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मेरठ का सिक्कों का इतिहास बहुत ही रोचक है, जो प्राचीन, मध्यकाल और औपनिवेशिक काल के बीच फैला हुआ है। हस्तिनापुर में हुई खुदाई में प्राचीन सभ्यताओं के पंच चिह्नित सिक्के मिले हैं, जबकि कुषाण, यौधेय और दिल्ली सल्तनत के राज्य के दौरान के सिक्के, इस शहर की बदलती हुई अर्थव्यवस्था को दर्शाते हैं। अकबर के शासनकाल में, मेरठ की टकसाल ने तांबे का “दाम” सिक्का तैयार किया, जिसका आज भी हिंदी में “दाम क्या है?” जैसे वाक्य में इस्तेमाल होता है। बाद में, 19वीं सदी में, मेरठ एक बैंकिंग हब बन गया, जहां बैंक ऑफ़ अपर इंडिया (The Bank of Upper India) और नॉर्थ वेस्टर्न बैंक ऑफ़ इंडिया (The North Western Bank of India) जैसी संस्थाओं का मुख्यालय था। तो आज हम हस्तिनापुर में हुई खुदाई में पाए गए विभिन्न सिक्कों के बारे में जानेंगे।
फिर हम अकबर के शासनकाल में मेरठ में जारी किए गए सिक्कों पर चर्चा करेंगे। इसके बाद, हम बैंक ऑफ़ अपर इंडिया के इतिहास के बारे में जानेंगे, इसके स्थापना और ब्रिटिश भारत में इसकी भूमिका को समझेंगे। अंत में, हम इस बैंकिंग संस्थान के आर्थिक महत्व को विस्तार से जानेंगे।
हस्तिनापुर में हुई खुदाई में पाए गए सिक्के
हस्तिनापुर, जो मेरठ ज़िले के मावन तहसील में स्थित है, दिल्ली से लगभग 90 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में और मेरठ से 37 किलोमीटर दूर है, वहां 1950-1952 के बीच खुदाई की गई। यह स्थल महाभारत जैसे प्राचीन ग्रंथों में उल्लेखित है, और इसे “भीम युद्ध” (महाभारत के युद्ध) से संबंधित स्थल माना जाता है। खुदाई के दौरान यहां पांच अलग-अलग कालखंडों के अवशेष पाए गए हैं, जिनमें कुछ कालखंडों के बीच अंतराल था।
1. कालखंड I: इस काल में केवल एक सीमित क्षेत्र की खुदाई की गई थी। इस समय की मुख्य मिट्टी की वस्तुएं ओचर रंग की मिटी (OCP) थी। यह मिट्टी अच्छी तरह से पकी हुई नहीं थी और इसे रंगने के लिए नारंगी-लाल रंग का इस्तेमाल किया गया था। इस काल के बाद, यह स्थल कुछ समय के लिए वीरान हो गया था।
2. कालखंड II: इस काल का प्रमुख तत्व है पेंटेड ग्रे वेयर (PGW)। इन मिट्टी के बर्तनों पर काले रंग में चित्रकारी की जाती थी, और कभी-कभी चॉकलेट या लाल-भूरा रंग भी इस्तेमाल होता था। बर्तनों पर चित्रकला में वर्तिका, लकीरें, डॉट्स, सर्पिल, और स्वस्तिक जैसी आकृतियाँ होती थीं। इस काल में कई महत्वपूर्ण वस्तुएं मिलीं, जैसे ताम्र बाण के नोक, कांस्य की छड़ें, कांच की चूड़ियाँ, मिट्टी की जानवरों की मूर्तियाँ, और अनाज के जलने के अवशेष।
3. कालखंड III: इस काल में फिर से बस्तियां बसने लगीं थीं । इस काल का प्रमुख बर्तन प्रकार उत्तर-दक्षिण काले रंग का चिकना बर्तन (NBPW) था। इसके अलावा, लाल और ग्रे बर्तनों का भी उपयोग किया जाता था। खुदाई करने पर यहाँ चूने और मिट्टी के बर्तन, और मिट्टी के कुएं, नालियाँ जैसी संरचनाएँ मिलीं। इस काल में ताम्र और चांदी के पंच चिह्नित सिक्के और बिना लिखे ढाले गए सिक्के पाए गए, जो आर्थिक प्रगति को दर्शाते हैं। इस काल में बस्ती एक बड़ी आग से नष्ट हो गई थी।
4. कालखंड IV: इस काल में लाल मिट्टी के बर्तनों का उपयोग किया गया, जिन पर काले रंग से डिज़ाइन बने थे। यहाँ की खुदाई करने पर इस काल की कई महत्वपूर्ण वस्तुएं मिलीं, जैसे कांस्य की छड़ें, सिक्के, मिट्टी की मूर्तियाँ और एक महत्वपूर्ण बोधिसत्व मैत्रेय की मूर्ति। उस ज़माने में में कुशाण राजा वासुदेव, यौधेय और मथुरा के राजाओं के सिक्के चलते थे ।
5. कालखंड V: एक लंबे अंतराल के बाद इस काल में फिर से बस्ती बसाई गई। खुदाई से इस काल से संबंधित लाल मिट्टी के बर्तन (कभी-कभी चमकदार), जलती हुई ईंटों के अवशेष, लोहे के बर्तन, और बलबन (1266-87 ई.) के सिक्के पाए गए।
अकबर के शासनकाल में मेरठ में ढाले गए सिक्के
यह सिक्के, 1/40 रुपये के मूल्य के होते थे और इन्हें “दाम” कहा जाता था। आज भी हम जब किसी चीज़ की कीमत पूछते हैं, तो “दाम क्या है?” कहते हैं। अकबर का शासनकाल 1556 से 1605 ई. तक था। दिलचस्प बात यह है कि अकबर के पास एक मोबाइल मिंट (सिक्के ढालने का उपकरण) था, जिसे वह अपनी सेना को पैसे देने के लिए चलते-फिरते इस्तेमाल करते थे। उनकी सेना सब कुछ खरीदने के लिए पैसे देती थी, जबकि ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता। मेरठ में स्थित मिंट शायद जली खोटी क्षेत्र में थी ।
बैंक ऑफ़ अपर इंडिया का परिचय
बैंक ऑफ़ अपर इंडिया की स्थापना, 1863 में ब्रिटिश भारत में की गई थी। यह बैंक, 1913 में विलीन हो गया, जब इसे शिमला के अलायंस बैंक (Alliance Bank of Simla) द्वारा अधिग्रहित कर लिया गया।
संदर्भ
मुख्य चित्र में "अकबर के शासनकाल के दौरान मुग़ल साम्राज्य की तांबे की दाम मुद्राएँ, एक निजी संग्रह से, 8 जून 2023 को ली गई तस्वीर।" का स्रोत : Wikimedia
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