कम लाभ, कई मुश्किलें — फिर भी क्यों नहीं छोड़ पा रहे प्रतापगढ़ के किसान आंवला?

निवास स्थान
16-07-2025 09:32 AM
कम लाभ, कई मुश्किलें — फिर भी क्यों नहीं छोड़ पा रहे प्रतापगढ़ के किसान आंवला?

क्या आप जानते हैं कि फ़िलैंथस एम्ब्लिका (Phyllanthus emblica), जिसे आमतौर पर आंवला या इंडियन गूज़बेरी (Indian gooseberry) कहा जाता है, भारत की एक महत्वपूर्ण फ़सल है? इसमें सबसे ज़्यादा विटामिन-C (700 मिग्रा प्रति 100 ग्राम) पाया जाता है और यह लीवर के लिए लाभदायक है। उत्तर प्रदेश का प्रतापगढ़, आंवला उत्पादन में अग्रणी है, जहां के आंवले का उपयोग, मिठाइयों और दवाओं में होता है। आंवला से बने उत्पादों में च्यवनप्राश, त्रिफ़ला चूर्ण और ब्रह्म रसायण शामिल हैं। प्रतापगढ़ की मिट्टी में आंवले की ख़ुशबू बसती है — ऐसी ख़ुशबू जो न केवल मिठास और औषधीय गुणों से भरपूर है, बल्कि परंपरा और आत्मविश्वास से भी। दशकों से यह ज़िला उत्तर प्रदेश ही नहीं, बल्कि पूरे देश में आंवला उत्पादन का एक भरोसेमंद केंद्र रहा है। यहां के बाग़-बग़ीचों में लहलहाते आंवले न केवल स्वाद देते हैं, बल्कि स्वास्थ्य का भी प्रतीक हैं। च्यवनप्राश हो या त्रिफ़ला, कैंडी हो या रस — प्रतापगढ़ का आंवला हर रूप में अपना असर छोड़ता है। परंतु बदलते समय के साथ परिस्थितियाँ भी बदली हैं। 

इस लेख में सबसे पहले, हम जानेंगे कि भारत में आंवला की खेती किस प्रकार की जाती है और इसकी प्रमुख किस्में कौन-कौन सी हैं। इसके बाद, हम पढ़ेंगे कि आंवला में ऐसे कौन से औषधीय गुण होते हैं जो इसे इतना खास बनाते हैं। फिर, हम यह देखेंगे कि प्रतापगढ़ में आंवला उत्पादन की वर्तमान स्थिति क्या है और समय के साथ इसमें गिरावट क्यों आई है। आगे बढ़ते हुए, हम समझेंगे कि यहां के किसानों को किन आर्थिक व व्यवस्थागत चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

भारत में आंवला की खेती और प्रमुख किस्मों का संक्षिप्त परिचय

भारत में आंवला (Phyllanthus emblica) को एक पारंपरिक, औषधीय और पोषण से भरपूर फल के रूप में जाना जाता है, जिसकी खेती अब वाणिज्यिक स्तर पर तेज़ी से बढ़ रही है। यह बहुउपयोगी फल शुष्क, अर्द्ध-शुष्क, क्षारीय और लवणीय मिट्टी में भी आसानी से पनपता है, जिससे यह विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में अनुकूल रहता है। इसकी व्यापक खेती मुख्यतः उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र में की जाती है। भारत में आंवला की कई किस्में उगाई जाती हैं — जैसे चकैया, फ़्रांसिस, बनारसी, कंचन (NA-4), कृष्णा (NA-5), NA-6, NA-7, NA-9 और NA-10।

चकैया आंवला हर वैकल्पिक वर्ष में अच्छी उपज देता है, लेकिन इसके फल अपेक्षाकृत छोटे और अधिक रेशेदार होते हैं। इसकी विशेषता यह है कि यह लंबे समय तक खेत में बना रहता है और सीमांत किसानों के लिए कम रखरखाव में भी उपज देता है।

फ़्रांसिस आंवला मूल्यवर्धित उत्पादों के निर्माण हेतु उपयुक्त माना जाता है और इसका उपयोग आंवला कैंडी, रस, पाउडर और अर्क बनाने में किया जाता है। यह किस्म बड़े आकार के फलों के कारण प्रसंस्करण इकाइयों के लिए लाभकारी मानी जाती है।

बनारसी आंवला एक जल्दी पकने वाली किस्म है, जिसके फल बड़े और चिकने होते हैं, परंतु इसका रेशा अधिक होने के कारण यह संरक्षण के लिए कम उपयुक्त मानी जाती है। यह मुख्यतः ताज़ा उपयोग के लिए उपयोगी होती है।

NA-9 और NA-10 जैसी नई किस्में जल्दी परिपक्व हो जाती हैं और इनका उपयोग जैम, जेली, च्यवनप्राश और अन्य प्रसंस्कृत उत्पादों में बड़े पैमाने पर होता है। इनके फलों का रंग, रेशादार संरचना और रस की मात्रा इन्हें व्यावसायिक दृष्टिकोण से श्रेष्ठ बनाती है।

