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मेरठ के विद्यापीठों में आज भी विद्यार्थियों को आदि शंकराचार्य की गूढ़ शिक्षाओं से प्रेरित किया जाता है! शंकराचार्य का मानना था कि सच्ची भक्ति ही ईश्वर तक पहुँचने का सर्वोत्तम मार्ग है। उनके अनुसार, भक्ति के माध्यम से ही व्यक्ति आत्म-जागरूकता और आंतरिक शांति प्राप्त कर सकता है। इस विचारधारा के प्रचार के लिए उन्होंने भारत के चार दिशाओं में चार मठों (उत्तर में बद्रीनाथ, पश्चिम में द्वारका, पूर्व में पुरी और दक्षिण में श्रृंगेरी) की स्थापना की। ये चार धाम न केवल तीर्थ स्थल हैं, बल्कि भक्ति और शिक्षा के जीवंत केंद्र भी बने हुए हैं। आदि शंकराचार्य ने आस्था की शक्ति से लोगों को एकजुट किया। उन्होंने हिंदू दर्शन की जड़ों को पुनः सशक्त किया और ज्ञान व भक्ति के बीच अद्भुत संतुलन स्थापित किया। उनकी शिक्षाएँ यह दर्शाती हैं कि भक्ति और ज्ञान एक-दूसरे के पूरक हैं!
आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित ये मठ सिर्फ़ धार्मिक स्थल नहीं हैं, बल्कि वेदांत ज्ञान के संरक्षण और प्रचार के प्रतीक हैं। यहाँ हर वर्ष लाखों श्रद्धालु इन मठों में दर्शन के लिए आते हैं, जहाँ उन्हें आध्यात्मिक शांति और ज्ञान की अनुभूति होती है। आज उनकी जयंती के अवसर पर हम इस लेख में आदि शंकराचार्य के भक्ति और ज्ञान के अद्भुत सामंजस्य को समझेंगे। हम जानेंगे कि कैसे उन्होंने श्रद्धा (भक्ति) और बोध (ज्ञान) को मिलाकर एक संतुलित आध्यात्मिक मार्ग प्रस्तुत किया। साथ ही, उनके द्वारा स्थापित चार मठों की ऐतिहासिक और आध्यात्मिक भूमिका को भी जानेंगे, जो आज भी हिंदू परंपरा में पवित्रता और एकता के प्रतीक हैं।
अद्वैत वेदांत में ज्ञान को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है, लेकिन आदि शंकराचार्य ने सिर्फ़ ज्ञान ही नहीं, बल्कि भक्ति के महत्व को भी स्वीकार किया है। उनके अनुसार, आत्मा को परम सत्य का अनुभव तभी होता है, जब अहंकार का पूर्ण त्याग किया जाए—और इसके लिए भक्ति एक प्रभावी साधन है। शंकराचार्य की भक्ति रचनाएँ ईश्वर के प्रति समर्पण को केंद्र में रखती हैं। उनका मानना था कि केवल तर्क और विचार के सहारे आत्मज्ञान पाना संभव नहीं है। ईश्वर के प्रति प्रेम और श्रद्धा भी उतनी ही आवश्यक होता है। जब कोई व्यक्ति सच्चे समर्पण और श्रद्धा से भक्ति करता है, तो उसका अहंकार धीरे-धीरे विलीन होने लगता है। यही अहंकार आत्मज्ञान के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा बनता है।
भक्ति और ज्ञान का यह संतुलन आज भी लाखों साधकों को प्रेरित करता है। भक्ति मन को शुद्ध और निर्मल बनाती है, जिससे ज्ञान को आत्मसात करना सरल हो जाता है। वहीं, ज्ञान व्यक्ति को अंधविश्वास और संकीर्णता से मुक्त रखता है, जिससे भक्ति भटकाव का शिकार नहीं होती। शंकराचार्य का यह संतुलित दृष्टिकोण हमें सिखाता है कि आध्यात्मिक पथ पर आगे बढ़ने के लिए न तो सिर्फ़ ज्ञान पर्याप्त है और न ही सिर्फ़ भक्ति। सच्ची साधना के लिए दोनों का सहअस्तित्व आवश्यक है।
क्या आप जानते हैं कि आदि शंकराचार्य न सिर्फ़ एक महान दार्शनिक थे, बल्कि समाज सुधारक भी थे? उन्होंने हिंदू धर्म को एकजुट करने और उसकी परंपराओं को संरक्षित रखने के लिए कई क्रांतिकारी कदम उठाए। इसी क्रम में उन्होंने भारत के चारों दिशाओं में चार प्रमुख मठों की स्थापना की, जो आज भी वैदिक ज्ञान और आध्यात्मिक साधना के केंद्र हैं।
आइए, इन चारों मठों के बारे में विस्तार से जानते हैं:
ज्योतिर्मठ (उत्तराम्नाय पीठ) – यह मठ उत्तराखंड के जोशीमठ (चमोली ज़िले) में स्थित है! इसे उत्तर भारत का प्रमुख आध्यात्मिक केंद्र माना जाता है। इसके पहले शंकराचार्य श्री तोटकाचार्य थे। यह मठ अथर्ववेद से जुड़ा है और इसके अंतर्गत दशनामी संप्रदाय की तीन शाखाएँ – गिरि, पर्वत और सागर संप्रदाय आती हैं।
आदि शंकराचार्य न सिर्फ़ एक महान दार्शनिक थे, बल्कि एक समाज सुधारक भी थे। उन्होंने हिंदू धर्म को एकीकृत करने और वैदिक परंपराओं को पुनर्जीवित करने के लिए चार मठों की स्थापना की। इसके अलावा, उन्होंने चारधाम तीर्थ स्थलों का प्रचार भी किया, जो आज भी करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र हैं।
क्या आपने कभी सोचा है कि भारत में स्थित चार धाम तीर्थ स्थलों का धार्मिक महत्व इतना खास क्यों है? हिंदू धर्म में इन चार धामों की यात्रा को मोक्ष प्राप्ति का मार्ग माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि इन तीर्थ स्थलों के दर्शन से जीवन के पाप कट जाते हैं और आत्मा को शांति मिलती है।
चार धामों की स्थापना महान आदि शंकराचार्य ने की थी, जो एक प्रसिद्ध वैदिक विद्वान थे। लोककथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु इन चार धामों में अलग-अलग रूपों में विराजमान हैं:
अब आइए, इन चार पवित्र धामों के बारे में विस्तार से जानते हैं:
संदर्भ
मुख्य चित्र में अपने शिष्यों के साथ आदि शंकराचार्य | चित्र स्रोत : Wikimedia