मेरठ जानिए, भारत से निर्यात करने पर, चीज़ों पर लगने वाले विभिन्न कस्टम शुल्कों के बारे में

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मेरठ जानिए, भारत से निर्यात करने पर, चीज़ों पर लगने वाले विभिन्न कस्टम शुल्कों के बारे में

बिना किसी शक के, मेरठ को भारत में एक बड़ा निर्यात केंद्र माना जाता है, ख़ासकर खेलकूद के सामान और वाद्य यंत्रों के निर्माण और निर्यात के लिए। लेकिन, भारत से सामान निर्यात करने की प्रक्रिया आसान नहीं होती। इसमें विभिन्न कस्टम नियम, कर (ड्यूटी) और ज़रूरी काग़ज़ी  कार्यवाही शामिल होती है।

अगर आप एक यात्री हैं जो अपने निजी सामान के साथ यात्रा कर रहे हैं, एक व्यापारी हैं जो माल निर्यात कर रहे हैं, या फिर एक उद्यमी हैं जो अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कर रहे हैं, तो आपको निर्यात बैगेज नियमों और कस्टम ड्यूटी के बारे में जानना ज़रूरी है। इससे आपको बिना किसी परेशानी के नियमों का पालन करने में मदद मिलेगी।

तो आज हम भारतीय कस्टम के तहत निर्यात बैगेज नियमों को समझने की कोशिश करेंगे। इसमें हम जानेंगे कि कौन-कौन सी चीज़ें भारत से निर्यात करना मुमकिन है और किन  चीज़ों पर रोक है। इसके अलावा, हम भारत में लगने वाले अलग-अलग तरह के निर्यात करों (ड्यूटी) के बारे में भी चर्चा करेंगे, जैसे एड वेलोरेम (Ad Valorem),  विशिष्ट (Specific) और कंपाउंड (Compound) ड्यूटी।

इसके बाद, हम भारतीय निर्यातकों के लिए दी जाने वाली छूट और हाल ही में किए गए बदलावों पर नज़र डालेंगे। और अंत में, हम जानेंगे कि भारत से सामान निर्यात करते समय कस्टम क्लियरेंस (Custom Clearance) या सीमा शुल्क निकासी को आसान बनाने के लिए कुछ ज़रूरी टिप्स क्या हैं।

डोवर ईस्टर्न डॉक्स | चित्र स्रोत : Wikimedia

भारतीय कस्टम के तहत निर्यात बैगेज नियमों को समझना:

  • अधिकांश जंगली जानवरों की प्रजातियों और जंगली पौधों और जीवों से बने सामान, जैसे हाथी दांत, मस्क, सरीसृपों की खाल, फर, शाही तोस आदि का निर्यात प्रतिबंधित है।
  • नशीले पदार्थों और मानसिक प्रभाव डालने वाली दवाओं का व्यापार भी प्रतिबंधित है।
  • विदेशी यात्री, जो विदेशी मुद्रा लाकर सामान खरीदते हैं, उनका निर्यात अनुमति प्राप्त है, लेकिन प्रतिबंधित सामान का निर्यात नहीं किया जा सकता।
  • नेपाल में भारतीय मुद्रा के 500 और 2000 रुपये के नोट लेकर जाना मना है।
  • भारतीय मुद्रा का निर्यात सख्त तौर पर मना है। हालांकि, भारतीय निवासी, जब विदेश जाते हैं तो वे   7500 रुपये तक ले जा सकते हैं।

सोने  के आभूषणों का निर्यात

सोने  के आभूषणों का निर्यात करते समय, यदि यह यात्री के असली सामान का हिस्सा है, तो इस पर कोई मूल्य सीमा नहीं होती। इसका मतलब है कि आप  अपने आभूषणों को बिना किसी मूल्य सीमा के विदेश ले जा सकते हैं, जब तक कि     ये आपके व्यक्तिगत सामान का हिस्सा  हों ।

यदि आप सोने की ज्वेलरी को भारत से बाहर ले जा रहे हैं, तो आप कस्टम से निर्यात प्रमाणपत्र प्राप्त करने का अनुरोध कर सकते हैं। यह प्रमाणपत्र यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि आपकी ज्वेलरी को बाद में भारत में फिर से लाने में कोई परेशानी नहीं होगी। जब आप ज्वेलरी को वापस भारत लाते हैं, तो यह प्रमाणपत्र आपकी ज्वेलरी की सही पहचान और इसकी कस्टम क्लियरेंस प्रक्रिया को सरल बनाता है।

चित्र स्रोत : Pexels 

इसके अलावा, सोने की ज्वेलरी के निर्यात के समय आपको कस्टम अधिकारियों को यह जानकारी देनी होगी कि यह आपके असली सामान का हिस्सा है और यह आपके व्यक्तिगत उपयोग के लिए है, न कि व्यापारिक उद्देश्य से। अगर आप बड़ी मात्रा में  सोने के आभूषण ले जा रहे हैं, तो कस्टम अधिकारी आपके सामान की जांच कर सकते हैं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि आप नियमों का पालन कर रहे हैं।

अंत में, अगर आप भारतीय नागरिक हैं और सोने की ज्वेलरी का निर्यात कर रहे हैं, तो यह आवश्यक है कि आप भारतीय कस्टम नियमों के तहत सभी आवश्यक दस्तावेज़ और प्रमाणपत्र प्रस्तुत करें, ताकि निर्यात की प्रक्रिया बिना किसी समस्या के पूरी हो सके।

