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दुर्गा विसर्जन, दुर्गा पूजा उत्सव का समापन है, जब भक्त माँ दुर्गा को श्रद्धा और भावनाओं के साथ विदा करते हैं। यह विसर्जन विजयादशमी के दिन होता है, जो बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक माना जाता है। विसर्जन का शुभ मुहूर्त अत्यंत महत्वपूर्ण होता है और इसे श्रवण नक्षत्र तथा दशमी तिथि में करना श्रेष्ठ माना गया है। पारंपरिक रूप से दोपहर का समय उपयुक्त माना गया है, हालांकि आजकल कई स्थानों पर प्रातःकाल भी विसर्जन की परंपरा अपनाई जाने लगी है। दुर्गा पूजा भारत के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। विशेषकर पश्चिम बंगाल, असम, ओडिशा, झारखंड और त्रिपुरा में इसे अत्यंत भव्यता से मनाया जाता है। इसके अलावा दिल्ली, उत्तर प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र जैसे अनेक राज्यों में भी दुर्गा उत्सव और नवरात्रि बड़ी श्रद्धा और धूमधाम के साथ आयोजित होते हैं। यह उत्सव सामान्यतः नौ दिनों तक चलता है, लेकिन कई लोग इसे पाँच या सात दिनों तक भी मनाते हैं। षष्ठी से पूजा प्रारंभ होकर दशमी के दिन विसर्जन के साथ इसका समापन होता है।
सनातन धर्म में विसर्जन का गहरा दार्शनिक महत्व है। यह केवल किसी उत्सव का अंत नहीं, बल्कि उसकी पूर्णता का प्रतीक है। दुर्गा पूजा में माँ दुर्गा की प्रतिमा का विसर्जन इस बात का द्योतक है कि नौ दिनों की आराधना के बाद हम उन्हें उन पंचतत्वों में लौटा रहे हैं, जिनसे उनका स्वरूप निर्मित हुआ था। यह हमें सिखाता है कि भौतिक रूप क्षणभंगुर है, जबकि दिव्यता अनंत और शाश्वत है। मूर्ति का विसर्जन सृजन, पालन और संहार के चक्र की याद दिलाता है और यह विश्वास भी कि माँ दुर्गा हर वर्ष लौटकर आएँगी। विसर्जन के दिन भक्त विशाल शोभायात्राएँ निकालते हैं। ढोल-नगाड़ों की धुन, भक्ति गीतों की गूँज और उत्साहपूर्ण वातावरण में माँ दुर्गा की प्रतिमा को नदियों, तालाबों या समुद्र में विसर्जित किया जाता है। यह पल भावनात्मक भी होता है क्योंकि भक्त माँ को विदा करते हैं, जिन्हें शक्ति स्वरूपा, करुणामयी और जगत की पालनहार माना जाता है। मान्यता है कि कैलाश पर्वत लौटने से पहले माँ अपने भक्तों की मनोकामनाएँ पूर्ण करती हैं। इसलिए दुर्गा विसर्जन केवल विदाई नहीं, बल्कि श्रद्धा, विश्वास और पुनर्मिलन की आशा का उत्सव भी है।
संदर्भ-
https://shorturl.at/43AZu
https://shorturl.at/VHFtF
https://tinyurl.com/29mpz9e4
https://short-link.me/1cjbj
https://tinyurl.com/aayf8mfu