क्यों मेरठवासियों को हवाई यात्रा से बढ़ते प्रदूषण और उसके असर पर ध्यान देना ज़रूरी है?

य़ातायात और व्यायाम व व्यायामशाला
18-09-2025 09:22 AM
क्यों मेरठवासियों को हवाई यात्रा से बढ़ते प्रदूषण और उसके असर पर ध्यान देना ज़रूरी है?

मेरठ जैसे गतिशील और तेजी से उभरते शहर में हवाई यात्रा की आवश्यकता अब केवल एक लग्ज़री (luxury) नहीं, बल्कि एक आवश्यकता बनती जा रही है। शिक्षा, स्वास्थ्य, व्यापार और पर्यटन के क्षेत्र में सक्रिय मेरठवासियों के लिए दिल्ली, इंदौर या देहरादून जैसे प्रमुख हवाई अड्डों तक बार-बार की आवाजाही अब सामान्य बात हो गई है। परंतु जिस गति से हवाई यातायात का विस्तार हो रहा है, उसी अनुपात में इसके पीछे छिपे पर्यावरणीय प्रभावों पर सोचने की ज़रूरत भी बढ़ गई है। क्या आपने कभी इस पर विचार किया है कि एक लंबी दूरी की उड़ान से जितनी कार्बन डाइऑक्साइड (carbon dioxide) वातावरण में घुलती है, वह हमारे शहर की हवा को कितना प्रभावित कर सकती है? यह केवल आंकड़ों की बात नहीं है - यह हमारे फेफड़ों, हमारे जल स्रोतों, और हमारे बच्चों के भविष्य से जुड़ा हुआ मुद्दा है। हवाई जहाजों से निकलने वाली हानिकारक गैसें, ज़हरीले कण और शोर हमारे आस-पास की पारिस्थितिकी को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहे हैं। और जब मेरठ जैसे शहर में एयर कनेक्टिविटी (air connectivity) बढ़ाने की योजनाएँ बन रही हों, तब यह और भी ज़रूरी हो जाता है कि हम इस मुद्दे की पर्यावरणीय कीमत को भी समझें। ऐसे समय में जब हम विकास की उड़ान भरना चाहते हैं, हमें यह भी तय करना होगा कि यह उड़ान हमारे आसमान को और काला न कर दे। इस लेख के माध्यम से हमारा प्रयास है कि हम इस ज़रूरी विषय को आपके सामने मानवीय और वैज्ञानिक दोनों दृष्टिकोणों से रखें - ताकि विमानन की गति और प्रकृति की शांति में संतुलन बना रहे।
इस लेख में हम कुछ प्रमुख बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित करेंगे। सबसे पहले, हम समझेंगे कि विमानन उद्योग का पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ता है और यह वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में कैसे योगदान देता है। इसके बाद, हम वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण और स्वास्थ्य पर होने वाले जोखिमों का विश्लेषण करेंगे। आगे, विमानों में उत्सर्जन कम करने की तकनीकों और ऊर्जा दक्षता बढ़ाने वाले उपायों पर चर्चा होगी। हम जैव ईंधन और हरित ऊर्जा के योगदान तथा अंतरराष्ट्रीय उदाहरणों की भी पड़ताल करेंगे। इसके साथ ही भारत में विमानन क्षेत्र के सतत विकास हेतु चल रहे प्रयासों को समझेंगे। अंत में, हम उन नीति संबंधी उपायों पर ध्यान देंगे जो पर्यावरण संरक्षण और विमानन विकास के बीच संतुलन बना सकते हैं।