भारत में निर्यात शुल्क के विभिन्न प्रकार

1. एड वैलोरेम शुल्क (Ad Valorem Duty): यह शुल्क, वस्तु के मूल्य के प्रतिशत के रूप में निर्धारित किया जाता है। उदाहरण के लिए, अगर एक वस्तु पर 10% एड वैलोरेम शुल्क लगाया जाता है और उसकी कीमत 100 रुपये है, तो शुल्क 10 रुपये होगा।

2. विशिष्ट शुल्क (Specific Duty): यह एक निर्धारित  शुल्क है जो प्रति इकाई के आधार पर लगाया जाता है, चाहे वस्तु का मूल्य कुछ भी हो। उदाहरण के तौर पर, अगर प्रत्येक उत्पाद पर 20 रुपये का विशिष्ट शुल्क लगाया गया है, तो 10 इकाइयों के लिए कुल शुल्क 200 रुपये होगा।

3. संयुक्त शुल्क (Compound Duty): यह एड वैलोरेम और विशिष्ट शुल्क का संयोजन होता है। इसमें दोनों मूल्य और मात्रा का सम्मिलित हिस्सा होता है। उदाहरण के लिए, संयुक्त शुल्क में 5% एड वैलोरेम शुल्क और प्रत्येक इकाई पर 10 रुपये का विशिष्ट शुल्क शामिल हो सकता है।

इंडोनेशियाई कस्टम घोषणा फॉर्म | बंदरगाह : Wikimedia

भारतीय निर्यातकों के लिए हाल ही में हुए परिवर्तन और छूट

1. एडवांस  ऑथराइज़ेशन योजना (Advance Authorization Scheme): निर्यातकों को पिछले वित्तीय वर्ष में किए गए वास्तविक निर्यात या अनुमानित निर्यात के आधार पर 300% तक  सामग्रियों का आयात करने की अनुमति दी गई है, या फिर 1 करोड़ रुपये, जो भी अधिक हो।

2. निर्यात प्रदर्शन आधारित आयात (Import Based on Export Performance): अब ऐसे निर्यातकों को, जिनका कम से कम पिछले दो वित्तीय वर्षों में निर्यात प्रदर्शन अच्छा रहा हो, उन्हें एस आई ओ एन (SION/Standard Input Output Norms) या अन्य अस्थायी मानदंडों के आधार पर इनपुट आयात करने की अनुमति दी गई है।

3. तीन स्टार या उससे ऊपर के निर्माता (3 Star or Above Rated Exporters): ऐसे निर्माता, जिनके पास तीन स्टार या उससे अधिक का दर्जा है, वे अपने उत्पादों को “भारत से उत्पन्न” के रूप में प्रमाणित करने के लिए स्व-प्रमाणन (Self-Certification) कर  सकते हैं ।

इन बदलावों का उद्देश्य भारतीय निर्यातकों को और अधिक आसानी से व्यापार करने की सुविधा प्रदान करना है, साथ ही वे नियमों के अनुरूप अपने निर्यात कार्यों को सुलभ और सरल बना सकेंगे।

 
भारत से माल निर्यात करने हेतु कस्टम क्लीयरेंस के लिए कुछ महत्वपूर्ण टिप्स:

1. स्वयं मूल्यांकन (Self Assessment): निर्यातक शिप किए जा रहे माल पर लगने वाले शुल्क का अनुमान खुद लगा सकते हैं और माल की सही श्रेणी और मात्रा के साथ शुल्क दर घोषित कर सकते हैं। इस जानकारी के आधार पर शिपिंग बिल में किसी भी छूट या बचत का दावा किया जाता है, यदि लागू हो।

2. पोस्ट क्लीयरेंस ऑडिट (Post Clearance Audit): शिपिंग बिल का पोस्ट क्लीयरेंस ऑडिट (PCA) किया जाता है ताकि अनुपालन स्तर को बेहतर बनाया  , माल के रुकने का समय कम   और कस्टम्स प्रोसेसिंग को तेज़ किया जा सके।

3. सही दस्तावेज़ (Proper Documentation): सफल कस्टम्स क्लीयरेंस के लिए सही दस्तावेज़ अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं। यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि सभी आवश्यक दस्तावेज़ पूर्ण, सही और उपलब्ध हों। वाणिज्यिक चालान, पैकिंग सूची, बिल ऑफ लेडिंग, उत्पत्ति प्रमाण पत्र, और अन्य आवश्यक परमिट या प्रमाण पत्र पहले से तैयार किए जाने चाहिए।

4. माल की वर्गीकरण (Classification of Goods): माल की सही वर्गीकरण, कस्टम्स क्लीयरेंस  की प्रतिक्रिया को आसान और तेज़ कर देता  है। प्रत्येक माल को उसके टैरिफ़ वर्गीकरण के अनुसार वर्गीकृत किया जाना चाहिए, जो लागू होने वाले शुल्क, करों और शुल्कों को निर्धारित करता है।

संदर्भ 

https://tinyurl.com/wh46yttv 

https://tinyurl.com/y5vpjmez 

https://tinyurl.com/3y5zaf75 

मुख्य चित्र स्रोत : wikimedia