मेरठवासियों के जीवन प्रश्नों का समाधान, आदि शंकराचार्य की अमर शिक्षाएँ!

विचार I - धर्म (मिथक/अनुष्ठान)
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मेरठवासियों के जीवन प्रश्नों का समाधान, आदि शंकराचार्य की अमर शिक्षाएँ!

मेरठ के विद्यापीठों में आज भी विद्यार्थियों को आदि शंकराचार्य की गूढ़ शिक्षाओं से प्रेरित किया जाता है! शंकराचार्य का मानना था कि सच्ची भक्ति ही ईश्वर तक पहुँचने का सर्वोत्तम मार्ग है। उनके अनुसार, भक्ति के माध्यम से ही व्यक्ति आत्म-जागरूकता और आंतरिक शांति प्राप्त कर सकता है। इस विचारधारा के प्रचार के लिए उन्होंने भारत के चार दिशाओं में चार मठों (उत्तर में बद्रीनाथ, पश्चिम में द्वारका, पूर्व में पुरी और दक्षिण में श्रृंगेरी) की स्थापना की। ये चार धाम न केवल तीर्थ स्थल हैं, बल्कि भक्ति और शिक्षा के जीवंत केंद्र भी बने हुए हैं। आदि शंकराचार्य ने आस्था की शक्ति से लोगों को एकजुट किया। उन्होंने हिंदू दर्शन की जड़ों को पुनः सशक्त किया और ज्ञान व भक्ति के बीच अद्भुत संतुलन स्थापित किया। उनकी शिक्षाएँ यह दर्शाती हैं कि भक्ति और ज्ञान एक-दूसरे के पूरक हैं! 
आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित ये मठ सिर्फ़ धार्मिक स्थल नहीं हैं, बल्कि वेदांत ज्ञान के संरक्षण और प्रचार के प्रतीक हैं। यहाँ हर वर्ष लाखों श्रद्धालु इन मठों में दर्शन के लिए आते हैं, जहाँ उन्हें आध्यात्मिक शांति और ज्ञान की अनुभूति होती है। आज उनकी जयंती के अवसर पर हम   इस लेख में आदि शंकराचार्य के भक्ति और ज्ञान के अद्भुत सामंजस्य को समझेंगे। हम जानेंगे कि कैसे उन्होंने श्रद्धा (भक्ति) और बोध (ज्ञान) को मिलाकर एक संतुलित आध्यात्मिक मार्ग प्रस्तुत किया। साथ ही, उनके द्वारा स्थापित चार मठों की ऐतिहासिक और आध्यात्मिक भूमिका को भी जानेंगे, जो आज भी हिंदू परंपरा में पवित्रता और एकता के प्रतीक हैं। 

आदि शंकराचार्य का जन्मस्थान कालड़ी | चित्र स्रोत : Wikimedia 

अद्वैत वेदांत में ज्ञान को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है, लेकिन आदि शंकराचार्य ने सिर्फ़ ज्ञान ही नहीं, बल्कि भक्ति के महत्व को भी स्वीकार किया है। उनके अनुसार, आत्मा को परम सत्य का अनुभव तभी होता है, जब अहंकार का पूर्ण त्याग किया जाए—और इसके लिए भक्ति एक प्रभावी साधन है। शंकराचार्य की भक्ति रचनाएँ ईश्वर के प्रति समर्पण को केंद्र में रखती हैं। उनका मानना था कि केवल तर्क और विचार के सहारे आत्मज्ञान पाना संभव नहीं है। ईश्वर के प्रति प्रेम और श्रद्धा भी उतनी ही आवश्यक होता है। जब कोई व्यक्ति सच्चे समर्पण और श्रद्धा से भक्ति करता है, तो उसका अहंकार धीरे-धीरे विलीन होने लगता है। यही अहंकार आत्मज्ञान के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा बनता है।
भक्ति और ज्ञान का यह संतुलन आज भी लाखों साधकों को प्रेरित करता है। भक्ति मन को शुद्ध और निर्मल बनाती है, जिससे ज्ञान को आत्मसात करना सरल हो जाता है। वहीं, ज्ञान व्यक्ति को अंधविश्वास और संकीर्णता से मुक्त रखता है, जिससे भक्ति भटकाव का शिकार नहीं होती। शंकराचार्य का यह संतुलित दृष्टिकोण हमें सिखाता है कि आध्यात्मिक पथ पर आगे बढ़ने के लिए न तो सिर्फ़ ज्ञान पर्याप्त है और न ही सिर्फ़ भक्ति। सच्ची साधना के लिए दोनों का सहअस्तित्व आवश्यक है।