विमानन उद्योग और पर्यावरण पर प्रभाव
आज का विमानन उद्योग आधुनिक जीवनशैली का अभिन्न हिस्सा बन चुका है। यह हमारी गति, संपर्क और वैश्विक व्यापार के लिए एक अत्यंत आवश्यक साधन है, लेकिन इसके पर्यावरणीय दुष्प्रभाव को अब नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में विमानन उद्योग का लगभग 2% योगदान है, जो आंकड़ों में छोटा लग सकता है, लेकिन इसका जलवायु पर प्रभाव कहीं अधिक व्यापक और गंभीर है। विमानों के जेट इंजन (jet engine) भारी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड (nitrogen oxide), वाष्प पुंज और अन्य सूक्ष्म कण उत्सर्जित करते हैं, जो वातावरण की ऊपरी परतों में जाकर ग्लोबल वार्मिंग (global warming) के लिए ज़िम्मेदार होते हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि एक लंबी दूरी की उड़ान से जितना उत्सर्जन होता है, उतना उत्सर्जन कई लोग एक वर्ष में नहीं करते। उड़ानों के दौरान होने वाला ध्वनि प्रदूषण भी एक बड़ी चिंता का विषय है, जिससे हवाई अड्डों के आसपास के निवासियों की जीवन गुणवत्ता प्रभावित होती है। वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के इस प्रत्यक्ष संबंध को समझते हुए अब समय आ गया है कि हम विमानन को केवल सुविधा की नज़र से न देखकर, उसे एक जिम्मेदार उद्योग के रूप में देखें जो पृथ्वी के पर्यावरण के प्रति जवाबदेह है।

वायु प्रदूषण और स्वास्थ्य जोखिम
विमानन उद्योग का प्रभाव केवल वातावरण तक सीमित नहीं है, यह हमारे स्वास्थ्य पर भी प्रत्यक्ष प्रभाव डालता है। उड़ानों के समय उत्पन्न होने वाला ध्वनि प्रदूषण इतना तीव्र होता है कि इससे बच्चों की एकाग्रता भंग होती है, नींद में खलल आता है और वृद्धों को हृदय संबंधित बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। उच्च आवृत्ति की ध्वनि हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर डालती है, जो धीरे-धीरे अवसाद और तनाव जैसी समस्याओं को जन्म दे सकती है। इसके अलावा, विमानों के ईंधन में प्रयुक्त होने वाले रसायनों में सीसा, सल्फर (sulfur) और कई विषैले तत्त्व होते हैं जो वायुमंडल में फैलने के बाद हमारे फेफड़ों, रक्तचाप और संज्ञानात्मक विकास को प्रभावित करते हैं। हवाई अड्डों से निकलने वाले ईंधन अपशिष्ट और रासायनिक जल, पास के जलस्रोतों को दूषित कर सकते हैं, जिससे स्थानीय आबादी और जैवविविधता को गंभीर खतरा होता है। अति सूक्ष्म कण (PM2.5 और PM0.1) श्वसन तंत्र में गहराई तक प्रवेश कर शरीर में दीर्घकालिक बीमारियाँ उत्पन्न करते हैं। इसलिए विमानन उद्योग को केवल आर्थिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी पुनर्विचार की आवश्यकता है।

विमानन उद्योग में उत्सर्जन कम करने की तकनीकें
भविष्य के लिए एक हरित विमानन प्रणाली बनाना संभव है, बशर्ते हम तकनीकी नवाचार और व्यवहारिक रणनीतियों को अपनाएं। आज अनेक विमान कंपनियां ईंधन दक्षता में सुधार लाने वाले तकनीकों पर कार्य कर रही हैं। नए युग के जेट इंजन पुराने इंजनों की तुलना में कम ईंधन जलाते हैं और अपेक्षाकृत कम प्रदूषण फैलाते हैं। इसके अतिरिक्त, टर्बोफैन इंजन (turbofan engine) और कम नॉइज़ वाली डिज़ाइनें (low noise designs) भी पर्यावरण पर असर घटाने में मदद करती हैं। उड़ान मार्गों का अनुकूलन (Flight Path Optimization) और एयर ट्रैफिक मैनेजमेंट (air traffic management) में सुधार करके, उड़ानों की देरी और अनावश्यक ईंधन दहन को कम किया जा सकता है। छोटी दूरी की उड़ानों को तेज़ रेल सेवाओं से बदलने की योजना भी अब व्यवहारिक बन रही है, जिससे कार्बन उत्सर्जन में कमी आएगी। हाइब्रिड (Hybrid), इलेक्ट्रिक (Electric) और हाइड्रोजन (Hydrogen) से चलने वाले विमानों पर हो रहा वैश्विक अनुसंधान आने वाले दशक में क्रांति ला सकता है। इन सभी प्रयासों से न केवल पर्यावरण को लाभ होगा, बल्कि एयरलाइन कंपनियों की लागत भी घटेगी, जिससे उद्योग और उपभोक्ता दोनों को फायदा होगा।

