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मेरठवासियो, क्या आपने कभी गहराई से यह विचार किया है कि भगवद् गीता, जिसे हम केवल धार्मिक ग्रंथ समझते हैं, वास्तव में हमारे धर्म, संस्कृति और आध्यात्मिक चेतना की नींव है? यह ग्रंथ न केवल पूजा-पाठ की विधियों का सार है, बल्कि जीवन की जटिलताओं से निपटने का दार्शनिक दृष्टिकोण भी प्रदान करता है। भगवद् गीता की शिक्षाएं आज केवल भारत तक सीमित नहीं रहीं, बल्कि इसने विश्वभर के लेखकों, विचारकों और दार्शनिकों को भी गहराई से प्रभावित किया है। एल्डस हक्सले (Aldous Huxley) से लेकर जे. डी. सालिंगर (जे. डी. सालिंगर) तक, कई वैश्विक लेखक गीता के ज्ञान से इतने प्रेरित हुए कि उन्होंने इसे न केवल पढ़ा, बल्कि अपने जीवन-दर्शन और साहित्यिक रचनाओं में भी उतारा। मेरठ, जो शिक्षा, साहित्य और संस्कृति की मजबूत परंपरा वाला शहर है, के निवासियों के लिए यह विषय और भी दिलचस्प हो जाता है। आज हम जानेंगे कि कैसे इस प्राचीन ग्रंथ ने सीमाओं से परे जाकर मानव चेतना को छुआ, और किन विदेशी लेखकों ने इसके माध्यम से आत्मबोध, कर्मयोग और ब्रह्मज्ञान की राह पकड़ी।
इस लेख में हम जानेंगे कि भगवद् गीता का प्रभाव किन-किन विदेशी लेखकों और विचारकों पर पड़ा और उन्होंने इसे कैसे आत्मसात किया। फिर हम एल्डस हक्सले जैसे दार्शनिक लेखक के दृष्टिकोण से गीता की प्रस्तावना और द पेरेनियल फिलॉसफी (Perennial Philosophy) यानी ‘चिरस्थायी दर्शन’ के चार मौलिक सिद्धांतों को समझेंगे। इसके बाद, हम जानेंगे कि जेरोम डेविड सालिंगर जैसे विश्वविख्यात लेखक के जीवन में गीता और वेदांत का क्या स्थान था। अंत में, हम गीता के सबसे प्रसिद्ध सिद्धांत ‘कर्म योग’ और इसके सालिंगर के लेखन और जीवन पर प्रभाव का विश्लेषण करेंगे।
भगवद् गीता का वैश्विक प्रभाव और विदेशी लेखकों पर इसका प्रभाव
भगवद् गीता का प्रभाव केवल भारतीय उपमहाद्वीप तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसने विश्व भर के दार्शनिकों, वैज्ञानिकों, लेखकों और कलाकारों को भी गहराई से प्रभावित किया है। यह ग्रंथ केवल एक धार्मिक या पौराणिक दस्तावेज नहीं, बल्कि जीवन के गूढ़ सत्य, आत्मा और चेतना के रहस्यों का ऐसा दार्शनिक मार्गदर्शन है, जिसने संस्कृति की सीमाओं को लांघते हुए वैश्विक सोच को दिशा दी है। जे. रॉबर्ट ओपेनहाइमर (J. Robert Oppenheimer) जैसे वैज्ञानिक ने गीता के श्लोकों को परमाणु परीक्षण के समय स्मरण किया था, जो इस ग्रंथ की गूढ़ता को दर्शाता है। हेनरी डेविड थोरो (Henry David Thoreau) ने इसे “अद्वितीय और कालातीत ज्ञान का स्रोत” कहा। निकोला टेस्ला (Nikola Tesla), राल्फ वाल्डो एमर्सन (Ralph Waldo Emerson), कार्ल जंग (Carl Jung) और हरमन हेस (Hermann Hesse) जैसे विचारकों ने गीता के माध्यम से आत्मा और ब्रह्मांड के रहस्यों को समझने की कोशिश की। वहीं संगीतकार जॉर्ज हैरिसन (George Harrison) ने भी गीता के भावों को अपनी रचनाओं में समाहित किया।
एल्डस हक्सले: भगवद् गीता के पाठक, प्रस्तावना लेखक और 'चिरस्थायी दर्शन' के सिद्धांत
