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मेरठ के नागरिक, क्या आप जानते हैं कि, ग्रीन मैन्युफ़ैक्चरिंग (Green Manufacturing) या हरित विनिर्माण, ऐसे उत्पाद बनाने की प्रक्रिया है, जो पर्यावरणीय प्रभाव को कम करती है। यह कच्चे माल के स्रोत से लेकर उत्पाद बिक्री तक, पूरे निर्माण प्रक्रिया में स्थिरता को भी बढ़ावा देता है। एलईडी लाइट बल्ब, सौर पैनल, कम्पोस्टेबल खाद्य पैकेजिंग और इलेक्ट्रिक वाहन कुछ ऐसे उत्पाद हैं, जो इस विनिर्माण प्रक्रिया का उपयोग करके बनाए गए हैं। कहा जा रहा है कि, भारत का हरित विनिर्माण उद्योग महत्वपूर्ण वृद्धि के लिए तैयार है, जो कि सकल मूल्य वर्धित (Gross Value Added (GVA)) में 2032 तक, 21% (1,557 बिलियन अमेरिकी डॉलर) योगदान दे सकता है। इसलिए आज हम, हरित विनिर्माण के बारे में विस्तार से बात करते हैं। फिर, हम कुछ सबसे महत्वपूर्ण हरित निर्माण प्रथाओं का पता लगाएंगे। इसके अलावा, हम उन उद्योगों का पता लगाएंगे, जो भारत में हरित विनिर्माण का लाभ उठा रहे हैं। आगे बढ़ते हुए, हम भारत के हरित विनिर्माण उद्योग के विकास की प्रगति में बाधा डालने वाली चुनौतियों पर कुछ प्रकाश डालेंगे। अंत में, हम इन समस्याओं को दूर करने के लिए कुछ समाधानों को देखेंगे।
हरित विनिर्माण का परिचय:
हरित विनिर्माण, उत्पादन प्रक्रियाओं का नवीकरण और विनिर्माण क्षेत्र के भीतर पर्यावरण अनुकूल संचालन की स्थापना है। अनिवार्य रूप से, यह विनिर्माण का “हरित” रूप है, जिसमें श्रमिक कम प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करते हैं; प्रदूषण और अपशिष्ट को कम करते हैं; सामग्री का पुन: उपयोग एवं पुनर्चक्रण करते हैं; और अपनी प्रक्रियाओं में कम से कम उत्सर्जन करते हैं। हरित निर्माता, पर्यावरण पर उनके प्रभाव को कम करने के लिए प्रौद्योगिकियों और प्रथाओं का अनुसंधान, विकास या उपयोग करते हैं।
•अक्षय ऊर्जा (Renewable Energy) का उपयोग करें:
बिजली उत्पादन के लिए अक्षय ऊर्जा स्रोतों का चयन करना, उत्पादन प्रक्रियाओं में उत्सर्जन को कम करता है। पवन, सौर, भूतापीय या जल विद्युत जैसे नवीकरणीय स्रोतों से ऊर्जा, हरित विनिर्माण संयंत्रों को ऊर्जा प्रदान करते हैं।
•लीन मैन्युफ़ैक्चरिंग (Lean manufacturing) और हरित टेक्नोलॉजी का उपयोग करें:
लीन मैन्युफ़ैक्चरिंग, उत्पादन का एक तरीका है, जो दक्षता और अपशिष्ट में कमी पर ज़ोर देता है। उदाहरण के लिए, स्मार्ट फ़ैक्ट्रियां, डेटा-एकत्र करने वाले सेंसरों और एनालिटिक्स सॉफ़्टवेयर (Analytics software) से लैस होती हैं, जो उत्पादन को सुव्यवस्थित करने हेतु महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकते हैं।
• सतत सामग्री (Sustainable Materials) का उपयोग:
कार्बन पदचिह्न (Carbon footprint) को कम करने के लिए, कंपनियां पर्यावरण अनुकूल संसाधनों, जैसे कि – गैर-विषैले या संयंत्र-आधारित कच्चे माल का उपयोग करके, स्थायी उत्पादों का उत्पादन कर सकती हैं।
•पूर्ण उत्पाद जीवनचक्र (Full Product Lifecycle) के लिए डिज़ाइन:
निर्माता पुन: उपयोग, पुनर्चक्रण या एंड-ऑफ़-लाइफ़साइकिल कम्पोस्टिंग (End-of-lifecycle composting) के लिए उत्पादों को डिज़ाइन करके भी कचरे को कम कर सकते हैं। यह दृष्टिकोण अपशिष्ट निपटान के दौरान, लागत और उत्सर्जन को कम करता है, और उपयोग करने योग्य संसाधनों को लैंडफ़िल (Landfill) से बाहर रखता है।
•प्राकृतिक क्षेत्रों की रक्षा करें (Protect natural areas):
चूंकि विनिर्माण एक भारी उद्योग है, यह अक्सर आसपास के प्राकृतिक क्षेत्रों को खतरे में डालता है। हरित विनिर्माण कंपनियां प्राकृतिक संसाधन, वन्यजीव और जैव विविधता संरक्षण के माध्यम से, प्राकृतिक वातावरण की रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