क्या आप जानते हैं कि आदि शंकराचार्य न सिर्फ़ एक महान दार्शनिक थे, बल्कि समाज सुधारक भी थे? उन्होंने हिंदू धर्म को एकजुट करने और उसकी परंपराओं को संरक्षित रखने के लिए कई क्रांतिकारी कदम उठाए। इसी क्रम में उन्होंने भारत के चारों दिशाओं में चार प्रमुख मठों की स्थापना की, जो आज भी वैदिक ज्ञान और आध्यात्मिक साधना के केंद्र हैं।
आइए, इन चारों मठों के बारे में विस्तार से जानते हैं:

चित्र स्रोत : Wikimedia

ज्योतिर्मठ (उत्तराम्नाय पीठ) – यह मठ उत्तराखंड के जोशीमठ (चमोली ज़िले) में स्थित है! इसे उत्तर भारत का प्रमुख आध्यात्मिक केंद्र माना जाता है। इसके पहले शंकराचार्य श्री तोटकाचार्य थे। यह मठ अथर्ववेद से जुड़ा है और इसके अंतर्गत दशनामी संप्रदाय की तीन शाखाएँ – गिरि, पर्वत और सागर संप्रदाय आती हैं। 

चित्र स्रोत : Wikimedia
  • श्रृंगेरी मठ (दक्षिणाम्नाय पीठ) – यह मठ कर्नाटक के चिक्कमगलूर ज़िले में तुंगा नदी के किनारे स्थित है। आदि शंकराचार्य ने इसकी स्थापना की थी और इसके पहले शंकराचार्य श्री सुरेश्वराचार्य थे। यह मठ यजुर्वेद से संबद्ध है।
    इसका महावाक्य है:
    "अहम् ब्रह्मास्मि" – जिसका अर्थ है: "मैं ही ब्रह्म हूँ"।
    यह वाक्य व्यक्ति के भीतर परमात्मा की अनुभूति का प्रतीक है। 
चित्र स्रोत : Wikimedia 
  • गोवर्धन मठ (पूर्वाम्नाय पीठ) – यह मठ ओडिशा के पुरी में स्थित है और पूर्व भारत का प्रमुख आध्यात्मिक केंद्र माना जाता है। इस मठ का नेतृत्व सबसे पहले श्री पद्मपादाचार्य ने संभाला था। यह मठ ऋग्वेद से जुड़ा है। इसके अंतर्गत बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, असम, उत्तर प्रदेश (प्रयागराज सहित) और पूर्वोत्तर के अन्य राज्य आते हैं।
चित्र स्रोत : Wikimedia 
  • द्वारका मठ (पश्चिमाम्नाय पीठ) – गुजरात के द्वारका में स्थित यह मठ पश्चिम भारत का प्रमुख धार्मिक केंद्र है। इसे द्वारका शारदा पीठ या कालिका मठ भी कहा जाता है।
    इसके पहले शंकराचार्य श्री हस्तामलकाचार्य थे। यह मठ सामवेद से जुड़ा है।
    इसका महावाक्य है:
    "तत्त्वमसि" – जिसका अर्थ: "तू ही वह है" होता है।
    यह वाक्य व्यक्ति और ब्रह्म के अद्वैत (एकत्व) को दर्शाता है।
    इन मठों ने न सिर्फ़ वैदिक ज्ञान और अद्वैत वेदांत का प्रचार-प्रसार किया, बल्कि सदियों तक भारत की आध्यात्मिक विरासत को जीवित रखा। आज भी ये मठ साधकों और जिज्ञासुओं के लिए ज्ञान, साधना और आत्मबोध के प्रमुख केंद्र हैं।

आदि शंकराचार्य न सिर्फ़ एक महान दार्शनिक थे, बल्कि एक समाज सुधारक भी थे। उन्होंने हिंदू धर्म को एकीकृत करने और वैदिक परंपराओं को पुनर्जीवित करने के लिए चार मठों की स्थापना की। इसके अलावा, उन्होंने चारधाम तीर्थ स्थलों का प्रचार भी किया, जो आज भी करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र हैं। 
क्या आपने कभी सोचा है कि भारत में स्थित चार धाम तीर्थ स्थलों का धार्मिक महत्व इतना खास क्यों है? हिंदू धर्म में इन चार धामों की यात्रा को मोक्ष प्राप्ति का मार्ग माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि इन तीर्थ स्थलों के दर्शन से जीवन के पाप कट जाते हैं और आत्मा को शांति मिलती है।

चार धामों की स्थापना महान आदि शंकराचार्य ने की थी, जो एक प्रसिद्ध वैदिक विद्वान थे। लोककथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु इन चार धामों में अलग-अलग रूपों में विराजमान हैं:

  •  रामेश्वरम में वह स्नान करते हैं,
  •  बद्रीनाथ में वह ध्यान लगाते हैं,
  •  पुरी में वह भोजन करते हैं और
  •  द्वारका में वह विश्राम करते हैं।
 चित्र स्रोत : Wikimedia 

 अब आइए, इन चार पवित्र धामों के बारे में विस्तार से जानते हैं:

  1. पुरी, ओडिशा (पूर्वी भारत): पुरी को भगवान विष्णु का पवित्र धाम माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि यहाँ के दर्शन करने से जीवन की पूर्णता प्राप्त होती है। यह तीर्थ ओडिशा राज्य में बंगाल की खाड़ी के किनारे स्थित है।
    यहाँ का मुख्य आकर्षण जगन्नाथ मंदिर है, जिसे 12वीं शताब्दी में बनाया गया था। इस मंदिर में भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की पूजा की जाती है। इसे स्थानीय लोग "श्री क्षेत्र" और मंदिर को "बड़ा देउला" भी कहते हैं। हर साल यहाँ रथ यात्रा का भव्य आयोजन होता है, जिसमें भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियों को विशाल रथों पर श्री गुंडिचा मंदिर तक ले जाया जाता है। लाखों श्रद्धालु इस यात्रा में शामिल होते हैं, जिससे यह दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक आयोजनों में से एक बन गया है।
चित्र स्रोत : Wikimedia 
  1. रामेश्वरम, तमिलनाडु (दक्षिण भारत): रामेश्वरम दक्षिण भारत का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है, जिसे भगवान शिव का धाम माना जाता है। यह तमिलनाडु में समुद्र के किनारे स्थित है और चार धामों में विशेष स्थान रखता है। यहाँ का मुख्य आकर्षण रामनाथस्वामी मंदिर है, जिसमें भगवान शिव का एक ज्योतिर्लिंग स्थापित है। मान्यता है कि यही वह स्थान है, जहाँ भगवान राम ने लंका जाने के लिए समुद्र पर रामसेतु का निर्माण किया था।  ऐसा कहा जाता है कि चार धाम की यात्रा तब तक पूरी नहीं मानी जाती, जब तक रामेश्वरम के दर्शन न कर लिए जाएँ। भक्त यहाँ अग्नितीर्थम में स्नान कर अपने पापों से मुक्ति पाने की प्रार्थना करते हैं।
चित्र स्रोत : Wikimedia 
  1. द्वारका, गुजरात (पश्चिम भारत): द्वारका पश्चिम भारत में स्थित एक पौराणिक नगरी है, जिसे भगवान कृष्ण की राजधानी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि मथुरा छोड़ने के बाद भगवान कृष्ण ने द्वारका को अपनी राजधानी बनाया था।  यहाँ का मुख्य आकर्षण द्वारकाधीश मंदिर है, जिसे "जगत मंदिर" भी कहा जाता है। यह मंदिर अरब सागर के किनारे स्थित है और अपनी भव्यता और धार्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। द्वारका में स्थित गोमती नदी का घाट और समुद्र का संगम स्थल भी श्रद्धालुओं के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र है। मान्यता है कि यहाँ स्नान करने से सभी पाप धुल जाते हैं।
चित्र स्रोत : Wikimedia 
  1. बद्रीनाथ, उत्तराखंड (उत्तर भारत): बद्रीनाथ उत्तराखंड के चमोली ज़िले में स्थित है। यह तीर्थ स्थल हिमालय की गोद में अलकनंदा नदी के किनारे बसा है।  यहाँ का मुख्य आकर्षण बद्रीनाथ मंदिर है, जो भगवान विष्णु को समर्पित है। यह मंदिर 3,133 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है और इसका निर्माण आदि शंकराचार्य ने 9वीं शताब्दी में कराया था। मान्यता है कि भगवान विष्णु ने यहाँ बद्री (जंगली बेर) का सेवन करते हुए कठोर तपस्या की थी, इसलिए इसका नाम बद्रीनाथ पड़ा। मंदिर के पास स्थित तप्त कुंड में श्रद्धालु स्नान करते हैं, जिसके बारे में मान्यता है कि इसके जल में पाप नाशक गुण हैं।
    चार धाम यात्रा को हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जीवन में एक बार इन चार पवित्र धामों की यात्रा अवश्य करनी चाहिए। इन तीर्थ स्थलों का धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व इतना गहरा है कि यहाँ आकर हर भक्त को आत्मिक शांति का अनुभव होता है।

संदर्भ 

https://tinyurl.com/26o8mrqb 

https://tinyurl.com/29qbrta4

https://tinyurl.com/2xkstg3s

मुख्य चित्र में अपने शिष्यों के साथ आदि शंकराचार्य | चित्र स्रोत : Wikimedia