मेरठ की थाली में चावल: परंपरा, विज्ञान और सुनहरे भविष्य की कहानी

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मेरठ की थाली में चावल: परंपरा, विज्ञान और सुनहरे भविष्य की कहानी

मेरठवासियो, हमारी थाली में अगर कोई अनाज सबसे ज़्यादा अपनापन और सुकून लेकर आता है, तो वह है, चावल। चाहे ईद के मौके पर सुगंध से महकती बिरयानी हो, तीज-त्योहार पर बनने वाली खीर की मिठास हो या फिर सर्दी की शाम में गरमा-गरम खिचड़ी, चावल हर स्वाद में अपनी सादगी और अपनापन घोल देता है। यह अनाज सिर्फ पेट भरने के लिए नहीं, बल्कि हमारी परंपराओं और संस्कृति का हिस्सा बन चुका है। बचपन की यादों में खेतों की लहलहाती धान की बालियां, कटाई के बाद घर में बिखरी उनकी महक और त्योहारों में पकने वाले चावल के पकवान, सब कुछ जुड़ा है इसी एक फसल से। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि हमारे देश और दुनिया में चावल की कितनी किस्में होती हैं? भारत अकेले ही लगभग 40,000 प्रकार के चावल का घर है, और हर इलाके की अपनी खास किस्म और स्वाद है। फिर सवाल उठता है, जब विज्ञान इतना आगे बढ़ चुका है, तो क्यों भारत ने अब तक आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM - Genetically Modified) चावल, यानी जीएम चावल (GM rice) की खेती को मंज़ूरी नहीं दी? और आखिर ये गोल्डन राइस (Golden Rice) जैसी नई तकनीकें क्या हैं, जिन पर दुनिया में इतनी चर्चा हो रही है? इस लेख में हम इन्हीं सवालों के जवाब खोजेंगे।
इस लेख में हम चावल और उससे जुड़े कुछ अहम पहलुओं को विस्तार से समझने की कोशिश करेंगे। सबसे पहले बात करेंगे भारत में चावल की महत्ता और उसकी अद्भुत विविधता की, जहां यह केवल एक फसल नहीं बल्कि हमारी संस्कृति और जीवन का हिस्सा है। इसके बाद जानेंगे देश में उगाई जाने वाली प्रमुख किस्मों के बारे में, जिनकी सुगंध और स्वाद ने भारत की रसोई को समृद्ध बनाया है। फिर हम देखेंगे कि आनुवंशिक रूप से संशोधित यानी जीएम (GM) चावल को लेकर भारत का रुख क्या है और देश ने इस दिशा में इतनी सावधानी क्यों बरती है। चौथे पहलू के रूप में, दुनिया के अलग-अलग देशों में जीएम चावल, खासकर गोल्डन राइस के इतिहास और विकास को समझेंगे। और अंत में, इस गोल्डन राइस से जुड़े विवादों और लोगों की प्रतिक्रियाओं पर नजर डालेंगे, जहां एक ओर विज्ञान की उम्मीद है तो दूसरी ओर परंपरा और सावधानी की चिंता।

भारत में चावल की महत्ता और विविधता
भारत में चावल सिर्फ एक अनाज नहीं है, यह हमारी परंपरा, हमारी संस्कृति और हमारे जीवन का हिस्सा है। खेतों में लहराती धान की बालियों की हरियाली केवल भोजन का स्रोत नहीं बल्कि किसानों के चेहरे पर मुस्कान और गांव की मिट्टी में बसी खुशबू का प्रतीक है। भारत के मौसम और मिट्टी की अनूठी विविधता ने लगभग 40,000 से भी अधिक किस्मों को जन्म दिया है। उत्तर के मैदानी इलाकों से लेकर पूर्वोत्तर की पहाड़ियों और दक्षिण के तटीय इलाकों तक, हर क्षेत्र ने चावल की अपनी-अपनी पहचान बनाई है। खासकर पूर्वी और दक्षिणी भारत के बरसाती खेत, जहां खरीफ के मौसम में धान की लहरें समुद्र जैसी लय में हिलती हैं, हमारे देश की आत्मा का हिस्सा हैं। यह अनाज हमारी थाली में सिर्फ खिचड़ी, बिरयानी, इडली, डोसा या खीर बनकर नहीं आता, बल्कि हमारे त्योहारों, रस्मों और रिश्तों में भी शामिल होता है।

