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मेरठवासियो, क्या आपने कभी इस बात पर गौर किया है कि आपके घर की रौशनी, स्कूलों की मशीनें, अस्पतालों का जीवनरक्षक उपकरण, और फैक्ट्रियों की आवाज़ें किस आधार पर चलती हैं? ये सब किसी अदृश्य शक्ति के भरोसे चलते हैं — और वह है ऊर्जा, जो बड़े हिस्से में आज भी कोयले से मिलती है। भारत की कोयला खनन यात्रा केवल खदानों और मशीनों की कहानी नहीं है, बल्कि यह उस परिवर्तनशील भारत की गाथा है, जिसने अंधेरे से उजाले की ओर कदम बढ़ाए। मेरठ, चाहे खुद कोयले के भंडारों से दूर हो, लेकिन यहां के पंखे, लिफ्ट, ट्रेनें और इंडस्ट्रियल यूनिट्स तक कोयले की ऊर्जा की गर्मी पहुंचती है — यह ऊर्जा भले ही दिखती नहीं, पर हर दिन हमारे जीवन को गति देती है। खासकर रेलवे स्टेशन जैसे प्रमुख केंद्रों पर, जहां कभी कोयले से चलने वाली इंजनें धुआँ उड़ाती थीं, और आज भी बिजली से चलने वाली ट्रेनों के पीछे कहीं-न-कहीं कोयला आधारित पावर प्लांट्स हैं।
हम जब मेरठ में विकास की बात करते हैं — चाहे वह नयी कालोनियाँ हों, नए व्यापारिक संस्थान हों या स्मार्ट मीटरों से सजी गलियाँ — तब यह समझना आवश्यक हो जाता है कि इन सबकी नींव में ऊर्जा की वह कड़ी मौजूद है, जिसकी शुरुआत कोयला खनन से होती है। इसलिए आज हम जब जलवायु परिवर्तन, नवीकरणीय ऊर्जा और सतत विकास की बात करते हैं, तो यह भी जानना जरूरी है कि कोयला का क्या इतिहास रहा है, उसकी मौजूदा भूमिका क्या है, और क्या वह आने वाले वर्षों में मेरठ जैसे शहरों के ऊर्जा भविष्य को प्रभावित करता रहेगा या नहीं। भारत में कोयला खनन की गहराइयों में न केवल ऊर्जा उत्पादन की क्षमता छिपी है, बल्कि एक ऐतिहासिक यात्रा भी जो हमारे आर्थिक, तकनीकी और सामाजिक विकास की कहानी कहती है। ऐसे में यह जानना ज़रूरी है कि भारत में कोयला खनन कहाँ से शुरू हुआ, उसकी स्थिति क्या है, और भविष्य में यह हमें कैसे प्रभावित करेगा।
आज के इस लेख में हम सबसे पहले यह समझेंगे कि भारत में कोयला खनन की ऐतिहासिक शुरुआत कैसे हुई और ब्रिटिश शासन में इसके क्या मायने थे। फिर हम जानेंगे कि भारत वैश्विक स्तर पर कोयले के उत्पादन और खपत के संदर्भ में कहाँ खड़ा है। इसके बाद, हम भारत के कुल कोयला भंडार, उसकी गहराई और उपलब्धता की स्थिति पर नज़र डालेंगे और यह देखेंगे कि हमारे पास यह संसाधन कितने समय तक और रहेगा। अंत में, हम कोयला खनन से जुड़ी कुछ पर्यावरणीय व तकनीकी चुनौतियों की चर्चा करेंगे, जो इस क्षेत्र के भविष्य को प्रभावित कर रही हैं।
भारत में कोयला खनन का ऐतिहासिक विकास
भारत में कोयला खनन का इतिहास आधुनिक नहीं, बल्कि गहराई से ऐतिहासिक है। हज़ारों साल पहले चीन और रोमन साम्राज्य में कोयले का प्रयोग सतही खनन के ज़रिए होता था। भारत में कोयले का व्यवस्थित दोहन ब्रिटिश काल में प्रारंभ हुआ। 1774 में ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारियों जॉन सुमनेर और सुएटोनियस ग्रांट हीटली ने बिहार के रानीगंज में दामोदर नदी के किनारे पहली कोयला खदान स्थापित की। हालांकि मांग की कमी के कारण लगभग एक शताब्दी तक इस क्षेत्र में धीमी प्रगति रही। लेकिन जैसे ही 1853 में भाप इंजनों का आगमन हुआ, कोयले की माँग में तीव्र वृद्धि हुई और उत्पादन 1 मिलियन मीट्रिक टन सालाना तक पहुँच गया। 1900 तक यह आँकड़ा 6.12 मिलियन मीट्रिक टन और 1920 तक 18 मिलियन मीट्रिक टन तक पहुँच गया। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान कोयले की आवश्यकता और अधिक बढ़ी। ब्रिटिश भारत में बिहार, बंगाल और ओडिशा में भारतीय खनिकों ने 1894 के बाद खनन के क्षेत्र में प्रवेश किया, जिससे यूरोपीय कंपनियों का एकाधिकार धीरे-धीरे टूटने लगा। खासकर झरिया और धनबाद जैसे क्षेत्रों में कई स्वदेशी खदानें स्थापित की गईं। मेरठ जैसे शहर भले सीधे खनन क्षेत्र में न आते हों, पर इस ऊर्जा की आपूर्ति से इनकी विकास प्रक्रिया जुड़ी रही है — विशेषकर बिजली, परिवहन और उद्योगों में।
