध के कारण व्यावसायिक उपयोग के लिए आदर्श हैं, और अनगिनत प्रकार के डिजाइनों में उपलब्ध हैं।
  • आर्मचेयर: आर्मचेयर, जिन्हें मस्कोका कुर्सियों के रूप में भी जाना जाता है, अपनी ऊँची पीठ, अपनी रूपरेखा वाली सीटों और अपने चौड़े आर्म-रेस्ट के साथ आरामदायक होती हैं। सागौन से बनी  आर्मचेयर्स, आउटडोर कैफ़े जैसे स्थानों में अत्यंत लोकप्रिय हैं।
  • छाते: सागौन बड़ी छायादार छतरियों के फ्रेम के लिए एक लोकप्रिय और पारंपरिक लकड़ी है। सागौन ऐसे अनुप्रयोग के लिए आवश्यक स्थायित्व, मौसम प्रतिरोध और हल्कापन प्रदान करता है।
म्यांमार में यू बेइन ब्रिज पुनः प्राप्त सागौन की लकड़ी से बनाया गया है! |  चित्र स्रोत : wikimedia 

भारत में सागौन उत्पादन के लिए अग्रणी राज्य:

देश में सागौन, प्राकृतिक रूप से नौ मिलियन हेक्टेयर में वितरित है जबकि 2-3 मिलियन हेक्टेयर में इसकी खेती की जाती है। वास्तव में, दुनिया में सागौन का पहला बागान 1842 में नीलांबुर, केरल, भारत में स्थापित किया गया था। बाद में, जंगलों की स्थिति को सुधारने के लिए वन विभाग द्वारा नकदी फ़सल के रूप में इसको व्यापक रूप से लगाया गया। 'वन संरक्षण अधिनियम, 1980' और 'राष्ट्रीय वन नीति, 1988' के तहत, सरकारी स्वामित्व वाले जंगलों  में इस लकड़ी की  कटाई पर प्रतिबंध लगा दिया गया और निज़ी भूमि से लकड़ी की मांग को पूरा करने की सिफ़ारिश की गई। इस प्रतिमान बदलाव ने सागौन की कीमतों को सामान्य से 500 प्रतिशत अधिक बढ़ा दिया। इस अवसर को भुनाने के लिए, कई नर्सरी और निज़ी बागान एजेंसियों ने सागौन रोपण योजनाएं शुरू कीं। भारत में ऐसी योजनाओं को बढ़ावा देने के लिए हजारों कंपनियां बाजार में काम कर रही थीं। इन योजनाओं ने हज़ारों किसानों को सागौन के बागान की खेती करने के लिए आकर्षित किया। महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और मध्य प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों के किसानों द्वारा बड़ी मात्रा में सागौन की खेती की जाती है। कुछ राज्य सरकारों द्वारा वृक्षारोपण सब्सिडी भी शुरू की गई, जिससे कई किसान उच्च घनत्व में सागौन लगाने लगे। 

कर्नाटक में सागौन का बागान ! |  चित्र स्रोत : wikimedia 

भारत में, स्थानीय जलवायु और मिट्टी की स्थितियों के प्रभाव के कारण अलग-अलग स्थान पर सागौन की लकड़ी की अलग-अलग विशेषताएं होती हैं। उदाहरण के लिए, पश्चिमी घाट में मालाबार तट पर, पर्याप्त वर्षा के कारण सागौन उगता है, जो  जहाज़ और नाव निर्माण के लिए आदर्श है। मध्य प्रदेश के सिवनी की सागौन की लकड़ी हर्टवुड और सैपवुड के मिश्रण से सुनहरे पीले रंग की होती है। महाराष्ट्र के चंद्रपुर में उत्पादित असाधारण सागौन अपने विशिष्ट छल्लों के कारण अपने रंग और बनावट के लिए प्रसिद्ध है। आंध्र प्रदेश में गोदावरी घाटी में उगने वाला सागौन सजावटी फ़र्नीचर और कैबिनेट बनाने के लिए उपयुक्त होता है। इसी तरह, आंध्र प्रदेश में राजुलमडुगु का सागौन, अपने मूल्यवान गुलाबी रंग के  हार्टवुड (Heartwood) के लिए मूल्यवान है।

भारत में सागौन उत्पादन में सुधार के उपाय:

  • किसानों को शिक्षित करके: किसानों को यथार्थवादी अपेक्षाओं, उचित कृषि तकनीकों और सागौन वृक्षारोपण में शामिल दीर्घकालिक प्रतिबद्धता के बारे में शिक्षित करके सागौन उत्पादन के लिए प्रेरित किया जा सकता है।
  • सर्वोत्तम प्रथाओं को बढ़ावा देकर: सागौन की खेती पर व्यापक दिशानिर्देश, जिसमें अंतराल, पतलापन, छंटाई और मिट्टी प्रबंधन शामिल हैं, विकसित और प्रसारित करके इसके उत्पादन को बढ़ावा मिल सकता है।
  • गलत सूचनाओं को संबोधित करके: भ्रामक दावों का प्रतिकार करके और किसानों को सशक्त बनाने के लिए, विश्वसनीय सूचना स्रोतों को बढ़ावा देकर इसके उत्पादन के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण बनाया जा सकता है।
  • गुणवत्तापूर्ण रोपण सामग्री सुनिश्चित करके: प्रतिष्ठित स्रोतों से प्रमाणित रोपण सामग्री के उपयोग को प्रोत्साहित करके अच्छी गुणवत्ता वाले पेड़ों का उत्पादन सुनिश्चित किया जा सकता है।
  • विपणन और मूल्य निर्धारण में सुधार करके: किसानों को उनकी सागौन की लकड़ी का उचित मूल्य दिलाने के लिए, पारदर्शी और कुशल विपणन चैनलों की सुविधा प्रदान की जानी चाहिए।
  • सहायता और विस्तार सेवाएँ प्रदान करके: सागौन की खेती की पूरी प्रक्रिया के दौरान, किसानों को तकनीकी सहायता और विस्तार सेवाएँ प्रदान की जानी चाहिए।

इन उपायों से देश में सागौन का उत्पादन बढ़ाकर, निरंतर भारती मांग की पूर्ति की जा सकती है।


संदर्भ 

https://tinyurl.com/2c2cjsm6

https://tinyurl.com/wpxwn9cn

https://tinyurl.com/yc7rjbnv

https://tinyurl.com/2h2ex75h

मुख्य चित्र में  सागौन की खेती का स्रोत : wikimedia