मेरठ की यादों में महक: गंधों की स्मृति और मनोविज्ञान का अद्भुत मेल

गंध- ख़ुशबू व इत्र
20-08-2025 09:34 AM
मेरठ की यादों में महक: गंधों की स्मृति और मनोविज्ञान का अद्भुत मेल

मेरठवासियों, क्या आपने कभी किसी पुरानी महक को अचानक महसूस कर के खुद को बरसों पीछे पाया है? जैसे सदर बाजार की गलियों में बहती इत्र की भीनी-भीनी खुशबू, या दादी के हाथों की बनी तहरी की वो घरेलू महक - ये सब महज़ गंध नहीं, बल्कि हमारे भीतर गहरे बसे अनुभवों की चाबी हैं। मेरठ, जो न केवल स्वतंत्रता संग्राम का गवाह रहा है बल्कि अपनी सांस्कृतिक विविधता और पारंपरिक जीवनशैली के लिए भी जाना जाता है, वहाँ की गंधें हमारी यादों की थाती बन चुकी हैं। आज विज्ञान भी इस बात को मानता है कि गंध सिर्फ़ सुगंध नहीं, बल्कि वह हमारी भावनाओं, स्मृतियों और रिश्तों की सबसे गहरी परतों से जुड़ी होती है। ऐसे में जब हम आधुनिकता की ओर तेज़ी से बढ़ रहे हैं, तब यह समझना ज़रूरी हो जाता है कि मेरठ जैसे शहर में गंध का यह भावनात्मक और सांस्कृतिक पहलू हमारी सामूहिक पहचान का हिस्सा क्यों है। 
इस लेख में हम गंध और स्मृति के गहरे संबंध को चार प्रमुख पहलुओं में समझने का प्रयास करेंगे। सबसे पहले, हम यह जानने की कोशिश करेंगे कि घ्राण स्मृति किस प्रकार वर्षों बाद भी किसी विशेष गंध के माध्यम से बीते पलों को जीवंत कर देती है। फिर हम यह पढ़ेंगे कि घ्राण तंत्र और मस्तिष्क के बीच क्या वैज्ञानिक संबंध होता है, और कैसे गंधें हमारी यादों और भावनाओं को इतनी तीव्रता से प्रभावित करती हैं। तीसरे हिस्से में हम प्राउस्ट प्रभाव की चर्चा करेंगे, जो बताता है कि एक मामूली सी गंध भी कैसे अचानक गहरे भावनात्मक अनुभवों को जगा सकती है। अंत में, हम देखेंगे कि मेरठ जैसे सांस्कृतिक नगर में गंधें कैसे सिर्फ इंद्रिय अनुभव नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान का भी अभिन्न अंग रही हैं, चाहे वह इत्र की गलियाँ हों, पारंपरिक व्यंजन हों या धार्मिक अवसरों की महक।

घ्राण स्मृति: गंधों से जुड़ी यादों की ताक़त
गंध की शक्ति हमें समय की सीमा पार कर सीधे अतीत की किसी खास स्मृति में ले जाती है। जैसे ही किसी पुराने इत्र, बारिश की भीगी मिट्टी या किसी प्रियजन के कपड़े की सुगंध हमारे आसपास आती है, हमारे मस्तिष्क में उनसे जुड़ी घटनाएँ, दृश्य और भावनाएँ तुरंत सक्रिय हो जाती हैं। यह प्रतिक्रिया इतनी तेज़ और प्रभावशाली होती है कि वह हमें क्षण भर में हमारे बचपन, किसी ख़ास रिश्ते या भूले-बिसरे अनुभवों की गोद में पहुँचा देती है। वैज्ञानिकों का मानना है कि घ्राण प्रणाली सीधे मस्तिष्क के उन हिस्सों से जुड़ी होती है जहाँ भावनाएँ और दीर्घकालिक स्मृतियाँ संग्रहित रहती हैं, जैसे अमिगडाला और हिप्पोकैम्पस। बच्चों और नवजातों में यह घ्राण स्मृति और भी शक्तिशाली होती है, नवजात अपनी माँ को महज उसकी महक से पहचान लेते हैं, इससे पहले कि वे आँखें पूरी तरह खोलें। मेरठ के बुज़ुर्ग जब बाज़ार में चलते हुए गुड़, शुद्ध घी या देशी मसालों की महक महसूस करते हैं, तो वह केवल स्वाद की बात नहीं होती, वह पूरा एक जीवन का अनुभव होता है, जिसमें दादी की रसोई, माँ के हाथों की रोटियाँ और त्योहारों की वह अनमोल मिठास समाई होती है।

