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उत्तराखंड के चमोली ज़िले के पैंखण्डा घाटी में स्थित सालूर डूंगरा गांव में हर साल बैसाखी के बाद रम्माण उत्सव मनाया जाता है। यह न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह एक जीवंत लोक रंगमंच भी है, जो भगवान भूमियाल देवता को समर्पित होता है। यह परंपरा पूरी तरह से स्थान विशेष और समय विशेष से जुड़ी है और यही इसकी विशिष्टता है। रम्माण की प्रस्तुति न तो किसी और जगह की जाती है और न ही किसी अन्य समय पर। रम्माण की शुरुआत गणेश वंदना से होती है और इसके बाद विभिन्न देवताओं और पात्रों की झाँकियाँ व नाट्य प्रस्तुतियाँ होती हैं। लोकगीतों और जैगर (स्थानीय कथाओं की संगीतात्मक प्रस्तुति) के माध्यम से रामायण से लेकर ग्राम्य जीवन के विभिन्न पक्षों का चित्रण किया जाता है। भूमियाल देवता जिस घर में वर्षभर निवास करते हैं, वह परिवार विशेष नियमों का पालन करता है और रोज़ पूजा-अर्चना करता है।
पहले वीडियो के माध्यम से हम जानेंगे कि रम्माण उत्सव क्या है और इसकी खासियतें क्या हैं।
रम्माण का मुखौटा और श्रृंगार पक्ष भी बहुत रोचक होता है। लकड़ी के मुखौटे स्थानीय पेड़ों से बनाए जाते हैं और उनके रंग-रोगन में शहद, हल्दी, आटा, तेल, कालिख और पौधों का प्रयोग होता है। यह प्रक्रिया स्वयं एक धार्मिक कर्मकांड मानी जाती है। रम्माण का आध्यात्मिक, सामाजिक और पारिस्थितिक (ecological) संदर्भ भी बहुत गहरा है। संयुक्त राष्ट्र की यूनेस्को संस्था ने 2009 में रम्माण को अमूर्त सांस्कृतिक विरासत (Intangible Cultural Heritage) की सूची में शामिल किया, जिससे इसकी वैश्विक महत्ता भी सिद्ध होती है।
इस उत्सव की सबसे ख़ास बात यह है कि इसमें गांव के हर जाति और वर्ग की विशिष्ट भूमिका होती है - ब्राह्मण पुजारी मंदिर की पूजा और प्रसाद की व्यवस्था देखते हैं, क्षत्रिय भंडारी परिवार नरसिंह देवता का पवित्र मुखौटा पहनते हैं, ‘बारी’ और ‘धारी’ आयोजन की ज़िम्मेदारी संभालते हैं, और दास जाति के ढोलवादक रम्माण का संगीत पक्ष सँभालते हैं, जिनका स्थान उस समय सामाजिक रूप से ऊँचा माना जाता है। ‘जागरी’ या ‘भल्ला’ जाति के गायक लोककथाओं और वीरगाथाओं का गायन करते हैं। रम्माण केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक जीवंत सामाजिक दस्तावेज़ है, जो ग्रामीण जीवन, कृषि, प्रकृति और देवता के बीच संतुलन को दर्शाता है। यह लोक पर्व हमें अपनी जड़ों, परंपराओं और सामूहिकता की भावना से जोड़ता है।
नीचे दिए गए वीडियो में हम रम्माण उत्सव की एक झलक देखेंगे और इसके बारे में जानेंगे।
संदर्भ-