आंवला की औषधीय महत्ता

आंवला केवल एक फल नहीं, बल्कि भारतीय चिकित्सा और पोषण परंपरा का एक अनमोल स्तंभ है। यह विटामिन C का अत्यधिक समृद्ध स्रोत है — लगभग 700 मिग्रा प्रति 100 ग्राम, जो इसे प्रतिरक्षा तंत्र को मज़बूत बनाने में अत्यंत प्रभावी बनाता है। यह फल लीवर, हृदय, त्वचा और आँखों के लिए भी लाभकारी माना गया है। आंवला का सेवन प्राचीन समय से च्यवनप्राश, त्रिफ़ला चूर्ण, ब्रह्म रसायण जैसे आयुर्वेदिक उत्पादों के रूप में किया जाता रहा है। इसके अतिरिक्त, यह बालों की देखभाल, रक्त शुद्धिकरण, मधुमेह नियंत्रण और पाचन सुधार में भी उपयोगी सिद्ध हुआ है। यह फल एंटीऑक्सीडेंट्स (Antioxidants), आयरन (iron), कैल्शियम (calcium), और फाइबर (fiber) जैसे तत्वों से भरपूर होता है। आंवला में मौजूद 'गैलिक एसिड (Gallic acid)' और 'एलाजिक एसिड (Ellagic acid)' जैसी यौगिकें कैंसर रोधी भी मानी जाती हैं। इसके नियमित सेवन से शारीरिक थकान में कमी, मानसिक सजगता में वृद्धि और रोगों से लड़ने की क्षमता में इज़ाफा देखा गया है।

प्रतापगढ़ में आंवला उत्पादन की वर्तमान स्थिति और गिरावट के कारण

प्रतापगढ़ कभी आंवला उत्पादन का एक सशक्त केंद्र था — यहाँ लगभग 12,000 हेक्टेयर भूमि पर आंवले की खेती होती थी। आज यह क्षेत्र घटकर 7,000 हेक्टेयर तक सीमित रह गया है। इसके बावजूद प्रतिवर्ष यहां लगभग 8,00,000 क्विंटल आंवला उत्पादित होता है, जो राज्य के कुल उत्पादन का लगभग 80% है। लेकिन विगत कुछ वर्षों में इस क्षेत्र में निरंतर गिरावट देखी गई है। इसके पीछे कई कारण रहे हैं:

  • पुराने आंवला बाग़ों की उम्र अधिक हो जाने के कारण उनकी उत्पादकता कम हो गई है। फल धीरे-धीरे छोटे और कम रसदार होने लगे हैं, जिससे बाज़ार में उनकी मांग घटी है।
  • पेस्टालोटिया क्रुएंटा नामक रोग ने फसलों को बुरी तरह प्रभावित किया, जिससे लगभग 25–30% तक उत्पादन घटा है। इस रोग की पहचान देर से होती है और किसान अक्सर इसे रोग नहीं समझकर खाद की कमी मान लेते हैं।
  • किसानों का झुकाव अब केला जैसी अधिक लाभकारी फसलों की ओर बढ़ गया है, जिनसे तत्काल और निश्चित आमदनी मिलती है। वहीं आंवला फसल का बाज़ार मूल्य अनिश्चित रहता है, जिससे उन्हें घाटा उठाना पड़ता है।

आंवला किसानों की प्रमुख चुनौतियाँ और सरकारी योजनाओं की सीमाएँ

प्रतापगढ़ के आंवला किसान केवल प्राकृतिक समस्याओं से नहीं जूझ रहे, बल्कि वे कई आर्थिक और व्यवस्थागत चुनौतियों से भी दो-चार हो रहे हैं। सबसे बड़ी समस्या है उचित बाज़ार मूल्य का अभाव। आंवला किसानों को उनकी उपज का सही दाम नहीं मिल पाता, जिससे लाभ मार्जिन बहुत कम हो जाता है। खुले बाज़ार में बिचौलियों की मनमानी से किसान निर्भर हो जाते हैं। प्रसंस्करण इकाइयों की कमी के चलते किसानों को अपनी उपज कच्चे रूप में ही बेचनी पड़ती है, जिससे मूल्यवर्धन का लाभ नहीं मिल पाता। यदि स्थानिक स्तर पर यूनिट लगें, तो किसान स्वयं आंवला जूस, कैंडी या पाउडर तैयार कर अधिक लाभ पा सकते हैं। किसान ज़्यादातर आढ़तियों और बिचौलियों पर निर्भर होते हैं, जिससे उन्हें बाज़ार में स्वतंत्रता नहीं मिलती। ना ही कोई न्यूनतम समर्थन मूल्य तय है, जिससे दाम हर वर्ष अनिश्चित रहते हैं।

हालांकि राज्य सरकार की 'एक ज़िला, एक उत्पाद' (ODOP) योजना के अंतर्गत प्रतापगढ़ को आंवला उत्पाद के रूप में चयनित किया गया है, लेकिन ज़मीनी स्तर पर इसका असर न्यूनतम रहा है। ना ही प्रशिक्षण कार्यक्रम चले, ना ही विपणन सहायता सुनिश्चित हो पाई। इसके साथ ही, किसानों को आधुनिक उपकरण, कीट-नियंत्रण सहायता, या बीमा योजना जैसी सुरक्षा भी नहीं मिल पाई है, जिससे उनका जोखिम और बढ़ जाता है।

संदर्भ-

https://tinyurl.com/56pr7web 

पिछला / Previous


Definitions of the Post Viewership Metrics

A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.

B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.

C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.

D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.