भारत की प्रमुख चावल की किस्में
भारत में चावल की किस्में इतनी विविध हैं कि हर राज्य का स्वाद अलग है। सबसे पहले बात करें बासमती की, जो अपनी लंबी, पतली और सुगंधित दानों के कारण दुनिया भर में मशहूर है। जैस्मीन चावल (Jasmine Rice) का हल्का मीठा स्वाद, जो थाईलैंड (Thailand) से आया और अब भारत की रसोई में भी अपनापन पा चुका है। लाल चावल की पौष्टिकता और उसका गाढ़ा रंग, जो दक्षिण भारत के खानपान में ऊर्जा भरता है। मध्य प्रदेश का मोगरा चावल, अपनी नाज़ुक बनावट के कारण, करी और व्यंजनों में घुलकर स्वाद को निखार देता है। स्वास्थ्य के प्रति सजग लोगों के लिए ब्राउन चावल (Brown Rice) एक वरदान है, क्योंकि इसमें चोकर की परत बनी रहती है। वहीं काला चावल, जिसे कभी "निषिद्ध चावल" कहा जाता था, अपने गहरे रंग और एंटीऑक्सीडेंट (Antioxidant) गुणों के कारण आज फिर से लोकप्रिय हो रहा है। आंध्र प्रदेश का सोना मसूरी, महाराष्ट्र का अम्बेमोहर, झारखंड और पूर्वोत्तर का बांस चावल, और काला जीरा, ये सभी अपने स्वाद, सुगंध और संस्कृति का अलग ही अनुभव देते हैं। हर एक किस्म में भारत की मिट्टी की महक और इतिहास की परतें छुपी हैं।

भारत में आनुवंशिक रूप से संशोधित चावल पर प्रतिबंध
आज के दौर में जब कृषि तकनीक तेजी से बदल रही है, भारत ने आनुवंशिक रूप से संशोधित यानी जीएम चावल को लेकर बेहद सावधानी अपनाई है। भारत सरकार ने अब तक किसी भी प्रकार के जीएम चावल को न खेती के लिए, न निर्यात के लिए, और न ही उपभोग के लिए अनुमति दी है। इसकी पुष्टि भारत के वाणिज्य मंत्रालय ने भी की है। इसका एक बड़ा कारण है हमारी खाद्य सुरक्षा और हमारी प्राकृतिक विविधता की रक्षा करना। पारंपरिक चावल की किस्में, जो पीढ़ी दर पीढ़ी किसानों ने बचाई हैं, वे न केवल हमारी थाली में स्वाद देती हैं बल्कि खेतों में मिट्टी, जलवायु और स्थानीय जैव विविधता से जुड़ी होती हैं। अगर जीएम तकनीक बिना सोचे-समझे लागू की जाए तो इन किस्मों पर खतरा हो सकता है। इसलिए भारत ने यह रास्ता बेहद सोच-समझकर और सतर्कता के साथ चुना है।

दुनिया में जीएम चावल और 'गोल्डन राइस' का इतिहास
दुनिया के कई देशों ने हालांकि जीएम चावल पर प्रयोग किए हैं। 1999-2000 में वैज्ञानिकों ने एक अनोखी कोशिश की, उन्होंने 'गोल्डन राइस' नाम की एक विशेष किस्म विकसित की। इस चावल में बीटा-कैरोटीन (Beta Carotene) नामक पोषक तत्व जोड़ा गया, जो शरीर में विटामिन ए (Vitamin A) में बदलता है। इसका उद्देश्य था उन गरीब देशों में विटामिन ए की कमी को दूर करना, जहां बच्चों को इस कमी के कारण गंभीर बीमारियाँ होती हैं। अमेरिका, कनाडा, चीन, मैक्सिको (Mexico) और ऑस्ट्रेलिया में इस चावल पर परीक्षण हुए। 2018 में कनाडा और अमेरिका ने इसे सुरक्षित घोषित किया और 2021 में फिलीपींस (Philippines) पहला देश बना जिसने गोल्डन राइस की व्यावसायिक खेती को मंजूरी दी। यह प्रयोग विज्ञान और मानवता के मिलन का एक प्रयास था, जहां तकनीक ने पोषण की कमी से लड़ने का सपना देखा।

गोल्डन राइस पर विवाद और प्रतिक्रियाएँ
लेकिन गोल्डन राइस की कहानी इतनी सीधी नहीं रही। जहां एक ओर इसे विटामिन ए की कमी से बचाने के लिए एक उम्मीद की किरण माना गया, वहीं दूसरी ओर इसने कई विवाद खड़े कर दिए। कई संगठनों का कहना है कि अगर जीएम चावल खेतों में फैले तो यह प्राकृतिक किस्मों को नुकसान पहुँचा सकता है। इसके अलावा, छोटे किसानों की आजीविका और बीजों पर उनका नियंत्रण कम हो सकता है। कुछ का मानना है कि विटामिन ए की कमी को दूर करने के लिए फलों, हरी सब्जियों और स्थानीय आहार को बढ़ावा देना ज्यादा आसान और सस्ता उपाय है। इसी वजह से भारत सहित कई देशों ने अभी तक गोल्डन राइस को अपनाने का निर्णय नहीं लिया है। इस बहस में एक ओर विज्ञान की उम्मीद है तो दूसरी ओर सावधानी और परंपरा को बचाने की चाह, और यह संघर्ष अभी भी जारी है।

संदर्भ-

https://shorturl.at/gGvh0