कुछ उद्योग, जो भारत में हरित विनिर्माण का लाभ उठाते हैं:
स्टील, सीमेंट, तेल और गैस, बिजली और मोटर वाहन जैसे महत्वपूर्ण उद्योग, भारत के स्थायी विनिर्माण प्रयासों में सबसे आगे हैं। उदाहरण के लिए, स्टील उद्योग, देश के सकल घरेलू उत्पाद और रोज़गार में एक महत्वपूर्ण योगदानकर्ता है। हालांकि, यह उत्सर्जन का एक प्रमुख स्रोत भी है। तेल और गैस उद्योग में, कार्बन कमी की पहल को अपनाना और स्टील उद्योग पर हरित हाइड्रोजन के प्रभाव, इस उद्योग के कार्बन पदचिह्न को कम करने के लिए आवश्यक है।
तेल और गैस उद्योग, कार्बन न्यूट्रैलिटी (Carbon neutrality) और हरित हाइड्रोजन में सी सी यू एस (Carbon Capture, Utilisation and Storage (CCUS)) की भूमिका जैसी नवीन प्रौद्योगिकियों में निवेश करके, भारत के शुद्ध-शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य में सक्रिय रूप से योगदान दे रहा है। इस प्रगति का उद्देश्य डाउनस्ट्रीम प्रक्रियाओं में उत्सर्जन को कम करना है, जबकि अपस्ट्रीम संचालन को डीकार्बनाइज़ (Decarbonize) करने के प्रयास भी किए जा रहे हैं।
बिजली क्षेत्र भी स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों की ओर कूच कर रहा है। भारत का लक्ष्य, 2030 तक 500 गीगा वॉट स्थापित अक्षय ऊर्जा क्षमता के लक्ष्य को प्राप्त करना है, जो जीवाश्म ईंधन पर अपनी निर्भरता को काफ़ी कम कर देता है।
भारत के हरित विनिर्माण उद्योग के विकास में बाधा उत्पन्न करने वाली चुनौतियां:
1.उच्च प्रारंभिक लागत:
हरित विनिर्माण के लिए आगे बढ़ने में नई प्रौद्योगिकियों, प्रशिक्षण और बुनियादी ढांचे में महत्वपूर्ण अपफ़्रंट निवेश (Upfront investment) शामिल हैं। यह लघु और मध्यम उद्यमों (Micro, Small, and Medium Enterprises (MSME)) के लिए एक बाधा है, जो भारत के विनिर्माण क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा है।
2.नीतिगत अंतराल:
जबकि भारत सरकार ने ‘टिकाऊ रणनीतिक कार्य योजना’ (Sustainable Strategic Action Plan) जैसी एक पहल शुरू की है, इसका अमल असंगत है। छोटी कंपनियों के लिए स्पष्ट नियम और प्रोत्साहन, व्यापक रूप से हरित प्रथाएं अपनाने को प्रोत्साहित करने हेतु आवश्यक हैं।
3.कौशल की कमी:
देश में हरित प्रौद्योगिकियों के प्रबंधन और कार्यान्वयन में सक्षम, एक प्रशिक्षित कार्यबल की कमी एक बाधा बनी हुई है। कंपनियों को इस अंतर को पाटने के लिए, अपने कर्मचारियों को कुशल बनाने में निवेश करना चाहिए।
4.संसाधन की कमी:
यद्यपि भारत संसाधन सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, हमारा देश अभी भी पानी की कमी और आयातित कच्चे माल पर निर्भरता जैसी चुनौतियों का सामना करता है। कुशल संसाधन प्रबंधन चिंता का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र बना हुआ है।
भारत में हरित विनिर्माण को बढ़ावा देने हेतु कुछ समाधान:
हरित विनिर्माण को बढ़ाने के लिए, सरकारी नीतियों, कॉर्पोरेट नेतृत्व और तकनीकी प्रगति को शामिल करने वाला एक सहयोगी दृष्टिकोण आवश्यक है। हरित प्रौद्योगिकियों के लिए करों में सहूलियत, सार्वजनिक-निजी भागीदारी तथा अनुसंधान और विकास में निवेश जैसे प्रोत्साहन, इन बाधाओं पर काबू पाने के लिए महत्वपूर्ण हैं।
संदर्भ
मुख्य चित्र में दो संधारणीय व्यवसाय मॉडल दिखाए गए हैं:
बाएं: पुनर्चक्रित कपास का पुनः उपयोग करने के लिए एक कंडेनसर स्पिनिंग म्यूल।
दाएं: साझा गतिशीलता को बढ़ावा देने वाला एक कार-शेयरिंग प्रोटोटाइप। चित्र स्रोत : Wikimedia