मस्तिष्क और घ्राण तंत्र का संबंध: वैज्ञानिक दृष्टिकोण
गंध की अनुभूति केवल एक संवेदना नहीं, बल्कि एक अत्यंत जटिल और गहन न्यूरोलॉजिकल (neurological) प्रक्रिया है। जब हम कोई गंध महसूस करते हैं, तो हमारी नाक के भीतर मौजूद घ्राण रिसेप्टर्स (olfactory receptors) गंध के अणुओं को पहचानते हैं और उनका सिग्नल 'घ्राण बल्ब' (olfactory bulb) के ज़रिए मस्तिष्क तक पहुँचाते हैं। यह संकेत पारंपरिक इंद्रियों की तुलना में अलग रास्ता अपनाता है, यह थैलेमस (thalamus) जैसे मध्यवर्ती केंद्र को बायपास करके सीधे लिंबिक सिस्टम (limbic system), विशेष रूप से अमिगडाला (Amygdala) और हिप्पोकैम्पस (Hippocampus) तक पहुँचता है, जो भावनाओं और स्मृतियों का नियंत्रण केंद्र हैं। यही कारण है कि गंधों से जुड़ी यादें न केवल तेज़ होती हैं बल्कि अत्यधिक भावनात्मक भी होती हैं। मेरठ जैसे सांस्कृतिक शहर की गलियों में चलते हुए जब गुलाब जल, चंदन या रजनीगंधा की महक हवा में तैरती है, तो वह किसी मंदिर में बिताए गए बचपन के शाम, शादी-ब्याह के पलों या किसी प्रिय की अंतिम विदाई तक की भावनाओं को जगा देती है। यह विज्ञान की एक सुंदर मिसाल है कि कैसे हमारी चेतना गंध के माध्यम से भावनात्मक और मानसिक यात्रा पर निकल पड़ती है।

गंध और भावनात्मक अनुभव: प्राउस्ट प्रभाव (Proust Phenomenon)
फ्रांसीसी लेखक मार्सेल प्राउस्ट (Marcel Proust) ने अपनी रचना में जिस "प्राउस्ट इफेक्ट" (Proust Effect) का वर्णन किया है, वह अब वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित हो चुका है। यह सिद्धांत बताता है कि कैसे एक साधारण-सी गंध अचानक हमारे मन में पुरानी, कभी न भूलने वाली भावनाओं और यादों की लहरें ला सकती है। अमेरिकी न्यूरोसाइंटिस्ट डॉ. रेचल हर्ज़ (Neuroscientist Dr. Rachel Herz) और अन्य शोधकर्ताओं ने यह पाया कि गंधों से जुड़ी स्मृतियाँ अन्य इंद्रियों से उत्पन्न यादों की तुलना में अधिक स्पष्ट, दीर्घकालिक और भावनात्मक रूप से तीव्र होती हैं। उदाहरण के लिए, मेरठ के किसी व्यक्ति को जब किसी ढाबे से आ रही देसी परांठों की महक आती है, तो उसे फौरन अपनी दादी की रसोई की याद आ जाती है, गर्म परांठे, सफेद मक्खन की गंध और लकड़ी के चूल्हे की हल्की-सी राख की महक। ये गंधें केवल स्वाद का अनुभव नहीं, बल्कि उस समय की सुरक्षा, प्रेम और अपनापन का भाव लेकर आती हैं। यही कारण है कि गंध हमारे मन में केवल सूचना नहीं छोड़ती, बल्कि पूरी की पूरी भावनात्मक स्थिति को जीवित कर देती है, वह भी एक ही सांस में।

गंध की सामाजिक और सांस्कृतिक भूमिका: अनुभव और स्मृति का साझा पहलू
गंध केवल एक व्यक्तिगत अनुभूति नहीं है, बल्कि यह सामूहिक स्मृतियों और सांस्कृतिक पहचान का भी महत्वपूर्ण आधार बनती है। विविध सांस्कृतिक शहर में, हर गंध एक कहानी कहती है, मस्जिदों से उठती इत्र की खुशबू, मंदिरों में चढ़ाई गई चंदन और फूलों की सुगंध, मिठाई की दुकानों से आती खोये की महक, या फिर सर्दियों की सुबह में जलते उपलों की स्मृति। ये सब गंधें सिर्फ वातावरण का हिस्सा नहीं, बल्कि मेरठ की सामाजिक आत्मा का निर्माण करती हैं। कोई नई किताब जब खुलती है तो उसमें से आती स्याही की महक बचपन के स्कूल और लाइब्रेरी की याद दिला देती है। शादी में जलाए जाने वाले धूप और हवन की सुगंध रिश्तों और परंपराओं का स्मरण कराती है। इन गंधों के माध्यम से पीढ़ियाँ एक-दूसरे से जुड़ती हैं, माँ की रसोई की महक बेटी की याद बन जाती है, दादी के इत्र की खुशबू पोते के लिए दुलार का प्रतीक। इन अनुभवों में गंध वह अदृश्य धागा बन जाती है जो हमारे व्यक्तिगत अनुभवों को सामाजिक संस्कृति से जोड़ती है और हमें हमारी सामूहिक जड़ों से जोड़ती है।

संदर्भ-

https://shorturl.at/GuFyF 

https://shorturl.at/6bDxY 

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