जैव ईंधन और हरित ऊर्जा का योगदान
विमानन में जैव ईंधन का उपयोग वर्तमान समय में सबसे प्रभावी और व्यवहारिक समाधान माना जा रहा है। जैव ईंधन पौधों, वनस्पति तेलों, और जैविक अपशिष्ट से बनाया जाता है, जो कार्बन-तटस्थ (Carbon Neutral) होता है। जैव ईंधन के उपयोग से सीओ2 (CO2) उत्सर्जन में 60–80% तक की कमी लाई जा सकती है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नॉर्वे (Norway) के ओस्लो हवाई अड्डे (Oslo Airport) और फ्लोरिडा (Florida, USA) के टाम्पा हवाई अड्डे (Tampa Airport) जैव ईंधन अपनाकर उदाहरण बन चुके हैं। भारत में भी यह संभावना तेज़ी से विकसित हो रही है। भारतीय हवाई अड्डे और विमान कंपनियां यदि हरित ऊर्जा परियोजनाओं में निवेश करें, तो न केवल उनका पर्यावरणीय प्रभाव घटेगा, बल्कि उनकी ब्रांड (brand) छवि भी सुधरेगी। जैव ईंधन का प्रयोग ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी मज़बूती दे सकता है क्योंकि इसके लिए किसान जैविक अपशिष्ट और फसलों से अतिरिक्त आय अर्जित कर सकते हैं। यदि नीतिगत सहयोग मिले, तो भारत एक वैश्विक हरित विमानन नेतृत्वकर्ता बन सकता है।

भारत में विमानन उद्योग के सतत विकास प्रयास
भारत में विमानन का विस्तार अभूतपूर्व है, लेकिन इसके साथ-साथ सतत विकास की चुनौतियाँ भी जुड़ी हुई हैं। ईंधन दक्षता बढ़ाने के लिए सरकार और निजी विमानन कंपनियाँ मिलकर कई योजनाओं पर काम कर रही हैं। कई नए विमानों को केवल इस दृष्टि से खरीदा गया है कि वे पर्यावरण पर कम दुष्प्रभाव डालें। उड़ान मार्गों को व्यवस्थित करके, टैक्सी (taxi) समय घटाकर और हवाई यातायात प्रणाली को डिजिटल बनाकर ईंधन की खपत को कम किया जा रहा है। भारतीय प्रबंधन संस्थान इंदौर और लिवरपूल विश्वविद्यालय के संयुक्त अध्ययन में सुझाव दिया गया है कि हवाई अड्डों और विमान कंपनियों के बीच राजस्व साझेदारी से हरित निवेश को बढ़ावा मिल सकता है। यदि हवाई अड्डा अपने मुनाफे का एक भाग विमान कंपनियों को वापस दे, और कंपनियाँ उसे हरित तकनीक पर खर्च करें, तो यह पारस्परिक सहयोग पूरे उद्योग को हरित दिशा में ले जा सकता है। भारत में यह मॉडल (model) अभी प्रारंभिक अवस्था में है, लेकिन इसकी संभावनाएँ बेहद मजबूत हैं।

सतत विकास और नीति संबंधी उपाय
सतत विमानन केवल तकनीक से नहीं, नीति और शासन की मजबूती से भी संभव है। भारत सरकार और अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियाँ मिलकर हरित विमानन के लिए नियम और प्रोत्साहन नीति बना रही हैं। जैसे - कार्बन टैक्स (carbon tax), हरित प्रमाणपत्र, जैव ईंधन अनुदान, और हरित इनफ्रास्ट्रक्चर क्रेडिट (Green Credit Programme) जैसी पहलें। पेरिस समझौता, 2050 तक शुद्ध-शून्य कार्बन उत्सर्जन (Net Zero Emissions) का लक्ष्य निर्धारित करता है, जिसे आईएटीए (IATA) ने अपनाया है। भारत भी इस दिशा में अपने प्रयास बढ़ा रहा है, जिससे आर्थिक वृद्धि और पर्यावरणीय जिम्मेदारी के बीच संतुलन बने। नीति निर्माण में नागरिक भागीदारी, पारदर्शिता और स्थानीय पर्यावरण हितधारकों को शामिल करना आवश्यक है। जब शासन, तकनीक और जनचेतना साथ काम करें, तभी विमानन का भविष्य वास्तव में ‘सतत’ बन सकेगा।

संदर्भ- 

https://shorturl.at/0rJcs 

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