भारत का कोयला उत्पादन और वैश्विक स्थिति में उसका स्थान
भारत, कोयला उत्पादन और खपत दोनों के मामले में विश्व के प्रमुख देशों में शामिल है। चीन के बाद भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कोयला उत्पादक और उपभोक्ता देश है। वर्ष 2022 में भारत ने 777.31 मिलियन मीट्रिक टन कोयले का खनन किया। वहीं, 2012 में भारत ने 595 मिलियन टन उत्पादन किया था जो कि वैश्विक उत्पादन का लगभग 6% था। भारत में बिजली उत्पादन का लगभग 68% हिस्सा कोयले पर आधारित है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि यह देश की ऊर्जा रीति का एक केंद्रीय स्रोत है। दुनिया के कुल कोयला भंडार में भारत की हिस्सेदारी लगभग 9% है, जिससे वह अमेरिका, रूस, ऑस्ट्रेलिया और चीन के बाद पाँचवें स्थान पर आता है। दिलचस्प बात यह है कि भारत, कोयला उत्पादक होने के बावजूद, अपनी मांग का लगभग 30% हिस्सा आयात करता है — विशेषकर उच्च GCV (ग्रोस कैलोरिफिक वैल्यू) वाले कोयले की गुणवत्ता को ध्यान में रखते हुए। मेरठ जैसे शहरों के उद्योग और रेलवे स्टेशनों की ऊर्जा आवश्यकता भी इस उत्पादन प्रणाली से ही पूरी होती रही है। यह संबंध एक अदृश्य लेकिन मज़बूत ऊर्जा-संरचना बनाता है।
भारत में कोयले का कुल भंडार और भविष्य की ऊर्जा सुरक्षा
2016-17 में किए गए भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के अनुसार, भारत के पास 315.149 बिलियन टन अनुमानित कोयला संसाधन हैं। ये भंडार देश के कई हिस्सों में फैले हुए हैं, जिनमें झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़ प्रमुख हैं। रिपोर्टों के अनुसार भारत के कुल संसाधनों में से लगभग 60% भंडार 300 मीटर से कम गहराई पर हैं, जिनका अधिकतर दोहन किया जा चुका है या किया जा रहा है। भारत की वर्तमान खपत दर को देखते हुए योजना आयोग ने बताया कि ज्ञात कोयला भंडार अगले 45–50 वर्षों तक ही चल पाएंगे। इस आकलन में यह भी सामने आया है कि यदि कोयले की खपत 5% की वार्षिक दर से बढ़ती है, तो भंडार की उम्र और भी कम हो सकती है। कोल इंडिया लिमिटेड (CIL) जैसी सरकारी कंपनियों द्वारा अभी अधिकतर सतही कोयला खनन किया जाता है और गहरी खानों की खोज या दोहन की योजना सीमित है। मेरठ जैसे शहरों की ऊर्जा निर्भरता को देखते हुए यह चिंता का विषय है कि भविष्य में कहीं यह आपूर्ति संकट में न आ जाए। इसलिए कोयले की खपत और भंडारण पर पुनर्विचार की आवश्यकता है।
कोयला खनन से जुड़ी पर्यावरणीय और तकनीकी चुनौतियाँ
कोयला खनन जहाँ ऊर्जा का स्रोत है, वहीं यह पर्यावरण के लिए भी एक बड़ी चुनौती बन चुका है। खुले में खनन के कारण भूमि क्षरण, वनों की कटाई और जल स्रोतों में प्रदूषण जैसी समस्याएं बढ़ती जा रही हैं। भारत में लगभग 90% कोयला उत्पादन 200 मीटर से कम गहराई की खुली खदानों से होता है, जिससे सतह पर पर्यावरणीय असर अधिक होता है। कोल इंडिया जैसी कंपनियाँ गहरी खानों के दोहन में अभी तकनीकी रूप से पिछड़ी हैं या निवेश की कमी से पीछे हैं। तकनीकी रूप से, भारत को उन देशों की तुलना में उन्नति की आवश्यकता है जो भूमिगत खनन के माध्यम से गहराई से कोयले का निष्कर्षण करते हैं। इसके अलावा, अधिक GCV वाले कोयले के लिए आयात पर निर्भरता यह दर्शाता है कि घरेलू कोयले की गुणवत्ता में सुधार की गुंजाइश है। मेरठ जैसे क्षेत्र पर्यावरणीय प्रभावों को भले सीधे न झेलते हों, लेकिन जलवायु परिवर्तन और ऊर्जा मूल्य में अस्थिरता से अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होते हैं। इसलिये, यह आवश्यक है कि कोयला खनन तकनीक को अपग्रेड किया जाए और पर्यावरणीय सुरक्षा को प्राथमिकता दी जाए।
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