एल्डस हक्सले, ब्रिटिश साहित्य और दर्शन के एक प्रमुख नाम हैं, जिन्होंने अपने जीवन में लगभग 50 महत्वपूर्ण कृतियाँ लिखीं, जिनमें उपन्यास, निबंध, कविताएँ और लघु कथाएँ शामिल हैं। वे न केवल एक प्रतिभाशाली लेखक थे, बल्कि एक गहन चिंतक भी, जिन्होंने पूर्वी दर्शन, विशेषतः भगवद् गीता से प्रभावित होकर आध्यात्मिकता की ओर रुख किया। हक्सले ने 1944 में स्वामी प्रभावानंद और क्रिस्टोफर ईशरवुड (Christopher Isherwood) द्वारा अनूदित "भगवद् गीता, द सॉन्ग ऑफ गॉड" (Bhagavad Gita, The Song of God) की प्रस्तावना लिखी, जिसे दक्षिणी कैलिफोर्निया (California) की वेदांत सोसायटी (society) ने प्रकाशित किया। इस प्रस्तावना में उन्होंने गीता के भावों और शिक्षाओं की प्रशंसा करते हुए उसे आधुनिक पश्चिमी पाठकों के लिए प्रासंगिक बनाने की कोशिश की। उनकी एक विशेष कृति द पेरेनियल फिलॉसफी (The Perennial Philosophy), जिसे हिंदी में 'चिरस्थायी दर्शन' कहा जा सकता है, एक गहन आध्यात्मिक ग्रंथ है, जिसमें उन्होंने विश्व के विभिन्न धर्मों में पाए जाने वाले रहस्यवाद की तुलनात्मक विवेचना की है। इसमें वर्णित चार प्रमुख सिद्धांत इस प्रकार हैं:
इन सिद्धांतों में भगवद् गीता की छाया स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है, विशेषकर ब्रह्म और आत्मा के बीच के संबंध को लेकर। हक्सले का मानना था कि गीता केवल एक धर्मग्रंथ नहीं, बल्कि एक सार्वभौमिक चेतना का मार्गदर्शक है।
जेरोम डेविड सालिंगर और भगवद् गीता से उनका जुड़ाव
अमेरिकी साहित्य में द कैचर इन द राई (The Catcher in the Rye) जैसे कालजयी उपन्यास के लेखक जे. डी. सालिंगर (J.D. Salinger) का जीवन और चिंतन भी भगवद् गीता और वेदांत दर्शन से गहराई से जुड़ा हुआ था। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, उनका रुझान पश्चिमी भौतिकवाद से हटकर पूर्वी अध्यात्म की ओर बढ़ा। उन्होंने न्यूयॉर्क (New York) स्थित रामकृष्ण-विवेकानंद केंद्र में स्वामी निखिलानंद के मार्गदर्शन में वेदांत का अध्ययन करना शुरू किया। वेदांत के चार आश्रम - ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास - के सिद्धांतों ने सालिंगर के जीवन को एक नए दिशा दी। वे इन विचारों को केवल पढ़ते नहीं थे, बल्कि उन्हें अपने दैनिक जीवन और व्यक्तिगत निर्णयों में भी उतारते थे। उन्होंने सामाजिक जीवन से धीरे-धीरे दूरी बना ली और लेखन को केवल आत्मिक साधना का माध्यम माना, न कि प्रसिद्धि या व्यावसायिक सफलता का साधन।
भगवद् गीता का 'कर्म योग' सिद्धांत और उसका सालिंगर के जीवन में अनुप्रयोग
भगवद् गीता का एक प्रमुख और व्यापक रूप से उद्धृत किया जाने वाला श्लोक है–कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। अर्थात - मनुष्य का अधिकार केवल कर्म करने में है, फल की चिंता करना उसका धर्म नहीं है। जे. डी. सालिंगर ने इस सिद्धांत को न केवल आत्मसात किया, बल्कि इसे अपने जीवन का मूल मंत्र भी बना लिया। उन्होंने अपने जीवन के अंतिम 45 वर्षों तक लेखन किया, परंतु वह लेखन कभी प्रकाशित नहीं किया। उनके अनुसार, सच्चा लेखन वही है, जो बिना प्रशंसा, मान्यता या आर्थिक लाभ की अपेक्षा के किया जाए, ठीक उसी तरह जैसा भगवद् गीता में कहा गया है। उनकी प्रसिद्ध रचना फ्रैनी एंड ज़ूई (Franny and Zooey) इसी दर्शन पर आधारित है। यह उपन्यास आत्मा की खोज, आंतरिक संघर्ष और ईश्वर की ओर झुकाव जैसे विषयों को सामने लाता है। यह पाठक को यह सोचने पर मजबूर करता है कि जीवन का उद्देश्य केवल भौतिक उपलब्धियाँ नहीं, बल्कि आत्मिक शांति और ईश्वर से एकात्मता की ओर बढ़ना भी है। सालिंगर के जीवन और लेखन दोनों में यह स्पष्ट दिखाई देता है कि भगवद् गीता का कर्म योग दर्शन न केवल सैद्धांतिक था, बल्कि उन्होंने इसे व्यवहार में जीकर दिखाया।
संदर्भ-
https://shorturl.at/seimW